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उड़ान

बस इतनी सी उड़ान, हर किसी को चाहिए ,एक छोटा सा ही सही, लेकिन अपना हो, ऐसा आसमान चाहिए|

सखी भी इसी सोच के साथ उठी, सुबह की किरणों के साथ उसने कमरे का पर्दा हटाया| चिड़ियों की चहचाहट कानो में मानो एक मिसरी सी घोल रही थी | सखी किचन में गयी और कॉफ़ी के कप के साथ बाहर आई| रोज़ जैसी सुबह, और उस कॉफ़ी के कप के साथ बरामदे में जाकर चुस्कियां भरने लगी| इतनी में गिरधर भी जग गया और वही रोज़ के काम शुरू हो गए| सखी सबसे जब निर्वित हुई, तो फिर कुछ लिखने का प्रयास करने लगी| लेकिन आज वो ध्यान केन्द्रित नहीं कर पा रहीं थीं|

उसे रह कर गिरधर का ख्याल आ रहा था| उसने सोचा क्यों न आज गिरधर को सरप्राइज दिया जाए|वो लंच पर गिरधर के ऑफिस के बाहर थी, उसने फ़ोन मिलाया गिरधर को,लेकिन ये क्या उसका नंबर तो बंद आ रहा है| थोडा सोच में पड़ गयी| फिर मिलाया अभी भी नहीं मिला|

सोचा कि क्या किया जाये| उसने ऑफिस फ़ोन किया लेकिन पता लगा आज गिरधर आया ही नहीं , बस ये अच्छा हुआ की उसने किसी को नहीं बताया कि वो कौन है| इसी कशमकश में डूबी वो घर आ गयी|घर आ कर भी आराम नहीं था| उसने पन्द्रह सालो बाद इतनी उथल पुथल देखी थी|वो कुर्सी पर बैठ गयी और सोचने लगी वो सखी जो वो शादी से पहले हुआ करती थी| कितने सुहाने दिन थे| आज वो अलग है, लगता ही नहीं कि ये वही सखी है जो कभी बिंदास, और बेबाक हुआ करती थी|

और उन दिनों में खो गयी,टाइट जीन्स पहनना और बिंदास रहना उसका शौक था| कोलेज के दिनों में उससे कोई बात नहीं कर सकता था, इतनी कॉंफिडेंट , इतनी स्टाइलिश , मिस कोलेज रह चुकी जो थी|

जब कोलेज़ में कदम रखती तो सब उसी को देखते रहते| कुछ नहीं बहुत कुछ सपने थे मेरे , कुछ छोटे कुछ बड़े और कुछ बहुत बड़े| उन सपनो को जीना था, अपना कुछ करना था , दिखाना था,कुछ कर दिखाना था , सखी अपने ही आप में कहीं गुम हो गई| अचानक उसका सारा ध्यान गिरधर पर जा टिका|

अरे कहाँ गए हैं आज , जल्दी भी निकल गए|पता नहीं , पुछुंगीआते ही| लेकिन इतने सालों में तो सखी इतना सहज हो ही नहीं पाई | अचानक गिरधर की आवाज़ सुनाई दी , गिरधर सोफे पर बैठा अपने आप हो व्यवस्थित कर ही रहा था कि सखी पानी ले कर आई, और तपाक से ही बोल पड़ी ,कैसा रहा आज ऑफिस में| गिरधर ने कहा - ठीक ही था| सखी उसे एक टक से देखती रही, समझ ही नहीं पा रही थी की गिरधर उससे झूठ क्यों बोल रहा है| दिल की बेचैनी सातवें आसमान पर थी|क्या करे समझ ही नहीं आ रहा था |

लेकिन सखी का धैर्य उसे अभी जवाब नहीं दे पाया| इसलिए वो किचन में जाकर खाने की तैयारी करने लगी| ऐसे मौके पर सखी कैसे चुप रही पता नहीं और कोई महिला होती तो आपको तो पता ही है क्या होता|

रात सब कामो में कहाँ चली गयी पता ही नहीं चला| सखी आज सुबह काफी अलग लग रही थी| आज उसके बाल सवरे हुए थे एक हल्की सी लट उसके गालो को छू रही थी, टॉप और स्कर्ट पहनी , मोटा, काला काजल आँखों में बहुत सज रहा था|उफ़ उस पर सुर्ख लाल लिपस्टिक उसके होठों पर तो बस मनो कहर | अपने आप में ही पूर्ण , अद्भुत लग रही थी सखी| गिरधर ने देखा तो पूछा -आज कहीं जाना है , आज तो खूब तैयार हुई हो| आज से मैं रोज़ ऑफिस जाउंगी , मुझे एडिटर का काम मिला है| आप व्यस्त थे तो आप से बात हो ही नहीं पा रही थी| घर में सबको पता है | मांजी से मैंने पूछ लिया था| ठीक है, अगर तुम करना चाहती हो तो मैं नहीं रोकूंगा- गिरधर ने भारी मन से कहा|

आज की उड़ान कहाँ ले जाएगी सखी को चलिए आगे देखते हैं| सखी खुश थी | आज वो ,वो थी जो बरसो पहले हुआ करती थी| जल्दी ही वो अपने काम में व्यस्त रहने लगी|