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मैं इस महल में कदम नही रखूंगा i will not step into this palace

जो लड़की फूल तोड़ने आई थी उसका उम्र राम्या से कुछ महीना ही छोटी थी जिसका नाम था शायरा, शायरा एक खूबसूरत लड़की थी और एक लाल रंग का लहंगा पहनी हुई थी जिसे और सुंदर लग रही थी, राम्या शायरा को देख पूरा पिघल गया था और वहा से दौर कर एक फूल के पेड़ से छुप कर देखने लगा था, शायरा के साथ दो लड़की और भी थी जो सुंदर तो थी परंतु शायरा से खूबसूरत नही थी ऊं दोनो लड़की का भी उम्र थोड़ा सा इधर उधर था, ऊं दोनो में से एक नाम शर्मिला था तो दूसरी का नाम परमिला था, लेकिन शर्मिला का सिर्फ शर्मिला नाम ही था परंतु शर्माने वाली नही थी और परमिला तो बोलने में काफी तेज थी, तीनो एक पौधा के पास रुक कर फूल तोड़ने लगे था शायरा बीच में और दोनो अगल बगल में खड़े थे, तीनो एक साथ फूल तोड़ रही थी तभी परमिला शायरा से मुस्कुराते हुए कही," शायरा इन फूलों के खेतों में तुम कितनी चमक रही हो!." शायरा परमिला की बात सुन कर मुस्कुराते हुए फूल की तरफ देखने लगी, तो राम्या शायरा को देख कर मुस्कुराने लगा, फिर परमिला आगे कही," शायरा सच में दृढ़ गुलशन कितनी दिव्य है परंतु सबसे ज्यादा तुम मनोहर लग रही हो!." शायरा फिर से परमिला की वाक्य सुन कर खुश हो गई और दुबारा फिर से पुहुप तोड़ने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाई तभी आगे से कुछ तितलियां उड़ने लगी और शायरा की तन्मयता से उस कोषस्थ कीट को देखने लगी और बहुत ज्यादा लिंग हो गई, शायरा के साथ परमिला और शर्मिला भी दोनो भी बहुत प्रश्न हो गई थी और तीनो उस इल्ली को देखने लगे थे, सच कह रहा हूं बहुत खूबसूरत वो पल लग रहा था, राम्या छुप छुप कर शायरा को देखे जा रहा था, तभी सूर्य राम्या के पास आकर कहा," राम्या... राम्या.. ये राम्या जल्दी चलो पूजा की अवकाश आ गया है गुरु जी गुस्सा हो जायेंगे!." राम्या सूर्य की बात नही सुन रहा था शायरा की खूबसूरती देखे जा रहा था, फिट से सूर्य राम्या का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा," तुमको सुनाई नही दे रहा है, पूजा की वक्त हो चुका है जल्दी चलो नही तो गुरु जी आक्रोश हो जायेंगे!." फिर सूर्य राम्या के आगे जाकर खड़ा हो गया तभी राम्या शायरा को नही देख पाया, फिर राम्या सूर्य को अपने हाथ से हटाते हुए बोला," हटो न इधर..!." सूर्य जब हटा तो सामने शायरा, प्रमिला और शर्मिला कोई नही थी, राम्या आश्चर्य से शायरा को ढूंढने लगा, और कहने लगा सूर्य से," कहां चली गई वो !." सूर्य फिर से इतमीनान से कहा," तुमको नही जाना तो ठीक है में जाता हूं खोजते रहे अंजन लड़की को!." और वहा से चल दिया तभी राम्या सूर्य को रोकते हुए कहा," रुको चलते है!." फिर दोनो वहा से चल दिए अपने गुरु जी के पास,

हरिदास गुरु जी और कबीर बाबा और साथ ही सारे ऋषिमुनों और शिष्य यों अंजन भी वहा पे सब लोग थे, सारे तैयारिया हो चुकी थी गुरु जी और कबीर बाबा राम्या और सूर्य का इंतजार कर रहे थे, तभी सूर्य और राम्या वहा पे पहुंच गया, तो गुरु जी राम्या को देखते हुए इतमीनान से कहे," पुत्र जल्द आओ पूजा की समय हो चुकी है!." राम्या मंदिर के अंदर गया उर गुरु जी और कबीर बाबा वही पे थे, एक ऋषिमुनी दीपक जला दिया और गुरु जी बैठ कर ब्रम्हा जी का पूजा करने लगे, थोड़ी देर बाद गुरु जी राम्या से कहे," तुम भी ब्रम्हा जी का आशीर्वाद ले लो!." राम्या गुरु जी की शब्द सुन कर अपना दोनो हाथ जोड़ कर ब्रम्हा जी का प्रमाण किया, ब्रम्हा जी अपने लोक से राम्या राम्या भक्ति देख कर मुस्कुरा दिए और अपना हाथ से राम्या को आशीर्वाद दे दिए, फिर गुरु जी राम्या को कहे," इस दीपक पे आप हाथ रख कर सपथ लो की मेरे आज्ञा के बावजूद तुम इस बाण को उपयोग नहीं करोगे अर्थात इसे तुम कही दूर उपयोग नहीं करोगे!." राम्या अपना हाथ उप्पर लेकर शपथ ले लिया, राम्या भी झूठ बोला था परंतु राम्या का हाथ नही कांपा अर्थात राम्या को पहले ही श्राप मिल चुका था, गुरु जी उस बाण को उठा कर राम्या के हाथ में थमा दिए, ये सब देख सारे भगवान खुश हो गाय और कबीर बाबा और साथ ही सारे ऋषिमुनि यों सारे शिष्य फूल वर्षा दिए, ब्रम्हा जी ये सब देख कर मुस्कुरा दिए अर्थात शंकर जी यों बजरंग बल्ली अर्थात सारे भगवान भी एक साथ फूल वर्षा दिए, राम्या और गुरु जी के साथ सब कोई फूल की वारिश में भीग गया और सारे मुस्कुराने लगे, ये सब देख कर लिया राज वहा से अपने महाराजा के पास चल दिया परंतु महाराजा के दरबार में नही गया क्यू की महाराजा बोले थे की," जब तक तुम काम्या का पता नही लगाते हो तब तक तुम यहां नही आ सकते हो!." इस वजह से वो कौवा राज महाराजा के कपाट के पास जमीन पे एक इंसान का भेष बदल कर उतर गया परंतु उस इंसान के भेष में भी कौवा का पंख था, वो लिया राज एक दरबारी सैनिक को एक चक्षु देकर कहा," आप इसे महाराजा के पास लेकर चले जाइए, अर्थात उनसे बोल दीजिए गा की आपके आज्ञा के वजूद मैं इस महल में कभी अपना कदम नही रखूंगा!." वो सैनिक कौवा राज की वाक्य सुन कर आश्चर्य से कहा," परंतु उन्होंने तो गुस्सा में कहा है, अर्थात आपको इतना जलील होने की क्या सारभूत है!." कौवा राज उस सैनिक की वाक्य सुन कर इतमीनान से कहा," नही मैं उनको गुरु मानता हूं, अर्थात मैं उनके वचन को नही तोड़ सकता हूं.. ठीक है तो मैं अब चलता हूं आप ले जाकर ये खत उन्हें दे दीजिए गा !." इतना कह कर कौवा राज वहा से फिर वापस चला गया,

वो सैनिक उस खत को लेकर महाराजा अंदर जाने लगा, महाराजा के महल में चार कपाट थे और हर एक कपाट पे दो तीन सैनिक रहते थे परंतु कभी जो महाराजा के पास का कवाट था वही सैनिक जा सकता था, वो सैनिक पत्र को लेकर अगले कवाट पे चला गया,

to be continued...

क्या होगा इस कहानी का अंजाम क्या वो कौवा राज उस चिट्ठी में क्या लिखा होगा, आगे जानने के लिए पढ़े "RAMYA YUDDH"