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कबीर बाबा गुस्सा हो गय Kabir baba got angry

हरिदास गुरु जी और सारे शिष्य परीक्षण के लिए खड़े थे साथ ही सारे ऋषिमुनी भी खड़े थे, पांचवे शिष्य भी पराजित हो गया था, और सामने आकर वो शिष्य खड़ा हो चुका था जो कौवा राज के पास से आया था, गुरु जी उस शिष्य को देख कर गुस्सा में कहे," तुम क्यों आया यहां पे चले जाओ यहां से!." वो शिष्य गुरु जी के चरण में गिर गया और इतमीनान से कहे," नही गुरु जी हमे छम्मा कर दीजिए, हम आप से आज्ञा लेने आए है!." गुरु जी उस शिष्य की बात सुन कर आश्चर्य से सोच कर कहे," क्या आज्ञा, परंतु किस लिए आज्ञा लेने आए हो!." वो शिष्य खड़ा होकर अपने गुरु जी को देखते हुए कहे," गुरु जी, उस जंगल में एक कौवा राज है जिसका जिंदगी त्रुटि से उलझी हुई है, यदि आपका आज्ञा हो तो मैं उसके साथ जाकर कुछ ही अवकाश में चले आता हूं!." गुरु जी उस शिष्य के वाक्य सुन कर गुस्सा में कहे," मुझे तुमसे क्या करना है, मैं तुम्हे इस आश्रम से निकल चुका हूं, अब तुम यहां से जा सकते हो,अर्थात तुम मेरे कोई लायक नही हो!." गुरु जी की शब्द सुन कर वो शिष्य आश्चर्य से कहे," परंतु गुरु जी मुझसे ऐसी क्या दोष हो गई है जिसे आप हमे आश्रम से बाहर कर रहे है, अर्थात आप मुझे एक और विश्राम दीजिए मैं पूरी कोशिश करूंगा इसके बाद विजय होने के लिए !." गुरु जी इतना गुस्सा आक्रोश हो गाय थे की उस शिष्य का शब्द एक भी नही सुने, और कोह होकर कहे," मैने कहा यहां से चले जाओ!." वो शिष्य अपने गुरु जी बात सुन कर दुबारा बोलने की चाहत भी नही किया और वहा से मुड़ कर वापस कौवा राज के पास जाने लगा,

तभी राम्या ये सब देख गुरु जी को इतमीनान से कहे," गुरु जी एक बार ठीक से सोच तो लीजिए, अमर्ष में अद्ल लेना तर्कशील नही है!." गुरु जी राम्या की बात सुन कर इतमीनान से कहे," मुझे सब पता है, ये हम लोग का कोई कृत्य नही आयेगा, अर्थात ये एक राक्षस की प्रजाति है, इससे जाने दो!." वो शिष्य चलते चलते गुरु जी और राम्या की वाक्य सुन चुका था, ये सब सुन कर उसके आंख में नम भर आया था और वैसे ही आश्रम से बाहर निकल गया, और कौवा राज के पास जाने लगा,

कबीर बाबा अपने मंदिर में अपने हवन चौकी पे बैठ कर ये सब देख रहे थे, उस शिष्य के बाहर जाने से कबीर बाबा कोह हो गय, और गुस्से में अपना आंख खोले और वहा से उठ कर हरिदास बाबा के पास चल दिए, कबीर बाबा जैसे मंदिर से बाहर निकले वो औरत और पांच सात ऋषिमुनी कबीर बाबा को रोकते हुए पीछे पीछे चलने लगे," गुरु जी गुरु जी आपको क्या हुआ, आज इतना आक्रोश क्यू है!." कबीर बाबा वही रुक कर गुस्सा में कहे," मेरे साथ चलो मैं जहां चलता हूं!." वो औरत और सारे ऋषिमुनी वहा से कबीर बाबा के पीछे पीछे हरिदास बाबा के पास चल दिए, कबीर बाबा के मंदिर हरिदास बाबा के आश्रम से काफी दूर था एक दिन पूरा लग जाता है जाने मैं,

हरिदास गुरु जी अंत में राम्या को परीक्षण के लिए उस गोला में उतार दिए थे, राम्या जैसे अपना धनुष तान कर बाण को छोड़ा वो बाण जाकर कर्नेल पे लग गया, सारे शिष्य और ऋषिमुनि साथ ही गुरु जी भी खुश हो गय, राम्या उस गोला से बाहर निकलते ही सोचने लगा," उस धनुष को तो हम लेकर ही रहेंगे!." गुरु जी और सारे शिष्य जाकर पूजा करने के लिए बैठ गय,

कौवा राज के पास वो शिष्य रोते हुए पहुंचा तो कौवा राज उस शिष्य को देख कर इतमीनान से पूछा," बालक क्या हुआ तुम्हे, तुम तो अपने गुरु जी से आज्ञा था ना!." वो शिष्य उस कौवा राज से कहा," हा परंतु मेरे गुरु जी मुझे आश्रम से निकल चुके है, और मेरे बारे !." वो शिष्य गुरु जी का सब बात बता दिया जो गुरु जी राम्या से कहे थे, वो कौवा राज उस शिष्य का बात सुन कर सोचा," ये राक्षस का प्रजाति है !." फिर उस शिष्य को देखते हुए इतमीनान से आगे कहा," ठीक है बालक यदि तुम मेरे साथ नही जाना चाहते हो तो तुम जा सकते हो!." वो शिष्य उस कौवा राज की बात सुन कर इतमीनान से कहा," नही कौवा राज मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूं,परंतु आप मुझे कितने अवकाश में पहुंचा देंगे!." वो कौवा राज शिष्य की शब्द सुन कर इत्मीनान से कहा," अवश्य बालक चलो मेरे साथ!." वो कौवा राज वहा से उड़ कर उस शिष्य के पास जाकर बैठ गया, फिर वो कौवा राज उस शिष्य से आगे कहा," बालक बैठो मेरे पीठ पे!." वो शिष्य कौवा राज के पीठ पे बैठ गया और कौवा राज वहा से उड़ कर चल दिया महाराजा के पास, उस शिष्य का नाम था मांदरी,

कबीर बाबा और साथ में सारे ऋषिमुनी चलते चलते काफी दूर तक चले आए थे, और बीच जंगल पहुंच गया थे, उस समय काफी रजनी हो चुकी थी,

रजनी में ही गुरु जी बैठ कर हवन कर रहे थे, और ब्रम्हा धनुष को अपने पास लेकर बैठे थे, और पूजे कर रहे थे, और सब एक रुद्राक्ष को लेकर अपनी आंख बंद कर के कहते थे," वॉम नमः शिवाय: वॉम नमः शिवाय: वाॅम नमः शिवाय: !." एक सौ आठ बार बोले जा रहे थे साथ ही गुरु जी मंत्र पढ़ रहे थे ," ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् !."

कुछ देर के बाद पूजा समाप्त हो गई और राम्या और राम्या की मां अंजन दोनो वहा से घर जाने के लिए गुरु जी से आज्ञा मांगी अंजन," गुरु जी आपकी आज्ञा हो तो हम जाए!." गुरु जी अंजन की बात सुन कर कहे," हा पुत्री अब तुम जा सकती हो, परंतु कल सुबह ही लेकर चले आना राम्या को!." अंजन गुरु जी की बात सुन कर इतमीनान से कही," अवश्य गुरु जी!." फिर राम्या और राम्या की मां अंजन दोनो गुरु जी को प्रणाम किया चरण छूं कर और वहा से अपने घर चल दिए रात को ही,

to be continued...

क्या हुआ क्या कारण था जो गुरु जी ब्रम्हा शास्त्र को किसी को नही दिए, बाबा कबीर गुस्सा में क्यू हरिदास गुरु जी के पास आ रहे थे जानने के लिए पढ़े " RAMYA YUDDH-RAMAYAN SHROT"