अतुल अपनी गहरी सांस भरते हुए, यानी तुम्हारी जिंदगी तुम्हारे परदादा जी ने बचा कर रखी है। मानना पड़ेगा क्या पेंच लगा कर उन्होंने वसीयत बनाई है।
दक्ष उसकी बात पर कुछ देर चुप रहने के बाद कहा , " अनीश इस वसीयत को हर तरीके से कानूनी तौर पर मज़बूत कर दो की कोई लूप ना बचे।वीर तुमको जरा दादा सा और उनके पोतों पर खास कर उनके जमाई पड़ नजर रखो और अतुल तुम्हें अपने काम याद है ना। चलो रात ज्यादा हो गयी तो अब सब अपने अपने कमरे में जाओ।
सभी हाँ करते हुए निकल जाते है।दक्ष के साथ साथ में हीअतुल और अनीश और वीर का कमरा था लेकिन दक्ष के फ्लोर के ऊपरी हिस्से में।दक्ष बलकनी के पास खड़ा होकर चाँद को देखता हुआ कुछ सोच रहा होता है।
इधर दीक्षा ऑफिस के उस घटना के बाद, बिना किसी को बताये घर चली आती हैऔर परेशान हो रही होती है।दक्षांश को सोता देख बाहर बालकनी में खड़ी होकर चाँद को वो भी देख रही होती है।तभी तूलिका और रितिका उसके पास आकर बगल में खड़ी हो जाती है। तीनों एक साथ चाँद को देखते है। क्या बात है दीक्षा जब से ऑफिस से आयी हो परेशान लग रही हो।दोनों की बात पर,दीक्षा ने चाँद की तरफ देखते हुए कहा, " पता नहीं फिर अतीत की कुछ धुंधली यादो ने घेर लिया है। "
ऐसा क्या हुआ अचनाक और ये सब सात साल बाद क्यों सोच रही हो तुम।
दीक्षा कुछ समय चुप होने के बाद कहना शुरू करती है, " याद है सात साल पहले का वो दो महीना। हमतीनो की जिंदगी को तबाह कर गया था। दोनों ने एक साथ बेहद अफ़सोस भरी आवाज मे कहा, " हाँ वो कड़वी और दर्दनाक रात केसे कोई भूल सकता है।फिर तीनों पुरानी यादो मे चली गयी।
सात साल पहले.....
दीक्षा ने अपनी इंजेनीयरिंग की डिग्री, तूलिका डॉक्टर, और रितिका ने लॉ की डिग्री लेकर अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी। उसके बाद तीनों ने इंटर्नशिप के लिए अप्लाई किया था।तीनों बेहद खुश थी।लखनऊ शहर की रहने वाली तीनों दोस्त बचपन से एक दूसरे के साथ रही थी।आज दीक्षा खुश थी और तीनों सहेलियों ने एक दूसरे को बाय कहा।दीक्षा जब घर पहुंची तो वहाँ का माहौल देख थोड़ी परेशान हो गयी। शहर का सबसे रहीश और ताकतवर रायचंद परिवार आया हुआ था।तेजेंद्र रायचंद, रायचंद इंडस्ट्री के MD और राजनीती में ओहदा ना होने के बाद भी सता में पूरी पकड़ थी। जिसका सबसे बड़ा कारण था उनका बड़ा बेटा ओमकार रायचंद। रायचंद इंडस्ट्री का सीईओ और बहुत बड़ा माफिया यूपी से लेकर पुरब भारत में इनकी पकड़ और इनके बदौलत इनके पिता का रसूक चलता है। इनकी माँ कनिका रायचंद पैसा और घमंड इनके चेहरे पड़ नजर आता है। इनके दो बेटे है बड़ा ओमकार रायचंद और दूसरा अक्षत रायचंद।सभी बैठे हुए थे की चंदना राय ने कहा, " अरे लो आ गयी हमारी दीक्षा। आओ आओ सब एक साथ दीक्षा को देखते है।दीक्षा उनकी जेठानी की बेटी थी।
कनिका रायचंद ने उसे ऊपर से निचे देखते हुए कहा, " अम्मा जी आपकी पोती तो बहुत खूबसूरत है। इसलिए हमारे बेटे को एक नजर में भा गयी और इसने बस कह दी की शादी तो राय परिवार की पोती से ही करुँगा। नहीं तो आप तो जानती ही है की मेरे ओम के लिए रिश्ते तो..... आगे बोलू ही क्या.....! ख कर हँसने लगती है।
कुशेश्वर राय और कौशल्या राय (दीक्षा के दादा -दादी )....
जी ये सब आप सबका बरकपन है की आपके घर हमारी बच्ची का रिश्ता तय हो रहा है। दीक्षा बस चुप होकर उस तमाशा में खड़ी थी, उसे ओमकार नहीं पसंद था.... और उसे देख कर... उसे कुछ अच्छा महसूस नहीं होता।
यहाँ दीक्षा का रिश्ता इतने बड़े परिवार में होता देख उसके चाचा -चाची अंदर से खुश नहीं थे लेकिन कर भी क्या सकते थे, सामने से ओमकार ने रिश्ता भेजा था। चंदना अपने पति से कहा मैं अपनी बेटी कम्या का रिश्ता इतने घर में जुड़ने का सपना देख रही थी, कहाँ ये आपकी भतीजी का रिश्ता आ गया।
कुंदन उसके हाथ को दबा चुप रहने का इशारा करता है।और हस्ते हुए तजेंद्र के पास आकर कहता है..... भाई साहब आप सब तो बहुत बड़े लोगो है.... और आपकी बराबरी की हैसियत तो हमारी नहीं है फिर शादी और सब हम आपके मुताबिक करने में बिल्कुल सक्षम नहीं है।
तजेंद्र रायचंद कुछ कहे उसे पहले ही ओमकार कहता है.... हर एक चीज हमारी तरफ से होगी और साथ ही साथ आपके बिज़नेस भी अब रायचंद के साथ ही काम करेगी। आपको किसी बात की फ़िक्र करने की जरूरत नहीं है बस आप हमारी दीक्षा का ख्याल रखिए और वो बहुत कामुक नजर से दीक्षा को ऊपर से निचे तक देखता है।
कौशल्या राय कहती है की हमें पंडित जी को बुलाकर अच्छी मुहर्त में शादी की तारीख पक्की कर देते है। तभी कनिका रायचंद कहती है..... उसकी जरूरत नहीं है अम्मा जी हमने पहले से ही सभी चीज तैयार कर ली है.... शादी और सगाई एक दिन ही होगी अगले महीने की बीस तारीख को, क्योंकि अभी इलेक्शन है तो इसमें ओम और इसके पिता व्यस्त होंगे इसलिए इलेक्शन के बाद.... हमने शादी की तारीख निकलवा ली है।
फिर उठ कर एक बॉक्स खोलती है उसमें से जराऊ हीरे का कँगन निकाल दीक्षा के हाथों में पहना देती है। और बहुत सारी गहने, कपड़े चंदना की तरफ बढ़ा कर कहती है की ये सब आपके और हमारी बड़ी बहु के लिए है।
इतना कुछ देख कर तो चंदना और कुंदन की आँखे फटी की फटी रह जाती है...
और उधर कम्या और कृतिका देख देख कर गुस्से और जलन से भरी जा रही होती है।
ओमकार.... दादी जी क्या में दीक्षा से अकेले में बात कर सकता हूँ।
हाँ हाँ बेटा इसमें कोई पूछने की बात है.... कम्या... कृतिका..... दीक्षा और ओमकार जी को उसके कमरे में ले जाओ।
दोनों मुस्कुराते हुए..... दीक्षा और ओमकार को अपने साथ ले जाती है। कम्या दीक्षा के पास आकर आराम से बात करना.... हम बाहर ही है। दीक्षा उसका हाथ पकड़.... ना जाने का इशारा करती है।
ओमकार ये देख लेता है और कहता है खबराओ नहीं मैं तुम्हें खा नहीं जाऊंगा।
कम्या और कृतिका बाहर चली जाती है और छिप कर उन दोनों की बातें सुनने लगती है।
ओमकार कुछ कहने से पहले दीक्षा के गले में एक हीरे का पेंडेंट पहनाने लगता है तो दीक्षा उसे रोक कर.... आप मुझे दीजिये ये बहुत महंगा है तो इसे में किसी खास मोके पड़ पहनुंगी और खुद को उसके छुवन से बचाने की कोशिश करती है।
"I like it,.... तुम्हारा तरीका मुझे पसंद है. तुम्हे मालूम है की मैंने तुम्हें क्यों पसंद किया।"
दीक्षा ना में अपने सर को हिलाती है।
तुम्हें तुम्हारे कॉलेज के फैस्ट में देखा था और फिर तुम्हारे बारे मे सब कुछ पता करवाया..... क्योंकि इतनी खूबसूरत लड़की बेदाग तो नहीं हो सकती, लेकिन तुम तो बेदाग मिली मुझे। जिसे किसी ने नहीं छुआ है।
और ओमकार रायचंद अपनी चीज किसी को देता नहीं और दूसरे की छुई चीजे वो लेता है। इसलिए तुम मुझे पसंद हो।
अब तुमसे में शादी के वक़्त ही मिल पाऊंगा क्योंकि इलेक्शन में.... मैं बहुत व्यस्त रहुगा लेकिन फोन करता रहुँगा। वो ये सारी बातें मुस्कुराते हुए दीक्षा से कर रहा था और दीक्षा सर झुकाये सुने जा रही थी।
मैं तुमसे कुछ बातें समझा देना चाहता हूँ.... आज के बाद तुम देर रात घर नहीं आओगी। तुम्हारा कोई भी लड़का दोस्त नहीं होगा। तुम किसी भी पब या क्लब, मूवी, बाजार नहीं जाओगी। पढ़ाई हो गयी तुम्हारी कोई नौकरी तुम्हें नहीं करनी है शादी के बाद तुम मुझे, मेरे बच्चे और घर सम्भालोगी।
फिर उसके गालों पड़ हाथ रखने को होता तो वो अपने चेहरा हटा लेती।
ओमकार मुस्कुरा कर कोई बात नहीं शादी से पहले तुम बिल्कुल अंछुई ही रहोगी। मैं भी नहीं छुवऊंगा तुम्हें।
चलो अब बाहर चले।
वो दोनों बाहर आते है उससे पहले कम्या और कृतिका छिप जाती है।
रायचंद परिवार सभी से मिल कर चले जाते है। और अब राय परिवार में सब खुश है और कुछ गुस्सा।
चंदना के कमरे में कम्या चिल्ला कर कहती हुई, "मॉम ये केसे होने दिया आपने.... उस दीक्षा की नहीं मेरी शादी ओमकार रायचंद से होनी थी उसकी नहीं। आपका ये प्यार वाला झूठा नाटक बचपन से झेलते झेलते अब तो हद ही कर दी आपने... अपनी बेटी की ख़ुशी भी आपने उसे दे दी।
कुंदन प्यार से कमु मेरी बच्ची शांत हो जा.... आज तक हमें सिर्फ उसे सिर्फ खाली प्यारव्ही तो करते आये है.... लेकिन सब कुछ तो तुम दोनों बहनो को ही दिया है ना।
तो डैड फिर रायचंद परिवार की बड़ी बहु मुझे बनना है।
चंदना जी चिढ कर..... तुझे क्या लगता है जैसे बचपन से सब कुछ दीक्षा से प्यार से मांग कर तुझे दे दिया करती थी..... ओमकार भी सामान है और वो दीक्षा के हाथ में जो उससे मागु और तुझे दे दू ला कर। और एक बात कान खोल कर सुन ले। अगर गलती से भी रायचंद परिवार को भनक लग गयी की..... हमें ऐसे कुछ सोच रहे है ना तो जितनी मेहरबानी वो अभी हमें पड़ कर के गए है..... सबका हिसाब सुद के साथ ले भी लेगे। फिर ले लेना ओमकार को।
कृतिका सभी की बातें सुन कर कहती है... अगर आप सब आपस में उलझना बंद कर दे तो मेरे पास एक तरकीब है।जिससे कमु दी की शादी भी हो जायेगा और दीक्षा नाम का कांटा हमारी जिंदगी से निकल जायेगा।
सब उसकी बात सुनते है और सबकी चेहरे पड़ शातिर मुस्कान आ जाती है.
चंदना तरकीब बहू अच्छी है लेकिन इसे करना कब बस कुछ दिन में..... अभी शादी में दो महीने है।
सभी खुश होकर अपने अपने कमरे में चले गए।
इधर दीक्षा परेशान होकर अपने कमरे में चक्कर लगा रही थी उसे समझा नहीं आ रहा था की किसी से क्या कहे????
तभी उसके फोन पड़ तूलिका का कॉल आया।
हेलो!! हाँ तुली बोल।
उधर से कुछ तूलिका कहती है.... दीक्षा परेशान हो... कहती है.... पहुंचती हूँ वही हमारे जगह पर।
कुछ समय बाद वहाँ तीनों होती है.... तूलिका और रितिका को देख दीक्षा कहती है की तुमदोनों इतनी परेशान क्यों लग रही हो।
तूलिका और रितिका एक साथ.... बिना हमारी मर्जी के हमारी शादी तय कर दी गयी है।.... दोनों ने जबाब एक ही बात एक साथ बोली तो... क्या कहा तूने रीती तेरी भी...
"मतलब तुमदोनों की शादी तय हो गयी।"
दोनों एक साथ हाँ कहती है।.... मैं जबाब अपने घर गयी तो मेरी सौतेली माँ..... ने सीधे मुझ पर ये बम फोड़ा.... उन्होंने अपने किसी जानने वाले से मेरी शादी तय कर दी है। और इस बार इन्कार करती उससे पहले पापा ने अपनी कसम दे दी।
और शादी पांच दिन बाद है, समझ में नहीं आ रहा की इतनी जल्दी क्यों है?????
दीक्षा तूलिका से पूछती है की, "इतनी जल्दी क्यों..... तुम्हारी माँ तो वैसे तुम्हें पसंद नहीं करती और इस बार तो तुम्हारे पापा भी। और रीती तुम्हारा ऐसे केसे। तूलिका भी उसे देखती है।
" तुम्हें तो पता है मैंने पढ़ाई कितनी मुश्किल से पूरी की.... माँ पापा के नहीं रहने के बाद भैया ने ख्याल तो रखा लेकिन भाभी के हिसाब से। जबाब सुबह घर पहुंची तो भाभी के बड़े भैया प्रियांशु बैठे हुए थे। मेरे जाते के साथ ही उन्होंने मेरे भाई के सामने ही मेरा हाथ पकड़ अंगूठी पहनाते हुए कहा... की आज से रितिका मेरी हुई।
मैंने बहुत मुश्किल से उनसे हाथ छुड़ा कर अपने भाई को स्तब्ध होते देख रही थी, जो खुश होकर.... कह रहे है..... हाँ हाँ क्यों नहीं। और शादी अगले महीने सोलह तारीख को तय कर दी है।"
दोनों जबाब रितिका की बात सुनती है तो कहती है लेकिन तुम्हारी भाभी का भाई तो 38 साल का है ना वो तुमसे दुगनी उम्र का है, ऐसे केसे कर सकते है।
"रितिका खुद पर हॅसते हुए.... केसे नहीं कर सकते है कर चुके है। हमेशा तो वो भाभी के हिसाब से ही चलते आ रहे है.... नहीं तो मुझे भी तुम्हारी तरह इंजिनियरिंग करनी थी..... लेकिन भाभी ने नहीं चाहा तब तो लॉ किया।
दीक्षा उन्दोनो की बात सुन अपनी बात नहीं कहती, क्योंकि अगर उसने अपनी बात कही होती तो वो दोनों अपनी परेशानी भूल उसके पीछे ही खुद को लगा लेती।
ऐसी थी तीनों की दोस्ती... दिल और रूह से जुड़ी हुई।
दीक्षा उन दोनों से... क्या कर सकती है, रितिका के लिए तो जरूर कुछ सोचेंगे.... लेकिन तेरा तुली। हो सकता तेरे पापा ने अगर कहा है तो हो सकता है अच्छा हो।
फिर तीनों एक दूसरे मिल कर अपने अपने घर चली जाती है।
अगले दिन दीक्षा के कमरे में कम्या और कृतिका आयी है। और दीक्षा के गले लग कर कहा की अब तो तु कुछ दिन बाद चली जाएगी फिर हमें तीनों बहन कब एक दूसरे के साथ वक़्त बितायेगे। फिर कृतिका कहती है की क्यों ना हम आज कहीं चल कर पार्टी करे।
दीक्षा,"नहीं दी मेरा कोई मन नहीं है "।
कम्या उदास होकर कहती है, जानती हूँ की तेरी शादी बहुत बड़े घर में हो रही है तो वहाँ के हिसाब से अब हमलोग से कहाँ तु रिश्ता रखेंगे। दोनों बहन चालाक लोमड़ी की तरह बहुत तरीके से भावनात्मक बातें कर, दीक्षा को मानाने के लिए राजीव करती है।
दीक्षा ना चाहते हुए भी," हाँ " कर देती है।
रात को तीनों गेलेक्सी क्लब /होटल (कल्पनिक नाम ) पहुँचती है। दीक्षा अपनी दोनों बहनो का दिल रखने के लिए उनके साथ आ तो गयी थी लेकिन उसका मन नहीं था। कृतिका अपने दोस्तों से दीक्षा को मिलवाती है उनमे से एक लड़का योगेश शर्मा कभी गौर से दीक्षा को देखता है..... कृतिका और कम्या एक दूसरे को इशारा कर मुस्कुरा देती है...." दी आप दीक्षा के साथ रहो मैं कुछ पीने को लेकर आती हूँ "…...
"कृतिका दी मैं कुछ नहीं लुंगी, मैं बस आप सबके साथ आपका दिल रखने को आ गयी हूँ।"
" फ़िक्र मत करो मेरी प्यारी बहन, कृति तुम्हारे लिए फ्रूट जूस सिर्फ लाएगी, हम जानते है की तुम सिर्फ हमारे लिए आयी हो। चलो अब मजे लो यहाँ के। "और इशारे से कृतिका को जाने को कहती है।"
कृतिका सब के लिए ड्रिंक लेकर आती है। दीक्षा को जूस दिया।
सबने ड्रिंक लिया, कुछ समय बाद दीक्षा को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, उसने कम्या से कहा, " दी मैं जरा वाशरूम होकर आती हूँ। "
कम्या, ओके कह कर उसे जाने का इशारा देती है और खुद सभी के साथ डांच फ्लोर पर जाती है।
दीक्षा को चक्कर आ रहे थे.... गर्मी लग रही थी लेकिन खुद को सम्भालते हुए वो वाशरूम गयी.... पानी से बार बार खुद का चेहरा साफ करने पर भी उसे बेचैनी हो रही थी।
वाशरूम से निकल वो जाने को हुई तो रास्ते में योगेश ने उसे पकड़ लिया.... और उसके बालों को सूंघते हुए कहता है बहुत गर्मी लग रही है... जानेमन चलो अभी सारी गर्मी कम कर देता हूँ.... और उसे खींच कर लिफ्ट में ले जाने लगा।
दीक्षा लिफ्ट में जाते ही उसे जोर से धक्का देती है और तेजी से लिफ्ट का बटन दवा देती है।
खुद को संभालते हुए वो जैसे तैसे एक कमरे में पहुँचती है लेकिन अब तक वो अपना होश खो चुकी होती है।
हे.... कौन हो तुम..... वो बस इस आवाज़ के साथ उस इंसान के साथ खो जाती है।
अगली सुबह जबाब दीक्षा की आँख खुलती है तो.... अपने सर पकड़.... आह किता सर दर्द हो रहा है और बड़ी मुश्किल से अपनी आँखे खोलती है.... खुद को किसी अनजान जगह पा कर चौंक जाती है... और अपने बगल में किसी लड़के को पीठ के तरफ सोया हुआ देख.... अपने मुँह पर हाथ रख लेती है और खुद को बिना कपड़ो के देख समझा जाती है की रात को क्या हुआ उसके साथ....और हड़बरा कर उठने लगती है की उसके नीचले हिस्से में बहुत तेज दर्द होता है.....रोटी हुई खुद को संभाल कपड़े पहनती है और उसकी हिम्मत नहीं होती की उस इंसान का चेहरा देखे... सबकी नजरों से खुद को बचाते सीधे निकल जाती है...
और सीधे अपने घर पहुँचती है, सुबह होने के कारण कोई उसे हाल में नहीं नजर आता है,तेजी से वो अपने कमरे में चली जाती है लेकिन उसे जाते हुआ.... चंदना देख लेती है और मुस्कुराते कहती है..... हो गया काम।
दीक्षा अपने कमरे जा कर सीधे वाशरूम जाती है और खुद को आइने में देखती है..... उसके शरीर पर लगे निशान... उसके सब कुछ ख़त्म होने की गवाही दे रहे होते है। फिर खुद को सम्भलती हुई जल्दी से कपड़े बदल अपने लैपटॉप पर बैठ जाती है। दीक्षा एक बहुत अच्छी हैकर है और अपनी हैकिंग से ग्लैक्सी होटल की cctv फूटेज को हैक कर..... रात की सभी घटनाओं को खत्म कर देती है... और दर्द में होने के कारण सो जाती है।
चंदना जी बहुत तेजी से कम्या के कमरे में आती है.... कम्या रात के नशे के कारण सो रही होती है। उठ मेरी लाडो.... बता रात में क्या हुआ।
"मॉम सोने दो ना.... बाद में बात करुँगी।"
"हे भगवान क्या करू इस लड़की का, अरे दीक्षा सुबह सुबह घर आयी है। " कम्या चौंक कर क्या वो आ गयी.....
"हाँ... मैंने सुबह ही उसे देखा.... उसकी हालत ठीक नहीं लग रही थी।" कम्या खुश होते.... तो योगेश ने काम कर दिया.... फिर कृतिका को उठा कर कहती है..... उठ जा मेरी छोटी.... देख तेरा प्लान काम कर गया अब योगेश को फोन कर पूछ की सब कुछ रिकॉर्डिंग की या नहीं।
कृतिका मुस्कुराते हुई कहती है अभी करती हूँ फ़ोन... जबाब वो अपने फोन उठाती है तो देखती है उसमें पचास कॉल योगेश का होता है।
ये योगेश के इतने फोन बोलती हूँ कॉल करती है.... उधर से योगेश गुस्से में चिल्लाते हुआ..... कहता है... "कमीनी... साली तुम दोनों बहनो में पैसे मुझसे लिए और अपनी बहन को किसी और को बेच दिया.....मेरे पैसे वापस कर या अब तु आएगी मेरे बिस्तर पर समझी और फोन काट दिया ".
"उसकी बात सुन तीनों एक दूसरे को देख कर..... दीक्षा योगेश के साथ नहीं थी तो किसके साथ थी "।
अब ये हमलोगो को केसे मालूम होगा दी और अब हमारे पास तो कोई सबूत भी नहीं है.... और दोबारा तो दीक्षा हमारे साथ जाएगी नहीं।"
कम्या परेशान होकर अब क्या करेंगे मॉम.... मेरी शादी।
चंदना जी कम्या को शांत करवा कहती थोड़ी दिन शांत बैठो और दीक्षा को ये पता नहीं चलना चाहिए की तुमदोनों ने ऐसे कुछ किया है। फिर सोचते है।
वक़्त बीतता जाता है,
कुछ समय के बाद से, दीक्षा शांत और ज्यादातर अपने कमरे में रहा करती थी। वैसे भी वो सामान्य दिनों में भी किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी.... कोई उसे परेशान नहीं करता था लेकिन उसे अपने दादा -दादी या चाचा -चाची के साथ ज्यादा बात नहीं होता था..... सभी खुद में होते थे और उसकी जरूरत का ध्यान रखा जाता था इसलिए वो भी बस खुद को सिमित ही रखा करती थी।और वो किसी को किसी बात का जवाब नहीं दिया करती थी..... सबकी बात मान कर ही कुछ करती थी इसलिए परिवार को उससे ज्यादा परेशानी नहीं थी।
पंद्रह दिन बाद उसे अनजान नंबर से एक फोन आता है.... हेलो...
"जी आप दीक्षा जी बोल रही है।".
"हाँ मैं दीक्षा बोल रही हूँ "। मैं संथाली हॉस्पिटल से बोल रही हूँ यहाँ एक लड़की एडमिट जिसका नाम तूलिका है, आप यहाँ जल्दी आ जाईये और इनकी जान बचा लीजिये मैं ज्यादा से ज्यादा इन्हें एक दिन छिपा सकती हूँ। इनकी जान खतरे में है।
"हेलो आप कौन..... लेकिन उधर से फोन कट जाता है। दीक्षा परेशान हो रितिका को फोन करती है..... कुछ पैसे जो उसने हैकिंग से कमाए थे वो लेकर तेजी से निकलने लगती है तो पीछे से कम्या उसे आवाज़ देती है..... दीक्षा कहाँ जा रही हो तुम इतनी जल्दी।
दीक्षा बिना जवाब दिए सीधे निकल जाती है, जहाँ रितिका कैब में उसका इंतजार कर रही होती है..... लगभग दो घंटे के सफर के बाद वो संथाली हॉस्पिटल के पास पहुँचती है। और उस नम्बर पर फोन करती एक 60-65 की बुजुर्ग औरत नर्स के कपड़े में उसके पास आती है... और उसका हाथ पकड़ पीछे के रास्ते एक कमरे में लाती है....
दीक्षा और रितिका के तो होश उड़ जाता है..... तूलिका की हालत देख..... दोनों खुद को संभाल नहीं पाती और लड़खराकर गिरने को होती है तो वो औरत उसका हाथ पकड़ लेती है... दीक्षा अपनी कांपती आवाज़ में..... ये.... ये.... ये.... बोल नहीं पाती।
वो औरत जिसने दीक्षा को फ़ोन किया उसका नाम सरिता था। वो उन्दोनो को पकड़ कर वहाँ बिठा देती है और पानी देती है। दोनों मना करती है और पूछती है की ये केसे।
सरिता बताती है..... ये मुझे दस दिन पहले बहुत बुरी हालात में मिली थी, जबाब मैं अपने घर रात की शिफ्ट के पास लौट रही थी तो रास्ते के किनारे किसी की कराहने की आवाज़ सुन में उस तरफ गयी तो..... इसके बदन पर कपड़े नाम पर सिर्फ एक कुरता था वो भी फटा हुआ..... इसे देख कर ही लग रहा था की किसी ने बड़ी दरिंदगी दिखाई है.... इस मासूम परसतीश । मैंने इसे हॉस्पिटल में एडमिट करवाया अपनी बेटी बता कर। जबाब डॉक्टर मैडम ने इसे देखा तो..... बहुत दर्द के साथ बिलो की इस मासूम के साथ एक दो बार नहीं लगातार गैंग रेप हुआ है..... होश में आ भी गयी तो भी मानसिक तोड़ पर कितनी स्टेबल होगी बता नहीं सकते.... शरीर के कुछ हिस्से में उन हरमजादो ने ऐसे गहरे घाव दिए है की.... वो ना जाने कब तक भरे..... अंदर में चोट लगी है इसलिए..... उसको तो मैंने ठीक कर दिया है और उसके हिस्से को भी साफ कर दिया है... और मेडिसिन दे दी हूँ.... प्रेगनेंसी तो बिल्कुल नहीं ठहरेगी। लेकिन ये होश में कब तक आएगी ये कहना मुश्किल है और होश में आने के बाद केसे प्रतिक्रिया करेगी नहीं बता सकती। बाक़ी इसका ध्यान रखो।
मैं इसका ध्यान अपनी बेटी समझ कर रख रही थी कुछ दिन पहले जबाब ये कुछ पल के लिए होश में आयी तो दीक्षा पुकारा..... ये सुन दीक्षा अपनी मुँह पर हाथ रखा जोर जोर से रोने लगी। रितिका, तूलिका के पास उसका माथा सहला रही थी।
लेकिन तुम्हारी ये दोस्त बहुत हिम्मत वाली है, होश में आते ही इसने मुझे तुम्हारा नंबर दिया। अभी ये नींद में है। लेकिन मैंने तुम्हें फोन नहीं किया क्योंकि मुझे इससे लगाव हो गया था, तो सोचा जबाब पूरी तरह से ठीक हो जाएगी तब कहीं जाने दूँगी।
लेकिन कल रात कुछ लोगो इसकी तस्वीर लेकर ढूढ़ रहे थे.... वो यहाँ नेता और बहुत बड़ा गुंडा है.... सतीश पोदार
लेकिन हॉस्पिटल में मैं इसे नहीं ले गयी थी क्योंकि.... जिस हालत मे मिली थी... उसमें पुलिस कम्प्लेन करनी होती और मुझे नहीं पता था की केसे और किस हालत मे ये यहाँ पहुंची.... इसलिए अपने क्वाटर मे ले आयी.... और यहाँ 35 सालों से काम कर रही हूँ इसलिए डॉक्टर मैडम को अपनी बेटी बता कर यहाँ सबसे छिपा कर इलाज करवा रही हूँ।
लेकिन अब तुमलोग इसे ले जाओ.... मैं बूढ़ी इसकी रक्षा उन हैवानो से नहीं कर सकती।
पहले से अब बेहतर है और ये सभी दवाई इसे छः महीने खिलाते रहना। शारीरिक तोर पर ठीक हो जाएगी और मानसिक तोर पर तो समय ही इसे संभाल लेगा।
दीक्षा उसका हाथ पकड़ कर कहती है.... आपका बहुत बहुत शुक्रिया, जहाँ दुनिया मे अपने लोग धोखा देते है, वहाँ आप जैसे भी इंसान होते है जो किसी अनजान की मदद करते है।
"अरे ऐसे क्यों कहती हो बिटिया.... इसे हमने दिल से अपनी बिटिया माना है... बस इसका ध्यान रखना।"
दीक्षा हाँ मे सर हिलाती है और अपने भाई दिव्यांश को फोन करती है कहाँ हो तुम..... जी दी बस पहुंचने वाला हूँ। दिव्यांश (दीक्षा का छोटा भाई ) सबकी नजरों मे वो दिल्ली मे अपनी पढ़ाई कर रहा है। लेकिन दीक्षा ने उसे देहरादून मे पढ़ने भेज रखा था।
दीक्षा तूलिका के माथे को चूमती हुई.... सोचा नहीं थी की तुझे ऐसी हालत मे देखूगी। फिर रितिका से तु, दिव्यांश के साथ इसे लेकर देहरादून चली जा। अभी तीन महीने और बचे है, दिव्यांश की पढ़ाई खत्म होने को..... एक महीने है,वहाँ तूलिका के साथ रहना..... और ये ले मेरा कार्ड इसमें पैसे मे देती जाउंगी फिलहाल इतने है की..... काम चल सके।
"मैं... लेकिन मैं केसे दीक्षा... घर पर भाई... भाभी।"
दीक्षा जो बहुत कम गुस्से मे आती है और जबाब आती है तो हर किसी को उसे देख कर डर लग जाता है.... और रितिका तो शुरू से ही थोड़ी भोली है।
"देख तो लिया परिवार ने क्या हाल किया है.... देख इसे बेजान लाश बन गयी है.... इसके तो माँ -बाप ने इसकी शादी की थी ना..किसी सतीश ठाकुर से..... देख नतीजा.... और कौन लड़ेगा.... उससे तु.... या मैं.... किसकी बदौलत..... इसके परिवार की बदौलत.... जो फिर इसे उस भेड़ीयें के पास भेज दे। और तु किस भाई और भाभी की बात कर रही है.... एक अधेर उम्र के आदमी के साथ तेरी शादी तय कर दी.... और वो भी तेरे साथ कुछ ऐसे करे तो।
मेरे पास तुम दोनों के आलवा कोई नहीं है.... परिवार के नाम पर।
इसलिए तु जा रही है यहाँ से।"
"और तु नहीं आएगी हमारे साथ "।
मैं बहुत जल्द आउंगी लेकिन अभी नहीं.... अगर इस तरह से हमें तीनों गायब हो गए तो.... और कोई ढूढ़े या नहीं ढूढ़े..... ओमकार जयचंद मुझे जरूर ढूढ़ लेगा इसलिए मेरे आने का इंतजार सही वक़्त पर करना। मैं वहाँ सब कुछ संभाल लुंगी। देहरादून मे हमें ज्यादा दिन नहीं रुक सकते बस कुछ वक़्त..... फिर दिव्यांश अपनी स्टडी के लिए लन्दन चला जायेगा। और तब तक कोई सुरक्षित जगह ढूढ़ लुंगी।"
अब तुम लोगो जाओ। दिव्यांश गाड़ी के साथ था.... तूलिका को गोद मे दिव्यांश ने उठाया और गाड़ी मे ले लिया उसके साथ रितिका बैठ गयी। नम आखों से दोनों ने एक दूसरे का ख्याल रखने का बोल अपने अपने रास्ते चली गयी।
एक हफ्ते बाद..... घर के बाहर कुछ लोगो की आवाज़ आ रही थी..... दीक्षा... दीक्षा.... और यें थे.... महेश शर्मा और उनकी पत्नी दीपिका शर्मा और रमन अग्रवाल और प्रियंका अग्रवाल.... साथ मे प्रियांशु और सतीश पोदार कुछ लोगों के साथ... कौशल्या सदन के बाहर..... दीक्षा को आवाज़ दिए जा रहे थे।
दीक्षा का सभी परिवार बाहर उनलोगों को देख..... कुंदन जी कहते है.... अंदर आकर बताईये की क्या बात है..... सभी गुस्से मे अंदर आते है.... दीक्षा एक तरफ खड़ी थी..... क्योंकि उसे पता था की यें लोग क्यों आये है....
दीपिका और प्रियंका... दीक्षा की बाजु पकड़ कर..... बता तूलिका कहाँ है.... रितिका कहाँ है।
सतीश और प्रियांशु भी जोर से कहते है की..... मेरी पत्नी.... मेरी मंगेतर को तुमने कहाँ छिपाया है....
कुशेश्वर जी जोर से चिल्लाते हुए कहते है.... की आप लोगो ठीक से बतायेगे की बात क्या है।
तब महेश और रमन कहते है..... मैं तूलिका पिता हूँ 25 दिन पहले मैंने अपनी बेटी की शादी की थी इनसे.... सतीश ठाकुर लेकिन पंद्रह दिन पहले वो अपने ससुराल से भाग गयी है।
मैं रितिका का भाई हूँ उसका भी पंद्रह दिन से कोई खबर नहीं है। दीक्षा वो दोनों की दोस्त है और इसे जरूर मालूम होगा की वो दोनों कहाँ है.। महेश जी दीक्षा के आगे हाथ जोड़ कर कहते है की मैं तेरे पैर पड़ता हूँ बता दे मेरी बेटी कहाँ है.... हमारी घर की इज्जत अब तेरे ही हाथ मे है.....मै तेरे पिता सामान हूँ बेटी उसी का मान रख ले।
सतीश तेज आवज मे, अपनी ऊँगली दिखा कर.....बोलते हुए...कहता है की... झूठ बोलने की कोशिश मत करना.... वरना तुम मुझे जानती नहीं।
दूर से कम्या, कृतिका मजे ले रही थी।
दीक्षा गुस्से मे अपनी आँखे.... सतीश को दिखाते हुए और उसकी बढ़ी ऊँगली को मरोड़ कर.... सतीश की हल्की चीख निकल जाती है... अपनी बात कहती है..... मुझे तो आँख दिखाने की कोशिश मत करना और मुझे नहीं जानना है की तुम कौन हो। फिर प्रियांशु के पास आकर.... क्या मै आपको जानती हूँ.... या आपकी मँगनी मे.... मै आयी थी।.... नहीं ना....
प्रियांशु ना मे अपने सर हिला कर जवाब देता है।
फिर वो दीपिका और प्रियका के पास आकर कहती है, "आंटी जी और भाभी जी..... आप दोनों यें बताईये की इस 25 दिन या उससे पहले मै आपके घर आयी थी तूलिका या रितिका से मिलने।..... जब मे तूलिका की शादी कब हुई , किसके साथ हुई.... शामिल नहीं थी तो मुझे केसे मालूम होगा की वो दोनों कहाँ है.....
गुस्से मे अपनी बात को चबा कर कहती है और अंकल आप उसके पिता है और आप उसके भाई.... आप दोनों ढूढ़ये और साथ मे अपने दामाद और होने वाले बहनोई को भी लेते जाईये।
मेरे पास आकर और ऐसे चीख कर.... सतीश और प्रियांशु को देखते हुए.... और मुझे धमकी देकर आपको तूलिका और रितिका मिल जाती है तो रोज आईयेगा और चिखिये।
लेकिन उससे सच नहीं बदल जायेगा की..... मुझे नहीं मालूम है... जबाब से मेरी शादी तय हुई है.... मै वैसे भी कहीं बाहर नहीं जाती हूँ।अब आप सब जा सकते है तमाशा खत्म हुआ। कहते हुए.... अपने कमरे मे चली जाती है
सभी अपना सा मुँह लेकर चले जाते है।
कमरे मे आकर दीक्षा जोर से सांस ले खुद को सम्भलती है, कुछ दिनों से उसको अपनी तबियत भी ठीक नहीं लगती और इधर सारी परेशानी से उसे बेचैनी हो रही थी..... अभी तक उसे ओमकार से पीछा छुड़ाने का कोई तरीका नहीं मिल पा रहा था.
शादी का दिन जैसे जैसे करीब आ रही थी..... इधर कम्या..... परेशान था तो उधर दीक्षा.....
शादी के दस दिन पहले... दीक्षा को किसी का फोन आया..... दीक्षा उससे मिलने गयी.....और वो लड़का... आगे आकर
"नमस्ते दी केसे हो आप " दीक्षा उसे गले लगा कर..... कहती है केसे हो दीपक.... हाँ यें और कोई नहीं तूलिका का सौतेला भाई था, लेकिन तूलिका से सगी बहन से भी ज्यादा प्यार करता था ".
मै ठीक हूँ दीदी आपने जो मगवाया था वो ले आया हूँ..... इसमें रितिका दी की भी पेपर्स है.
तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया दीपक मेरी मदद करने के लिए। दीपक रोते हुए कहता है की शुक्रिया किस लिए दी, जिस बहन की रक्षा मै नहीं कर सका..... ऐसे भाई हूँ मै।
दीक्षा उसे समझाते हुए कहती है..... कुछ चीजों पर हमारा बस नहीं चलता। तुम सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो और अंकल, आंटी का भी ख्याल रखना। अब मै चलती हूँ। कहती हुई जैसे आगे बढ़ी.... बेहोश होकर गिर गयी लेकिन दीपक ने तब तक उसे पकड़ लिया।
"दी... दी.... क्या हो गया आपको.... जल्दी से एक ऑटो रुका कर, उसे हॉस्पिटल ले गया।
जब से दीक्षा घर से निकली थी उसके पीछे कम्या और कृतिका लगी हुई थी क्योंकि शादी के दस दिन ही बचे थे और उन्हें शादी तुड़वानी थी। दोनों हॉस्पिटल पहुंच गयी।
दीपक डॉक्टर के पास आकर यें मेरी बहन है और यें अचानक बेहोश हो गयी है। डॉक्टर उसे बाहर रोक कर.... अंदर दीक्षा को चेक करती है और कुछ टेस्ट करती है।
कुछ देर बाद बाहर आ कर.... आपकी बहन एक मंथ प्रेग्नेंट है.... अभी मेडिसिन दे दिया है और यें बहुत कमजोर है तो इस हालत मे इनका ध्यान रखिये बोल कर चली जाती है।
दीपक सदमे मे चला जाता है.... दीक्षा के पास आ कर उसके होश मे आने का इंतजार करता है।
यें खबर दोनों बहन सुन कर ख़ुशी से पागल हो जाती है की जिस मौक़े की तलाश मे थी वो उसे मिल गया। और दीक्षा की मेडिकल रिपोर्ट हॉस्पिटल स्टॉफ से कुछ पैसे देकर ले लेती है और ख़ुश होकर घर निकल जाती है।
इधर दीक्षा को जब होश आता है तो खुद को हॉस्पिटल मे देख कर परेशान हो जाती है और बगल मे दीपक को देखती है। मुझे यहाँ क्यों लाये हो क्या हुआ है मुझे। दीपक बिना कुछ कहे उसके हाथ मे रिपोर्ट दे देता है, दीक्षा नासमझी से उसे देखती हुई रिपोर्ट पढ़ती है.... रिपोर्ट पढ़कर उसके होश उड़ जाते और दीपक को देख अपनी नजरें झुका लेती है।
दीपक उसे ऐसे शर्मिंदा होते देख कहता है की, "दी मै आपसे कुछ नहीं पूछुंगा... क्योंकि मुझे भरोसा है की आपने कभी कोई गलत काम नहीं किया होगा। डॉक्टर ने कहा है की अभी आप बहुत कमजोर है और ऐसी हालत मे आपको अपना ध्यान रखना चाहिए।
चलिए आपको घर छोड़ दू।....
नहीं दीपक मै खुद को संभाल लुंगी.... तुम बस एक बात मेरी मानना, हो सके तो जितनी जल्दी हो यें शहर अपने माँ पापा के साथ छोड़ देना।..... आगे सवाल मत पूछना कहते हुए घर निकल जाती है।
घर मे पहुँचती उससे पहले ही दरवाजे पर रायचंद की गाड़ी देख हैरान हो जाती.... उसे कुछ ठीक नहीं लगता इसलिए पीछे के रास्ते से घर की तरफ जाती है और खिड़की की ओट मे छिप जाती है..... अंदर ओमकार.... गुस्से मे सब पर चिल्ला कर सामान इधर उधर फेकता है और कम्या का गर्दन पकड़ कर कहता है..... अगर यें रिपोर्ट झूठी हुई तो तुमसे मुझे कोई नहीं बचा सकता.... कम्या दर्द से खांस रही थी क्योंकि ओमकार ने बहुत जोर गला उसका दबा रखा था। चंदना उसके हाथ को छुड़ाते हुए कहती है.... आप पहले इसका गला छोड़िये.... आपने अपने आदमी भेजे है ना..... वो आपको बता देगा की हमें सच बोल रहे है या झूठ।
ओमकार का फ़ोन बजता है उधर से बातें बोली जाती है। कहाँ है वो.... गुस्से मे... बुलाओ उसे.... उसकी हिम्मत केसे हुई किसी और के पास जाने की... ओमकार को गुस्से मे देख सभी घबराते हुए..... अभी तक वो नहीं आयी है.....
ओमकार..... उसका इंतजार मै यही करुँगा..... उसने रायचंद पर कीचड़ उछाला है उसका हिसाब तो उसे देना होगा।
इधर कुशेश्वर जी और कौशल्या जी.... अपना हाथ सर पर रख कर..... कही मुँह दिखाने लायक नहीं रखना उस लड़की ने.... आज से वो हमारे लिए मर चुकी है।और रायचंद के आगे हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगते है।
ओमकार आपके माफ़ी मागने से बात खत्म नहीं होगी। अब मै उससे शादी नहीं करुँगा लेकिन जबाब तक वो जिन्दा रहेगी मेरी बिस्तर पर होगी।उसके पेट मे जो पाप है उसे मै अपनी हाथों से मार डालूँगा। दीक्षा सबकी बात सुन..... अपनी मुँह पर हाथ रख लेती है और तेजी से अपने मोबाइल से सिम निकल कर तोड़ देती है और मोबाइल को पानी मे फेक देती है.... सबसे बचती हुई वहाँ से निकल जाती है....
और कम्या को देख कर..... इसे तैयार कीजियेगा.... बीस तारीख को शादी जरूर होगी।
वहाँ से सीधे देहरादून पहुँचती है.... दिव्यांश लन्दन जा चूका था। देहरादून मे इस समय सिर्फ रितिका और तूलिका ही थी।इतने समय मे तूलिका अब थोड़ी ठीक होने लगी थी.... वहाँ पहुंच कर.... दरवाजा नॉक करती है।
रितिका तूलिका से इतनी रात मे कौन होगा। बार बार नोक होने पर घबराते हुए दरवाजा खोलती है। तो दीक्षा खड़ी थी। बहुत ज्यादा कमजोर और पीली हो गयी थी।
रितिका उसे देख अंदर करती है, "दीक्षा तुझे क्या हो गया है और इतनी रात अचनाक.....
"मेरे पास अभी कुछ कहने का वक़्त नहीं है.... सामन पैक करो और अभी निकलना है.... सब रास्ते मे बताउंगी।" तूलिका को देख उसे गले मिलती है.... केसी है तु??? तूलिका कोई जवाब ना दे मुस्कुरा देती है। दीक्षा की आखों मे उसकी हालात देख...नमी आ जाती है..... लेकिन खुद को सम्भलते हुए। मोबाइल उन दोनों के तोड़ देती है.....
फिर नया मोबइल निकल कर मैप सेटककृति है..... और गाड़ी मे तीनों बैठ जाती है।
"दीक्षा यें गाड़ी किसकी है और हमें कहाँ जा रहे है "....
"सेकंड हैंड गाड़ी है..... और हमें उदयपुर जा रहे है।
तीनों सात साल पहले उदयपुर आयी थी। तूलिका.... दीक्षा की प्रेगनेंसी के साथ साथ खुद को फिर से संभालने लगी थी। घर का खर्च दीक्षा की हैकिंग से और रितिका ने लॉ फार्म ज्वाइन कर लिए थी साथ साथ आगे की पढ़ाई शुरू कर लिए थी।
तूलिका एक गायनी डॉक्टर थी लेकिन उस हादसे के बाद उसने जीना छोड़ दिया था... दीक्षा की प्रेगनेंसी और दक्षांश के जन्म के साथ..... तूलिका एक नए व्यक्तित्व के साथ अपनी प्रेक्टिस शुरू कर चुकी थी।
दक्षांश के तीन साल बाद..... दीक्षा ने भी प्रजापति कंपनी ज्वाइन कर ली थी। तीनों की जिंदगी का सुकून था दक्षांश।.....दीक्षा ने रितिका और तूलिका को होटल वाली घटना बता दी थी और यें भी बताया की उसे मालूम नहीं की वो इंसान कौन था।
वर्तमान समय
आज सात साल बाद दक्ष की बातें और उसकी छुवन भरी अहसास ने दीक्षा को फिर से अपनी अतीत मे भेज दिया।
तूलिका उसके कंधे पर हाथ रख कर.... अगर तु ने अपनी समझदारी नहीं दिखाई होती तो ना जाने हम तीनों किस दलदल मे होते। और भला हो उस इंसान का जिसके कारण तुझे उस ओमकार रायचंद से छुटकारा मिला और हमतीनो को जीने की वजह मिली... तीनों बहुत प्यार से दक्षांश को देखती है।
फिर तूलिका कहती है की.... तुमने बताया नहीं तु अचानक क्यों परेशान हो गयी।
दीक्षा बात को बदलते हुए कहती है,"अरे वो जो नया सीईओ आया है..... जीना हराम कर दिया है उसने सिर्फ आधे दिन मे।
रितिका पूछती है," हैंडसम तो नहीं है तुम्हारे सीईओ।
ओह वकील की दुकान.... दिमाग़ मत लगा और वो मेरा नहीं है.... अब चल सोने.... तु ना सिर्फ देखने मे ही भोली है।
तीनों मुस्कुराते हुए एक दूसरे को गुडनाइट बोल कर अपने अपने कमरे मे चली जाती है।
दीक्षा, बिस्तर पर सो रहे दक्षांश के माथे को चुम लेती है और खुद से कहती है.... ना जाने आप की तरफ मै खुद को रोक नहीं पाती हूँ। लेकिन मुझे खुद को रोकना होगा। दिल पर काबू करना ही होगा।मै यें नहीं भूल सकती की..... मै बिन ब्याही माँ हूँ, जिसे यें भी नहीं मालूम की उसके बच्चे का पिता कौन है।.... नहीं.... नहीं... मै..... इन सब मे नहीं पड़ना चाहती..... मै अपनी जिंदगी मे अपने बच्चे के साथ खुश हूँ।
कंटिन्यू....