Chapter - 30
शिद्दत को बिस्तर पर बेहोश पड़ी थी उसके पिता चिंतित खड़े थे वैद्य उसके पैरों पर पट्टी कर रहे थे शिद्दत की माता उसके सर के पास बैठी उसके सर को सहला रही थीं और भी उसके कुछ रिश्तेदार थे l
सूर्य शेन - वैध जी मेरी बेटी कब तक ठीक हो जाएगी l
वैध - मैंने पैरों में दवा लगाकर पट्टी बाँध दी है आप लोग चिंता न करें ये जल्द ही ठीक हो जाएंगी और इन्हें होश भी जल्द ही आ जाएगा l
दूसरी तरफ भी वही हाल था ताई भी बेहोश था उसके पैर भी शिद्दत की तरह ही हो गए थे लेकिन गुरु जी ने अपनी शक्ति से उसके चोट को ठीक कर दिया ताई की माँ - राज गुरु मेरे बेटे को होश कब आएगा और उसे ये चोट कैसे लगी
गुरु जी को सब पता था कि उसे चोट कैसे लगी वो बेहोश क्यों है उन्होंने उसके माता पिता को कुछ बातें बताई और कहा - देखिए मैं जो भी बोलूंगा आप उसे समझने का प्रयास कीजिएगा l
ताई के सब दोस्त भी वहीँ थे तो गुरु जी ने सभी से कहा - इस ब्रह्माण्ड में अनंत ब्रह्मांड हैं जिनकी कोई गिनती नहीं है और उसी के एक ब्रह्मांड का स्वामी है आपका बेटा और वो लड़की जो इससे प्यार करती है वो इसकी अर्धांगिनी मतलब इनका विवाह बहुत पहले ही चुका था लेकिन ये किसी कारण वश अलग हो गए l
इन्होंने एक ब्रह्मांड की उत्पत्ति की हुई है और इनका एक लोक है जिसका नाम कृत्य लोक है इसका अर्थ है धार्मिक कर्म जो धर्म के पथ पर चलता हो वो लड़की ताई के शरीर से निकली हुई है इसलिए जब उसे चोट लगती है तो इसे भी दर्द होता है जब उसे दुःख होता है तो इसे भी होता है l
इन्होंने एक दूसरे को पाने के लिए कई युगों तक तपस्या की है l
जियांग - जब वो इसके ही शरीर से निकली थी तो इन्हें तपस्या करने की क्या जरूरत थी l
गुरु जी - हर चीज़ आसानी से नहीं मिलती उन्हें पाने के लिए तपस्या करना ही पड़ता है भले ही राजकुमारी इसके शरीर के अंदर से निकली थी लेकिन ताई ने उसे स्वीकार नहीं किया उसने कहा तुम्हें मेरी पत्नी बनने के लिए मेरे बराबर का होना पड़ेगा l
राजकुमारी ने भी ठान लिया वो उसी को अपना प्रेमी बनाएगी फिर तपस्या में लीन हो गयी उसे देख ताई भी तपस्या करने लगा युगों बीत गए कई ब्रह्मांड समाप्त हो कर नए उत्पन्न हो गए फिर उन्हें हमेशा के लिए साथ रहने का वरदान मिला और उन्हें एक ब्रह्मांड सौंपा गया उन्होंने अपने अंदर से कई पृथ्वी कई सूर्य कई चंद्रमा कई ग्रह उत्पन्न किया l
और उनमे मनुष्य भी अपने शरीर से ही उत्पन्न किया सब कुछ अच्छा चल रहा था उन्होंने खुद के लिए एक लोक बनाया जो जोड़ +की आकार है और उसके बीचो बीच उनका भव्य महल है उन उन सभी छोर पर सात - सात दरवाजे हैं जिन्हें पार करने के लिए सात पड़ाव हैं l
सिमी - लेकिन गुरु जी ऐसा क्या कारण हैं जिसकी वजह से इन्हें अलग होना पड़ा l
गुरु जी ने कहा - एक बार जब श्रीशि अपने प्रेमी की उपासना कर रही थी और उसमें खोई हुई थी तो एक साधु महाराज उधर से गूजर रहे थे उसने उन्हें नहीं देखा तो वे क्रोध में आ गए l
श्रीशि ने उनसे माफी भी मांगी लेकिन उन्होंने फिर भी उसे श्राप दे दिया सात जन्मों के लिए बिछड़ जाने का और अभी उनका ये छठा जन्म चल रहा है ताई हर बार उसका इंतजार करता है वो हमेशा आती है लेकिन उसका इंतजार खत्म होने से पहले ही वो चली जाती है l
ये सुन सभी को बहुत दुख हुआ ताई की माँ ने कहा - ये तो हमने बहुत गलत किया दो प्रेमियों को अलग कर दिया कितना बड़ा पाप किया है l
गुरु जी ने कहा - इसमे किसी की गलती नहीं है उन्हें वही श्राप ही मिला है और वो सिर्फ इन धर्मों में नहीं बल्कि अलग - अलग धर्मों में भी उन्होंने जन्म लिया है तो आप लोगों को अब उसे आजाद करना पड़ेगा क्योंकि अब उसकी मंजिल है अपनी श्रीशि को पाना और इस ब्राम्हण से अपने लोक चले जाना l
ओंग ने कहा - जिनकी हमें भक्ति करनी चाहिए हम उन्हें अलग कर रहे हैं ये तो अन्याय है l
ताई आँखे बंद कर लेटा था तभी उसे एक ख्वाब आता है वो देखता है कि शिद्दत भाग रही है और वो उसके पीछे जा रहा है वो उसे बहुत आवाज लगाता है - रुक जाओ श्रीशि मुझ पर भरोसा करो l
वो भागती गई और अचानक से गायब हो गयी ताई झटके से उठा उसका नाम लेकर सभी उसके पास आते हैं ताई गुरु जी से पूछता है - गुरु जी श्रीशि कहाँ है l
सिमी - अब ये कौन है ?
ताई - मतलब सिद्दत कहाँ है ?
सिमी - वो तो चली गई अपने महल लौट गयी l
ताई सोचने लगा तो उसके पिता ने कहा - क्या सोच रहे हो l
ताई - यही की अब मेरा यहाँ पर समय खत्म हुआ अब मेरा जाने का वक़्त हो गया है मुझे माफ़ करियेगा लेकिन मुझे जाना ही होगा l
ताई की माँ - हमें सब पता है बेटा हम तुम्हारे लिए एक खुशहाल जिंदगी की प्राथना करेंगे बस अपने माता पिता को कभी भूलना मत l
ताई ने उन्हें गले लगाकर कहा - आप कैसी बात कर रहीं हैं मेरी पूर्वजन्म के जितने भी माता पिता हैं मैं उन्हें कभी नहीं भूला और आप दोनों को भी नहीं भूलूंगा ये मेरा वादा है आपसे l
उस बात को दो तीन दिन बीत गए l
ताई अपने सफर पे निकलने से पहले सारी चीजें ध्यान से देख रहा था और वहाँ बिताए अपने पलों को याद कर रहा था और वहाँ से चला गया l
और भी दिन बीते रात बीती l
भारत...
सुबह का पहर छज्जे से हल्की सी रौशनी शिद्दत के ऊपर आकर अपनी किरणें बिखेर रही थी तभी उसके कानों में एक प्यारी सी गुनगुनाने की धुन सुनाई देती है वो उठकर बैठ जाती है और छज्जे की तरफ देखने लगती है वो दौड़कर वहाँ खड़ी हो जाती है l देखने के लिए कौन गा रहा है देखती है तो एक साधु बाबा मगन होकर उस संगीत को गुनगुना रहा था l
सुनो एक ऐसी कहानी जो दो प्रेमी की है निशानी l
एक शरीर से एक आत्मा निकली l
एक नर है दूसरी श्री कहलाई ll
दोनों ही एक दूसरे का हृदय हैं l
कोई जानता है क्या विपदा आई ll
चलो मैं सुनाता हूँ तो सुनो -
तप दोनों ने ही किया युगों तक l
फिर भी हुए अलग सात जनम तक ll
क्या गलती क्या मुझसे ये पाप हुआ l
फिर क्रोध में मैंने उसको श्रापित किया ll
तप कर दोनों का मिलन हुआ, हुआ समारोह विवाह का उसके बाद बनाई एक नयी दुनिया एक नया लोक ll
न मृत्यु की चिंता न जीवन की चिंता l
फिर भी किया बिछड़ने का शोक ll
आओ सुनाता हूँ मैं तुम्हें एक कहानी l
इंतजार और विरह ही है इसकी निशानी ll
उसे सुन शिद्दत का दिल भर आया और उसके आँखों से आँसू अपने आप ही गिरने लगा l
उसे देख शिद्दत बोली - कौन हैं ये और ये संगीत ऐसा लगता है जैसे किसी की कहानी बता रहे हों l
वो साधु गुनगुनाते हुए वहाँ से चला गया तभी एक दासी आयी और कहा - राजकुमारी जी आपको महाराज ने बुलाया आपसे मिलने के लिए कुछ लोग आए हैं l
शिद्दत कहती है - तुम चलो मैं आती हूँ l
दासी चली गई शिद्दत सोचने लगी - कौन है जो मुझसे मिलने आया है.. ये तो जाकर ही पता चलेगा l
Continue...