Chapter - 10
ताई जो कि दुकान में कुछ देख रहा था अचानक से ही उसके दिल में एक जोर की चुभन होती है उसने अपने सीने पर हाथ रखा और कहा - सीीसीी... ये दर्द क्यों हो रहा है क्या वो ठीक तो है न l
सिमी और जियांग ने उसे परेशान देख कर कहा - क्या हुआ दोस्त तुम इतने परेशान क्यों हो सब ठीक तो है न l
ताई ने बिना उनकी ओर देखे कहा - नहीं कुछ ठीक नहीं वो किसी मुसीबत है l
जियांग - कौन मुसीबत में है ?
ताई ने कहा - वो किसी मुसीबत में है मेरी शिद्दत मुझे अभी अभी आभास हुआ है कि उसकी जान खतरे में है l
तभी उसके ऊपर एक लाल दुपट्टा उड़कर उसके चेहरे पर आ जाता है वो दुपट्टे को अपने हाथ में लेता है और कहता है - ये तो शिद्दत का है ये यहां... l
अचानक से उसे कुछ पिछली बातें याद आती है और वो एक दम से घबरा जाता है और खुद से बड़बड़ाने लगता है - नहीं इस बार ऐसा नहीं हो सकता है इस बार मैं उसे कहीं नहीं जाने दूँगा l
पहले भी वो मुझसे दूर हुई जब वो पहाड़ से गिरी थी तो भी ऐसे ही उसका दुपट्टा मेरे हाथ में आ गया था और वो मुझे छोड़कर चली गई थी ये कहकर की अब हम अगले जन्म में मिलेंगे लेकिन अब नहीं l
वो भागता है और पागलों की तरह उसे बुलाते हुए ढूँढने लगता है - शिद्दत शिद्दत तुम कहाँ हो l
सिमी, जियांग उसके पास जाते हैं और कहते हैं - लेकिन वो लुई के साथ गयी थी न तो उसके साथ होगी l
तभी उन्होंने देखा सामने से लुई आ रही थी ताई भागकर उसके पास गया और उससे पूछने लगा - बताओ मेरी शिद्दत कहाँ है वो तुम्हारे साथ ही थी न तो कहाँ है तुम अकेले क्यों हो l
ताई ने उसके कंधे को पकड़ उसे झकझोरते हुए कहा उसके आँखों से आंसू बहे जा रहे थे और उसका चेहरा थोड़ा - थोड़ा लाल हो गया था लुई उसे देख कहती है - मुझे नहीं पता वो कहाँ है ?
ताई ने उसे गुस्से से पूछा - वो तुम्हारे साथ थी न तो कहाँ गई उसे तुम लेकर गई थी l
उसने इतनी तेज बोला था कि पूरे बाजार में उसकी आवाज़ गूंज गयी सभी शांत हो गए और उस तरफ देखने लगे लुई भी उसके गुस्से से डर जाती है उसे इतना गुस्सा पहले कभी किसी ने नहीं देखा था l
ताई - बताओ कहाँ है ?
लुई ने हकलाते हुए कहा - वो.. वो.. नदी.. के.. पास गयी.. थी और.. वही.. होगी.. मुझे नहीं.. पता.. वो कहाँ.. है ?
ताई इतना ही सुनते बिना किसी की परवाह के वो नदी की तरफ भागने लगता है उसके पीछे सिमी और जियांग भी भी भागते हैं ताई नदी के पास पहुंचता है l
वो चारो तरफ नजर घुमाकर देखने लगता है शिद्दत वहाँ भी नहीं थी वो उस जगह खड़ा हो जाता है जहां से शिद्दत पानी में गिरी थी उसकी नजर अचानक से नीचे जाती है वो देखता है वहाँ पैर के निशान हैं वो सारा माजरा समझ जाता है ताई शिद्दत का दुपट्टा अपनी कमर पर बाँध देता है और नदी में कूद जाता है l
पीछे से उसके दोस्त बस उसका नाम लेकर रह जाते हैं l
नदी के अंदर वो तैरते हुए शिद्दत को ढूंढने लगता है नदी का पानी बहुत साफ़ था उसके अंदर बहुत सारे जीव थे जो रंग - बिरंगे थे बहुत सुन्दर - सुन्दर मछलियां भी तैर रही थीं ताई अपनी नज़रें घुमा - घुमा कर शिद्दत को ढूँढ रहा था लेकिन वो कहीं भी नहीं दिख रही थी l
वो और परेशान हो गया उसने अपने मन में कहा - तुम कहाँ हो शिद्दत मैं तुम्हें कहाँ ढूढूँ इस बार नहीं तुम्हारे इंतजार में मैंने कितने जन्म लिए हैं और तुम हमेशा आयी लेकिन मेरा इंतजार बस इंतजार ही बनकर रह गया लेकिन इस बार मैं ये इंतजार हमेशा के लिए खत्म कर दूँगा मैं तुम्हें खुद से दूर नहीं जाने दूँगा l
वो फिर से उसे ढूंढने लगा लेकिन जब शिद्दत नहीं मिली तो उसने खुद से कहा - अब बस एक ही रास्ता है l
उसने अपनी आँखे बंद की और अपनी शक्ति से उसे देखने की कोशिश करने लगा तभी उसे शिद्दत एक बड़े से पत्थर के पास नजर आयी जहां वो बेहोश पड़ी थी और उसके सर से खून निकल रहा था ताई ने अपनी आंखें खोली और खुश हो गया l
उसने कहा - मैं आ रहा हूँ मुझे पता चल गया कि वो कहाँ है वो जाने लगा लेकिन वो रुक गया उसने खुद से कहा - अगर मैं ऐसे ही ढूंढता रहा तो वो मुझे इतनी जल्दी नहीं मिलेगी मुझे कुछ और ही करना होगा l
वो बाहर निकल आया जियांग, सिमी उसे देख उसके पास आए और उससे कहा - क्या हुआ मिली अनाया l
ताई ने कहा - हाँ वो इसके अन्दर ही है l
सिमी - तो तुम अकेले क्यों आ गए उसे साथ क्यों नहीं लेकर आए l
ताई - वो सब मैं बाद में बताऊँगा अभी मेरे पास समय नहीं है मुझे अपनी शक्ति का इस्तेमाल करना होगा l
सिमी - लेकिन शक्तियों का इस्तेमाल करना तो मना है और इसके लिए दंड भी मिल सकता है l
ताई ने बिना उनकी ओर देखे कहा - मुझे उसकी परवाह नहीं है मुझे अभी बस शिद्दत की परवाह है मुझे उसे अभी बचाना है और अगर इसके लिए दंड मिलेगा तो मुझे कोई भी दंड स्वीकार है l
उसने अपनी बात कही और अपनी आंखें बंद कर अपने दोनों हाथों की हथेली को बीच में कर हाथ को आगे की तरफ कर दिया और उसे हल्का सा उठाया देखते ही देखते झरने के नदी का पानी ऊपर उठ गया l
ताई ने अपनी आंख खोली और नदी में देखने लगा अब उसमें एक बूँद भी पानी नहीं था तभी उसे एक किनारे शिद्दत दिखी जो एक पत्थर के पास बेहोश थी ताई नीचे उतरकर शिद्दत के पास गया और उसका सर अपनी गोद में रख कर उसे उठाने लगा लेकिन शिद्दत नहीं उठी l
जियांग, सिमी चिल्लाए - ताई उसे बाहर लेकर तुम्हें पता है न पानी ज्यादा देर तक ऊपर नहीं रह सकता उसे ऊपर लेकर आओ जल्दी समय समाप्त होने से पहले l
ताई ने शिद्दत को गोद में उठाया और बाहर लेकर आने लगा वो जैसे ही बाहर आया सारा ऊपर जमा हुआ ऊपर जमा हुआ पानी नीचे जोर की आवाज कर गिरता है जिससे उनमें के सारे जीवों को चोट लग जाती है और कुछ तो मर भी जाते हैं इस बात से अनजान ताई शिद्दत को नीचे रखता है और उसको उठाने लगता है l
सिमी - लगता है इसके अन्दर पानी चला गया है इसके अन्दर का पानी निकालना होगा l
ताई सिमी को देख हाँ में सर हिलाता है और अपने दोनों हाथों को उसके पेट पर थोड़ा बल देते हुए दबाने लगता है l
शिद्दत के मुँह से पानी बाहर आ रहा था चार पांच बल देने पर सारा पानी बाहर आ जाता है और वो होश में भी आने लगती है l
ताई उसे होश में आते देख उसके गाल पर हाथ रख उससे कहता है - तुम होश में आ गयी तुम होश में आ गयी तुम ठीक तो हो न l
शिद्दत उठने लगती है तो ताई उसका हाथ पकड़ उसे सहारा देकर उठाता है शिद्दत कहती है - मुझे वापस जाना है कबीले में l
ताई - हम्म... चलो वहीं जाकर तुम्हारा इलाज करवाएंगे l
ताई उसका एक हाथ और दूसरे हाथ से उसका बाजू पकड़े हुए था शिद्दत उठती है और ताई से कहती है - आप मुझे छोड़ दीजिये मैं खुद चल लूँगी l
ताई उसकी बात मानकर उसे छोड़ देता है शिद्दत जैसे ही एक कदम आगे बढ़ाती है उसके मुँह से आ..
निकल जाता है और वो गिरने लगती है ताई उसे पकड़ लेता है और कहता है - तुम्हारी हालत बिल्कुल भी ठीक नहीं है तुम अकेले नहीं चल पाओगी तुम्हें मेरे साथ की जरूरत है हर एक कदम पर l
शिद्दत उसकी बात सुन उसे देखने लगती है अचानक से शिद्दत हैरान रह जाती है ताई घुटने के बल नीचे उसके पैर के पास बैठा था जैसे ही ताई ने उसके पैर की ओर अपना हाथ बढ़ाया शिद्दत ने पैर पीछे कर दिया l
शिद्दत ने कहा - अरे ये आप क्या कर रहे हैं आप मेरे शिक्षक आप मेरे गुरु हैं आप मेरे पैर नहीं छू सकते हैं l
ताई सर ऊपर कर शिद्दत से कहा - क्यों... क्यों नहीं छू सकता l
शिद्दत ने कहा - क्योंकि आप मेरे गुरु हैं और गुरु भगवान के बराबर होते हैं और वो पूजनीय होते हैं आप मेरे पैर छूकर मुझे पाप दिलाएंगे l
शिद्दत ने मुस्कुराते हुए कहा तो ताई ने कहा - मैं तुम्हारा गुरु बाद में हूँ पहले मैं एक इंसान हूँ और इंसानियत के नाते मैं तुम्हारे पैर छू सकता हूं l
फिर ताई ने उसके पैर को अपने हाथ में लिया और उसके पैर को देखने लगा और उसे देख उसके सीने में एक जोर का दर्द हुआ उसने अपना सीना पकड़ लिया और कराहने लगा - आह...
शिद्दत - क्या हुआ आप ठीक तो है न आप चिल्लाये क्यों l
ताई ने कहा - कुछ नहीं बस ऐसे ही l
ताई उसके पैर को देखता जिसमें से बहुत सारे काँच और कंकड़ धंसे हुए थे और उसमें से बहुत सारा खून निकल रहा था ताई ने उसके पैर से एक काँच निकाला l
काँच निकालते हुए उसे जैसे लगा कि काँच उसके गले में धंस गया हो वो खांसने लगा वो जितने भी कांच और कंकड़ निकालता बार - बार उतनी बार खांसता l
शिद्दत कहती है - आप ठीक तो हैं न आप खांस क्यों रहे हैं l
ताई ने कहा - कुछ नहीं l
वो अपना चेहरा नीचे किए था उसके मुँह से खून निकलता वो जल्दी से कपड़े से पोंछ लेता है l
और उठता है फिर शिद्दत से कहता है - तुम चल नहीं तुम्हारे दोनों पैरों में चोट लगी है l
शिद्दत ने कहा - नहीं मैं चल लूँगी l
उसे चक्कर आ रहे थे उसके सर में ज़ोरों का दर्द हुआ और वो कुछ सोचते हुए बेहोश हो गयी ताई ने उसे सम्भाला l
Continue...