रात के दो बज रहे थे और कबीर अयोध्या में मकरही गांव बॉर्डर के किनारे पड़ने वाली घरारा नदी पार कर रहा था। दूर-दूर तक अंधेरा छाया हुआ था। एक गहरे सन्नाटे घरारा नदी को घेर के रखा हुआ था और उसी नदी के ऊपर काले बादल मंडरा रहे थे जिन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि किसी भी पल वह बरसने वाले है। नदी में घुटनों तक पानी था जो धीमी रफ्तार के साथ बहे जा रहा था।कबीर के एक हाथ में मोबाइल का टॉर्च था तो दूसरे हाथ में साईकिल का हैंडल। कबीर पैदल-पैदल मोबाइल के टॉर्च की रोशनी के सहारे नदी पार कर ही रहा था कि तभी उसका मोबाइल बजने लग जाता है।
कबीर फोन उठाते हुए कहता है –"हाँ माही,बोलो।"
मोबाइल के अंदर से एक औरत की आवाज सुनाई देती है – "कहाँ तक पहुँचे आप जी?"
"घरारा नदी तक पहुँच गया हूँ माही, बस ये घरारा नदी पार करी और फिर मैं सीधे तुम्हारे पास।"
घरारा नदी का नाम सुनते ही माही घबराते हुए कहती है – "क्या कहा घरारा नदी पार कर रहे हो आप!"
"और नहीं तो क्या, अब तुम्हें तो पता ही है कि हवेली से मकरही गाँव जाने का मात्र एक यही रास्ता है और वो भी नदी पार करके जाना पड़ता है।"
"आपको इतनी रात में वापस नहीं आना चाहिए था,मकराही हवेली में ही रुक जाना चाहिए था,आपको पता है ना नदी के पास वो घूमती है।"
कबीर हैरानी के साथ पूछता है – "वो घूमती है मतलब?"
"आपको सब पता है पर फिर भी आप जान बुझकर ऐसा बोल रहे है ना, माँ जी ने बताया था कि नदी पार करते वक्त उसका नाम नहीं लेना चाहिए वरना वो सच में आ जाती है।"
"माही, तुम भी ना कहाँ माँ की बातों में आ गयी, लगता है माँ ने तुम्हे भी पिशाचिनी की कहानी...."
कबीर अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही माही घबराते हुए कहती है – "सससस, चुप हो जाओ जी.... हे काली माँ मेरे पति की रक्षा करना और अनजाने में इनसे जो अनर्थ हुआ उसके लिए माफ कर देना, अब ये कभी उसका नाम नहीं लेंगे।"
कबीर हँसते हुए कहता है – "क्या माही तुम भी ना, ये पिशाचिनी–वीशाचिनी कुछ नहीं होती समझी तुम,ये सब- बस मनगढ़त बाते है जो गाँव वालो ने बनाई है और कुछ नहीं।"
"आप नहीं मानते तो मत मानिए पर मैं तो मानती हूँ, आप ना जल्दी से आ जाइये बस।"
"हाँ माही आ रहा हूँ, बस ये नदी तो पार कर लूँ पहले।"
"अच्छा मैं रखती हूँ।"
"अरे ऐसे कैसे…तुम्हें नहीं लगता तुम कुछ भूल रही हो।"
"मैं भूल रही हूँ, क्या भूल रही हूँ?"
"पिशाचिनी के बारे में याद रख सकती हो लेकिन ये याद नहीं रख सकती कि आज हमारी शादी की सालगिरह है।"
"गलती हो गयी जी माफ कीजिएगा, आपकी फिक्र में मैं तो भूल ही गयी थी।"
कबीर मुँह बनाते हुए कहता है – "अब भूल गयी थी तो उसकी सजा तो मिलेगी तुम्हें, सजा के लिए तैयार रहना।"
माही प्यार से पूछती है – "अच्छा तो क्या सजा देंगेआप?"
"तुम्हारी सजा यह है कि...तुम्हें आज रात भर जागना पड़ेगा।"
माही शर्मा जाती है और शर्माते हुए कहती है – "आप भी ना;कैसी-कैसी बाते करते है आप।"
"अरे अपनी पत्नी से ऐसी बाते नहीं करूँगा तो किस से कहूँगा।"
"ठीक है आ जाइएमैं इंतजार कर रही हूँ आपका,जल्दी आना"
माही फोन कट कर देती है और कबीर वापस से नदी पार करने लग जाता है। अभी कबीर ने एक दो कदम ही आगे बढ़ाये थे कि तभी उसको पायल बजने की आवाज सुनाई देती है। कबीर को लगता है कि उसके पीछे से कोई लड़की भागते हुए निकली हो।
पायल की आवाज सुनकर कबीर जहाँ पर था वहीं पर रूक जाता है और पीछे मुड़कर देखने लग जाता है, जब वो पीछे मुड़ता है तो सिवाये अंधेरे के उसे कुछ दिखाई नहीं देता है, उसके पीछे कोई नहीं था।
"ये माही भी ना पिशाचिनी का नाम लेकर मेरे मन में उसका वहम डाल दिया और वही वहम डरा रहा है अब मुझे,और वैसे भी मैं तो खुद पिशाचिनी से मिलना चाहता हूँ बड़े चर्चे सुने है उसके;सुना है बड़ी खूबसूरत है।"
इतना कहकर कबीर वापस से आगे बढ़ने लग जाता है। कबीर मुश्किल से अभी एक-दो कदम चला ही था कि तभी उसे नदी के किनारे पर एक काला साया दिखाई देने लग जाता है।उस काले साये को देखकर कबीर के कदम अपने आप थम जाते है।साये को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वो कबीर का ही इंतजार कर रहा था। काले साये के पास से पायल के बजने की आवाज और चमेली के फूल की खूश्बू आ रही थी। कबीर के हाथ पैर कपकपाने लग गये थे।
कबीर डरते हुए कहता है – "कहीं माही की बात सच तो नहीं थी, ये पिशाचिनी तो नहीं..."
कबीर उस साये को देखकर इतना डर गया था कि उसका पूरा चेहरा पसीने से लथपथ हो गया था। कबीर के हाथ पैर ठंडे पड़गये थे, उसका दिल जोरों से धड़कने लग गया था। उसके समझ नहीं आ रहा था कि वोक्या करें?
कबीर डरते हुए कहता है – "ककक कौन है वहाँ पर?"
कोई जवाब नहीं आता है। सन्नाटा अभी भी छाया हुआ था।
कबीर अपने मोबाईल का टॉर्च उस काले साये पर मारने लग जाता है जब उस टॉर्च की रोशनी उस काले साये पर पड़ती है तो कबीर देखता है कि वो साया और किसी का नहीं बल्कि एक लड़की का था।
नदी के किनारे पर एक बहुत ही खूबसूरत लड़की खड़ी हुई थी,जिसकी उम्र करीब चौबीस (24) साल और लम्बाईपाँच (5)फिटदो (2) इंच थी। उसकी लम्बी सी गर्दन,गुलाबी से होंठ, बाल खुले हुए जो उसके कमर तक आते थे। उसका गोरा बदन और उसी गोरे बदन पर उसने काली साड़ी पहन रखी थी।वो लड़की किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। वह इतनी खूबसूरत थी कि कोई भी मर्द उसका रूप देखकर अपनी हदों को भूलकर उसकी बाहो में मदहोश होना चाहे।
वो लड़की अपने हाथ से कबीर को इशारा करते हुए अपने पास बुलाती है। उस लड़की को देखकर कबीर भूल गया था कि पिशाचिनी जैसी कोई चीज भी होती है। कबीर अपनी साइकिल को वहीं पर छोड़ देता है और जल्दी-जल्दी उस लड़की के पास जाने लग जाता है। जैसे उसके बदन में कोई आग लग गयी हो।
कबीर उस लड़की के पास जाकर उससे धीरे से पूछता है – "कौन हो तुम और यहाँ पर क्या कर रही हो,क्या नाम है तुम्हारा?"
लड़की अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए कहती है – "नाम में क्या रखा है, जो रखा है काम में रखा है।"
"कैसा काम?"
लड़की अबीर की आँखों में देखते हुए कहती है – "वही काम जो तुम घर पर जाकर अपनी पत्नी के साथ करने वाले थे, तुम उसे आज रात भर जगाना चाहते थे ना; क्या तुम मुझे नहीं जगाओगे?"
उस लड़की की आँखों में एक नशा सा था जिसे देखकर कबीर सब कुछ भूल गया था।ऐसा लग रहा था जैसे वो उसके वश में आ गया हो।
कबीर भी उस लड़की की आँखों में देखते हुए कहता है – "हाँ क्यों नहीं, मैं तुम्हें आज रात क्या कल, परसो,नरसों हमेशा जगाकर रखूँगा, कभी नहीं सोने दूँगातुम्हें।"
इतना कहते ही कबीर उस लड़की को अपने सीने से सटा लेता है और अलगे ही पल दोनों नदी की रेत पर निर्वस्त्र पड़े हुए थे। दोनों के जिस्मों की गर्मी से रेत उनके शरीर पर चिपक गयी थी। उस लड़की के बदन में से चमेली के फूलो की खुशबू आ रही थी।लड़की नीचे थी और कबीर उसके ऊपर। कबीर के माथे की पसीने की बूंद ये साफ जाहिर कर रही थी कि वो थक चुका था और उसके बदन की सारी ताकत खत्म होने वाली थी, पर उस लड़की का चेहरा देखकर ऐसा लग रहा जैसे अभी कुछ हुआ ही नहीं था उसके अंदर की प्यास अभी नहीं बूझी थी।
कबीर अपनी चरमोत्कर्ष अवस्था में पहुँचने वाला था और कुछ ही पल में वो उस कबीर का बदन पर ध्वस्त होने वाला था तभी उसकी नज़र अपने हाथो पर पड़ती है और वो देखता है कि उसके हाथ पर धीरे-धीरे झुर्रियाँ आने लग गयी थी। उसके हाथ पैरो की नशे बाहर निकलने लग गयी थी उसके बाल काले से सफेद होने लग गये थे।देखते ही देखते वह कबीर अचानक से बूढ़ा आदमी में तब्दील हो जाता है।यह सब देखकर कबीर की आँखें फटी की फटी रह गयी थी। उसका गर्म बदन अचानक से ठंडा पड़ गया था।
कबीर काँपते हुए कहता है –"कककौन हो तुम?"
वह लड़की धीरे से कहती है – "मैं पिशाचिनी...तेरी मौत।"
यह सुनकर कबीर के रौंगटे खड़े हो जाते है और वो झट से उससे दूर हटने लगता है पर उसी वक्त पिशाचिनी उसे अपने दोनों हाथों से पकड़ लेती है और कहती है – "अभी कहाँ जा रहे हो प्रियतम,मेरी प्यास अभी बूझी नहीं है, तुम तो मुझे कल, परसो,नरसों, हमेशा तक जगाना चाहते थे ना,क्या हुआ थक गये या डर गये, मेरा असली रूप देखकर, हाहाहा।"
कबीर उसका खौफनाक चेहरा देखकर इतना डर गया था कि कुछ नहीं बोल पा रहा था। उसको पिशाचिनी की आँखों में खुद की मौत नज़र आ रही थी।
पिशाचिनी गुस्से में कहती है – "वासना की प्यास में तु ये भूल गया कमीने की तेरी पत्नी माही तेरा घर पर इंतजार कर रही है और तु यहाँ पर मेरे साथ...तुम मर्द कभी एक स्त्री से प्यार कर ही नहीं सकते, तुम्हारी हवस कभी खत्म नहीं होने वाली।"
इतना कहकर पिशाचिनी अपना हाथ कबीर के सीने पर रख देती है। पिशाचिनी के लम्बे-लम्बे काले नाखून थे जो चाकू की तरह पैने थे।
कबीर डरते हुए कहता है – "नहीं नहीं, ऐसा मत करो, जाने दो मुझे।"
"जाने ही तो दे रही हूँ,भोलिभेटौंला....भोलिभेटौला।"
इतना कहकर पिशाचिनी अपना हाथ कबीर के सीने के अंदर घूसाने जाहि रही थी लेकिन तभी अचानक ही पिशाचिनी जोर जोर से चीखने लगी और पिशाचिनी के पूरे शरीर में तेज जलन होने लगी। वो कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसका खूबसूरत गोरा बदन देखते ही देखते राख सा काला पड़ने लगा।
अपने शरीर में बढ़ती जलन को महसूस करते ही पिशाचिनी ने अगले ही पल कबीर को अपने ऊपर से धकेल दिया और चिल्लाते हुए पूछने लगी- "कौन हो तुम?..तुम कोई आम मर्द नहीं हो सकते? आखिर कौन हो तुम?"
कबीर जिसे अभी अभी पिशाचिनी ने अपने शरीर के ऊपर से धकेला था, वो अगले ही पल एक कुटिल मुस्कान के साथ बोल पड़ा "सच कहा तुमने, आम नहीं, खास मर्द हूं मैं!!!.....और तुम्हे क्या लगा मैं वाकई में डर रहा था.. नहीं.. बल्कि मैं तो मेरी कोई पत्नी नही है और तुम्हें तो शारीरिक सम्बन्ध बनाना है न तो आओ.. आओ मेरे पास" ये कहते ही कबीर ने पिशाचिनी को अपनी बांहों में जकड़ लिया।
कबीर अपना मुँह पिशाचिनी के कान के पास ले जाती है और फुसफुसाते हुए कहता है – "राम्रोनराम्रो.....राम्रोनराम्रो।"
है और उसी वक्त जोर से काले बादल गरजने लगते है और बारिश होने लग जाती है। पिशाचिनी के शरीर का खून नाखूनों के सहारे कबीर के शरीर मे जाने लग जाता है। जैसे-जैसे खून कबीर के शरीर के अंदर जा रहा था वो वापससे जवान होते जा रहा था। कबीर वापस से अपने पुराने रूप में आ गया था
और दूसरी ओर पिशाचिनी देखते ही देखते एक डरावनी डायन में बदलने लगती है...सोने सा दमकता हुआ उसका रूप और सुंदर चेहरा राख की तरह बदरंग होने लगा था और उस बाल की चोटी बनने लगती है। ....
और गुस्से से उसकी आंखे लाल हो जाती है
गुस्से में पिशाचिनी जो एक डायन के रूप में बदल गई थी अपनी नागिन जैसी चोटी को कबीर माथ के बिचोबी डाल कर उसका दिमाग बाहर निकल लिया परंतु कबीर अभी भी नहीं मरा, फिर अस्सी बीच पिशाचिनी बार बार चिल्लाने लगी और चिल्लाए जा रही थी "....मुझे छोड़ दो .....छोड़ दो मुझे " और धीरे धीरे उसकी चीखें अब शांत होने लगी थीं।
.....
पिशाचिनी तू तब भी मुझे नहीं मार पाई थी और आज भी
इतना कहकर कबीर अपना खून से सना हाथ पिशाचिनी के सीने में डाल के कबीर कुछ बाहर निकालने लगता है जैसे हि कबीर अपना हाथ पिशाचिनी के सीने से बाहर निकालता है पिशाचिनी अपना दम तोड़ देती है क्योंकि कबीर के हाथ में पिशाचिनी का दिल और एक पत्थर था जो कि लाल रंग से चमक रहा था। पत्थर को एक पत्ते के ऊपर रख देता हैं।फिर वो दूसरे हाथ पकड़ रखा पिशाचिनी दिल जो सिकुड चुका था।अगले ही पहल कबीर पिशाचिनी का दिल लेकर गायब हो जाती है, ठीक उस तरह जिस तरह बारिश की बूँदें होती है।
घड़ी की घंटी बजने की आवाज सुनाई दे रही थी टम
टमटमटम।
एक आदमी जोकि गेरुआ रंग धोती–कुर्ता पहना हुआ था एक बंद कमरे में जमीन में बैठ कर ध्यान कर रहा था। उस आदमी ने अपने हाथ में किताब पकड़कर रखा था। । कमरे के अंदर चारों तरफ बुक सेल्फ रखी हुई थी जिनमें करीब हजार से भी ज्यादा किताबें जमी हुई थी।
वहा आदमी खुद से कहता है – "चलो अब उसका समय आ गया यहां अपने गांव वापस लौट आने का को अब उसकी ज़रूरत है इस गांव को इतना कहते ही वहा जो उस आदमी ने पकड़कर रखी थी वे गायब हो जाती है
गायब होते ही कबीर वा आदमी वहा से उठ जाता है।
और मैं दोनों हाथ को जोड़कर ओम नमः शिवाय कहकर गायब हो जाता है।
दूर एक कमरे में फोन बजने की आवाज आती है।
फोन उठा है और
फोन के अंदर से उबासी लेते हुए आवाज सुनाई देती है –"हैलो कौन?"
"हैलो सूरज,वो मैं बोल रहा था कि कहानी तैयार हो गयी है।"
"अच्छा सर आप है, क्या कहा आपने कहानी तैयार हो गयी, यह तो बहुत अच्छी बात है सर....पर बुरा मत मानिएगा सर, यह बात आप मुझे सुबह भी बता सकते थे इतनी रात में कॉल करने कीक्या जरूरत थी?"
लेखक सिगरेट का कश खींचते हुए कहता है –"क्या कहा इतनी रात में, आखिर अभी वक्त हीक्या हुआ है बस..."
लेखक ने इतना ही कहा था कि तभी उसकी नज़र उसके हाथ की पुरानी सी वॉच पर पड़ती है और वो देखता है कि रात के तीन बजकर पाँच मिनट हो रहे थे।
लेखक अपनी गलती महसूस करते हुए कहता है – "अरे तीन बज गये इतनी रात हो गयी, मुझे तो पता ही नहीं चला, मुझे तो लगा अभी नौ-दस बज रहे होंगे।"
"कोई बात नहीं सर, मैं समझ सकता हूँ आप इतनी लगन के साथ कहानी लिखते है कि आपको वक्त का एहसास ही नहीं होता।"
"हाँ ये तो है, देखना जब यह किताब आएगी तो लोगों के रौंगटे खड़े हो जायेंगे, रात-रात भर जागकर ये कहानी लिखी है मैंने।"
"वो तो होनी ही है सर, आखिर आपकी कहानी में जान होती है, इतनी जान कि सोये हुए मुर्दों को भी जगा दे और उनको भी कहानी सुनने के लिए मजबूर कर दे, वैसे अभी जो कहानी आपने लिखी उसका नाम क्या है?"
"इस कहानी का नाम है पिशाचिनी...एक पुनर्जन्म।"
मोबाईल के अंदर से हैरानी के साथ आवाज सुनाई देती है – "क्या कहा सर पिशाचिनी!"
"हाँ पिशाचिनी,क्या हुआ तुम इतना शौक्ड क्यों हो रहे हो?"
"सर मैंने सुना है ये जो पिशाचिनी है ये आपके गाँव के पास जो घरारा नदी है वहाँ पर घुमा करती है और मर्दों के साथ वो सब यानी वही सब करके उन्हेंमार देती है!"
"हाँ तो?"
"तो सर आपको डर नहीं लगता जिस गाँव में पिशाचिनी घुमती है वहीं पर रहकर उसके बारे में कहानी लिखकर अगर पिशाचिनी ने आपको कुछ कर दिया तो?"
"सूरज,पिशाचिनी इतनी बुरी नहीं होती जितना गाँव के लोग और तुम सब समझते हो।"
"मतलब!"
"मतलब यह है कि वे पहले पिशाचिनी नही, एक देवी थी जो बहुत अच्छी होती है, इतनी अच्छी की दूसरों की खुशी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार हो जाये पर कभी-कभी जिंदगी में कुछ ऐसी घटना घटती है कि आपकी पूरी जिंदगी बदल जाती है।"
"कैसा घटना सर, मैं कुछ समझा नहीं?"
"पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हमारे ब्रह्माण्ड में अनेक लोक है जिसमें देवी देवताओं, सुर-असुर,राक्षसो का वास होता है। इन सभी लोकों की दूरी पृथ्वी से अलग-अलग है। कहा जाता है कि इन सभी लोकों में विष्णु लोक सबसे ऊपर है और सबसे निचला लोक यक्ष यक्षिणियों और अप्सराओं का है, जो पृथ्वी से सबसे नजदीक है।जो लोक पृथ्वी के सबसे नजदीक है उस लोक के देवी देवताओं की पूजा करने से वो देवी-देवता जल्दीप्रसन्न होते है।"
सूरज बीच में हि बोल पड़ता है "ऐसा क्यों सर उस लोक के देवी देवता जल्दी प्रसन्न क्यों होते है?"
"क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र की साधना करने से उन देवी-देवताओं तक तरंगें जल्दी पहुँचती है। एक लोक में से ही एक देवी द्वापर युग के अंत में पृथ्वी पर आई थी जिसको एक अभिशाप मिला था। एक ऐसा अभिशाप जिसने उसकी जिंदगी बदल दी थी।
"कैसा अभिशाप सर! आप किस अभिशाप कि बात कर रहे है? और उसे ये अभिशाप किसने दिया था?"
सूरज फिर लेखक से पूछता है – "बताईए ना सर क्या अभिशाप मिला था पिशाचिनी को?"
लेखक सूरज के सवाल का जवाब देते हुए कहता है – "वो जानने के लिए तुम्हें मेरी किताब के दूसरे भाग के आने का इंतजार करना पड़ेगा समझे।"
"अच्छी मार्केटिंग स्ट्रेजी है सर किताब बेचने की।"
"वो तो होगी ही सूरज, किताब बेचता हूँ और उस किताब के साथ अपने दर्द भी, तो उन आँसुओं के पैसे तो वसूलूंगा ही ना, बस एक बात दिमाग में रखना कोई भी इंसान बुरा नहीं होता उसे बुरा बनाया जाता है।"
"मतलब पिशाचिनी बुरी नहीं थी उसे बुरा बनाया गया था है ना सर।"
"मैंने कहा ना अब मैं किसी सवाल का जवाब नहीं दूँगा, जो जानना है किताब का दूसरा भाग पढ़ के जानना समझे।"
बाते करते-करते लेखक की सिगरेट खत्म होने वाली थी उसमें बस एक दो कश ही बचे थे।
सूरज हिचकिचाते हुए फिर लेखक से पूछता है – "सर एक बात पूछू?"
"तुम नहीं मानने वाले ना, ठीक है पूछो।"
"सर आपकी बातों से ऐसा लगता है जैसे आप पिशाचिनी को बहुत करीब से जानते है, क्या आपने कभी पिशाचिनी को देखा है?"
सवाल सुनकर लेखक एक दम चुप हो जाता है, उसके चेहरे के एक्सप्रेसन देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी सोच में डूब गया हो और उसको कुछ ऐसा याद आ गया हो जो वो सूरज को नहीं बताना चाहता था।
सूरज लेखक पर दबाव बनाते हुए पूछता है – "क्या हुआ सर, आप चुप क्यों हो गये, बताइए ना क्या आपने कभी पिशाचिनी को देखा है...क्या कभी आपका पिशाचिनी से सामना हुआ है?"
लेखक सिगरेट का कश लेकर धीरे से कहता है – "मेरा पिशाचिनी से सामना नहीं बल्कि मैंने तो खुद पिशाचिन के साथ..."
लेखक ने इतना ही कहा था कि तभी फोन कट हो जाता है।
लेखक अपना मोबाईल देखते हुए कहता है – "अरे ये क्या फोन कैसे कट गया....लगता है नेटवर्क चले गया, ये गाँव में यही प्राब्लम रहती है पता ही नहीं चलता कब नेटवर्क आता है और कब चले जाता है।"
लेखक ने अपनी टेबल पर रखी एक किताब की और देखते हुए कहता है
पिशाचिनी तुम्हारे बारे में पूरी दुनिया जानेगी जो तुम्हरे साथ अन्याय हुआ है। और सब लोग या भी जानेंगे कि तुमने इस दुनिया को बचाने के लिए क्या-क्या त्याग किया है तुम डायन नहीं एक देवी के समान हो। यही कहते कहते लेखक की आंख लग गई।
वहीं दूसरी तरफ गांव वाले घरारा नदी को पार करते हुए मकरही हवेली की तरह मशाल लेकर जा रहे थे सभी की आंखों गुस्से से लाल थी । उसमे से एक व्यक्ति बोला भाई संतोष इतनी रात में हम सब कहा जा रहे हे कुछ हुआ हैं क्या, क्या भाई तुम नही जानते की सरपंच का बेटा कबीर मारा गया । नही भाई मुझे नही पता था पर कोन मारा है...कबीर को
दोनों के बीच मोहन बोला और कोन मार सकता है एक तोह है वही डायन पिशाचिनी.....
भाई पीपिशाचिनी...भाई उस डायन नाम मत लो वे कपकपाते बोला
ये बात ठीक है रात को हवेली क्यो जा रहे हैं, पता नही वो तो सरपंच जाने क्या करने जा रहे हैं।
बाते करते करते सब हवेली पहुंच जाते है।
लेखक बाहर निकल, आज तेरी मौत आइ है। सरपंच दहालते हुए बोला।
परन्तु हवेली से कोई आवाज नहीं आई
तेरे कारण मेरे बेटे की मौत हुई है बाहर निकाल साले
काफी समय हो गया परंतु हवेली से कोई आवाज नहीं आई।सरपंच का गुस्सा हर एक पल अधिक हो रहा था। उस्सी समय
पीछे से एक व्यक्ति आगे आ कर सरपंच के कान डीमी आवाज में बोलता है ...मालिक मेरा मानिए तोह इस हवेली में आग लगा दीजिए...लेखक के साथ साथ पिशाचिनी का अंत हो जाए गा मालिक एक और बात ये हवेली भी आप की हो जाएगी।
सुनते ही सरपंच के चेहरे पर कुतूल मुस्कान आ जाती है
सरपंच सभी से बोला की जाओ इस हवेली में आग लगा दो ना रहेगी हवेली ना ही होगी इस गांव में किसी की मौत
इस हवेली के साथ साथ इस पिशाचिनी का भी अंत हो जाएगा।
इतना सुनते गांव वाले हररा मच जाती है हा हा भाईयो मालिक सही बोल रहे हैं चलो इस हवेली को आग से जला कर पिशाचिनी का अंत करते हैं इतना कहते ही सभी गांव वाले मशाल लेकर आगे बढ़ जाते हैं
फिर गांव वाले मशाल लेकर हवेली को चारों तरफ से गेल कर खड़े हो जाते हैं और फिर एक एक कर कर हवेली को आग के हवाले कर देते है। कुछी समय में हवेली में आग की भीसं लप्त पकड़ लेती है।
आग की भीसं लप्त आसमान तक जा रही थी, कुते–बिल्ली की जोर जोर से रोने की आवाज आने लगती हैं, आसमान में काले बादल छा जाते है और जोर जोर से हवा चलने लगती है।
हवेली से किसी की रोने की आवाज आने लगती है।
आग की भीसं लप्त में वहा पर रुका नही जा रहा था। आचनक बादल गरजने लगे।ऐसा लग रहा था जैसे कही बुला हो रहा हो, आचनक कही से चमगादड़ आ गए। सभी गांव वाले दर से थर थर कापने लगे। तभी उम्मे से एक व्यक्ति बोला भाई रहा से अपनी जान बचा कर बागो नही तोह वो पिशाचिनी हम सब को जान से मार देगी,
ये सुनते ही गांव वाले नदी और भागने लगे।भागना शुरू ही किया की उममे से एक व्यक्ति के कपड़े में आचनक आग पकड़ लेती हैं और कुछि समय शरीर जल के लाक हो जाता है ये देख कर गांव वाले इतनी जोर भागते जैसे की उनके जीवन आखलीकी दौर हो।
भागते भागते सरपंच जी गिर जाते हैऔर उनकी जोर से चीख निकल जाती हैं जब सरपंच जी अपने पैर की तरफ देखता है उनके पैर लोहे की सरिया घुसी थी सरपंच जी उठने की कोसी करते है पर उठ भी नही पाते तभी एक नौकर नजर सरपंच पर परती है फिर डोर करbसरपंच के पास आता है और कहता मालिक उठिए पीछे पिशाचिनी आ रही हैं तभी उसकी नज़र सरपंच के पैर पर जाती हैं वे नौकर देखता है की
सरपंच के पैर लोहे की सरिया घुसी है। वहा नौकर मानी ही मन सोचता है की आज सरपंच को बचा लिया तोह आगे की जिदंगी आराम से कटुगा या सोचते हुए वा नौकर सरपंच आवाज देता पर सरपंच के शरीर में कोई हार्टक नही होती ।
फिर वे अपना हाथ सरपंच नाक तक लेजाता हैं और देखता सरपंच की सास चल रही है।
वा नौकर मानी ही मन सोचता है कि ये तोह दर के माले बिहोस हो गया। अब क्या करू पहले तोह इसका पैर का खून रुकना होगा
वा आदमी अपने कपड़े के एक छोटा सा भाग चीलता है वा कपड़ा सरपंच के पैर में बंध देता है ।फिर सरपंच को उठा कर अपने पीठ पर लाद लेता है और भागने लगता है।
क्या सरपंच बच पाए या नही आगे जानने के लिए पड़िए अगला अंश।....पिशाचिनी...१ पुनर्जन्म।"का अगला चैप्टर