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बावळा

यह कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है जिसमें कहानी के एक पात्र का ही इसे लिखने के लिए प्रोत्साहित करने में योगदान रहा है. यह पूर्णतः हूबहू वैसी नहीं है लेखिका ने कुछ काल्पनिक बदलाव भी किए हैं और काल्पनिक भाव भी समाहित किए हैं.

sharmaarunakks · Politique et sciences sociales
Pas assez d’évaluations
19 Chs

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पुष्कर आने वाला था. सब ने रास्ते में एक होटल में खाना खाया. एक कमरा भी चार घंटे के लिए ले लिया. जिस में थोड़ी देर आराम कर सब पुष्कर घूम लेंगे. बच्चे ज्यादा थक गए थे. वे खाना खा कमरे में आते ही सो गए. सखी का कथित पति जिसे बावळा भी अच्छी तरह नहीं जानता था, बाहर बरामदे में टहलने लगा. अवसर पा बावळे ने सखी को अपनी बाँहों में भर लिया. सखी ने भी बावळे की बाँहों से छूटने का प्रयत्न नहीं किया. दोनों प्रेमी काफी देर एक दूसरे की बाँहों में समाए रहे. 1 घंटे आराम कर सब पुष्कर घूमने निकले. शाम होते-होते सब जयपुर वापस आ गए.

इधर दिनभर बावळे की बीवी अंदर ही अंदर कुढ़ती रही. बावळा और सखी खिलखिलाते घर में घुसे. बावळे ने अपनी पत्नी पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया. वह अपने दोनों बेटों से भी 2 दिन से नहीं मिला था किंतु इस बात का उसे जरा सा भी रंज ना था. रात को सब ने खाना खाया और सो गए. सुमन और बावळे में कोई बात नहीं हुई. सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से सबकी आंखें खुली. आज बावळा अपनी प्रेमिका को खाटू श्यामजी व अपने गांव घुमाकर लाना चाह रहा था. आज सब जल्दी-जल्दी जाना चाह रहे थे. सुमन नाश्ता बनाने में लगी थी. सुमन की इच्छा थी उसे भी श्याम बाबा के दर्शन के लिए जाना है किंतु किसी ने भी उसे एक बार भी नहीं टोका. सुमन मन मसोस कर रह गई. उसकी आंखें भर आई. सबके जाने के बाद फूट-फूट कर रो पड़ी पर बच्चों के डर से उसने तुरंत आँसुओं को पोंछा और घर के काम में अपने आप को व्यस्त करने की चेष्टा करने लगी.