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Poem No 1 दिल में बसना

एक छोटी सी कविता पेश कर रहा हूँ ज़रा गौर फरमाइयेगा

दिल में बसना जितना आसान है निकल पाना उतना ही मुश्किल

और एक बार जो निकल गया तो फिर से बस पाना नामुमकिन

कुसूरवार हो या ना हो लोग तो पत्थर मरते हैं

बेचारा बेकसूर हो या ना हो यूँ ही मर जाते हैं

सितमगर हो जो सितम ढ़ाते हैं

तड़पथे हो तो और तड़प जाते हैं

यह घोर कलियुग है जहाँ कली का वास हैं

काल चक्र का अंत होने को है जहाँ सबका आस हैं