ये कहानी है राहुल शर्मा की जो एक धार्मिक परिवेश में रहनेके बवाजुत भी भगवान में वो भरोसा नहीं करता था उसको लगता था भगवान इंसानों के मन मे होता है मूर्तियों या मंदिरो में नहीं वो सिर्फ कर्म में भरोसा रखने वालो में से था इसीलिए उसके धर्म और समाज के लोगो से बोहोत कटु बाते और निंदा मिलती थी पर उसके बाबजुत उसने कैसे अपने जीवन को आगे बढ़ाई और अपने समाज को भी आधुनिकता के रंग से वाकिफ कराया वोही इस कहानी में प्रकाशित हुआ है।
रमेश खेत से जल्दी जल्दी घर के लिए दौरा क्यूंकि उसकी बीवी की हालत गंभीर हों रही थी क्योंकी उसकी बीवी का आज बच्चा पैदा करने का दीन था रमेश जल्दी जल्दी आके अपनी बीवी को अपने एक दोस्त की गाड़ी में पास की हॉस्पिटल ले गया रमेश बोहोत चिंता में था की उसको लडकी होगा या लड़का वो चिंता के मारे पूरे हॉस्पिटल का चक्कर लगा रहा था थोड़े समय बाद डॉक्टर ने उसको खुश खबरी दिया उसको एक लड़का हुआ था लड़का बोहोत ही तंदुरस्त और खुबसूरत था उसे देख जैसे रमेश की आंखों से खुशी के आंसू टपकने लगे और रमेश को ऐसा लगा था जैसे की उसकी पूरी दुनिया वो ही है। असल में रमेश और उसकी बीवी रेशमा को बिबाह के बोहोत सालो बाद तक बच्चा नहीं हुआ था इसीलिए दोनो ने दुर्गा मां से बोहोत मन्नते मांगी तब जाके आज दो साल बाद उन्हें एक बेटा हुआ दोनो बोहोत ही ज्यादा खुश थे रमेश ने पूरे समाज को बुलाकर दुर्गा मां की पूजा करवाई और उसका नामकरण करवाया रमेश ने उसका नाम राहुल रखा ।