जरूरी है खुद की पहचान ,जरूरी है खुद की पहचान ,ना हो जिसमें किसी का एहसान ,खुद के पैरों पर खड़े हो ,खुद ही बनाए अपना जहान।
सखी अब नए आवरण में थी कहीं कुछ खोई हुई, कहीं कुछ पाई हुई, बेबाक हवा सी।उसके ऑफिस के कामों में वह इतना व्यस्त रहने लगी कि घर पर ज्यादातर समय दे ही नहीं पाती थी। जैसे-जैसे वक्त जा रहा था वैसे वैसे ही गिरधर और सखी का समय एक दूसरे के साथ कम बीतने लगा ।एक दिन सुबह गिरधर ने सखी से कहा -सखी आज कुशल मिला था वह कह रहा था कि आज उसका जन्मदिन है, तो जन्मदिन की पार्टी के लिए हम दोनों को बुलाया है ।वैसे मैंने हां कह दिया है।क्या तुम चलोगी? सखी ने गिरिधर को देखा और कहा - अरे कुशल,अभी तक वापस नहीं गया। गिरधर ने बोला - मैंने तुमसे कुछ पूछा है और तुम ही मुझ से प्रशन कर रही हो। हां, मैं बिल्कुल चलूंगी लेकिन फिर भी मेरे दिल में एक ख्याल आया कि कुशल अभी तक गया नहीं है। गिरधर ने जवाब दिया-नहीं गया। ठीक है ,शाम को चलते हैं। कितने बजे जाना है-सखी ने पूछा। 6:00 बजे-गिरधर ने जवाब दिया। ठीक है मैं 6:00 बजे तक आ जाऊंगी। सखी अपने ऑफिस निकल गई। गिरधर भी अपने ऑफिस चला गया। ऑफिस में काम में सखी व्यस्त थी कि अचानक से सखी कोई कॉल आया सखी ने कॉल उठाया उधर से किसी की आवाज आई ।सखी सकपका सी गई ।पहले भी सुनी थी सखी ने यह आवाज, ऐसा लग रहा था मानो इस आवाज़ को वह बहुत अच्छे से पहचानती है। सखी मन में सोचती है यह तो काशी की आवाज है । दो तीन बार हेलो हेलो कहने के बाद वह आवाज बंद हो जाती है और फोन कट जाता है। सखी असहजता से उस फोन को दोबारा मिलाती है दो रिंग के बाद वह फोन उठता है ।उधर से एक आवाज आती है, हेलो। सखी कुछ नहीं बोल पाती और फोन काट देती है। अब उसके दिल में हलचल है, कि ऑफिस से निकल कर घर चली जाए।वो अपना सामान उठाती है और घर पहुंच जाती है। कुछ घंटे बाद फिर रिंग बजती है।सखी फोन उठाती है ,जल्दी तैयार रहना, मैं पहुंच रहा हूं।
सखी समझ पाती की इतने में फोन कट जाता है।वो फोन में नम्बर देखती है ,अरे गिरधर का नंबर है।फिर पार्टी के लिए तैयार होने लगती है। दोनो पार्टी में पहुंच जाते हैं।आज भी सखी कुछ अलग लग रही थी।लाल साड़ी उस पर बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। पार्टी में सबकी नजरें उस पर टिक गई।कुशल तो मानो कुछ जादू देख रहा हो,उसकी आंखे सखी से हट ही नहीं रही थी। ऐसा लग रहा था कि वो कुछ कहना चाहता है लेकिन उसके शब्द कहीं खो से गए हों।