जब अमा का दुसरा जन्म हुआ तब वह अपनी एक अंग से हीन थी उनका रूप रंग से भी कुरुप थी उनका हाथ ऐसा था जिससे कोई काम नही होता था और गरीबी ऐसी थी कि वह एक दिन का खाना भी ठीक से नहीं खा पाती थी उनके जीवन में दुख और ताने के सिवा और कुछ नहीं था फिर भी वह प्रतिदिन सुबह सुबह पूजा पाठ करती थी और नसीब के सहारे जीती जागती रही अमां धीरे धीरे विवाह के योग हो गई फिर उनका विवाह हो गया विवाह के बाद भी उनका जीवन ऐसा ही रह गया विवाह के बाद भी अपने संबंधियों के ताने सुनने को मिलती थी उनके पति कमा के लाते तो घर चलता था फिर कुछ वक्त के बाद अमा मां बनने वाली थी उनका संतान इस दुनिया में अपनी आंखे खोलता उससे पहले ही उसके पिता के मौत हो गई फिर उसके पति के घर वालो ने अमाको घर से बाहर निकल दिया फिर अमा गांव से बाहर एक झोपड़ी बनाकर रहने लगी दूसरो का काम करती थी और अपना संतान को पालती थी अमाको एक लड़का हुआ था जिसका नाम अमा ने राम रखा था जिसे अमा अपनी जान से भी अधिक प्रेम करती थी दूसरे के घर में काम करती और अपने बेटे की सारी इच्छ पूरी करती थी राम को कुछ मांगने से पहले उसको सब कुछ लाकर देती थी राम को अच्छे स्कूल शिक्षा दिलाती थी राम भी मन लगा कर पढ़ता था और अपनी मां की सहायता भी करता था राम भी वक्त के साथ बड़ा हो गया और अपने स्कूल में सबसे अधिक नंबर से पास हुआ फिर राम खुशी से घर आकर अपनी मां से कहता है कि मां अब तू सारी काम छोड़ दे अब मैं काम करूगा और तू आराम कर अमा भी बहुत खुश थी राम की खुशी देखकर राम को अच्छी काम भी लग गई थी राम के इक्छ के अनुसार अमा काम पर नहीं गई और घर पर रह गई जीवन में पहली बार अमा ने सुख की रोटी खाई थीअमा के आखों से मोटी कि तरह आसू झरने लगी तब राम ने अपनी मां को समझाया और अब सुख शांति से जीवन जीने के लिए कहा अमा के खुशीयो को कुछ वक्त बाद ही नजर लग गई और राम की मौत की घटना में हो गई अमा को जब ये बात पाता चली तो वह पागलों की तरह रोने लगी न उनका कोई आगे थी न पीछे थी एक लड़का था जिसके सहारे जीती थी अब वह भी नही रहा अमा अपने भाग को कोसती और रोती रहती अमा ने जिस मूर्ति को बचपन से पूजती थी उसे घर से बाहर निकल कर बिग दिया और वही बैठी रोती रही कुछ वक्त के बाद वह मापदण्ड आया उसने वहां से मूर्ति उठा लिया और कहते हैं वो अमा तू किसे बिग रही हैं जिसने तुझे तेरे जीवन में सहारा दिया तेरे अपने कर्म है ये जो तू भोग रही है भला इसकी क्या गलती है तब अमा बोली मेरी गलतीक्या है अरे मैंने कैसा पाप किया है जिसके कारण मेरे राम मुझे छोड़ कर चला गया सारी जीवन मैने दुख और ताने सुने फिर भी किसी से कोई शिकायत नहीं की भगवान ने मुझे दुखो के अलावा दिया क्या है पहले मेरे पति मुझे छोड़ गए अब मेरा बेटा मुझे छोड़ कर चला गया अब मैं क्या करूं मुझे तो मौत भी नही आती आखिर कैन सा पाप मैने किया है जिसने मुझसे सब कुछ छीन लिया अमा तू रो मत अब तेरे सारी दुख समाप्त हो गई हैं तेरे पिछले जन्म के कर्म था जो तेरे बेटे और पति के रूप में जन्मा था और कर्म तो समाप्त होता ही है अब तू इस जन्म में अच्छे कर्म कर ताकि तेरे अगले जन्म में सुखी जीवन मिले यदि भगवान विष्णु ने तेरे दो तिहाई कर्म समाप्त न किया होता तो न जाने तेरे कितने जन्म दुखो के साथ बित्तता पर तुने अपने एक तिहाई कर्म को अपने बेटे और पति के रूप में लेकर आई भगवान विष्णु ने तुझे ऐसा न करने के सलाह भी दी थी पर तुझे अपने कई जन्मों में भोग जाने वाले कर्म को एक जन्म में भोगने का विचार किया इसलिए तुझे ऐसा जीवन प्राप्त हुआ है फिर मापदण्ड ने भगवान विष्णु के प्रतिमा को अमा के हाथ में दे दिया और अमा से कहा अब यही तेरा जीवन है तब तू तय कर तुझे जीना कैसे हैं अच्छे कर्म करके या फिर से भगवान को गली देकर जिएगी इतना कहकर मापदण्ड वहा से चले गए तब अमा को भी समझ में आ गया की उसने क्या किया और क्या नहीं पूरी जीवन में क्या खोया और क्या पाया अमा को सदा लगता था कि मैंने जरूर कोई बुरे कर्म किया है जिसके कारण मेरे जीवन ऐसा है इसलिये अमा अपने बेटे और पति के दुख से उठकर भगवान विष्णु के प्रतिमा को अपने गोद में उठाकर उसे राम कहा कर पुकारती और राम के तहत ही उसे प्रेम करती थी अमा ने भगवान विष्णु को बेटा मानकर अपनी सारी जीवन उसी खुसियो में बीता दिया फिर एक दिन ऐसा आया की अमा ये दुनिया छोड़ चली जब अमा ने उस दुनिया में आंख खोली तब वह भगवान विष्णु के गोद में उसी तरह सर रखकर सोई थी जिस तरह वह अपने बेटे राम को सोलती थी जब अमा ने आंख खोला तो भगवान विष्णु को अपने बेटे के रूप में देकर रोने लगी तब भगवान ने कहा ओ अमा कब क्यू रो रही है तब अमा बोली ये तो खुशी के आसू है जिसका बेटा राम जैसा भगवान विष्णु हो वह मां क्यू रोएगी तब भगवान विष्णु कहते हैं इंसान अपने जीवन में क्या किया ये जरूरी नहीं है उसने कर्म क्या किया ये जरूरी है हर गलती क्षमा योग है लेकिन उसकी गलती से करवे बोली और विचार से किसी का आत्मा मन दुखी हुआ तो परमात्मा कभी क्षमा नहीं करेगा और उसे इस कर्म का हिसाब देना होगा