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चैप्टर 4

माँ पापा सेमरिया से कड़कड़ा आ गए। मेरे चाचा के बेटे की तबीयत बहुत ही खराब थी। राजू तो पीलियाग्रस्त था ही ऊपर से चाचा चाची दोनों को सिकलींग भी था। चाची से ही राजू को पीलिया हुआ था । उस समय एसटीडी से बचने के उपायों के बारे में कुछ जानकारी नहीं थी। उसको ब्लड चढ़ाया जाता तब वह लगभग 1 महीने तक ठीक से रहता उसके बाद फिर से उसका हाथ पैर फूलने लग जाता। इसलिए हर महीने उसे बॉटल चढा़या जाता। इस बार बॉटल चढ़ाने में थोड़ी देरी हो गई इसलिए उसकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गयी था । इसलिए उसकी मौत हो गई।राजू की जिद करने पर उसके लिए तीन पैर वाला खाट बनाया गया था ।उसी खाट पर सुलाकर उसे अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। घर पर सभी रो रहे थे मैं भी रो रही थी ।नाना-नानी भी इंद्राणी को साथ में लेकर आए थे ।घर में मायूसी छाई रहती ।चाचा में थोड़ी चिड़चिड़ाहट के भाव आने लगे। शायद राजू की मौत के कारण ऐसा था । चाचा को छोटी छोटी बात पर गुस्सा आ जाता और वे अपना गुस्सा चाची पर निकालते थे। चाची गर्भवती थी। कुछ दिनों में चाची का एक और बेटा हुआ वह भी पीलिया से ग्रसित और सिकलिंग से पीड़ित था। यह भी एकदम राजू की तरह ही था। माँ भी गर्भवती थी। घर में थोड़ा माहौल बदलने लगा ,थोड़ी खुशियां आने लगी ।

उसी समय हमारा घर बन रहा था। जिस जगह पर घर बन रहा था वहाँ पर जामुन का बहुत बड़ा पेड़ था जिस पर बहुत सारे जामुन के फल फले रहते। पास में वहीं पर ही केले के बहुत सारे पेड़ थे और एक कुआँ भी था जिसका पानी माँ पीने के लिए ले जाती थी। जामुन का फल कुएं में तथा आसपास गिरा रहता । बच्चे वहां पर जाम खाने आया करते। सब जामुन खाते थे ,कोई कुछ नहीं बोलता था। घरवाले चाहते तो जामुन बेच सकते थे पर नहीं बेचते थे। जामुन के पेड़ पर बहुत सारी चींटी रहती थी तो लोग बस गिरा हुआ जामुन उठा पाते थे। कोई पेड़ पर चढ़ नहीं पाता था। घर बनाने के लिए जामुन के पेड़ को काट दिया गया और केले के भी कुछ ही पेड़ रह गए। मां गर्भवती होते हुए भी बहुत काम करती था।

8 अप्रैल 2009 को मां सिर पर रेत से भरा टसला उठाकर चल रही थी। अचानक से मां का पेट दर्द बहुत बढ़ गया। मां को घर लाया गया। लगभग सात-आठ बजे मेरे भाई दीनदयाल का जन्म हुआ। दाई (धात्री) जब मां के पेट को दबा रही थी तो मैं पर्दे से झांक झांक कर देखे जा रही थी । भाई जब हुआ तब उसको धान से भरे सूपे में लिटा दिया गया था । जिस तरह से आरती दिखाई जाती है उसी तरह भाई को भी सभी घर वालों को दिखाया जा रहा था और सब लोग भाई का पैर छू रहे थे । दाई भाई को टोकरी से ढक दी और थोड़ा सा पैरा जलाकर उसके चारों ओर 3 बार घुमाई और मुंह से उच्चारण कर रही थी -' तीतरा का घर जल रहा। ' 3 बहनो के बाद भाई हुआ था इसलिए शायद दाई तीतरा (तीन) का घर बोल रही थी । मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों बोल रही थी ।

जन्मोत्सव के एक हफ्ते बाद मां का ऑपरेशन हुआ ताकि और बच्चे न हो। नानी इंद्राणी को साथ लेकर मां का ख्याल रखने आई थी और दादी भी मां का ख्याल रखती थी । माँ को खाने के लिए बस दाल रोटी दिया जाता। माँ को दाल रोटी अच्छी नहीं लगती था तो मां उसको मुझे दे देती थी। मैं भी बस रोटी खाकर दाल कोटने में डाल देती थी( कोटना पत्थर से टप के आकार की बनी होती थी जिससे पशुओं को पानी पिलाया जाता)। उस समय मैं मां के साथ सोने के लिए रोती थी लेकिन मुझे पापा के साथ सुला दिया जाता। पापा अपने साथ एक डंडा लेकर सोते थे। मैं बीच-बीच में मां के पास जाने की कोशिश करती पर जा नहीं पाती थी। इंद्राणी नानी के साथ मां के बगल वाले पलंग में सोती थी और दीदी दादा के साथ । दादा के मुँह से बदबू आता तो दीदी उनके तरफ पीछे करके सोती थी। पापा मुझे सुलाने के लिए कई सारी कहानी सुनाते थे ।मुझसे चुटकुला पूछते थे जैसे कि ' एक सुपा लाई देशभर बगराई ' , खोड़ोड़ खोड़ोड़ खोड़री छः आँखी तीन बोररी ' ,तीन गोड़ के तितली नहा धो के निकली '। माँ जब ठीक होने लगी तो नानी इंद्राणी को लेकर सेमरिया चली गई । हम लोग इधर घर बनाने में जुट गए।