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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · Urban
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Ch-14

दक्ष अपनी कठोर आवाज़ मे कहता है, आज शादी होने से तो कोई नहीं रोक सकता यहाँ पर और आप तो बिल्कुल नहीं जयचंद जी।

जयचंद कठोर और गुस्से से भरी आवाज़ मे कहता है, दक्ष प्रजापति!!तुम भूलो मत की किससे बात कर रहे हो। तुम अभी राजा बने नहीं हो जो. हम तुम्हारे हुकुम के गुलाम हो जाये। हम भी देखते है की यहाँ शादी कैसे होती है।फिर अपने आदमियों क़ो इशारा देने लगता है।

तभी दक्ष कहता है, ये गलती मत करना जयचंद जी। मै कल भी राजा था आज भी राजा हूँ।उन्दोनो की बातें सुन कर उस समय का माहौल कुछ ज्यादा गरम हो गया था लेकिन कोई भी दक्ष क़ो ना रोक रहे थे,ना कोई बिच मे बोल ही रहे थे।

सभी क़ो मालूम था की जब दक्ष बोलता है तो किसी क़ो बोलने की इज्जाजत नहीं थी।

फिर भी दाता हुकुम जो दीक्षा क़ो दक्ष की पत्नी देख वैसे ही बहुत ज्यादा गुस्से मे था।ये मौका देख कर कहता है, दक्ष प्रजापति!!तुम्हें नहीं लगता की तुम अपनी हद और मर्यादा भूल रहे हो। एक बाप क़ो हक होता है की वो अपनी बेटी की शादी कहाँ करे और कहाँ ना करे। तो तुम होते कौन हो ये जबरदस्ती शादी करवाने वाले।

दक्ष अपनी तिरछी मुस्कान के साथ कहता है,"हमे आदत नहीं हर किसी ऐरे - गेरे क़ो जबाव दे और तुम्हें तो बिल्कुल नहीं दाता हुकुम। शादी मे आये हो तो उसमें मेहमान बन कर शामिल रहो। सवाल करने का हक जिसे मै दूँगा वही मुझसे सवाल कर सकता है और भूलो मत मै कोई नहीं दक्ष प्रजापति हूँ, जिसकी नजर काफ़ी तुम्हें  जमीन मे गाड़ने के लिए लेकिन आज ना वो मौका है ना दस्तूर। इसलिए जितनी दूर रहोगे उतना बेहतर है तुम्हारे लिए!!!नहीं तो मुझे एक पल नहीं लगेगा तुम्हें मिट्टी मे गाड़ने के लिए। समझे!!! ये दक्ष ने इतनी तेज आवाज़ मे कहा की, दाता हुकुम डर के मारे अपने कदमों क़ो पीछे ले लिया।

दक्ष गुस्से मे जयचंद की तरफ देखते हुए कहता है,'वो क्या है ना जयचंद तुम्हें रास नहीं आयी इज्जत देना। हमने कुछ ज्यादा ही,'जी!! जी  'कर लिया तो तुम तो हमारे आगे यहाँ तक बढ़ गए। "

अब तुम जबाब दो!!क्या कनकलता तुम्हारी बेटी है!!!उसकी आवाज़ मे ताकत थी की जयचंद के साथ साथ उसके परिवार के भी कदम लड़खरा गए।

फिर दक्ष रंजीत जी की तरफ देख कर कहता है, दादा सा !! कन्यादान माता -पिता के हाथों होता है और पूछिए अपने समधी से क्या कनकलता के ये माता पिता है या आपको भी इस बात की जानकारी थी !!! ये सवाल सुनकर रंजीत जी गुस्से मे दक्ष की तरफ घूरते है।

ये सुनकर कनक के साथ साथ सभी उठ जाते है। कनक आश्चर्य से अपने माता पिता क़ो देखती है और घुंघट उठा कर उनके पास आकर कहती है, "क्या जो दक्ष भाई सा ने कहा वो. सच है??

दक्ष कहता है, ये आपकी बातों का जबाब नहीं देंगे कनक। हम आपको जबाब देते है। राजा भक्ति सिंह ये नाम कहते हुए दक्ष, जयचंद की तरफ देखता है जो ये नाम सुनकर परेशान हो जाता है।

फिर स्नेहलता का हाथ पकड़ कर कहता है, अगर हमारी बेटी खुद रौनक से शादी करना चाहती है तो हमें बिच मे नहीं आएंगे। चलिए यहाँ से और जाने लगता है।

कोई कहीं नहीं जायेगा, दक्ष कहते हुए जयचंद की तरफ देखते हुए कहता है, मौका दिया था लेकिन तुम अपनी आदतों से बाज नहीं आये तो अब सब कुछ सबको मालूम हो जाने दो।

दक्ष कहता है, भक्ति सिंह जैसलमेर के राजा और परम सिंह उनका सलाहकार। भक्ति सिंह के एक बेटे जिन्होंने उनकी मर्जी के खिलाफ लंदन मे किसी भारतीय लड़की से शादी कर ली थी। जिसे सुनकर उन्होंने गुस्से अपने बेटे अनंत सिंह और उनकी पत्नी अर्चना सिंह से हमेशा हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया। फिर अपने सबसे अच्छे दोस्त, सलाहकार परम सिंह की बात मान कर उनके बड़े बेटे क़ो अपना उत्तराधिकारी की तोड़ पर घोषित कर दिया।

उसकी बिच अनंत सिंह क़ो एक बेटी हुई, जिसकी खबर राजा भक्ति सिंह क़ो मिली। पिता कितना भी कठोर हो अपने बेटे के लिए लेकिन दादा का दिल कठोर नहीं होता। भक्ति सिंह ने अपनी दिल की बात परम सिंह क़ो बताई। जिसे सुनकर उस समय तो वो बहुत ख़ुश होकर कह दिया की जितनी जल्दी वो अनंत सिंह क़ो बुलवाने का इंतजाम करते है। ये बात सुनकर भक्ति सिंह ख़ुश हो गए इस बात से अनजान की उनके परिवार की जिंदगी अब खतरे मे पड़ चुकी है।

इधर परम सिंह ने एक साजिश बनाई अपने दोनों बेटों के साथ की इंडिया मे कदम रखते ही वो अनंत सिंह और उसके परिवार क़ो मार डालेंगे।लेकिन उनकी साजिश की खबर राजा भक्ति सिंह क़ो हो चुकी थी। उन्होंने ने हमारे परदादा की मदद से, उनके भरोसे मंद आदमी की मदद से एक वसीयत बनवाई। जिसमे उनके उत्तराधिकारी के तोर पड़ अपने बेटे क़ो घोषित कर दिया उ

और उनके बाद उनकी पहली संतान के बच्चे क़ो वहाँ का उत्तराधिकारी बना दिया। इस तरह से उन्होंने अपने बेटे और उसके परिवार की सुरक्षा क़ो सुनिश्चित कर लिया।लेकिन ये बात परम सिंह के कानों तक नहीं पड़ने दी।

ज़ब इसकी खबर परम सिंह और उनके बेटे क़ो परी तो वो गुस्से मे राजा भक्ति सिंह क़ो मारने की साजिश रची।

यहाँ जयचंद के पिता ने एक और साजिश की, उन्होंने राजा भक्ति सिंह क़ो मारने के खेल मे अपने दोनों बेटों क़ो इस खेल से दूर रखा ये सोच कर अगर बात फंसी तो उनके बेटे इसमें नहीं फसेंगे।

इन्होने चाल बहुत अच्छी चली और उसमें कामयाब भी हुए।

एक रात परम परम सिंह ने राजा भक्ति सिंह के खाने पड़ बुलवाया। उस दिन राजा भक्ति सिंह क़ो अंदेशा हो चुका था की आज उनका शायद आखिरी दिन होगा। अंदर ही अंदर उन्हें इस बात का गम था की ना वो अपने बेटे से मिल पाए ना बहु ना उनके बच्चे से। लेकिन उनकी जिंदगी बचाने के लिए वो चुप रहा गए। ज़ब वो परम सिंह के कहने पर खाना खाने आये तो उन्होंने पहले खुद एक निवाला खाया और फिर दूसरा निवाला ये कहते हुए परम सिंह के आगे बढ़ा दिया, तुम हमारे सबसे अच्छे दोस्त हो तो आज मेरे हाथों से तुम खाना खाओ। मेरे बड़े अरमान है।

परम सिंह ने कोशिश की, कि वो खाने क़ो मना कर दे क्योंकि सभी खाने मे उसने जहर मिलवाया था, लेकिन वो नही कर सका और राजा भक्ति सिंह ने खुद के साथ साथ वो जहर मिला हुआ खाना परम् सिंह क़ो भी खिला दिया।

उस रात दो बातें हुई थी। उस रात दो लोगों ने दम तोड़ा था और उनके साथ किसी के विश्वास, प्रेम का खुन हुआ तो किसी के विश्वासघात का।

उस रात, एक बार फिर से इतिहास दोहराया जा चुका था कि सत्ता और ताकत के आगे किसी रिश्ते, किसी भी चीज कि जरूरत नहीं होती सिर्फ और सिर्फ़ सत्ता चाहिए होती है। परम सिंह ये भूल गए कि मरने के बाद क्या वो सत्ता उनके साथ जाएगी, जिसके लिए उन्होंने इतनी साजिश रची। लेकिन अगर मरने से पहले ये ज्ञान तो महा पंडित रावण क़ो भी नहीं आया था और यहाँ तो हम इंसानों कि बात कर रहे है। जहाँ इंसानियत सिर्फ नाम कि रहा गयी है।

दक्ष फिर जयचंद कि तरफ देखता है और कहता है,ज़ब अपने पिता कि मौत कि खबर अनंत जी ने सुनी तो सभी भारत लौटने लगे लेकिन रास्ते मे ही किसी ने उनकी गाड़ी का एक्ससीडेंट करवा दिया।लेकिन इतना कुछ करना के बाद भी,कुछ हाथ इनके नहीं लगा।

तब इन्होंने एक और साजिश रची।इन्होंने वसीयत क़ो दबा दिया और अनंत जी और उनके परिवार क़ो मरा हुआ घोषित कर दिया।लेकिन उनके बच्चे क़ो खुद का बच्चा बना कर पालने लगे। ताकि ज़ब उस बच्चे कि शादी हो. और उसका बच्चा हो तो दोनों क़ो एक साथ मार कर सारी सम्पति खुद के अधिकार मे कर ले। क्योंकि अभी तक तो ये नाम के ही राजा है।

इतना कह कर वो पूछता है, बतायेगे नहीं कि वो बच्चा कौन है? जयचंद के साथ साथ उनका कोई परिवार  जबाब नहीं दे सका। सभी कि नजर अब भी दक्ष पर थी और कनक बातें सुनकर लड़खराने लगी तो रौनक ने उसे संभाल लिया। फिर दक्ष कहता है, वो बच्चा कनकलता अनंत सिंह है।

ये सुनकर सभी आश्चर्य से दक्ष कि तरफ देखते है। अपनी हाथों से बाजी निकलता देख जयचंद एक बार फिर कहता है, दक्ष प्रजापति इसका क्या प्रमाण है कि तुम सच कह रहे हो।

दक्ष उसको अपनी जलती आखों से घूरता हुआ कहता है, "दक्ष प्रजापति क़ो किसी के प्रमाण कि जरूरत नहीं लेकिन बात यहाँ मेरी नहीं है इसलिये जरा घूम कर सामने देखिये, " कहते हुए  अपनी हाथों क़ो आगे कि तरफ बढ़ा देता है। जहाँ दक्ष के आदमियों के बिच एक बुजुर्ग दम्पति बहुत कमजोर अवस्था मे लाये जा रहे थे। जिसे देख दक्ष, अनीश और अतुल क़ो इशारा करता है। दोनों जा कर उन्दोनो क़ो अपने साथ मंडप पर ले आते है।

जिसे देख जयचंद के चेहरे के रंग उड़ जाते है। उसके चेहरे का रंग उड़ा देख कर दक्ष कहता है, अब और कोई सबूत चाहिए। मिलिए अनंत भक्ति सिंह और अर्चना अनंत सिंह से। दोनों ज़ब सामने जयचंद और स्नेहलता क़ो देखते है तो आगे बढ़ कर गुस्से मे एक थप्पड़ अनंत जी, जयचंद क़ो और दूसरा थप्पड़ अर्चना जी स्नेहलता क़ो मारती हुई कहती है, धिक्कार है तुम दोनों पर !! धिक्कार!! तुम्हें सम्पति चाहिए थी तो एक बार कह कर देखते है, अगर हम देने से इन्कार कर देते तो, तब तुम सब कुछ भी करते। लेकिन तुम सब ने तो हमारे भरोसे का ही खुन कर दिया। मेरी दूधमुँही बच्ची कि तुमने मेरी गोद से छीन लिया। एक बार भी हमदोनो पति पत्नी पर तरस नहीं खाया। सालों एक छोटी सी कोठरी मे बंद रखा।

फिर अनंत जी जयचंद कि किरेवान पकड़ कर कहते है, बता हमारी बेटी कहाँ है? क्या किया तुम दोनों ने उसके साथ और जोर जोर से झकझोरने लगते है। जिससे गुस्से होकर जयचंद उन्हें जोर से थका दे देता है। कमजोर होने के कारण वो लड़खरा कर गिरने क़ो होते है तब तक कनक और रौनक उन्हें संभाल लेते है।

कनक रोती हुई कहती है, बाबा!!!ये सुनकर अनंत और अर्चना जी दोनों एक साथ देखते है। दक्ष उनको देख कर कहता है, ये है आपकी बेटी कनकलता जिनकी शादी आज हमारे छोटे भाई से हो रही है।

फिर दीक्षा आकर अर्चना जी और कनक से कहती है, मानते है बहुत भावुक छन है लेकिन अभी आपकी शादी कि रसमे बाक़ी है उसे पूरी होने दीजिये बाक़ी बात हम आराम से करेंगे। दीक्षा कि बात सुनकर कनक बेचैनी से उसकी तरफ देखती हुई कहती है, जीजी!!कहीं फिर से मैंने अपने माता पिता क़ो खो दिया तो....।दीक्षा कहती है, ऐसा कुछ नहीं होगा। कनक क़ो उठाती है तो वो मंडप पर जाने से पहले जयचंद और स्नेहलता के पास आती है और कहती है, "हमने आप दोनों क़ो माता पिता माना है, ये हमारा खुन है याँ आपकी परवरिश ये कहना हमारे लिए थोड़ा मुश्किल है फिर भी हम इतना ही कहेंगे कि,

आपने हमें पाला उस अहसान के बदले आप आपको जीवनदान देते है। चले जाईये यहाँ से और दोबारा आप सब हमारे नजरों के सामने नहीं आइयेगा। क्योंकि हम एक बार इतनी हिम्मत दिखा सकते है, दूसरी बार हम नहीं कर सकते। अपनी बात कहती हुई दीक्षा का हाथ पकड़ लेती है।

दीक्षा फिर उसे मंडप पर बिठा देती है। अनीश कहता है इनका क्या करना है। दक्ष ने कहा, देख तो वो यहाँ है या नहीं। सभी ज़ब दूसरी तरफ देखते है तो जयचंद और उनका परिवार वहाँ से जा चुका होता है।दक्ष अनीश कि तरफ देख कर कहता है, ये फैसला जिसका था उसने कर लिया। अब जो होगा वो हम शादी के बाद करेंगे।

फिर आराम से अनंत जी और अर्चना जी पकड़ कर मंडप पर बिठा देता है और कहता है, सारी बातें बाद मे, पहले बेटी का कन्यादान कर लीजिये।

कन्यादान के साथ ही फेरो कि रस्मे शुरू होती है और सिंदूर दान के साथ पंडित जी कहते है, विवाह सम्पन्न हुआ। आज से आप दोनों पति पत्नी हुए। ये कहने के साथ चारों तरफ से, दूल्हा और दुल्हन पर फूलों कि बारीश सभी करने लगते है।

कामिनी और रंजीत जी गुस्से मे वहाँ से चले जाते है, लेकिन कोई उनको रोकता नहीं है।

तुलसी जी कहती है, सुमन से हमारी पांचो बहुओं कि गृह प्रवेश कि तैयारी कीजिये।

सभी जोड़ी निचे उतर कर सभी बड़ो क़ो प्रणाम करती है। सभी आशीर्वाद देते है।

दक्ष अपनी दादी की बात सुनकर मुस्कुरा देता है। लेकिन और सब तुलसी जी की तरफ देखने लगती है। तुलसी जी कहती अनीश और अतुल की पत्नी की भी आज गृहप्रवेश होगी।

फिर दक्ष की तरफ बहुत रुबाब से देखती हुई कहती है, ये मत समझिये की आप अभी बच गए है, बरखुरदार!!! दादी माँ आपकी खुश है। रानी माँ के सवाल अब भी बाक़ी है। दक्ष पलके झपका कर मुस्कुरा देता है। तुलसी जी उसकी मुस्कान देख कर कहती है,आप सभी आईये बिंदियों के साथ,हम स्वागत की तैयारी करने जा रहे है। बाक़ी रस्मे अब महल मे होगी, कहती हुई चली जाती है और उसके साथ सुमन, निशा, सुकन्या, लक्षिता जी सभी चले जाते है।

सभी भाई बहन दोस्त एक जगह दुल्हन क़ो घेर लेते है। अनामिका दीक्षा के गले लगती हुई कहती है, भाभी माँ!!!दीक्षा मुस्कुरा कर उसके सर पर हाथ फेर देती है। अभी सभी शुभम, अंकित, अंकिता, सौम्या, हार्दिक अपनी भाभियों क़ो घेर कर खड़े थे और बातें कर रहे होते है।

दक्ष किसी से फोन पर बात करता है और कहता है, यहाँ की एक भी खबर कहीं नहीं दिखनी चाहिए, ये कहते हुए उसकी आवाज़ बेहद कठोर थी। बात करने के बाद उसकी नजर दीक्षा पर जाती है जो सभी क़ो देख बहुत प्यार से मुस्कुरा रही थी।

दक्ष क़ो इस तरह मुस्कुराते हुए देख उसके पास रौनक, अनीश, अतुल और पृथ्वी आते है।

पृथ्वी दक्ष के पास आकर कहता है, "आपने इनलोगो क़ो कैसे छोड़ दिया!!आपको लगता नहीं है की ये सभी शांत नहीं बैठेंगे।कुछ ना कुछ करेंगे हीं। आप क्यों फ़िक्र कर रहे भाई सा!! जबाब युद्ध के मैदान मे उतर हीं आया हूँ तो सारी तैयारी के साथ उतरा हूँ। उन्होंने तो चाल चली थी लेकिन आज मैंने शंखनाद कर दिया है की युद्ध की शुरुआत की।

अभी वो सब छोड़िये !!! चलिए अंदर चलते है। जितना तमाशा होने था वो तो हो गया।लेकिन दक्ष कल तो ये सब कुछ मिडिया मे आ जायेगा। आप भूल रहे है भाई सा दक्ष प्रजापति हूँ मै, कुछ कहीं नहीं आएगा। अब चलिए सब हमारा इंतजार कर रहे होंगे।

तभी अनीश कहता है, छोड़िये ने भाई सा ये सारी बातें !!! इस कमीने मुझे बहुत मार खिलाया अब बारी इसकी, कहते हुए हंसने लगता है। उसकी बातें सुन कर सभी मुस्कुराते हुए कहते है, हाँ ये तो कनक के लिए जो. कहा वहाँ तक तो. ठीक था। लेकिन सीधे दुल्हन क़ो ले आना, ये तो हमारा दक्ष हीं कर सकता है, कहते हुए पृथ्वी हंसने लगता है। अतुल कहता है भाई सा वो छोड़िये, रानी सा के साथ साथ कुंवर सा भी है। ये आप भूल  रहे है की दक्ष ने बम नहीं परमाणु बम जो गिराया है। उससे पहले ये तो. बच्चे।

रौनक कहता है, आह!!! क्या नजारा होगा जब रानी माँ की छड़ी होगी और दक्ष भाई सा के पीछे होगी। मुझे तो सोच कर हीं गुदगुदी होने लगी है।

दक्ष उन सभी की बात सुनकर सभी क़ो घूरते हुए कहता है,आप लोग शायद ये भूल रहे है की  मेरी इस शादी के बारे मे आप सबको पता था तो अगर मै लेपटा गया और छड़ी मुझ पर घूमी,तो आप सब तो जूते -चप्पल, तलवार  सब कुछ के लिए तैयार रहो। आप सब भी बचोगे नहीं सो देख लो।मुझे बचाना अब आप सभी का दायित्व है।

उसकी बातें सुनकर चारों मुँह बनाते हुए कहते है, हर बार ये यही करता है।

सुभम आकर उनके पास कहता है, भाई सा अगर आप सब देश हित की बातें अभी जारी रखने वाले है तो जारी रखिये। हमें सब आपकी दुल्हनो क़ो लेकर जा रहे है। सभी मेहमान चले गए। वहाँ से बार बार बड़ी नानी का फोन आ रहा है और आप सब लगे हुए है। देश ज्ञान मे।

सभी अपनी अपनी दुल्हन के हाथों क़ो थाम कर महल की और चल पड़ते है। महल के दरवाजे पर सभी आरती की थाल लिए खड़ी थी। जब पांचो पहुँचे तो सबसे पहले आरती और तिलक पृथ्वी और शुभ का किया गया। उसके बाद दक्ष -दीक्षा, अतुल -तूलिका, अनीश -रितिका, और फिर रौनक -कनक की आरती की गयी।

उसके बाद रानी माँ कहती है अब सभी अंदर आईये। निशा बिंदनी और सुमन बिंदनी थाल उठाई की रस्मो की तैयारी कीजिये। देखें तो किन के हाथों मे प्रजापति खानदान क़ो संभालने की ताकत है। दोनों अंदर बड़ी बड़ी 7-7 परात पांच जगह लगा दी।

लेकिन अंदर आने से पहले दरवाजे पर उनके सभी शैतान की चौकरी हाथ मे हाथ जोड़े खड़ी हो गयी। जिसे देख कर लक्ष्य, मुकुल, चेतन जी कहते है अब ये क्या कर रहे हो तुम सब!! भाई  -भाभियों क़ो अंदर आने दो आगे की रस्मे निभानी है। तभी तुलसी जी कहती है, अरे ये क्या है छोरे ऐसे क्यों दरवाजे क़ो घेरे खड़े हो तुम सब।

उन सभी की बातें सुनकर अनामिका कहती है, दादी सा द्वार छेकाई लेने के लिए। ये सुनकर सुकन्या जी और सुमन जी कहती है लेकिन वो तो कमरे मे लोगी ना यहाँ क्यों? उन्दोनो की बातें सुनकर सौम्या और अंकिता कहती है, वो इसलिये क्योंकि हम तो सब एक एक करके सभी भाई -भाभी के दरवाजे क़ो घेर कर खड़े होंगे। इसमें किसी से हमें नेग मिलेगी और कोई युहीं चला जायेगा। इसलिए हमें सब ने यही. पर घेर लिया है इनको।

फिर अपनी भाईयों -भाभियों क़ो देखते हुए सभी कहते है। चलिए जूता छीपायी से लेकर, द्वार छेकाई तक सब कुछ अभी के अभी दीजिये। दक्ष और पृथ्वी एक साथ कहते है जिसको जो चाहिए वो लिस्ट बना कर दे देना मिल जायेगा। सब सुनकर ख़ुश होते हुए कहते है, पक्का!!! अनीश, अतुल और रौनक कहते है पक्का।

सभी द्वार से हट जाते है।

हाल मे बड़ी बड़ी सात परात पांच कतार से बिछी होती है। रानी माँ सभी की तरह देखती है और कहती है, ये रस्म है की आप के पति अपने तलवार से एक परात दायी ओर करेंगे ओर दूसरी क़ो बायीं ओर, और आप सभी क़ो वो परात उठानी है और उसे इस तरह से रखना है की उसकी टकराने की आवाज़ नहीं आये और ना परात गिरा।

जिस जोड़ी ने ये कर दिखाया। तो इसका मतलब ये समझा जायेगा की उन्दोनो पति पत्नी के बिच बहुत अच्छी समान्यज्स होगी और वो बहुत अच्छी तरह से अपनी सभी जिम्मेदारियों का निर्वाह करेगी।

सभी आगे तलवार से परात हटाने लगते है और पीछे पीछे सबकी पत्नियां वो परात उठाने लगती है। रितिका की तीसरी परात रखने से हल्की आवाज़ आ जाती है लेकिन उसके बाद एक भी परात की आवाज़ नहीं आती है और वो रस्म पूरी करती है। तूलिका की चौथी परात रखने से पहले छूटने लगता है उससे पहले अतुल संभाल लेता है और उसे अपनी पलकें झपका कर इशारा करता है की आराम से। फिर वो अपनी रस्म पूरी करती है।

कनक की छठी परात क़ो रखते हुए, वो खुद लड़खराने लगती है, तब रौनक उसे संभालते हुए खुद परात उठा लेता है और दोनों एक साथ रस्म पूरा करते है।

दीक्षा और शुभ सभी परात क़ो बिना आवाज़ के उठा लेती है लेकिन आखिरी परात उठा कर जबाब शुभ अपने दूसरे हाथ मे रखती है तो उसकी मुड़ जाती है और सारी परात गिरने लगती है की तभी दीक्षा अपने दूसरे हाथ क़ो उस परात के निचे लगा देती है।

जिसे देख पूरा परिवार ख़ुश हो जाता है और सभी आकर उनकी ब्लाईया उतारती हुई कहती है, हमें ख़ुशी है की हमारे खानदान की बागडोर सही हाथों मे होगी।

तुलसी जी कहती है, बिंदनी सुबह होने वाली है और शादी मे बहुत तमाशा हो चुका है। अब बच्चों की बाक़ी की रस्मे  अगले दिन पर रखिये और सभी क़ो अपने अपने कमरे मे भेजिए। हम कल सभी से बात करेंगे।

सुमन जी सभी क़ो कमरे मे भेजनें लगती है तो लक्ष्य और मुकुल जी कहते है। ऐसे कैसे जायेगे।

सुमन जी और निशा जी उन्दोनो क़ो देख चिढ़ती हुई कहती है, तो क्या गोद मे लेकर जायेगे। बातों बातों मे वो वही बोल जाती है जो. लक्ष्य और मुकुल जी कहना चाहते है। सभी बच्चे और बड़े एक साथ कहते है, सही पकड़े है.... मम्मी, काकी, भाभी !!!

ये सुनकर सभी एक साथ हंसने लगते है फिर लक्ष्य जी कहते है, बेटा तुम्हारी माँ भूल गयी की उन्हें हम कैसे ले गए थे लेकिन हमे अच्छी तरह से ये रस्म याद था। ये सुनकर सुमन जी शरमा जाती है लेकिन चेतन और मुकुल जी थोड़ी चुटकी लेते हुए कहते है,, "अरे भाई लक्ष्य ये नहीं बताया तुमने बच्चों क़ो की ये रस्म तुम्हें क्यों याद था।"ये सुनकर लक्ष्य जी उन्दोनो क़ो घूरते है। जिस पड़ निशा जी और सुकन्या जी कहती है, अरे लक्ष्य भाई सा आप दोनों की तरह नहीं है उन्हें इसलिए याद था क्योंकि वो हमारी सुमन से बहुत प्यार करते है।

सभी बच्चे एक साथ कहते है... ओओओओओ!!! चेतन जी उन सभी क़ो कहते चुप रहो तुम सब और सुकन्या जी प्यार की वजह से याद नहीं था लक्ष्य क़ो। इसलिए याद है ये रस्म क्योंकि उसके बाद दो दिन तक इस साहब ने हमसे अपनी कमर की मालिश करवाई थी। बेचारे की कमर मे मोच आ गया था सुमन भाभी क़ो उठाने मे।

सुमन जी लक्ष्य की तरफ घूरती है तो वो अपना सर ना मे हिलाते है लेकिन उनकी बात सुनकर एक बार फिर से पूरा महल हँसी मे गूंज जाती है। सुमन जी धीरे से कहती है आज आप बाहर सोयेंगे। जिसे सुनकर लक्ष्य जी कहते है लेकिन रौनक की माँ....!! वो हाथ दिखा कर कहती है.... हम बाद मे बात करेगें।अभी बच्चों क़ो कमरे मे भेज देते है।

लक्ष्य अपना मुँह लटका कर एक तरफ खड़े हो जाते है जिसे देख चेतन जी और मुकुल जी एक दूसरे के हाथों से ताली बजाते है। जिसे देख निशा जी और सुकन्या जी कहती है, आप दोनों ज्यादा ख़ुश मत होने, क्योंकि लक्ष्य भाई सा के साथ आप दोनों भी बाहर सोयेंगे।

ये सुनकर लक्ष्य के साथ साथ इस बार पांचो दूल्हे हॅसने लगते है। सुमन जी कहती है तुम पांचो क़ो भी बाहर सोना है। पांचो एक साथ नहीं मे सर हिला देते है। तो फिर मुँह क्या देख रहे हो उठा अपनी अपनी बिंदियों क़ो और कमरे मे जाओ।

सभी एक साथ अपनी पत्नियों क़ो गोद मे उठा लेते है। सबका रिश्ता पहले से जुड़ा हुआ था इसलिये किसी क़ो कोई खास फर्क नहीं पड़ा लेकिन जबाब रौनक ने कनक क़ो गोद मे उठाया तो उसका हाथ कनक की खुली कमर पड़ था जिससे कनक शरमा कर और रौनक मे सिमट गयी। जिसे देख रौनक मुस्करा दिया। दोनों एक दूसरे की आखों मे देख रहे होते है।

सभी शैतान चौकरी भी थक चुकी थी इसलिये जिसे जहाँ मौका मिला वही सो गए।

इधर बगीचे मे लक्षिता झुमरी के साथ सबके लिए चाय बना कर लायी थी। राजेंद्र जी और तुलसी जी के आलवा सभी बाहर मे अनंत जी और अर्चना जी के साथ बैठे थे।

राजेंद्र अपने कमरे मे ख़ुशी से इधर उधर घूम रहे थे. जबाब तुलसी जी कमरे मे आयी तो उनको ऐसे झूमते देख अपनी मुँह पर हाथ रख कर बोलती है, क्या बात है राजा साहब आज आपको दवाई नहीं खानी और अभी तक आप सोये भी नहीं है।

राजेंद्र जी तुलसी जी क़ो पकड़ कर झूमते हुए कहते है, रानी सा!! हमने दवाई खा ली। हैरान होती हुई कहती है, "लेकिन राजा साहब आप तो खुद से कभी दवाई नहीं लेते। ये सुनकर राजेद्र जी कहते है, आज जबाब हमने अपने पोते क़ो बोलते देखा और पुरे राजस्थान क़ो उनके आगे झुकते देखा तो हमारी इकक्षा जाग गयी की कुछ दिन और जिए। जो सपना हमारे बाबा सा ने देखा वो हमारा दक्ष पूरा करेंगे। पूरी प्रजा क़ो कैसे संभालना है वो कला हमारे दक्ष मे बखूबी भरी है और उनकी पत्नी पूछिए मत उनमे हमें आप और हमारी बहु पार्वती नजर आती है।

आपने देखा रानी सा जबाब वो दोनों एक साथ आ रहे थे तो लग रहा था की शेर के साथ शेरनी चल रही है।

बस माँ भवानी से यही प्रार्थना है की हमारे बच्चों की आयु लम्बी दे और हम अपने पर पोते पोती क़ो देखने के बाद ही मरे।

आज हमारे महल मे हँसी की गूंज आपने सुनी रानी सा। आह्हः कान तरस गए थे ये हँसी सुनने के लिए।

बस बस हम इसलिये ख़ुश है। कहते हुए उनकी आखों मे आंसू आ जाते है। जिसे अपनी नम आखों से देख कर तुलसी जी पोंछने के लिए हाथों क़ो बढाती है तो राजेंद्र जी उनको रोकते हुए कहते है। ना !! ना!! रानी सा... ये ख़ुशी के आंसू है बहने दीजिये। इन्हें मत रोकिये और हमारी इकक्षा है की ऐसे आंसू हमारी आखों से रोज बहा करे। दोनों ख़ुश थे और आज प्रजापति महल मे शांति थी।

रौनक -कनक

रौनक जब कनक क़ो लेकर अपने कमरे में आता है तो पूरा कमरा फूलों की पंखुरियों और खुशबूदार कैंडिल्स लाइट्स से सजा हुआ था जिसे देख कर दोनों के चेहरे पर असजता आ गयी। रौनक अपनी असहजता क़ो छिपाते हुए, उसे धीरे से निचे उतार देता है। कनक अपनी नजर क़ो निचे रखी हुई खड़ी थी।

रौनक उसके कंधे पर हाथ रख कर एक हाथ से उसके चेहरे क़ो ऊपर उठा कर अपनी मदहोश आवाज़ में कहता है, "मेरी तरफ देखो।"कनक धीरे से अपनी घनी खूबसूरत पलकों क़ो ऊपर करती हुई रौनक की तरफ देखती है। रौनक मुस्कुराते हुए कहता है,"आप कितनी खूबसूरत है किसी ने आपसे कहा है? वो शर्माती हुई अपना सर ना में हिलाती है।

रौनक उसके चेहरे क़ो अपनी एक ऊँगली से ऊपर उठा कर कहता है,"एक बात पूछे !! आप जबाब हमारी आखों में डाल कर देगी।"वो अपनी पलकें झपकाती हुई,' हाँ  में जबाब देती है।

रौनक मुस्कुरा कर कहता है, आप हम से शादी करके ख़ुश है ना कनक !!! कनक उसकी बात सुनकर कर उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहती है,"कुंवर सा !! जबाब मंडप पर हमारा सच हमारे सामने आया तो वहाँ हमने आपको खुद के बेहद करीब पाया। प्यार क्या है ? आपसे है याँ नहीं ? इन सवाल का जबाब अभी नहीं दे सकती क्योंकि जबाब से हमारा और आपका रिश्ता जुड़ा है। कुछ ना कुछ होते आ रहा है। इसलिये एक अच्छा और खूबसूरत वक़्त हमारे बिच बिता नहीं। अब हम दिल से चाहते है की हमारा और आपका रिश्ता भी उतना ही प्यारा हो जितना हमारे साथ चार जोड़ीयों की है।

रौनक उसे पकड़ कर बिस्तर पर बिठा देता है और कहता है, आज आप खुल कर बताएगी की आप क्या चाहती है। आज आप कहेगी और हम सुनेगे। फिर धीरे धीरे उसके गहने उतारने लगता है और उतारते हुए कहता है, घबराइये नहीं कनक। हम बस आपको हल्का अहसास हो इसलिए ये भारी गहने उतार रहे है।

पृथ्वी -शुभ

पृथ्वी और शुभ जब कमरे में आये तो उनके कमरा भी फूलों से सजा हुआ था। जिसे देख कर पृथ्वी कहता है, शुभ ये सजावट देख कर तो हमें और एक पल इंतजार नहीं होगा कहते हुए वो शुभ के होठों पर अपने होठों क़ो रख देता है। शुभ भी उसकी गले में बाहें डाले उसका साथ दे रही थी। कुछ पल के बाद पृथ्वी शुभ क़ो छोड़ते हुए कहता है, हमसे आज रुकने क़ो मत कहियेगा। जिस दिन से हमारी सगाई हुई है आपने सिर्फ हमें इंतजार करने क़ो कहा है।

आज की रात हमारे सपनो की रात है। आज हम अपनी दुल्हन के साथ ये रात जीना चाहते है, कहिये इज्जाजत देगी आप मुझे। पृथ्वी की मादक आवाज़ सुनकर शुभ उसके गर्दन में अपना नाक रब करते हुए कहती है, आज हम आपको रोकेंगे भी नहीं हुकुम सा।

पृथ्वी मुस्कुराते हुए शुभ क़ो निचे उतार देता है और कहता है जाईये कबर्ड में आपके लिए एक पैकेट है वो पहन कर आईये। क्या लाये है आप। पहले पहन कर आईये।

अनीश -रितिका

अनीश रितिका क़ो गोद में लेकर कमरे में आता है और पुरे कमरे क़ो सजा देख कह कहता है, "वकील साहिबा ये तैयारी हमने अवंतिका विला में भी की थी। रितिका कहती है तो वकील साहब पहले यहाँ अरमान पुरे कर लेते है फिर वहाँ कर लेगे। ये सुनकर अनीश अपनी आखों क़ो चमकाते हुए कहता है। लगता नहीं है आपको की आप कुछ ज्यादा ही डैयरिंग हो गयी है, कहते हुए उसे निचे उतार देता है।

रितिका अपने दोनों हाथ उसके गले में डाल कर कहती है, अभी तो आपने मेरी डेयरिंग देखी कहाँ है वकील साहब!!फिर खुद क़ो अपनी ऊँगली से उठा कर अनीश के कानों के पास आकर धीरे से अपनी मादक भरी आवाज़ में कहती है," वकील साहब !! ये कहाँ लिखा है की सुहागरात की शुरवात सिर्फ पति करते है। पत्नी भी कर सकती है ना कहते हुए उसके कान क़ो हल्का सा काट लेती है।

अनीश बस रितिका का ये रूप अपनी आखों क़ो बड़ी बड़ी करके देख रहा था।

अतुल -तूलिका

अतुल जबाब तूलिका क़ो लेकर कमरे के अंदर आता है। पुरे कमरे की सजावट देख कर तूलिका जोड़ से अतुल की कोट क़ो पकड़ लेती है। अतुल उसका डर देख कर उसे उसी तरह सीने से लगाते हुए कहता है, रिलैक्स तुली!! कुछ नहीं करुँगा जबाब तक तुम तैयार नहीं होती है। तुम जाओ कपड़े बदल लो। तब तक मैं ये सब साफ कर दूँगा। फिर उसे निचे उतार देता है और आगे बढ़ कर बिस्तर से फूल हटाने के लिए झुकता है, की तूलिका उसका हाथ पकड़ कर उसकी तरफ अपनी आंसू भरी नजर से देखती है। जिसे देख कर अतुल उसके पास आता है और उसके चेहरे क़ो हाथों में भर कर कहता है, क्या हुआ वाइफी!!!

तूलिका उसकी तरफ देखती हुई उसके सीने से लग जाती है और रोती हुई कहती है, अतुल मुझमें तुम्हारे अहसास क़ो भर दो। मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हें महसूस करना चाहती हूँ।

उसकी बात सुनकर अतुल उसके पीठ क़ो सहलाते हुए कहता है, रिलैक्स!! वाइफी!! मैं इंतजार कर लूँगा। तुम क्यों..... तूलिका तब तक उसके होठों क़ो अपनी होठों से बंद कर उसकी बातें वही रोक देती है। अतुल उसके इस तरह की अचनाक हुई प्रतिक्रिया से आवाक हो गया था।