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द टाइम मशीन - अतीत और भविष्य की दुनिया

एक ऐसी मशीन है, जो हमें अपने अतीत में ले जाती है, जहां हम अपने अतीत को बदल सकते हैं। वैज्ञानिक मुकुल लगभग 30 सालों से ऐसी टाइम मशीन बनाने की कोशिश कर रहे थे, ताकि वे अपने मरे हुए माता-पिता को फिर से जीवित करने के लिए अतीत में जाकर उस समय पहुंच सकें, जब उनके माता-पिता की जान जाने वाली थी। वैज्ञानिक मुकुल ने ऐसी मशीन बनाई, लेकिन पहली बार प्रयोग करते समय मशीन का विस्फोट हो गया। इस हादसे में उनका दोस्त भास्कर, जो उस समय छोटा था, मुश्किल से बच पाया। इस घटना के बाद उनकी दोस्ती टूट गई। लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें कोई भी नहीं बदल सकता। इंसान चाहे कितनी भी कोशिश करे, वह कुदरत के खिलाफ नहीं जा सकता। अगर वह ऐसा करने की कोशिश करता है, तो कुदरत खुद उसे रोक देती है। वैज्ञानिक मुकुल भी कुदरत के खिलाफ जाकर कुछ ऐसा ही बना रहे थे। उन्होंने दूसरी बार एक नई टाइम मशीन बनाई, तब वे सफल हो गए। अब इंसान अतीत में जा सकता था। इस बार, कुदरत ने फिर से अपना करिश्मा दिखाया और भास्कर की पत्नी सैली की मौत हो गई। भास्कर अपनी पत्नी को बचाने के लिए कई बार टाइम ट्रेवल करता है, लेकिन हर बार असफल रहता है। आखिरकार, वे समझ जाते हैं कि हम टाइम ट्रेवल करके अतीत को बदल नहीं सकते। जब वे दोनों हार मान लेते हैं, तब कुदरत उन्हें फिर से अपनी गलती सुधारने का एक मौका देती है। इस कहानी में वैज्ञानिक मुकुल, भास्कर और उसकी पत्नी सैली की जिंदगी का विस्तार से वर्णन किया गया है। साथ ही, टाइम ट्रेवल के हर रोमांचक किस्से को भी बताया गया है।

AKASH_CHOUGULE · sci-fi
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चैप्टर -०२ पुराणी यादे

सैली टैक्सी के दरवाजे के शीशे से बाहर देख रही थी, बचपन की यादें एक-एक कर उसकी आंखों के सामने आ रही थीं। तब भास्कर और सैली 8-9 साल के थे, तब से भास्कर सैली से प्यार करता था। और हमेशा उसे घूरता रहता था। भास्कर उसका दीवाना था। यह बात सैली को अच्छे से पता थी। लेकिन फिर भी वह एक अच्छी और मासूम दोस्ती थी। जो दूसरों को खुशी दे रही थी।

उन यादों में से एक याद यह थी कि, जब दोनों पत्ते खेल रहे थे। भास्कर पत्ते की तरफ देख रहा था और चोरी-छिपे सैली की तरफ नजरें दौड़ा रहा था। उसकी मुस्कुराहट, उसके बालों में उसके हाथों का दौड़ना, उसकी आंखों का चौड़ा होना, उसकी नाक की टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें—ये सब हावभाव उसे हार और जीत के डर से टेंशन में डाल रहे थे। उसे सिर्फ जीतना था। खेलते समय अचानक सैली जोर से चिल्लायी, "मैं जीत गई!" यह कहकर वह नाचने लगी। नाचते समय वह रुक गई और भास्कर की ओर देखकर कहा, "मैं हमेशा जीतती हूं, और आज भी मैं जीत गई।" सैली ने मुस्कुराते हुए कहा।

भास्कर उसे देखकर मुस्कुरा रहा था। उसे सारे पत्ते लगे थे। वास्तव में भास्कर जीत गया था, लेकिन भास्कर ने यह बात सैली को नहीं बताई थी। इसी वजह से सैली हमेशा भास्कर से जीत जाती थी। सैली को मोर की तरह नाचते हुए देखकर उसे सब गौण लग रहा था, जो भीषण ठंड से नहीं डरता था। उसे सिर्फ वह नजारा जरूरी था, जो उसे देखना था।

इन यादों में से एक और याद थी, जब वे थोड़े बड़े हो गए थे। तब भास्कर गली में क्रिकेट खेल रहा था। तभी सामने सैली आ रही थी। सैली ने पहली बार शर्ट-पैंट पहनी हुई थी, वह भास्कर के सामने ऐसे आ रही थी जैसे कोई हीरोइन या फिर मॉडल कैटवॉक कर रही हो। भास्कर को तब एक सेकंड एक मिनट की तरह लग रहा था। वह धीरे-धीरे भास्कर के सामने आ रही थी।

भास्कर बल्लेबाजी कर रहा था। उसके दोस्त ने भास्कर की तरफ गेंद फेंकी। लेकिन सैली की ओर ध्यान जाने के बाद, दोनों दूसरी ही दुनिया में थे। उस दुनिया में जहां भास्कर और सैली थे, एक अदभुत संसार था। उस दुनिया में बहुत धुंआ था। भास्कर को कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसे सिर्फ अपने सामने किसी की परछाई दिखाई दे रही थी, जो उसकी तरफ बढ़ रही थी। जैसे-जैसे परछाई उसकी ओर बढ़ रही थी, उसके आसपास का धुंआ साफ हो रहा था। वह परछाई ठीक उसके सामने खड़ी हो गई और धुंआ पूरी तरह से साफ हो गया। वह परछाई थी सैली की, जो एक खूबसूरत परी थी, जो गलती से रास्ता भूलकर धरती पर उतर गई थी। और वह भास्कर के सामने खड़ी थी। उसे नहीं पता था कि उस समय क्या करना है, उसे समझ में नहीं आ रहा था। भास्कर बस उसे देख रहा था।

भास्कर बल्लेबाजी करते समय सैली पर इतना फोकस था कि वह क्लीन बोल्ड हो गया। उसने अपना बल्ला भी नहीं हिलाया। सभी दोस्त भास्कर की तरफ हैरानी से देख रहे थे, लेकिन उसका ध्यान सिर्फ सैली की ओर था। सैली भास्कर के सामने से गुजर कर आगे बढ़ गई। भास्कर भी पीछे मुड़कर सैली की ओर देख रहा था, और सैली भी पीछे मुड़कर उसे देख रही थी। अंत में, विकेटकीपर उनके बीच आ गया और अपनी भौहें उठाईं। भास्कर को होश आया। उसकी नई दुनिया में एक विकेटकीपर आया था, और वह अपनी नई दुनिया से बाहर आ गया।

"क्या हुआ?" दोस्तों ने इशारों से पूछा। भास्कर ने सिर हिलाते हुए "कुछ नहीं" का जवाब दिया। सभी दोस्त उसे देखकर मुस्कुरा रहे थे। भास्कर ने शर्म से सिर नीचे कर लिया और जमीन की ओर देखने लगा। उसे बहुत शर्म आ रही थी। सैली की हर चीज उसे अच्छी लगती थी। शायद वह प्यार था, या फिर सिर्फ दोस्ती, यह उसे पता नहीं था। हर दिन एक नए तोहफे जैसा था। उस तोहफे में एक और किस्सा छुपा था, जो भास्कर के बर्थडे के दिन हुआ था।

भास्कर के जन्मदिन पर उसके दोस्त और कुछ रिश्तेदार ढेर सारे तोहफे लेकर आए थे। हमेशा की तरह उसका ध्यान सैली की ओर था। लेकिन सैली का ध्यान बर्थडे पर आए तोहफों पर था। भास्कर को समझ में आ गया कि उसे तोहफा चाहिए था। अगले दिन वह सैली के घर गया। वह अकेली बरामदे में बैठी थी। भास्कर ने सैली के सामने एक गिफ्ट बॉक्स रख दिया। यह देखकर वह बहुत खुश हुई। उसने मीठे स्वर में "थैंक यू" कहा और गिफ्ट बॉक्स के कागज को एक तरफ धकेल दिया। उस गिफ्ट बॉक्स में तीन पहियों वाली एक रिक्शा थी। सैली को वह गिफ्ट पसंद नहीं आया, इसलिए उसने अपनी नाक सिकोड़ ली। यह देखकर भास्कर ने उस रिक्शा को नाले में फेंक दिया।

भास्कर ने घर जाकर दूसरा गिफ्ट बॉक्स लाया। उसमें एक हेलीकॉप्टर था, लेकिन सैली को यह भी पसंद नहीं आया। भास्कर ने हेलीकॉप्टर को भी नाले में फेंक दिया। नाला खिलौनों से भर गया था। उसके सारे गिफ्ट खत्म हो गए थे। अब सैली को कौन सा गिफ्ट दे, यह समझ में नहीं आ रहा था। भास्कर को याद आया कि उसके जन्मदिन पर उसके पिता के कुछ दोस्तों ने उसे पैसों का लिफाफा दिया था। भास्कर ने कुछ लिफाफे फाड़े। एक लिफाफे में 100 रुपये और दूसरे लिफाफे में 200 रुपये थे। भास्कर पैसे लेकर दुकान चला गया और वहां से एक गुड़िया खरीदी। सैली को यह पता न चले कि यह गुड़िया उसने खुद के पैसों से खरीदी है, इसलिए उसने गुड़िया को एक बॉक्स में रख दिया और उसके ऊपर पेपर चिपकाया। उसने वह गिफ्ट सैली को दिया। सैली ने बॉक्स पर रखे कागज को एक तरफ धकेल दिया। उसमें एक गुड़िया थी। यह देखकर वह बहुत खुश हुई। भास्कर ने उसे कभी यह अहसास नहीं होने दिया कि उसने वह गुड़िया खुद के पैसों से खरीदी थी।

"थैंक यू," सैली ने मुस्कुराते हुए कहा। भास्कर के लिए बस वही दो शब्द काफी थे। वह सैली की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार था। सैली उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी, जिस पर उसकी गहरी आस्था थी।

अगली सुबह भास्कर उठा और खिड़की का पर्दा खोला। सैली का घर उसके घर के बगल में ही था। पर्दा हटाने पर उसके सामने सैली का चेहरा दिखाई दिया, और मन में बस एक ही ख्याल आया - आज का दिन अच्छा बीतेगा। भास्कर ने सैली को साइकिल से कहीं दूर चलने का इशारे से पूछा, और उसने भी इशारे से "हाँ" कह दिया। जैसे वह उसके कुछ कहने का इंतजार कर रही थी। दोनों ने साइकिल निकाल ली और घर से काफी दूर चले गए। उनकी साइकिलें एक-दूसरे के करीब आ गईं। एक दूसरे का हाथ अपने हाथ में ले लिया। समुद्र में डूबता हुआ सूर्य उन दोनों को देख रहा था। वह बहुत दूर चले गए। ऐसा लग रहा था कि यह सफर कभी खत्म नहीं होना चाहिए।

सैली भास्कर की सबसे अच्छी दोस्त थी। जब वह उसके साथ होती थी, तब वह हमेशा बेहतर महसूस करता था। उसे सैली से बात करना और उसकी मदद करना अच्छा लगता था। लेकिन उस दिन उसकी मदद करना भास्कर को महंगा पड़ गया था।

एक दिन स्कूल में सैली का इतिहास विषय का होमवर्क पूरा नहीं हुआ था। उस विषय के टीचर बड़े कठोर अनुशासक थे। इसलिए यह निश्चित था कि उसे सजा मिलने वाली थी। इतिहास के शिक्षक के कक्षा में प्रवेश करने के बाद टीचर ने ऊँचे स्वर में कहा, "जिन्होंने कल पढ़ाई नहीं की, वह खड़े हो जाएँ।"

सैली पहले से ही डरी हुई थी। टीचर की कठोर आवाज सुनकर सैली के साथ सभी छात्र, जिन्होंने अपना होमवर्क पूरा नहीं किया था, डर गए थे। सैली उनकी आवाज सुनकर कांपने लगी थी। वह भास्कर के बगल में बैठी थी। उसने अपनी मुट्ठी भींच ली। उसे देखकर भास्कर को समझ में आ गया कि सैली ने होमवर्क पूरा नहीं किया था।

सैली का ध्यान उस टीचर पर था। टीचर सबकी नोटबुक देख रहे थे। कुछ छात्र, जिन्होंने होमवर्क नहीं किया था, खड़े हो गए थे। टीचर ने उन छात्रों को जमकर डंडे मारे। उस डंडे की आवाज पूरी क्लास में गूंज गई। उस आवाज को सुनकर पूरी क्लास डर गई। सैली की आँखों में पानी आ रहा था। उसकी आँखों में डर और चिंता साफ झलक रही थी।

टीचर धीरे-धीरे उनके पास आ रही थीं, इसलिए सैली का डर बढ़ता जा रहा था। टीचर अब भास्कर और सैली की बेंच के पास आ चुकी थीं। टीचर सैली की ओर पीठ दिखाकर खड़ी थीं। सैली खड़ी हो गई, उसके पैर कांप रहे थे। उसे खड़ा देख भास्कर ने अपनी नोटबुक उसके सामने बेंच पर रख दी। इससे पहले कि टीचर पीछे मुड़कर देखतीं, भास्कर ने सैली का हाथ पकड़ लिया और सैली को नीचे खींच लिया। वह नीचे बैठ गई और भास्कर खुद उठ खड़ा हुआ।

टीचर ने पीछे मुड़कर देखा तो उन्हें लगा कि भास्कर ने होमवर्क पूरा नहीं किया है। यह समझकर उन्होंने भास्कर के हाथ पर दो डंडे मारे। डंडे इतनी जोर से लगी कि उसकी आँखों से आँसू निकल आए। भास्कर तुरंत बैठ गया और आँसू पोंछने लगा।

सैली ने उसकी आँखों में आँसू देखे, तो उसे बहुत बुरा लगा। लेकिन टीचर को सच बताने की हिम्मत उसमें नहीं थी। भास्कर ने दोनों मुट्ठियाँ भींच लीं ताकि वह उसका लाल हाथ न देख सके। सैली भास्कर की मुट्ठियाँ देख रही थी, वह उसका हाथ देखने की कोशिश कर रही थी। लेकिन भास्कर उसे अपना हाथ नहीं दिखा रहा था। साथ ही इतिहास का क्लास शुरू होने के कारण दोनों बात नहीं कर पाए। वे दोनों लंच ब्रेक का इंतजार कर रहे थे, उस समय उनका ध्यान क्लास पर नहीं था।

वह आधे घंटे का क्लास बहुत लंबा लग रहा था। शायद वह क्लास कभी खत्म नहीं होगा, ऐसा लग रहा था। ऐसा उनके साथ कई बार हुआ था। खुशी के जो चंद घंटे बीत गए थे, वह उन्हें मिनटों के समान लग रहे थे। लेकिन बुरे वक्त में इसका उल्टा होता था। दोनों का ध्यान घड़ी पर था।

किस्मत से लंच टाइम की बेल हो गई। सैली ने भास्कर का हाथ देखा। उसके दोनों हाथ लाल थे। यह देख उसकी आँखों में आँसू आ गए। सैली को देखकर भास्कर को लगा कि वह पछतावे से भरी हुई थी। उसका चेहरा उतर गया था। उसने अपना कान पकड़ लिया और भास्कर से माफी मांगी, "सॉरी भास्कर, अब से मैं अपना होमवर्क समय पर पूरा कर लूंगी। और साथ ही मैं तुम्हारा होमवर्क करने में भी तुम्हारी मदद करूंगी।"

भास्कर ने जितना सहा था, उतना ही सैली ने भी सहा था। उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था, तो इसमें कोई शक नहीं था कि सैली ऐसी गलती दोबारा कभी नहीं करेगी।

भास्कर ने सैली के आँसू पोंछकर कहा, "तुम मुझसे प्रॉमिस करो कि तुम दोबारा यह गलती नहीं करोगी।"

सैली ने कहा, "गॉड प्रॉमिस।"

सैली ने जब भास्कर से गॉड प्रॉमिस कहा था, तो भास्कर को लगा था कि वह मजाक कर रही है। लेकिन उसने वह प्रॉमिस हमेशा पूरा किया। तब से वह हमेशा भास्कर के घर पढ़ने आती थी। जब भास्कर अपनी पढ़ाई छोड़कर किसी दूसरी चीजों में वक्त बर्बाद करता था, तो सैली उसे फिर से पढ़ाई की ओर मोड़ देती थी। सैली की वजह से भास्कर ने एक बात सीख ली थी कि वह पढ़ाई के दौरान सिर्फ पढ़ाई करेगा और बाकी समय में टाइम पास करेगा। भास्कर की इस आदत के कारण उसने हाईस्कूल और कॉलेज में अच्छे अंक प्राप्त किए। इसके बाद भास्कर ने सी.एस. में प्रवेश लिया और सैली ने बैंकिंग क्षेत्र में। हालाँकि उन दोनों के पास अलग-अलग क्षेत्र थे, पर वह एक साथ पढ़ रहे थे।

जब भास्कर खाली समय बर्बाद कर रहा था, तो सैली उसे वापस पढ़ाई की ओर मोड़ रही थी। सुबह भास्कर लैपटॉप में लेक्चर देख रहा था, जबकि दोपहर में वह दो से तीन घंटे सोता था। सैली रोज दोपहर चार बजे उसके घर आ जाती थी। अगर भास्कर सो रहा होता, तो वह उसकी नींद तोड़ने के लिए उसके मुँह पर पानी का गिलास फेंक देती थी और उसे फिर से पढ़ने के लिए मजबूर करती थी। साथ ही वह उसके पास बैठकर पढ़ाई करती थी। वह बीच-बीच में भास्कर पर ध्यान देती थी। जब वह एक छोटी झपकी लेता था, तो वह उसके कान खींचती थी। जब भास्कर पढ़ाई करता था, तो पढ़ते समय सैली किताब के किसी शब्द पर उंगली रखकर उससे उस शब्द का अर्थ पूछती थी। अगर उसने उस शब्द का अर्थ नहीं बताया, तो सैली किताब उसके मुँह पर फेंकती थी। वह रोज उसके घर आती थी। उसकी वजह से भास्कर 2-3 घंटे ज्यादा पढ़ाई करता था। इसलिए भले ही सैली ने भास्कर के साथ कभी-कभी सख्ती से पेश आई, लेकिन भास्कर के परिवार वालों ने हमेशा उसका साथ दिया।

सैली ने अपना वादा पूरा किया। इसी के चलते भास्कर ने जल्द ही सी.एस. की परीक्षा पूरी कर ली।

अब वे टैक्सी से मनोरा होटल जा रहे थे। ये सारी यादें सैली की आँखों के सामने आ गईं। वह उन यादों में इतनी डूबी हुई थी कि, कब मनोरा होटल पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला।