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माते आप भी यहां पे mother you are also here

हरिदास गुरु जी और कबीर बाबा साथ दोनो जाने का ऋषिमुनी आश्रम से बाहर निकल कर शिष्य के साथ उस नदी के किनारा पे चल दिए, जहां पे मांदरी बेहोश हुआ था, राम्या और सारे शिष्य साथ ही धनुष और बाण भी लेकर गय थे, अखिल लोग जैसे उस नदी के किनारा पे गय तो वहा पे कुछ नही दिखा, गुरु जी कबीर बाबा की तरफ देखते हुए पूछे," कबीर जी यहां पे तो कोई नही दिख रहा है, आप तो कह रहे थे की मांदरी यहीं पे बेहोश पड़ा था, अर्थात वो गया कहां!." कबीर बाबा गुरु जी की वाक्य सुन कर आश्चर्य से चारो तरफ देखने लगे, तभी गुरु जी कबीर बाबा से इतमीनान से कहे," आप बोल क्यू नही रहे है, कहा गया वो, मांदरी दिख नही रहा है!." कबीर बाबा आश्चर्य से चारो तरफ देख कर कहे," परंतु वो तो यहीं पे सोया था, फिर कहा चला गया!." कबीर बाबा इतना कहे ही थे की तभी एक आवाज सुनाई दिया," गुरु जी यहां पे एक मगरमोच्छ निर्वाण हुआ है!." ये आवाज सुन कर गुरु जी और कबीर बाबा दोनो जाने तेजी से अपना नजर घुमा कर देखे तो वहा से कुछ ही देर पे एक शिष्य खड़ा था, जिसका नाम आदित्य था जो ब्रम्हा शास्त्र को अगवा करने गया था, गुरु जी और कबीर बाबा दोनो जाने तेजी से आदित्य के पास जाकर आश्चर्य से गुरु जी पूछे," क्या हुआ आदित्य, कहां पे है वो मगरमोच्छ!." आदित्य उस वही पे मगरमोच्छ के पास बैठ कर इतमीनान से देखते हुए कहा," गुरु जी ये रहा, परंतु यहां पे कुछ चिन्ह बना है जो मांदरी के आसन से दर्शन करा रहा है अर्थात यहां ले लहू का भी चिन्ह है!." कबीर बाबा आदित्य की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछे," क्या यहां पे लहू का चिन्ह है, ऐसा तो नहीं की मांदरी की निधन हो गई!." इतना कह कर कबीर बाबा वही आदित्य के पास जमीन पे पैर के भरे बैठ गय, कबीर बाबा उस मांदरी की आसन का चिन्ह को ध्यान से देखने लगे, कबीर बाबा उस चिन्ह को ध्यान से देखते हुए काफी दूर तक नजर घुमाए परंतु एक भी पैर का चिन्ह नही मिला, तभी गुरु जी खड़े खड़े कबीर बाबा से पूछे," कबीर जी मांदरी यहां पे नही आया था, अर्थात यदि वो आया होगा तो फिर उसे मिलना मुमकिन नहीं है!." कबीर बाबा गुरु जी की शब्द सुन कर इतमीनान से कहे," परंतु क्यू !." गुरु जी कबीर बाबा की वाक्य सुन कर इतमीनान से कहे," आप कैसे ढूंढिएगा ना कोई साक्ष्य है ना कोई प्रमाण है!." कबीर बाबा गुरु जी की शब्द सुन कर इतमीनान से कहे," हम लोग यही बैठ कर उसका प्रतीक्षा करते है, हो सकता है की वो कहीं भटक रहा होगा,अर्थात वो आ भी सकता है!." गुरु जी कबीर बाबा की शब्द सुन कर आश्चर्य से कहे," आपके पास जेहन नही है क्या, आपको दिख रहा है की इस चिन्ह मैं लहू का विराम है, फिर भी आप आस लगा कर बैठे है की वो आएगा!." गुरु जी अपने उंगली से खड़े खड़े कबीर बाबा को दिखाते हुए उस आसन का चिन्ह को बता रहे थे, तभी आदित्य इतमीनान से कहा," कबीर बाबा, हमारे गुरु जी सत्य कह रहे है, की मांदरी अब जिंदा नही है, सायेद उसका निधन हो गया है!." कबीर बाबा आश्चर्य से आदित्य की बात सुन कर कहे," नही उसका निधन नही हो सकता है!." इतना कह कर कबीर बाबा वहा से जल के धार के पास चले गय और दोनो पैर को मोड़ कर बैठ गय और हाथ में जल लेकर कहे," मैं यहीं पे चौबीस घंटा प्रतीक्षा करूंगा, यदि आपको लगता है की मांदरी की निधन हो गई है तो आप जा सकते है और अपनी परीक्षण कर सकते है!." गुरु जी कुछ बोल पाते उस से पहले कबीर बाबा अपना आंख बंद कर के जाप करने लगे," ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय..!." गुरु जी आक्रोश में आकर आदित्य से कहे," चलो यहां से!." इतना कह कर गुरु जी वहा से पूछे की तरफ जाने के लिए घूम गय, तभी आदित्य और गुरु जी के सारे शिष्य यों साथ ही ऋषिमुनी भी वहा से जाने लगे, कबीर बाबा के साथ जितने ऋषिमुनी आए थे वो सारे कबीर बाबा के पीछे बैठ कर साथ ही जाप करने लगे, परंतु राम्या उस सुदाही से बात कर रहा था सुदाहि वही औरत है जो रात की राम्या को मिली थी, राम्या सुदाही को देखते हुए कहा," माते आप भी यहां पे!." सुदाही राम्या की वाक्य सुन कर पैर के केहूनि पे बैठ गई और राम्या के गाल पे हाथ फेरते हुए कही," हा पुत्र, परंतु आपको गुरु जी जा रहे है जाओ नही तो तुम गच हो सकते हो!." राम्या सुदाही की वाक्य सुन कर अपना सर गुरु जी की तरफ बढ़ा कर देखा और मुस्कुराते हुए कहा," जी माते मैं चलता हूं!." राम्या इतना कह कर वहा से दौर कर गुरु जी के पास चला गया, सुदाही वही से जैसे थी वैसे ही राम्या को देख कर मुस्कुरा रही थी, गुरु जी और उनके साथ जितने लोग गाय थे वो सारे वहा से निकल गय, तो सुदाही तेजी से गई और कबीर बाबा और सारे ऋषिमुनी के साथ पीछे बैठ कर जाप करने लगी," ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय.. !." कबीर जी की जाप देख कर शंकर जी अपने लोक से प्रभावित होकर मुस्कुरा रहे थे तभी प्रवति जी इत्मीनान से शंकर जी से कही," ये कितना प्रशान है, आप उन्हें सच क्यू नही बड़ा देते !." शंकर जी प्रवती जी को वक्त सुन कर मुस्कुराते हुए कहे," नही प्रवत्ति मैं ये सत्य नही बता सकते , अर्थात उस बालक और काम्या की कमी से युद्ध तो होना तय है!." प्रवत्ति जी शंकर जी की वाक्य सुन कर आश्चर्य से पूछी," परंतु वो महाराजा आपकी मंत्र जाप कर रहा है, अर्थात आपसे वरदान मांग रहा है, वो इतना शक्ति शाली राक्षस जाती से राम्या और आदित्य कैसे लड़ेंगे!." शंकर जी प्रवती जी की शब्द सुन कर इतमीनान से कहे," प्रवत्ति राम्या और आदित्य कोई साधारण बालक नही है, अर्थात वो जीतेंगे आप खुद देखते रहिए!." इतना कह कर शंकर जी और प्रवत्ति जी दोनो जाने पृथ्वी पे अपना नजर टिका दिए,

to be continued..

मुझे छम्मा करिए आप लोग जो मैं कल अब्सेंट हो गय थे,

sorry for absent today,