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फिर ये दो की मौत कैसे Then how did these two die

राम्या और वो दृढ़ गुरु जी की शिष्य जंगल में भटक रहे थे और शेर को ढूंढ रहे थे परंतु सारे के सारे अलग अलग थे कोई एक दूसरे के पास नही था, कोई भी शिष्य पैर में चपल या कोई वस्तु नहीं पहने थे किसी भी शिष्य को कहीं पे भी शेर नही दिख रहा था, दृढ़ शिष्य मुठभेड़ करते करते काफी थक चुके थे और कुछ शिष्य पेड़ के पास बैठ कर बल लेने लगे थे, वही दूसरी तरफ राम्या और आदित्य काफी घने जंगल जा चुके थे परंतु ये दोनो भी अलग अलग थे,

वही सूर्य भी एक तालाब के पास छोटा झाड़ा में खड़ा रहा और अपना नजर घुमा कर चारो तरफ देख रहा था राम्या भी उसी तालाब के दूसरी तरफ झाड़ी में खड़ा था परंतु सूर्य राम्या को देख रहा था परंतु राम्या सूर्य को नही देख पा रहा था, अर्थात सूर्य थोड़ा बुजदिल था, सूर्य जैसे राम्या को देखा तो सोचने लगा," क्यू ना इसका फायदा उठाया जाए,!."

सूर्य इतना सोच कर राम्या के करीब चला गया, परंतु अभी भी राम्या सूर्य को नही देख पा रहा था, राम्या अपना नजर घुमा कर चारो तरफ देख रहा था तभी राम्या का नजर एक शेर पे पड़ा, वो शेर धीरे धीरे जंगल में घूम रहा था, सूर्य भी उस शेर को देख कर कापुरुष हो गया था, परंतु सूर्य कैसे भी शक्ति लेकर वही पे खड़ा था,

वही दूसरी तरफ कबीर बाबा गुरु जी के आश्रम पहुंच गय थे गुरू जी कबीर बाबा को देख कर कहे," आइए कबीर जी मैने पहले ही कहा था की मांदरी का निधन हो चूक है वर्ना वो आ गया होता !." कबीर बाबा गुरु जी की वाक्य सुन कर कुछ नही कहे, फिर से गुरु जी आगे कहे," बाबा आइए बैठिए आज शाम को जो शिष्य विजेता होगा उसको ब्रम्हा शास्त्र दिया जाएगा, अर्थात आप स्वयं अपने हाथो से दीजिएगा!."

गुरु जी कबीर बाबा को इस लिए ऐसे बोल क्यू की गुरु जी को पता चल चुका था की कबीर बाबा राम्या और ज्ञानी शिष्य के रक्षा के लिए आए है, कबीर बाबा गुरु जी के शब्द सुन कर और एक चौका पे जाकर बैठ गय, साथ ही गुरु जी भी और अखिल ऋषिमुनी भी जाकर बैठ गय,

राम्या अपना धनुष उप्पर कर के दुर्गा मां का नाम लेकर कहे," हे दुर्गा माते मुझे छम्मा करना, आपकी स्वारी को मैं मरना नहीं चाहता हूं परंतु गुरु जी की आज्ञा है, अर्थात मेरे विजय होने के बाद आप जो चाहे मुझे सजा दे सकते है!." राम्या की ये शब्द सुन कर दुर्गा जी खुद प्रकट हो गई,

तभी राम्या अपना आंख खोला तो सामने दुर्गा जी खड़े थी राम्या अपना हाथ जोड़ कर प्रणाम किया," प्रणाम माते, माते मुझे छम्मा कर देना, ये मेरे गुरु जी की आज्ञा है अर्थात आप मुझे विजय के बाद जो सजा चाहे दे शक्ति है!." दुर्गा जी राम्या की शब्द सुन कर मुस्कुराते हुए कही," नही पुत्र मैं तुम्हे कोई सजा नही दूंगी अर्थात इस पृथ्वी पे तुम्हारे जैसा कोई शिष्य नही है जो अपने गुरु जी के आज्ञा के पालन करने के लिए अपना भक्ति का सागर तोड़ दे, अर्थात तुम अवश्य वार कर सकते हो!."

राम्या दुर्गा जी की शब्द सुन कर मुस्कुरा कर अपना दोनो हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और दुर्गा जी वहा से चली गई, राम्या अपना बाण धनुष मैं लगा कर माथा पे टिका कर शंकर जी का ध्यान धारा कुछ देर तक और फिर बाण को शेर की तरफ छोड़ दिया, दूसरी तरफ सूर्य भी उसी शेर के उप्पर अपना बाण छोड़ दिया था, वो बाण जैसे शेर के गर्दन पे लगा तभी एक उंचालिश साल के मनुष्य का आवाज सुनाई दिया राम्या और सूर्य के कान में," जय श्री राम.. जय श्री राम.. जय श्री राम.. जय श्री राम.. जय श्री राम.. !." ये आवाज सुन कर सूर्य को तो कुछ नही हुआ परंतु राम्या श्री राम का नाम सुन कर उस आवाज की तरफ भागने लगा और सोचने लगा," हे प्रभु मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, परंतु मैं तो उस शेर के उप्पर बाण छोड़ा था फिर उस मनुष्य के तरफ कैसे चला गया!." ये बात सोच कर आगे की तरफ जाने लगा और उस शेर को छोड़ दिया, सूर्य वहा से छुप कर देखा की राम्या

शेर से आगे निकल गया है तो सूर्य धीरे धीरे शेर के पास गया और उस शेर का सर गर्दन से उतार कर गुरु जी के पास चल दिया, राम्या वहा से भागते हुए जब उस आदमी के पास पहुंचा तो उस मनुष्य के उरोज पे बाण लगा था और वो मनुष्य मार चुका था, अर्थात वो मनुष्य के तरह दिख रहा था परंतु वो मनुष्य नही था एक राक्षस की प्रजाति था, राम्या उस मनुष्य के कुच से बाण को निकालने लगा, वो मनुष्य का निधन हो चुका था, एक पेड़ से कौवा राज बैठ कर ये देख रहा था और उस मनुष्य के निधन देख कर आश्चर्य से सोचने लगा की ," ये क्या हुआ, यदि महाराज को पता चला तो बहुत बड़ी युद्ध हो सकता है, अब मैं क्या करू महाराज तो मेरा शब्द भी स्वीकार नहीं करेंगे अर्थात मुझे वापस जाना भी माना है, कुछ सोचता हूं!." राम्या उस मनुष्य के उरोज से बाण निकाल कर उस बाण को ध्यान से देखने लगा और सोचने लगा," ये तो मेरी ही बाण है परंतु मैं तो अपना बाण उस शेर की तरफ छोड़ा था फिर यहां कैसे,!." फिर चुप चाप राम्या उस बाण को देख रहा था तभी कुछ याद आया तो वहा से शेर की तरफ भागने लगा, भागते भागते उस शेर के पास पहुंचा तो वहा पे शेर का गर्दन नही था, राम्या ये सब देख कर घबरा गया और आश्चर्य से सोचने लगा," ही प्रभु मेरे साथ ये सब क्या हो रहा है, मैं तो एक बाण छोड़ा था फिर ये दो की मौत कैसे!." राम्या इस शब्द को सोच सोच कर बहुत प्रशान हो रहा था, और बेचैन से चारो तरफ अपनी नजर घुमा कर देखने लगा की यहां पे और कौन कौन आया है, राम्या जैसे जैसे जंगल में भाग रहा था राम्या के पैर में कांटे चुभ रहे थे परंतु राम्या घबराहट की वजह से कुछ नही बुझा रहा था, और चारो तरफ देख रहा था परंतु कोई नही दिख रहा था, राम्या हार कर वही पे एक पेड़ के जगह पे बैठ गया, और गहरी सांस छोड़ कर लेने लगा,

to be continued...

आगे क्या होगा इस कहानी का अंजाम आखिर किसका बाण से वो मनुष्य का जान गया है क्या सूर्य इस शेर का सर गुरु जी को देकर अपना विजेता पाएगा जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDDH "

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