ये कहानी है राहुल शर्मा की जो एक धार्मिक परिवेश में रहनेके बवाजुत भी भगवान में वो भरोसा नहीं करता था उसको लगता था भगवान इंसानों के मन मे होता है मूर्तियों या मंदिरो में नहीं वो सिर्फ कर्म में भरोसा रखने वालो में से था इसीलिए उसके धर्म और समाज के लोगो से बोहोत कटु बाते और निंदा मिलती थी पर उसके बाबजुत उसने कैसे अपने जीवन को आगे बढ़ाई और अपने समाज को भी आधुनिकता के रंग से वाकिफ कराया वोही इस कहानी में प्रकाशित हुआ है।