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कुटिल भावना l

Chapter - 34

शाम हो जाती है...

श्रीशि महल लौट आती है वो जैसे ही वो अपने कदम सीढियों की ओर बढ़ाती है वैसे ही उसे एक बहुत प्यारी सी महक आती है वो अपने कदम पीछे कर लेती है और उस महक के पीछे जाने लगती है l

जब वो जा रही थी तो पीछे से कोई उसका पीछा कर रहा था श्रीशि उसक महक के पीछे जाती है और रसोईघर में रुक जाती है वो सामने देखती है कि कृशव खीर का बर्तन लेकर बैठा है और उस की महक लेते हुए कहता है - वाह वाह वाह वाह क्या महक है ऐसी खीर तो नसीब वालों को ही मिलती है मुझसे तो रुका नहीं जा रहा है l

उसे पता था कि श्री वहीँ खड़ी है लेकिन वो उसे सुनाने के लिए ऐसा बोल रहा था तभी वो उसकी तरफ देखता है और अनजान बनते हुए बोला जैसे उसे पता ही नहीं कि श्री वहाँ पर है - अरे राजकुमारी जी आप.. आप कब आई मुझे तो पता ही नहीं चला वो क्या है न मैं खीर खाने के लिए बेचैन हो रहा था और बस खाने ही जा रहा था लेकिन आप यहाँ कोई काम था l

श्री उसे देखते हुए बोली - ये मेरा महल है मैं कहीं भी आऊँ जाऊँ रसोई में आऊँ किसी के कमरे में जाऊँ तुम्हें उससे क्या अपना काम करो l

कृशव मुस्कुराया और बोला - अच्छा ठीक है मुझे लगा कि आप को भूख लगी होगी इसलिए मैंने पूछ लिया कोई बात नहीं ये खीर तो मैं ही खा लेता हूँ l

तभी सत्या बोला - जरूर राजकुमारी को भूख लगी होगी इसीलिए तो यहां आई है कहीं खीर की सुगंध तो अपनी तरफ नहीं न खिंच कर लाई है l

श्री ने उसे घूरा और कहा - तुम बहुत बोल रहा हो शांत रहो और ऐसी कोई बात नहीं है l

कृशव मुस्कुराया और बोला - तो फिर जाइए वैसे भी मुझे बहुत भूख लगी है ये स्वादिष्ट खीर देखकर तो मैं क्या ही बताऊँ मेरे पास इसके लिए कोई शब्द नहीं हैं तुम्हें खाना तो है नहीं कम से कम मैं ही खा लेता हूँ l

कृशव इतना कहकर वहीँ बैठ जाता है और खीर का बर्तन देख मुस्कराने लगा कृशव ने जैसे ही खीर हाथ में लेकर मुँह में डालने ही वाला था तभी श्री ने उसका हाथ पकड़ लिया कृशव ने उसे देखा कि श्री उसके सामने बैठी है और उसका हाथ पकड़े हुए है उसने फिर भी खीर खाने की कोशिश की लेकिन श्री ने उसका हाथ मुँह में जाने ही नहीं दिया l

कृशव ने उसकी तरफ देखा तो श्री उसको देख मुस्करा रही थी कृशव ने कहा - क्या कर रही हो मुझे खाने दो l

और उसने फिर अपना हाथ मुँह की तरफ बढ़ा लिया श्री ने फिर रोका और बोली - अरे.. ऐसे कैसे तुम मुझे बिना खिलाए खाओगे l

कृशव उसको देखने तो श्री ने उसके हाथ में रखी खीर खाने लगी कृशव मुस्कराते हुए उसमें खो गया l

अगस्त्य ने उसे देखते हुए कहा - इसका तो सब कुछ गया समझो अब खीर भी l

श्री ने उसके हाथ से खीर का बर्तन ले लिया और बैठकर आराम से खाने लगी कृशव बस प्यार से उसे खाते हुए देख रहा था सत्या उसका कंधा पकड़ उसे झकझोरता है कृशव अपने होश में आता है वो देखता है कि सारी खीर श्री खा गयी है और आखिरी उसके हाथ में है जैसे ही वो खाने वाली थी कृशव ने उसका हाथ पकड़ लिया l

और बोला - तुमने मेरी सारी खीर खा डाली मैंने कितनी मेहनत से उसे बनाई थी और तुमने सारी खा ली अब मैं क्या खाऊँगा तुम्हीं बताओ l

वो झूठ का गुस्सा दिखाने लगता है और उदास सा बैठ जाता है उसे देख श्री बोली - वो.. वो..

कृशव - क्या वो वो कर रही हो पूछो इनसे मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया था अब तुम्हीं बताओ मैं क्या खाऊँ l

श्री ने उसकी ओर देख मासूमियत से बोली - वो मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया था और इस वजह से मुझे भूख लगी थी तो सारी खीर मैं खा गयी l

कृशव ने उसकी तरफ एक बार भी नहीं देखा फिर श्री बोली - मुझे माफ कर दो l

कृशव - तुम्हारे माफी मांगने से मेरी खीर मुझे वापस तो नहीं मिलेगी न जाने दो तुम जाओ आज मैं भूखा ही रहूँगा l

श्री को अपने ऊपर बहुत पछतावा हो रहा था फिर उसने अपने हाथ में खीर देखी उसने कहा - अगर तुम चाहो तो ये खा सकते हो लेकिन ये जूठी है l

कृशव उसकी तरफ देखता है और नाटक करते हुए कहता है - कोई बात नहीं अब भूख में तो इतना चलता रहता है l

श्री अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया कृशव ने मुँह खोला और श्री को देखते हुए खीर खा ली l

बाहर खड़े श्री के मामा मामी उन्हें देख रहे थे l

सुगंधा - देखा मैंने कहा था न कि इन दोनों के बीच कुछ न कुछ चल रहा है कोई न कोई संबंध जरूर है इनका देखो कैसे एक दूसरे को हाथ से खीर खिला रहे हैं जैसे एक दूसरे के प्रियतम हो अगर अभी कुछ नहीं किया न तो ये श्री कहीं शादी के लिए मना न कर दे l

राघव उस पर गुस्सा मरते हुए धीरे से बोला - कैसी बातें बोल रही हो तुम कुछ भी मत बोला करो और वो कुछ दिनों की मेहमान है चला लेने दो इनका प्रेम प्रसंग ये आनंद प्रदान करेगा जब बिछड़ेंगे तो सारा प्रेम नदी की तरह बह जाएगा और ये उसी में डूब जाएंगे l

और वैसे भी जब तक इसके पिता का अपमान तिरस्कार नहीं होगा तब तक मैं इस राज्य का राजा कैसे बनूँगा इस राज्य के प्रजा को भी तो मालूम होना चाहिए कि उसके राजा की पुत्री कैसी चरित्र की है l

उनकी इस कुटिल भावना को कृशव को पता लग गया और वो दरवाजे पर देखने लगा l

वो दोनों जा चुके थे कृशव के चेहरे पर चिंता की भावना दिख रही थी l

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