Chapter - 31
शिद्दत तैयार होकर नीचे आती है वो बरामदे में आती है जहां सभी बैठे उसका इंतजार कर रहे थे सूर्य शेन उसे देख कहते हैं - आओ पुत्री और इनसे मिलो ये हमारे मित्र हैं श्रीकांत ये इनकी पत्नी प्रमिला, और ये इनका पुत्र सुव्रत है ये राज नगर के राजा रानी और राजकुमार हैं l
शिद्दत सभी को हाथ जोड़कर - प्रणाम काका, प्रणाम काकी, प्रमाण ( सुव्रत को ) l
श्रीकांत - प्रसन्न रहो पुत्री l
प्रमिला - खुश रहो l
सुव्रत - जी प्रणाम l
सूर्य शेन के साले राघव उनसे कहते हैं - देखो हो सके तो अभी ही ये बात छेड़ दीजिए और उनके सामने प्रस्ताव रख दीजिए l
सूर्य शेन - लेकिन राघव बिना श्रीशि से पूछे l
राघव - वो तो बच्ची है वो क्या समझेगी तुम दोनों को ही निर्णय लेना होगा l
सूर्य शेन - जी l फिर वो अपनी पत्नी केशवी से कुछ इशारा करते हैं केशवी श्रीशि को अपने साथ लेकर गयी l
सूर्य शेन कहने में संकोच कर रहे थे सूर्य शेन ने कहा - जी मुझे आप लोगों से कुछ बात करनी थी l
श्रीकांत - हाँ हाँ कहो न क्या बात है l
सूर्य शेन - मैं अपनी बेटी की शादी आपके बेटे से करवाना चाहता हूं l
श्रीकान्त और प्रमिला ये सुन बहुत खुश हुए और कहा - तुमने हमारे दिल की बात कही है मेरा बेटा भी तुम्हारी श्रीशि को पसंद करता है आओ गले लगो अब हम रिश्तेदार बनने वाले हैं l
केशवी सूर्य शेन के कान में धीरे से से कहती है - लेकिन जी पहले श्री से तो पूछ लीजिए उसे शादी करनी है या नहीं l
राघव बोला - ये क्या बोल रही हो दीदी अब वो बड़ी हो गयी है विवाह के उम्र की कन्या है उसका विवाह कर देना चाहिए l
केशवी - आप लोगों को जैसा ठीक लगे आप लोग करिए l
वो सब आपस में बातें करते हैं और विवाह की तारीख पक्की कर देते हैं इन सब चीजों से अनजान श्रीशि अपने कमरे में बैठी थी तभी उसके माता पिता, मामा मामी आए
सूर्य शेन - क्या सोच रही हो श्री ?
श्रीशि उन्हें देखती है और कहती है - माँ बाबा आप लोग l
वो उसके पास आते हैं और सूर्य शेन अपनी बात बोलने में हिचकिचा रहा था श्रीशि उन्हें देख कहती है - बोलिए न बाबा क्या बात है आप कुछ चिंतित लग रहे हैं बताइए l
सूर्य शेन - हाँ बेटी वो मैंने तुम्हारा विवाह तय कर दिया राज नगर के राजकुमार से जो हमारे मित्र थे l
श्रीशि उन्हें देखने लगी और बोली - लेकिन बाबा आपने मुझे बिना बताये l
सूर्य शेन उसे देख बोले - मुझे पता है तुम्हें हैरानी हो रही होगी लेकिन मुझे माफ कर दो अगर तुम नहीं चाहती तो..
उसने हाथ जोड़ लिया श्रीशि कहती है - नहीं नहीं आप ऐसा मत करिए आप मुझसे बड़े हैं l
श्री की मामी सुगंधा बोली - अब क्या तुम्हारे बाबा हर काम तुमसे पूछकर करेंगे अब क्या वो तुम्हारे लिए फैसले नहीं ले सकते हैं बताओ l
श्रीशि अपनी मामी को देखती है और कहती है - नहीं नहीं मामी जी मेरा कहने का मतलब ये नहीं था बाबा मेरे लिए कोई भी फैसला मुझसे बिना पूछे ले सकते हैं l
सूर्य शेन - अगर तुम चाहो तो मैं उन्हें मना कर दूँगा अगर तुम्हें ये शादी नहीं करनी है अगर तुम ही खुश नहीं रहोगी तो हम माता पिता कैसे खुश रहेंगे l
राघव - लेकिन सूर्य शेन जी इससे तो आपका बहुत अपमान होगा और मैं ये अपमान नहीं देख सकता हूँ l
श्रीशि - नहीं बाबा मैं आपको अपमानित होता हुआ नहीं देख सकती ( उसने कुछ सोचा और फिर कहा ) मैं शादी के लिए तैयार हूँ आप तैयारियाँ कीजिये l
सभी खुश होते हैं सूर्य शेन श्री को गले लगा लेते हैं l
श्रीशि के विवाह की तैयारियाँ होने लगती हैं लेकिन श्रीशि तो कहीं और ही खोई हुई थी वो नीचे बरामदे में देखते हुए बोली - अगर तुमने मेरे प्रेम को स्वीकार कर लिया होता तो आज यहाँ हमारे विवाह की तैयारियाँ हो रही होतीं लेकिन अब अगर तुम भी आकर मुझसे कहोगे कि तुम मुझसे प्रेम करते हो तब भी मैं तुम्हारे प्रेम को स्वीकार नहीं करूंगी l
तभी पीछे से एक लड़की उसके पास आकर खड़ी हो जाती है और नीचे देखते हुए उदास मन से कहती है - कितनी सुन्दर सजावट हो रही है न आपकी और शुभान की शादी के लिए l
वो श्रीशि के मामा की लड़की वैदेही थी श्रीशि कहती है - तुम उदास क्यों हो ?
वैदेही बोली - कुछ नहीं बस तुम अब मेरे साथ नहीं रहोगी न इसीलिए शायद l
श्रीशि - कोई बात नहीं चलो नीचे चलते हैं l
मेहमानों की भीड़ लगी हुई थी कहीं कोई नाच गा रहा था तो कहीं कोई और किसी की तैयारी कर रहा था वैदेही और श्रीशि नीचे आती हैं श्रीशि जा ही रही थी कि भागा दौड़ी की वजह से वो टकरा जाती है और सामने से आता फूल की टोकरी लिए उसकी टोकरी भी उछल जाती है l
श्री तो गिरने वाली थी कि कोई उसका हाथ पकड़ लेता है उस के पकड़ने से श्री को एक जानी पहचानी सी एहसास महसूस होती है वो वो उसकी तरफ देखती है तो एक लड़का खड़ा था जो उसका हाथ पकड़े था l
श्रीशि उसे देखते ही उसमें खो गयी वो भी मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था लेकिन उसके आँखों में पानी था श्रीशि भी उसमें इतना खो गयी कि वो भी मुस्कराने लगी और उसके आँखों से आंसू छलक खुद ही गाल पर आ गए l
तभी शोर सुनकर उन दोनों की तन्द्रा टूटी श्रीशि होश में आई वो सीधी खड़ी हुई उसने अपने गाल को पोछा और उसके हाथ को पकड़े ही बोली - ऐसा क्यूँ लग रहा है कि ये एहसास जाना सा लगता है l
वो लड़का बोला - अरे मेरा हाथ तो छोड़ दो l
श्रीशि उसे देख उसका हाथ छोड़ देती है और उसे ऊपर से नीचे तक देखने लगी उस लड़के ने नीचे नीले रंग की धोती पहने था शरीर पर उत्तरिय सर पर नीले रंग की पगड़ी कानों में कुण्डल, बाजूबंद, कमरबंद, जूते, और कमर में एक दुपट्टा बांधे था सुन्दर नैन, सुराही सी गर्दन, कंधे तक आते बाल, और उसमें से सुगंधित आती महक l
वो देखने में बहुत ही मोहक था गोरा रंग प्यारी सी मुस्कान श्रीशि उसे देख ही रही थी तो वो बोला - मुझे पता है मैं बहुत ही सुन्दर हूँ लेकिन ऐसे नजर तो मत लगाओ l
श्रीशि उसे घूरने लगती है और कहती है - कौन हो तुम और यहाँ क्या कर रहे हो l
वो लड़का मुस्कराकर बोला - मैं कौन हूँ ये आप अच्छे से जानती हैं राजकुमारी श्रीशि l
श्रीशि हैरानी से उसे देख - हो.. तुम मेरा नाम कैसे जानते हो सच सच बताओ कौन हो तुम कहाँ से आए हो l
वो लड़का फिर हँसा और बोला - क्रोध न करो बताता हूं तो सुनो मेरा नाम सर्वेश्वर, सर्वजना, श्रीकांता, श्रीशव...
श्री - ए.. एक क्षण रूकों तुम पागल हो तुम्हारे इतने सारे नाम कैसे हो सकते हैं अपना असली नाम बताओ l
वो लड़का बोला - असली नाम तो सभी हैं लेकिन नाम जानकर क्या करेंगी l
श्री - नाम नहीं बता सकते तो अपनी जाति का प्रमाण दो l
वो लड़का बोला - जाति...
श्री - हाँ हाँ जाति जिससे धर्म की पहचान होती है l
लड़का - मेरी कोई जाति नहीं है न ही कोई धर्म है मेरे लिए तो सभी एक समान हैं हर धर्म हर मनुष्य की बनाई हुई है और जाति में भी मनुष्य की ही बनाई है जो हर जाति हर धर्म में खुद से बंटा हुआ है मनुष्य l
श्रीशि - इतने बड़े - बड़े ज्ञान दे रहे हो तुम इसी पृथ्वी के हो न कि तुम्हारा संसार तुम्हारा ब्रह्मांड भी अलग है l
वो श्रीशि को देख मुस्कुराया और कहा - अरे वाह आप तो मेरे बारे में कुछ ही देर में सब जान गयीं l
श्रीशि उसकी बातों से तंग आ चुकी थी उसने कहा - बातें खूब बना लेते हो अब जरा बताओ यहाँ किसलिए आए हो l
तभी पीछे से राघव - इसे मैंने ही बुलाया है श्रीशि l
श्रीशि और वो लड़का उसकी तरफ देखते हैं l
राघव - ये इस संसार का सबसे स्वादिष्ट भोजन बनाता है इसलिए मैंने इसे यहाँ बुलाया है ताकि तुम्हारे विवाह के लिए ये स्वादिष्ट भोजन बनाये l
श्री उस लड़के की तरफ देखती है और कहती है - अच्छा तो ये बावर्ची है मामा जी जरा इससे बोलिए की मुँह चलाने से ज्यादा हाथ चलाए मैं नहीं चाहती कि मेरे विवाह का भोजन खराब बनें l
वो लड़का बोला - अरे खाना मैं नहीं मेरे दोनों साथी बनाते हैं ये दोनों l
उसने अपने साथियों को दिखाया उन्होंने भी वैसे ही कपड़े पहन रखे थे श्रीशि ने कहा - अब तुम दोनों कौन हो ?
एक ने कहा - मेरा नाम सत्या है l
दूसरे ने कहा - मेरा अगस्त्य है l
श्रीशि ने कहा - चलो तुम ने तो बताया अपना - अपना नाम
उस लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा - वैसे मेरा नाम कृशव है l
श्री - कृशव... ओ... तो तुम्हारा नाम कृशव है मुझे तो लगा सारे संसार का नाम तुमनें खुद ही रख लिया l
कृशव - हाँ मेरा नाम कृशव है l
राघव - तुम लोग जाओ रसोईघर सेवक तुम्हें दिखा देगा l
उन्हें एक सेवक रसोईघर में ले गया कृशव वहीँ रुक गया राघव ने कहा - तुम बताओ किस काम में तेज हो l
उसके बोलने से पहले ही श्रीशि बोली - मामा जी ये सिर्फ बड़ी - बड़ी बातें बनाने में तेज है l
कृशव ने उसे देखा फिर राघव से कहा - आप जो भी काम दे दें मैं उसे पूरी शिद्दत से करूँगा l
अपना नाम सुन श्रीशि उसे देखने लगी कृशव ने कहा - वैसे मैं दुल्हनों के काम बड़े अच्छे से करता हूँ आप उनका ही कोई काम मुझे बता दीजिए l
राघव - ठीक है अभी वो मंदिर जा रही हैं तो उन्हें तुम मंदिर लेकर जाओ l
केशवी आती है और कहती है - श्री तुमने पूजा का सामान ले लिया l
श्री - जी माँ बस आप ये थाली मुझे दे दीजिए l
केशवी पूजा की थाली उसे दे देती है श्रीशि थाली लेती है और सभी मंदिर जाने लगते हैं l
रास्तों के गली बहुत सुन्दर थीं दासियाँ बस कृशव को देख - देख मुस्करा रहीं थीं और अपने में ही बातें भी कर रहीं थीं l
ये कितना सुन्दर है न इसके नैन इसकी चाल, इसकी बोली, मुझे अपनी तरफ आकर्षित कर रही है l
कृशव ये सुन कर बस मुस्करा रहा था श्रीशि चुप रही सभी मंदिर पहुँचे श्रीशि ने मंदिर की घंटी बजायी और सभी अंदर गए उसने पूजा की थाली रखी और हाथ जोड़ कर मन में बोली - हे माता जो भी हो अच्छा हो मेरे माँ बाबा की हर मनोकामना पूरी हो मेरी मनोकामना यही है l
फिर कृशव ने एक - एक करके श्रीशि को हर एक सामाग्री दी श्री ने उसे माता के चरणों में अर्पित किया और उन्हें तिलक लगाकर उनकी आराधना की पूजा खत्म होने के बाद वो सब जाने को हुई तो एक लड़की ने कहा - क्या बात है तुम तो सारे पूजा की सामाग्री ऐसे दे रहे थे जैसे कि खुद ही पूजा बहुत अच्छे से किया हो l
वो मुस्कुराया और बोला - हाँ है कोई जिसकी मैं ऐसे ही भक्ति भाव से आराधना करता हूँ लु जब वो बोल रहा था तो उसके सामने कुछ छवि बन रही थी वो किसी के चरणों में फूल अर्पित कर रहा था और हाथ जोड़ कर उसकी आराधना कर रहा था l
लगता है हृदय के पास है वो, दूसरी ने कहा l
कृशव - हाँ बहुत l
श्रीशि ने कहा - तुम लोगों का हो गया हो तो चलें l
सभी जाने को हुए तो कृशव ने वैदेही से कहा - कोई बात है राजकुमारी जी अगर परेशानी है तो बता दीजिए शायद समय रहते वो सही हो जाए l
वैदेही उसे हैरानी से देखने लगी श्रीशि ने कहा - तुम्हें कैसे पता कि वैदेही को कोई चिंता सता रही है l
कृशव - आप मुझे उतना भी नहीं जान पायी मैं सबकी मन की बात भी जान लेता हूँ ( श्रीशि उसे देखने लगती है ) l
Continue...