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सूर्य का हाथ कांपने लगा था the sun's hand was trembling

काफ़ी साम हो गया था गुरु जी और कबीर बाबा दोनो जाने सारे शिष्य का प्रतीक्षा कर रहे थे की अब आएगा सब, परंतु कोई नही दिख रहा था, कबीर बाबा बैठे बैठे आश्चर्य से गुरु जी से पूछे," क्या हुआ अभी तक कोई शिष्य नही आया!." गुरु जी कबीर बाबा की बात सुन कर इतमीनान से कहे," हा बहुत गच हो गया परंतु अभी तक कोई नही आया, अर्थात कोई सफा भी नही आया है!." कबीर बाबा गुरु जी की शब्द सुन कर कुछ बोल पाते उसे पहले गुरु जी का नजर सामने आश्रम के कपाट पे पड़ा, और बोल उठे," आ गया !." कबीर बाबा गुरु जी वाक्य सुनते ही आश्चर्य से आश्रम के दहलीज़ की तरफ देखे और देखते रह गय, सारे ऋषिमुनी और सुदाही साथ ही वहा के सारे लोग आश्चर्य से देखते रह गय, सामने सूर्य शेर का मेधा को हाथ में लटका कर लिए आ रहा था, सूर्य का सारा वपु मृगराज के लहू से अशुष्क हो चुका था, ये देख कर गुरु जी और कबीर बाबा को सकल निष्ठा हो गया था की ," सूर्य सच में विपुल विवेक है!." गुरु जी और कबीर बाबा सूर्य को देख कर आश्चर्य से खड़ा हो गाय साथ ही सारे ऋषिमुनी और सुदाहि यों अंजन भी खड़ा हो कर सूर्य को आश्चर्य से देखने लगे थे, सूर्य केसरी का मगज़ शनैः शनैः लेकर गुरु जी के पास चला आया और उस मद को गुरु जी के सामने रख कर हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया, गुरु जी सूर्य के ये निर्भीकता देख कर बहुत विनोद से कहे," ये तुम कैसे कर दिया ये तुम कैसे मार कर लाया मैं ये नहीं पूछूंगा तुमसे, तुम इस ब्रम्हा शास्त्र के लायक हो चलो !." गुरु जी इतना कह कर वहा से ब्रम्हा जी के मंदिर में जाने के लिए चल दिए, तभी कबीर बाबा कहे," हरिदास जी सारे शिष्य का प्रतीक्षा तो कर लीजिए अर्थात क्या पता ऊं शिष्य में से भी कोई हो सकता है जो इस शास्त्र का हक दार हो!." गुरु जी कबीर बाबा को वाक्य सुन कर वही पे ठहर गय, तभी सुदाहि गुरु जी के पास पीछे आकर इतमीनान से कही," हा गुरु जी सूर्य मांदरी का दोस्त है हो सकता है छल कपट से लाया होगा!." गुरु जी सुदाहि की वाक्य सुन कर इतिमिनान से कहे," नही ये सब झूठ है, सूर्य छल कपट से नही लाया होगा, क्यू की सूर्य का सकल कलेवर से पता चलता है की खुद मार कर लाया है!." सुदाहि गुरु जी की वाक्य सुन कर इतमीनान से कही," आपको थोड़ा और इंतजार कर लेने में क्या जाता है अर्थात अब सकल चटिया आते ही होंगे!." गुरु जी सुदाहि की शब्द सुन कर कबीर बाबा की तरफ देखते हुए कहे," ठीक है में अल्पलभ्य बाट जोहन कर लेते है!." ये सब बात सुन कर कबीर बाबा इतमीनान से कहे," अवश्य आइए बैठ कर इंतजार करते है!." फिर सब लोग जाकर बैठ गय, कुछ देर के बाद सारे शिष्य धीरे धीरे आश्रम के कपाट पे आमना करने लगे, सारे शिष्य थक चुके थे हौले हौले आकर गुरु जी और कबीर बाबा के सामने खड़ा हो गय, गुरु जी ऊं सारे शिष्य को देखते हुए कबीर बाबा से कहे," अब और कोई त्रुटि है तो बोलिए मैं अनुकूल हूं!." कबीर बाबा सबको देख कर कुछ सोचने लगे तभी कबीर बाबा की नजर राम्या की उप्पर पड़ी, राम्या सबसे अलग खड़ा था और प्रशान लग रहा था, तभी कबीर बाबा राम्या से पूछे," पुत्र राम्या तुम्हारे साथ क्या हुआ है!." राम्या आश्चर्य से कबीर बाबा की वाक्य सुन कर कहे," पिता श्री मेरे साथ कुछ नही हुआ था, अर्थात इस शास्त्र का हकदार सूर्य ही है!." सूर्य राम्या की वाक्य सुन कर आश्चर्य से सोचने लगा ," ये क्या इसे तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता है!." सूर्य ये सब सोच ही रहा था तभी कबीर बाबा गुरु जी से कहे," हरिदास जी आप सूर्य को बाण से संबोधित कर सकते है!." ये बात सुन कर गुरु जी और सारे ऋषिमुनी और सारे शिष्य भी खुश हो गय, और ढोल नगारा खूब बजने लगा, गुरु जी ब्रम्हा जी के मंदिर में चले गय पूजा करने और कुछ ऋषिमुनी सूर्य को दूध से नहलाने लगे, सूर्य के नहलाने के बाद ब्रम्हा जी के मंदिर में बैठा दिए और गुरु जी पूजा करने लगे," ॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौह सतचिद एकं ब्रह्माे ॥

॥ ॐ ब्रह्मणे नम:॥ !."

गुरु जी सूर्य ब्रह्मा शास्त्र पे फूल अछत चढ़ाने को कहे," फूल अछत चढ़ा कर प्रणाम करो, और फिर से ब्रम्हा जी का ध्यान धरो!." सूर्य वैसे ही किया और फिर से अपना ध्यान ब्रम्हा जी पे लगा दिया, और गुरु जी मंत्र पढ़ने लगे,"

ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥

ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥

ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्॥ !."

ये बोलने के बाद गुरु जी सूर्य को चारो दिशा में अक्षत छिटने को कहे," चारो दीक्षा में अक्षत छिट कर प्रणाम करो, सूर्य वैसे ही किया फिर गुरु जी आरती के थाली में कपूर जला कर राम्या को बोले," इस आरती को इस शास्त्र को दिखाओ फिर ब्रम्हा जी को दिखाओ!." ब्रम्हा शास्त्र भी सामने रखा था, सूर्य वैसे ही किया जैसे गुरु जी बोले थे और गुरु जी मंत्र पढ़ने लगे," दुख निर्गुण नाशन हरे हो । अतिशय करुणा उर धारे हो । तुम तो हमरी सुधि नहिं बिसारे हो । छिन्न ही छिन्न जो विस्तारे हो । !."

ये आरती करने के बाद थाली नीचे रख दिए, फिर गुरु जी सूर्य को कहे," अपना हाथ इस दीपक के उप्पर कर के सपथ लो की तुम इस शास्त्र का दुरुपयोग नहीं करोगे, अर्थात तुम मुझसे छल कपट नही करोगे !." सूर्य गुरु जी शब्द सुन कर उस दीपक के उप्पर अपना हाथ करने लगा, परंतु सूर्य का हाथ कांपने लगा था, और जैसे सूर्य अपना हाथ दीपक के पास ले गया वो दीपक बुझ गया, ये सब देख दंग रह गय और गुरु जी गुस्सा हो गय,

to be continued...

क्या होगा इस कहानी का अंजाम सूर्य का हाथ क्यू कांपने लगा था और वो दीपक बुझ जाने का क्या कारण था जाने लिए पढ़े," RAMYA YUDDH"