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बावळा

यह कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है जिसमें कहानी के एक पात्र का ही इसे लिखने के लिए प्रोत्साहित करने में योगदान रहा है. यह पूर्णतः हूबहू वैसी नहीं है लेखिका ने कुछ काल्पनिक बदलाव भी किए हैं और काल्पनिक भाव भी समाहित किए हैं.

sharmaarunakks · Realistic
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बावळा, आशा से कहता है

"शाम को घर लौट कर ही आता हूं."

क्या उसका घर लौट कर आना उसकी शराफत का परिणाम है? पत्नी के लिए संतुष्टि का भाव हो सकता है! पत्नी अपने पति के बदलते भाव को पहचानती है. पर कुछ नहीं कर पाती है, मन-मसोस कर रह जाती है.

आशा ने फ़ोन रखने के लिए पूछा तो बावळे ने उसे फिर फ़ोन करूँगा कह फ़ोन रख दिया. बावळे के फ़ोन की उम्मीद आशा को नहीं थी. वह जानती थी कि बावळा अपनी सखी के प्यार में खोया है. उसे खुद की सुध-बुध नही है वह किसी और के विषय में कैसे सोच सकता है. आशा की आँखे भर आई और न जाने कब दो बूँद उसके गालों पर गिर गई.

एक दिन बावळा रास्ते में मिल गया. वह बहुत खुश नज़र आ रहा था. हर बात में जोर-जोर से हंस पड़ता. आशा को उसकी हंसी में छिपा दर्द साफ़ दिखाई दे रहा था किंतु वह उसके लिए कुछ भी नहीं कर सकती थी सिवाय अपनापन दिखाने के.