दीक्षा जैसे ही कमरे में आती है खुद को आईने में देखकर गुस्से में दक्ष को कोसती हुई कहती है, "इनको समझ में नहीं आता है कि अब हम पार्वती मेंशन में नही प्रजापति महल में आ गए। कहां इन्हें प्यार जताना चाहिए और कहा नहीं!! ये इनको समझ नही आता है। दीक्षा की बात सुनकर, दक्ष मुस्कुराते हुए पीछे से अपनी बाहों में लेते हुए उसे कहता है कि," अच्छा प्यार करते वक्त मैं यह सोचकर करूं कि कहां आपको प्यार करूं और कहां नहीं ।दीक्षा मुड़कर उसकी तरफ घूमती है और कहती है अगर आप ऐसा नहीं करेंगे, " तो सबको हमारे प्यार की निशानी दिख जाएगी? दक्ष मुस्कुराता हुआ कहता है प्यार किया है तो उसमें छिपाने की क्या जरूरत है। दीक्षा कहती है तो ठीक है लाईये हम भी आपको अपनी प्यार की निशानी, आपके इस गौरे गालों पर दे देते है। ये कहती हुई दक्ष के चेहरे क़ो अपनी तरफ झुकाती हुई उसके गालों की तरफ झुकने लगती है। दक्ष सीधा होकर उसके होठों क़ो चूमते हुए कहता है, " अरे नही स्वीट्स!! ऐसा नहीं करो। मै आगे से ध्यान रखूंगा। दीक्षा कहती है, " अच्छा जनाब!! अपने पर आया तो बस कह रहे आगे मत करो।दक्ष मुस्कुरा कर उसके नाक क़ो काटते हुए कहता है। हम आपकी तरह घाघरा, चुन्नी नही पहने ना ही मेकअप करते है, कह कर तेजी से वाशरूम में चला जाता है। दीक्षा मुँह खोले कहती है, ह्हः!! तो हम मेकअप करते है। निकलिए आप बाहर दक्ष फिर हम बतायेगे आपको।
पृथ्वी जब के कमरे में आता है तो शुभ अपने निशानों को मेकअप से छिपा रही होती है। पृथ्वी कहता है कुछ ज्यादा ही प्यार जता दिया मैंने आपसे। शुभ कहती है, आपका प्यार जताना हमे पसंद है। हाँ, यह अलग बात है की, " यह प्यार की निशानी पर नजर सबकी चली गई खासकर माँ सा की? पृथ्वी हंसते हुए कहता है तो चलिए यह तो अच्छी बात है। कम से कम उनको यकीन हो गया कि उनका बेटा उनकी बहु से बहुत प्यार करता है।
रौनक कमरे में आकर कनक से पूछता है, " अचानक ऐसी क्या बात हो गई जो माँ सा !! ने आप सब को ऊपर कमरे में भेज दिया। जिसे सुनकर कनक उसकी आखों में देखती है और अपने ब्लाउज को हल्का सा नीचे करती हुई रौनक से कहती है, "ये देख लिया आपकी मोहब्बत की निशानी। रौनक ये देख कर सर झुका कर मुस्कुरा देता है और कहता है माफ कर दीजिए हमने कुछ ज्यादा ही प्यार जता दिया। कनक कहती है, हमें पसंद आया आपका प्यार जताना । दोनों मुस्कुरा देते है।
तूलिका गुस्से इधर से कमरे में घूम रही होती है। अतुल जब आता है तो उसका कॉलर पकड़कर खींचती है और बेड पर पटक कर उसके ऊपर वह चढ़ती हुई कहती है," क्या किया तुमने ??? अतुल कहता है ऐसे बेड पर गिरा कर तुम क्या दिखाना चाहती हो मैंने क्या किया? तूलिका गुस्से में खींचती हुई कहती है देखो देखो तो!! तूलिका के इस तरह से कहने से। अतुल की नजर तूलिका की सीधे सीने पर चली जाती है। उस तरफ देखते हुए कहता है इसे तो मैं रात भर देख रहा हूं क्या अभी भी देखना है। तूलिका उसकी बातों का मतलब नही समझती हुई, " उसकी नजर जब अतुल के नजर से मिलती है और उसकी नजरों का पीछा करती है तो देखती है अतुल कहाँ देख रहा होता है। ये देख उसके सीने पर मुक्के मारती हुई कहती है, " गंदे कहीं के। मैंने ये नहीं कहा देखने के लिए। मैंने कहा यह देखो फिर वह अपने हिस्से को दिखाती है जिससे अतुल के प्यार की निशानीयाँ रहती। अतुल उसकी बात क़ो समझ कर भी ना समझने का व्यवहार करते हुए कहता है, " अच्छा!! तो यह बोलो ना फिर से करना है ??? तूलिका गुस्से में कहती है, " क्या कहा तुमने। मै तुम्हारा गला दबा दूंगी अगर दोबारा ऐसी निशानी दी तो।फिर मुँह बनाती हुई कहती है,तुम्हें मालूम भी है काकी सा के साथ साथ मॉम और छोटी मॉम ने भी देख लिया।
अतुल उसे खुद से निचे उतारते हुए कहता है, "अरे यार तुम इतना क्यों गुस्सा कर रही हो। मैं अपना शर्ट उतार के सभी क़ो दिखा देता हूं कि देखिये सिर्फ मैंने नही आपकी बहु ने भी कितनी सारी निशानियां मुझे दे रखी है।
तूलिका उसको घूरती हुई कहती है तुम मगरमछ के मगरमछ ही रहोगे। अटुम मुस्कुराते हुए उसके लबों क़ो हल्का चुम कर कहता है, जैसा भी रहुँगा सिर्फ तुम्हारा रहुँगा। दोनों एक दूसरे क़ो देख मुस्कुराने लगते है।
इधर रितिका कमरे में आकर कपड़े बदल रही होती है। अनीश पीछे से आ के कहता है क्या छुपा रही हो? रितिका मुस्कुराते हुए कहती है जो तुमने दिया उसे छिपा रही हूं। नहीं तो सबकी नजर लग जाएगी ना। अनीश कहता है कि तुम ना वकील गिरी वाली जुबान बंद करोगी मेरे साथ बात करना। रितिका कहती है वह क्या है ना वकील साहब आपके साथ रहते हुए मुझे आपकी जुबान भी सीखनी पड़ी। अब चलिए जरा मुझे तैयार होने दीजिए?क्यों अगर मै तैयार कर दूँ तो कोई दिक्कत। बिल्कुल नही वकील साहब लेकिन वो क्या है ना आज की निशानी तो मॉम के साथ सभी ने देख ली और कुछ नही कहा लेकिन आगे आप चाहते है की वो ना देखें तो फिलहाल मुझे तैयार होने दीजिये। अनीश मुँह बना लेता है तो रितिका उसके गालों क़ो चुम लेती है।
तभी नीचे से बहुत सारी शोरगुल सुनाई देने लगते हैं। जिसे सुनकर दीक्षा और दक्ष कहते हैं, " यह आवाज किसकी है और इतना शोर कैसा। ऐसा सुनकर सभी एक-एक करके कमरे बाहर आते हैं।
बाहर हॉल में। सुमन जी के साथ सभी बड़े खड़े होते हैं और सामने,दीक्षा के दादा दादी चाचा चाची। रितिका के भैया भाभी। और तूलिका के मां-बाप खड़े होते हैं। जिन्हें देखकर एक पल के लिए तीनों ठिठक जाती है। लेकिन दक्ष अनीश और अतुल उन तीनों का हाथों पकड़कर कहते हैं, "चलिए आज ना कल तो यह सामना करना ही पड़ेगा। तीनों एक साथ नीचे आ जाती हैं। उनके साथ रौनक और पृथ्वी भी होते हैं। प्रजापति महल देखकर दीक्षा के चाचा चाची के साथ रितिका और तूलिका के परिवार की आंखें फटी की फटी रह जाती है उसके पीछे खड़ा सतीश की भी।
दक्ष की आँखे छोटी हो जाती है। ज़ब पुलिस और वकील के साथ दीक्षा, तूलिका और रितिका का परिवार उनके सामने खड़ा था। पीछे खड़े कुशेश्वर राय और कौशल्या राय क़ो देख दीक्षा उनके पास आकर उनके पैर छूने क़ो होती है। तो दोनों अपने कदम पीछे ले लेते है। दीक्षा ज़ब असमंजस से भरी उनके तरफ देखती है तो कुशेश्वर राय उसे थप्पड़ मारते है।
ये सभी की आँखे बड़ी हो जाती है दक्ष आगे बढ़ता उससे पहले तुलसी जी आगे बढ़ कर दीक्षा क़ो अपनी तरफ खींच लेती है। दीक्षा अब भी हैरत भरी नजरों से अपने दादा और दादी क़ो देख रही थी जिनकी आखों मे उसके लिए बेशुमार नफ़रत थी।
तुलसी जी गुस्से मे कहती है,"हमने आप सभी क़ो अंदर आने की इज्जाजत इसलिये दी की आप हमारी बहुओं के परिवार वाले है। लेकिन आप ऊँगली दिखाते हुए कुशेश्वर राय की तरफ आगे कहते है। आपकी हिम्मत कैसे हुई हमारी बहु पर हाथ उठाने की।
"हमने आपकी बहु पर नही उस पोती पर हाथ उठाया है जिसने हमारे खानदान की नाक कटावा दी "!!!! हम थप्पड़ क्या? इसकी जान ले ले ये कहती हुई कौशल्या जी दीक्षा क़ो घूरती है।
दक्ष कुछ कहता उससे पहले ही तुलसी जी उसे हाथ दिखाती हुई कहती,"आप रुक जाईये दक्ष!!हमने आपको बड़ो का लिहाज करना सिखाया है ये और बात है की इनकी उम्र हो गयी लेकिन समझदारी नही आयी। ये सुनकर सभी लोगो तिलमिला जाते है।
तुलसी जी सबकी तरफ देख कर कहती है, हम घर आये हुए दुश्मन का भी निरादर नही करते फिर आप तो हम चाहे या नही चाहे ;हमारी बहुओं के मायके वाले है। यु खड़े होकर बहस करने से बेहतर है आप सभी बैठे और बैठ कर बात करे। आये!!कहती हुई सोफे की तरफ इशारा करती है।
कौशल्या जी कहती है, हम बैठने नही आये है। हम हमारी बेटी क़ो लेने आये है। उनके साथ साथ चंदना और तूलिका माँ दीपिका शर्मा कहती है, किसी की बेटी और किसी की पत्नी क़ो अपनी ताकत की दम पर रखने से आप महान नही हो जाती है। इन तीनों ने ऐसे कुकर्म किये है जिससे हमें जीते जी मौत आ गयी।
दीपिका तूलिका की तरफ दौड़ती है ये कहती हुई, ये लड़की शादी शुदा होकर भी दूसरे मर्द के साथ भाग गयी और हाथ बढाती है मारने के लिए की तब तक निशा जी उनके हाथ पकड़ कर घुमा देती है। जिससे उनकी चीख निकल जाती है। ये देख तूलिका अपनी नम आखों से निशा जी की तरफ देखती है जो अभी दीपिका की हाथों क़ो घुमाती हुई कहती है, "मुँह से बात करो तुम!! अगर चमकते हुए मेरी बेटी के पास आयी तो अभी हाथ मरोड़ा है। कही हाथ तोड़ ही ना दूँ। कहती हुई दूर थका देती है। जिससे वो जमीन पर गिर जाती है और अपने पति से कहती है, देख लो आज तुम्हारी बेटी ने ये भी दिन दिखा दिए हूँ सब क़ो।
दीपिका के ऐसे गिरते ही चंदना कहती है आप लोगो हमे मारना चाहते है। ज़ब से हम आये है तब से आप सभी धमकी दिए जा रही है। फिर दीक्षा की तरफ देखती हुई कहती है, तु चल अभी घर पर फिर मैं बताती हूँ तुझे। प्रियंका तो सीधे रितिका का हाथ पकड़ कर कहती है, किससे पूछ कर तुम यहाँ हो। कभी तुम्हें अपने बड़े भाई का ख्याल नही आया कहती हुई उसके हाथों क़ो दबा देती है।
अनीश और सुकन्या जी कुछ कहते उससे पहले रितिका प्रियंका के हाथों क़ो पकड़ कर अपनी दूसरी हाथ छुड़ा कर अपनी कठोर आवाज़ मे कहती है, मैं नब्बे की दशक की हीरोइन नही हूँ भाभी !! जो अपनी भाभी की ज़्यादती बर्दास्त करती रहे फिर भी उसको सम्मान देती रहे। और मेरे माँ -पापा ने मेरी जिम्मेदारी के लिए मेरे भाई के पास खर्चे दे रखे थे। ख्याल रखने का मतलब क्या है की आपके उस भाई से मुझे शादी करनी चाहिए थी।
फिर तूलिका और दीक्षा की तरफ देखती हुई कहती है, इन दोनों क़ो देख आपको ये नही लगा ना की मैं भी थप्पड़ खा लुंगी और चुप रह जाउंगी। वो दोनों सदमा मे है क्योंकि उनको उम्मीद नही थी की इतने साल बाद ज़ब वो अपने परिवार से मिलेगी तो प्यार से आशीर्वाद देने के बजाय उसे थप्पड़ मिलेगा। ये कहती हुई वो कुशेश्वर जी क़ो देखती है जो अपनी नफ़रत भरी नजर से उसे देखते रहे थे।
मेरे लिए मेरा परिवार मेरे माँ पापा और भाई थे। और मेरे भाई क़ो कोई परेशानी नही थी अपनी नाक कान कटवाने मे तो आपको क्यों इतनी मिर्ची लगी है। आप अपने नाक कान की हिफाजत मुझसे क्यों. करवाना चाहती है। अपने मायके वाले से करवाईये।
और एक बाद मैं रितिका अनीश मल्होत्रा हूँ। दोबारा मुझे छूने या कुछ कहने की कोशिश की तो इतनी धारा लगवा दूँगी की आपके मायके वाले अपने अगला -पिछला सारे खानदान की नाक बचाते फिरेगे। कहती हुई उसे खुद से दूर कर देती है।
रितिका की बातें सुनकर सभी की आँखे बड़ी हो जाती है क्योंकि उससे किसी क़ो उम्मीद नही थी की वो इस तरह से बोलेगी।अनीश कहता है मजा आ गया वकील साहिबा।
माहौल की गहमा -गहमी देख कर तुलसी जी कहती है, "
दक्ष हमारे घर मे पुलिस और वकील कभी नही आये है ये कहती हुई उनकी आँखे कठोर हो. जाती है। जिसे देख कर थानेदार और वकील झुक कर कहते है, माफ कर दीजिये रानी माँ!! कोर्ट से आदेश था इसलिये हम आये है।
न्यायलय का अपमान हम भी नही करते थानेदार लेकिन ज़ब आपने नोटिस मे प्रजापति महल पढ़ा। फिर भी आपने हमे जानकारी देने की जरूरत नही समझी। लक्ष्य ये कहते हुए उनके सामने खड़े हो. जाते। पुलिस और वकील क़ो ना बोलते देख।
कुंदन राय और सतीश एक साथ कहते है, हम हमारी बेटी क़ो और हम हमारी पत्नी क़ो ले जाने आये है। उन्दोनो की बात सुनकर चंदना और प्रियंका कहती है, होंगे आप बड़े लोग लेकिन किसी की पत्नी और किसी की होने वाली पत्नी क़ो आप ऐसे नही रख सकते है।
चंदना के साथ साथ सभी दक्ष और उनकी शानों शौकत देख कर अंदर ही अंदर कुढ़ रही होती है। उस पर से,रितिका की बात से वैसे भी सभी गुस्से मे थे लेकिन तूलिका और दीक्षा क़ो चुप देख कर उनका मन बढ़ गया था। जिसे देख कर कुंदन राय और चंदन राय के कहने पर कि हम अपनी बेटी को ले जाने आए हैं।भले ही ये हमारे भाई की बेटी है लेकिन उनके जाने के बाद हमने इसे पाल पौस कर बड़ा किया है। इस नाते इस पड़ हमारा हक सबसे ज्यादा है।
सभी गुस्से से उन दोनों क़ो देख रहे होते है।उन दोनों की बे सर और पैर भरी बातें सुनकर कर अनामिका और अंकिता क़ो ज़ब रहा नही जाता तब कहती है, " कमाल है!! शुक्र है की इन सभी के एक लक्षण हमारी भाभियों मे नही है!! बड़े तो बड़े, बुजुर्ग भी बिना सर पैर की बातें किये जा रहे है। उन्दोनो की बातें सुनकर शुभ कहती है, " आप सबको शायद गलतफहमी हो गयी है !!! हम सब क़ो यु चुप देख कर। इसलिये आप सब बहकी बहकी बातें किये जा रहे है। "
हम सभी चुप इसलिये है की हम देखना चाहते है की आप सब की समझ कहाँ तक जाती है, हमारे घर की बहुओं क़ो लेकर।"
शुभ सबकी बातें सुनकर तूलिका की माँ कहती है, "सुना था नाम बड़े और दर्शन छोटे!!आज देख भी लिया!!!बड़े घर की बहु बेटियाँ कितनी कम अक्ल होती है।"जिसे सुनकर कनक कुछ कहती। तब तक तुलसी जी अपनी शख्त आवाज़ के साथ कहती है," तूलिका और दीक्षा बहु की तरह अभी कोई कुछ भी नही बोलेगे।हम नही चाहते की कोई बाहरी वाला गलत से ग़लत शब्द हमारी जान से प्यारी बहुओं क़ो बोल दे। इन सब क़ो अपना तमाशा खत्म करने दे ज़ब तक ये तमाशा खत्म नही करते तब तक देखिये उसके बाद हम इन सभी क़ो बतायेगे। दक्ष!!अब बहुत चुप रह लिए। ये मसला खत्म कीजिये।
सुमन बिंदनी, निशा बहु आप सब भी के लिए चाय लेकर आईये।
उनकी बात सुनकर दक्ष,'जिसने कब से खुद के गुस्से क़ो काबू कर रखा था। कुंदन राय और चंदना कहता है," आप दोनों से मैं बाद में बात करूंगा।
उसके बाद सतीश की तरफ देखते हुए कहता है, अब तुम बताओं चीख क्यों रहे थे ; क्या बात है? सतीश बहुत गर्मी दिखाते हुए कहता है, "ए वकील चल दिखा इनको कोर्ट के पेपर। वकील डरते हुए दक्ष के सामने आता है और कागज दिखाते हुए कहता है कि," सर इन्होंने कंप्लेंट किया है कि इनकी पत्नी किसी गैर मर्द के साथ रह रही हैं।अभी तक इन दोनों का तलाक नहीं हुआ है इसीलिए कानूनी तौर पर तूलिका जी इनकी पत्नी है और ये अपनी पत्नी को ले जाने का हक रखते है।
तूलिका यह सुनकर डर जाती है के और अतुल के बाहों में आ जाती है, " शांत हो जाओ। कुछ नहीं होगा!! तूलिका धीरे से कहती है मुझे नहीं जाना। यह सुनकर तूलिका की मां और तूलिका के पिता। गुस्से में कहते हैं और कितने नीचे गिराना है तुझे जिस घर में शादी करके भेजा था। पर वहां ना जाने क्या किया इसने ऐसा और वहां से भाग गई तुझे शर्म नहीं आती। तूलिका की मां अपने पति से कहती है, " जैसी मां वैसी बेटी"। तूलिका के पिता मुँह फेरते हुए कहते है, "हां!! तुम ठीक कह रही जैसी माँ वैसे बेटी। अपनी माँ की साथ साथ उस दिन ये भी मर जाती तो आज ये दिन नही देखना पड़ता।
यह सुनकर तूलिका बहुत दुख हो रह था और अतुल की बाहों मे ही बिफ़रती हुई अपने पिता से कहती है," मुझे भी इसी बात का अफ़सोस है की मेरी मां के पति आप हैं और मेरे पिता आप हैं। अगर मेरे बस में होता तो,'मैं आपको अपना पिता कभी नहीं चुनती। आप जैसा पता भगवान किसी क़ो ना दे। इस सुनकर उसके पिता गुस्से में आगे बढ़ते हैं, मारने के लिए लेकिन अतुल अपनीआंख दिखाते हुए कहता है, " वही रुक जाईये आप। क्योंकि मेरी पत्नी ने आपका इतना लिहाज किया और चुप रही यही काफी है ; आप सभी के लिए। इससे ज्यादा मैं भी चुप नही रह सकता।
दक्ष उसकी बातें सुनकर कहता है,'पहले एक से निपट ले। ये कहते हुए सभी क़ो एक नजर देख,' या सभी क़ो एक ही साथ निपटना है। फिर उन सभी क़ो कहता है, " आप सभी क़ो एक-एक बातें करनी नहीं आती हैं ना!! आप लोग को देख कर लगता है कि आप सभी अपनी दुकान खोल, एक साथ ही समान बेचना चाहते है।तो बताये,'हम भी एक साथ ही आप सब से निपट लेते हैं।
कौशल्या जी दक्ष की बातें सुनकर तुलसी जी से कहती है, " आप होंगी यहां की रानी मां लेकिन हम यहां से अपनी बेटी को लेकर जाएंगे। आप सब एक एक करके हम सभी क़ो डरा रहे है तो आपको लगता है की हम चुप हो जायेगे। तो ऐसा बिल्कुल नही होगा। तुलसी जी, उनकी बातें सुनकर कहती है, " थोड़ी देर रुक जाइए पहले हम!हमारे घर से पुलिस और वकील को य निकाल ले। फिर आप लोगों से बात करते हैं कहती हुए दक्ष की तरफ देखती है।दक्ष अपनी पलकें झपका कर उनको इशारा दे कर कहता है शांत हो जाए दादी मां दादी सा!! मैं हूँ ना!!
सतीश का वकील पेपर दिखाता है और कहता है, " राजा साहब!! लेकिन डर के मारे आगे बोल नही. पाता है। जिसे देख कर सतीश उसे हटा कर कहता है, " हट वकील!! किसी काम का नही है तु और पुलिस वालों क़ो देख कर कहता है, आप लोगो हमारी रक्षा के लिए यहाँ आये है। या इनकी जी हुजूरी करने। दक्ष प्रजापति मैं अपनी पत्नी को कोर्ट के आर्डर से अपने साथ ले जाने आया हूँ और तुम मुझे नही रोक सकती।
सतीश की बातें सुनकर तूलिका की माँ और सभी बहुत खुश होती है।
दक्ष अपनी भोंए ऊपर कर के उसको ऊपर से निचे तक देखता है। जिसे देख कर सतीश डर से पीछे हो जाता है।
क्या हुआ सतीश मेरी नजर भर से तुम्हारे पैर काँपने लगे। सोचो अगर मैं कुछ करने पर आ गया तो तुम्हें एक साथ ना जाने कितने हार्टअटैक आ जाये।फिर हल्का अपना चेहरा घुमा करके, "अनीश!!
अनीश उसकी बात समझ कर," वकील को एक पेपर थमा देता है और कहता है ये है आपके सभी सवालों का जबाब।
सतीश उत्सुक होकर कहता है क्या लिखा है इस पेपर में वकील!!
वकील कहता है, " सर इस पेपर में लिखा हुआ है कि आपका और इनका तलाक हो चुका है।
सतीश हैरान होते हुए कहता है, " यह कैसे हो सकता है मैं नहीं तो इसे तलाक दिया नहीं? वकील कहता है सर आपका तलाक बहुत पहले एक तरफा हो चुका है। पिछले 7 सालों से आपकी पत्नीआपके साथ रहती नहीं है।आपने कहीं इनके खिलाफ f.i.r. या मिसिंग होने का कोई कम्प्लेन नही किया। तो आप भी इनके साथ नही रहना चाहते ये आधार बना कर इन्होंने आपसे तलाक ले लिया। सतीश हैरानी से कहता है नहीं!! नहीं ये हो सकता वकील। वकील कहता है सर यह हो चुका है।
उसके बाद अतुल सीधे आकर सतीश का गर्दन पकड़ते हुए कहता है, "अब तेरी औकात मैं तुझे दिखाऊंगा। तूने जो भी मेरी तूलिका के साथ किया है। उसका कीमत हर्जाने के तौर पर तेरी मौत से लूँगा।जोर से गर्दन दबने पर सतीश की सांसे रुक नहीं लगती है क्योंकि अतुल उसे थोड़ा जमीन से ऊपर उठए होता है। सांस नही आने से, सतीश की आंखें लाल हो जाती है। सतीश की ये हालत देख कर ; तूलिका के मां-बाप उठकर आते हैं और सबकी तरफ देखते हुए कहते है,"कैसे लोगो है आप सब यहाँ खुले आम ये एक आदमी क़ो मार रहा है और आप सब चुप खड़े है। छोड़ो इसे!!
अतुल तूलिका के माँ -बाप को अपनी गहरी लाल नजरों से देखता है तो वह दोनों सहम करे अपने कदम को पीछे कर लेते हैं। अतुल गुस्से कहता है दक्ष!!
यह सुनते ही कुछ बॉडीगार्ड अंदर आते हैं और सतीश को पकड़कर खींचते भी ले जाते है। सतीश चिल्लाकर कहता है छोड़ दो मुझे मुझे कहां ले जा रहे हो। अतुल उसकी तरफ अपनी खूंखार आखों से देखते हुए कहता है, "जो तूने किया है उसका हिसाब तुझे और तेरे परिवार क़ो करना बाकी है? तुझे तेरे परिवार के पास भेज रहे है।
मुझे छोड़ दो नहीं तो मैं तुम लोगों को छोडूंगा, अरे इंस्पेक्टर तुम्हारे आगे ये सब मुझे जबरदस्ती कही ले जा रहे है, तुम सब रोकते क्यों नहीं!!! दक्ष कहता है कमाल तुम्हारा,"तुम तो पुलिस क़ो मानते नही तो अभी कैसे मानोगे। हमें तुम्हें छोड़ोगे तब ना तुम हमे नही छोड़ोगे। ले जाओ इसे। फिर इंस्पेक्टर क़ो देख कर कहता है, आप जाईये आपको बहुत जल्दी सारे सबूत भेज दिए जायेगे। ये सुनकर वकील और इंस्पेक्टर दोनों सर झुका कर तेजी से निकल जाते है।
दक्ष कहता है अतुल से, तुम तूलिका क़ो लेकर कमरे मैं जाओ। म यहाँ हूँ। अतुल तेजी से उसे कमरे मे लेकर चला जाता है।
सतीश को इस तरह ले जाते देख। कुशेश्वर जी गुस्से में चीखते हुए कहते हैं कि,"होंगे आप यहां के राजा इसका मतलब यह नहीं कि आप किसी को भी उठा कर ले जाए …।
दक्ष कुछ कहता उससे पहले दीक्षा उसे रोकती हुई, कुशेश्वर जी क़ो देखते हुए कहती है,"मैंने सोचा था कि मेरे मां-बाप के आपदोनों माता -पिता है और मेरे दादा -दादी । दुनिया के लिए आप जैसे भी हो लेकिन दादा-दादी क़ो अपने पोते और पोती बहुत प्रिय होते है।
लेकिन आज आप लोगों ने ये साबित कर दिया कि जरूरी नहीं कि सभी के दादा दादी क़ो अपने पोती और पोते प्रिय हो। हाँ मेरे पति यहाँ के राजा है और मैं इनकी पत्नी हूं। इसी घर की बहू!! और आज मै दीक्षा दक्ष प्रजापति ये एलान करती हूँ कि मेरे माता -पिता के अलावा मेरा कोई अपना सगा संबंधी नही है और मै अनाथ हूँ। इसीलिए आप सब से अनुरोध करती हूं कि कृपा करके हमे या हमारे परिवार वालों क़ो मजबूर मत कीजिये कि आपकी बेज्जती करे। इज्जत अगर बहुत प्यारी है तो मेरे घर से आप सभी अभी के अभी चले जाये!! दोबारा मुझे आप सब की शक्ल देखना मंजूर नहीं है।
दीक्षा यह कहते हुए ही सीधे सीढ़ियों से ऊपर अपने कमरे की तरफ जाने लगती है और मुड़ कर पीछे नहीं देखती है क्योंकि उसके आंखों से आंसू रुक नहीं होना रुक नहीं रहे होते?
कौशल्या और चंदना उसकी बातें सुनकर तिलमिला जाती है और एक साथ कहती है, " ऐसे कैसे तुम ऊपर जा रही हो नीचे आओ और हमारे आंखों में देख कर बात करो। ऐसे कैसे तुम अपना खून का रिश्ता भूल सकती हूं दीक्षा जो रोती हुई सीढ़ियों से ऊपर जा रही थी। उनकी बातें सुनकर है रुक जाती है और उनकी तरफ बिना मुड़े ही कहती है, "किस खून के रिश्ते की आप बात कर रही है। उस खून के रिश्ते की जो साल पहले मुझे छोड़ चुका था या उस रिश्ते की जो आपकी छोटी और लाडली बहू ने मुझे बेचने पर लगा रखा था? यह सुनकर उसके दोनों के होश उड़ गए उसके दादा कहते है,"यह क्या कह रही हो तुम। इतना अच्छा परिवार मे हमने तुम्हारा रिश्ता किया था।
दीक्षा बहुत रो रही होती है इसीलिए वह कहती है कि मुझे आप सबके किसी सवाल का जवाब नहीं देना है, दक्ष मुझे अपने कमरे में जाना है।
दीक्षा को इस तरह रोते देख वह दीक्षा के पास आता है और उसके हाथ को पकड़ कहता है,"स्वीटस "इस तरह से आप भागेगी तो कैसे चलेगा। बातें तो करके ही खत्म हो सकती है। चलिए निचे और आज सब कुछ खत्म कीजिये। दीक्षा दक्ष की आंखों में देख कर आक्रोश मे कहती है," क्या बात करुं इन सब से दक्ष। चुप इसलिए नही थी कि शर्मिंदा थी। चुप इसलिये थी क्योंकि हैरान हूँ सबको देख कर और सबकी बातें सुनकर।अगर परिवार ऐसा होता है तो हमें तीनों क़ो नही चाहिए ऐसा परिवार। इनकी बेतुकी बातें सुनकर, मै तो ये भी नही कह सकती कि इन्हें कभी समझा भी होगा हमें। ज़ब हम तीनों इनके साथ थे। यकीन नही होता कि इन सभी कि सोच कैसी है!!!
सालों बाद मिले और मुझ पर थप्पड़ उठा देते? घर में रहने के बावजूद भी मैं कभी उस घर की नहीं हो पाई मेरे चाचा चाची मेरे पीठ पीछे बहुत सारे काम कर चुके मेरे खिलाफ। मैं सब कुछ जानते हुए भी चुप रही।अगर मैं उस दिन होटल रूम में नहीं रुकती तो इनकी दोनों बेटियों ने मिलकर ना जाने मेरे साथ क्या कर दिया होता। अगर उस दिन आप नहीं होते तो शायद आज मैं पता नहीं कहां होती कैसे?
फिर भी मैंने इन सबके के लिए अपने मन मे कोई गिला शिकवा नही रखा। बदले मे इन्होंने क्या किया दक्ष। लेकिन गलती इनकी नहीं गलती मेरी है। माता-पिता की नहीं रहने के बाद यही चीज मेरे साथ होना तय था। यह बातें सुनकर कौशल्या जी कहती हैं,' पिता नहीं। तेरी मां इन सब कि वजह थी। तु भी उसकी जैसी है।
बस फर्क यह है कि तेरी मां राजघराने को छोड़कर मेरे बेटे को फंसा लिया और शादी कर ली और मेरा बेटा उस औरत के प्यार मे इस कदर पागल हो गया कि उसने हम सभी से रिश्ता तोड़ लिया और तूने हमारा घर छोड़ फिर से राजघराने में आ गयी। बस इतना ही फर्क है तुझ मे और तेरी माँ मे। हमे वो कभी पसंद नही थी लेकिन मरने वक़्त हमारे बेटे ने अपनी कसम दे कर तुम्हें हमारे हाथों मे सौंप दिया था.। इसलिये हमने तुम्हें पाला।
कौशल्या कि यह बातें सुनकर सबकी आंखें बड़ी हो गई। दीक्षा कहती है क्या मतलब मेरी मां राजघराने से थी ? दीक्षा कौशल्या जी के हाथों को पकड़कर झकझोड़ कर कहती है,"यह आप क्या कह रही है और मुझे आज तक यह पता क्यों नही था।
उसकी बातें सुनकर कौशल्या जी अपनी विजय मुस्कान के साथ कहती है, मैं तुझे बताना जरूरी नहीं समझती थी क्योंकि मुझे खुद नही पता था कि तेरी माँ के माँ बाप कौन थे और मै उन्हें जानना भी जरूरी नही समझती थी । तेरी मां कल भी पसंद नहीं थी मुझे और मरने के बाद भी पसंद नहीं है मुझे। तेरी मां कहां से आई थी मुझे नही मालूम ; मुझे सिर्फ इतना पता था कि वह किसी राजघराने से ताल्लुक रखती थी लेकिन वह कौन सा घराना है यह मुझे नहीं पता? वैसे भी तेरी मां घर से भागी हुई थी। तेरी मां के मां बाप ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था इसलिये उसके मरने क बाद भी कोई उसे ढूढ़ने नही आया।
कौशल्या जी कि बातें सुनकर सभी सदमे मे थे। दीक्षा तो जैसे खुद क़ो हारा हुआ महसूस कर रही थी। दक्ष उसे संभालते हुए कहता है, शांत स्वीट्स!!कोई बात नही हुई है।
कौशल्या और चंदना क़ो हँसते हुए देख कर,दक्ष आंखें दिखाते हुए कहता है, "अच्छा हुआ कि यह राजघराने से है। इसीलिए इसमें बहुत संस्कार है आप अपना खानदान देखिए और अपनी पोतियों का खानदान देखिये।आज मैं आपको इसलिए कुछ नहीं कह रहा क्योंकि कहीं ना कहीं दीक्षा को आपने चाहे जैसा भी पाला था उसकी कीमत तोड़ पर आज आप सबकी जान बक्श रहा हूँ।लेकिन बस आज के लिए इसके बाद आपकी शक्ल भी मुझे कही दिखाई दी तो मैं लिहाज छोड़ दूंगा कि आप बुजुर्ग महिला है या बुजुर्ग है।
फिर कुंदन राय और चंदना राय के आंखों में देखते हुए कहता है अपनी बेटी दामाद को समझा देना जितना दूर रह सकता है उतना दूर रह नहीं तो शायद तुम कभी अपने दामाद को देख नहीं पाओगे । कुंदन अपनी आंखें बड़ी करते हुए कहता है क्या मतलब???
दक्ष कहता है मुझे अच्छी तरह से पता है आप सब यहां क्यों आए? ओंकार रायचंद्र को समझा देना कि पीठ पीछे वार करना बंद कर दे। नही तो अंजाम बहुत बुरा होगा। आप लोग का बहुत-बहुत शुक्रिया लेकिन यहां पर आप लोग के परिवार का कोई सदस्य नहीं रहता।
यह सुनकर चंदना कहती है हम कैसे मान लें? सुमन जी कहती है क्या उल्टी खोपड़ी के लोग हैं? इतनी देर में इनको कुछ समझ में नहीं आया।
तभी दीक्षा और रितिका अपने दोनों हाथ क़ो जोड़ कर कहती है। हमें तीनों सात साल पहले ही अकेले हो गए थे लेकिन आज हम अनाथ हो चुके है। आप मैं से किसी क़ो हम नही जानते। बस आज आप सभी सही सलामत यहाँ से इसलिये जायेगे क्योकी पाला तो आप सभी ने है।
दीक्षा दक्ष कि तरफ देखते हुए कहती है,"राजा साहब!!अगर ये इज्जत से बिना किसी सवाल के चले जाये तो ठीक नही तो आपको जो ठीक लगे वो कीजिये। मुझे ऐसे रिश्ते और रिस्तेदार नही चाहिए और कौशल्या जी क़ो देख कर कहती है। मै सिर्फ अपने माता पिता कि बेटी और दक्ष कि पत्नी हूँ। ना मेरे कोई दादा दादी है ना नाना नानी। इसलिए आप सब जा सकते है।
फिर तूलिका के पिता क़ो देख कर कहती है, आपके व्यवहार से मुझे कोई आश्चर्य नही हुआ। माँ के बाद बहुत कम मर्द अच्छे पिता होते है और अफ़सोस है कि उनमे आप शामिल नही है। तूलिका जिसकी है वो उसे ले गया और संभाल लेगा। आप आइंदा इस दरवाजे पर मत आना।
फिर रितिका के भाई भाभी क़ो देख कर कहती है, हकीकत ये है कि माता पिता के होने के बाद भी भाई और भाभी सगे नही होते है और यहाँ तो माता पिता है ही नही। इसलिये आपका दोष नही है।
आज के समय मे, आप सभी लोगों के जैसे रिश्ते और रिस्तेदार होते है। किताबों और कहानियों मे ही अच्छे रिश्ते और रिस्तेदार देखें जाते है। उम्मीद करती हूँ कि अब आप सब अपने अपने यहाँ से निकल जायेगे।और अगर जिंदगी आराम ोे सुकून से जीना चाहते है। तो दोबारा कभी हमारे सामने नही आईयेगा।
आप सभी कि बेशर्मी एक बार ही सुनकर बर्दास्त कर सकते है। कौशल्या जी क़ो देख कर कहती है, अपनी मुझे सीरियल कि बेटी तो नही समझ रखी थी। जिसमे उस के साथ, उसके परिवार वाले गलत करते रहे और वो एक अच्छी बेटी का कर्तव्य निभाती रहे साथ साथ अपने पति क़ो मजबूर करे।
तो बता दूँ मै ऐसी बेटी नही हूँ। मै गीता के शब्दों पर ज्यादा विश्वास करती हूँ।
दक्ष इन सभी क़ो यहाँ से भेज दीजिये और नही माने तो देख लीजिये कि क्या करना है। कहती हुई वहाँ से चली जाती है। उसके साथ साथ सभी अपने अपने कामों मे चले जाते है। पूरा हॉल खाली हो जाता है सिर्फ वही सब रहते है। जिसे देख कर अनीश कहता है, अब और कितनी बेज्जती करवानी है। जाईये और जा कर मालूम कर लीजियेगा कि दक्ष प्रजापति से उलझने कि कीमत क्या है।
सभी अपने चेहरे पर आक्रोश लेकर वहाँ से निकल जाते है।