तन्नू अपने खयालों में ये सोचता रहा कि आखिर उस तहखाने में ऐसा क्या होगा जिससे सभी हवेली के नौकर डरें हुए हैं क्यूँ न तहखाने को एक बार खोलकर देखा जाए। "मैं कल ही उस तहखाने को खोलता हूँ", तन्नू ने मन ही मन सोचा।
शाम हो चली थी तन्नू ने अपनी अम्मी को दवाई खिलाई और हाल में चिमनी के पास आकर बैठ गया। निहारिका तुरंत उसे चाय की प्याली देती है। तन्नू निहारिका की तरफ बड़े प्यार से देखता है और पूछता है "घर में कौन कौन है?"
निहारिका ने जवाब दिया, " कोई नहीं है नवाब साहब"।
तन्नू चाय की चुस्की तो ले ही रहा था साथ ही निहारिका की कमर को देख रहा था। उस गदराए हुस्न की मलिका की कमर बिलकुल चिकनी नज़र आ रही थी। वो उसे हसरत भरी निगाहों से देख रहा था और उसके मन में उसे छू लेने का विचार आ रहा था। इतने में कमरे में शहनाज़ आ जाती है और तन्नू की तरफ देख कर कहती है "क्या हुआ नवाब साहब, क्या खिचड़ी पक रही है दिमाग में", तन्नू ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा और कहा "कुछ नहीं बस यूँही चाय की चुस्की ले रहा हूँ", " तुम्हें भी पीनी हो तो बनवाऊँ" तन्नू ने अपनी नज़र चुराते हुए कहा।
"रहने दीजिए, मैं ख़ुद ही बना लूँगी" शहनाज़ ने तन्नू की ओर देखते हुए कहा। इतने में तन्नू ने उससे पूछा "अच्छा शहनाज़ क्या कल तुम मेरे साथ तहखाने में चलोगी "," न बाबा न, क्या मुझे पागल कुत्ते ने काटा है " शहनाज़ ने बोला।" तुम भी क्या बच्चों जैसी बातें करती हो, आज के ज़माने में तुम भूत प्रेत जैसी बातें करती हो" तन्नू ने निडरता दिखाते हुए कहा।
"मैं आपके साथ चलने को तैयार हूँ " निहारिका ने कहा।" बहुत अच्छा हम तीनों कल ही तहखाने में चलेंगे इस बात का पता लगाने की आखिर उस तहखाने में ऐसी क्या चीज़ छुपी हुई जिससे घर के बाकी नौकर इतना डरे हुए हैं ", तन्नू ने उन दोनों नौजवान लड़कियों से कहा जिनके चहरे पर गंभीरता के साथ डर साफ़ झलक रहा था।
रात काफ़ी हो चली थी खाने की टेबल पर एक दूसरे को गुड नाइट कहने के बाद शहनाज़ और तन्नू अपने अपने कमरों में सोने चले गए। तन्नू ने अपने कपड़े बदले और नाइट सूट में बिस्तर पर सोने चला गया। कुछ देर बाद तन्नू की नींद खुली उसने अपनी घड़ी में देखा तो तीन बजे हुए थे। उसे ज़ोर से प्यास लगी थी लेकिन बगल में रखे जग में पानी ख़त्म हो गया था। उसने अपने मन में सोचा "बड़ी अजीब बात है, अभी तो पानी भर के रखा गया था सोने से पहले एक बार भी नही पिया तो फिर ये पानी कैसे खत्म हो गया", तन्नू ने इतना सोचा ही था फिर उठकर किचन की ओर बढ़ने लगा कि अचानक उसे किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई पड़ने लगी उसने पहले तो इस बात को नज़रअंदाज़ किया लेकिन फिर जब आवाज काफ़ी ज़ोर से आने लगी तो उसने उस आवाज़ का पीछा किया। वह कदमों की आहट उसे तहखाने के पास ले गई। कदमों की आहट इतनी साफ़ सुनाई पड़ रही थी कि कोई भी दूर से सुन ले और दरवाज़े के नीचे दरार से लाल रोशनी चमकती हुई दिखाई पड़ रही थी। तन्नू तहखाने के दरवाज़े के निकट आया तो कदमों की आहट थोड़ी धीमी पड़ गई, उसने जैसे ही दरवाज़े पर कान टिकाए अचानक एक खौफनाक हाँथ बाहर निकल कर आता है दरवाज़ा तोड़ते हुए और तन्नू को जकड़ लेता है। तन्नू घबराहट में अपनी आँखे बंद कर के ज़ोर से चीखता है "बचाओ, बचाओ", इतने में उसकी आँखें खुल जाती हैं तो देखता है निहारिका खिड़की का पर्दा हटा रही थी और सुबह का सूरज निकल चुका था। उसने तन्नू की ओर देखते हुए कहा "किसने पकड़ लिया नवाब साहब, आपको किससे बचाना है", तन्नू ने बात को बदलते हुए कहा "जिसे पकड़ना है वो तो कभी पकड़ती नहीं है जिसे नहीं पकड़ना होता है वो सपनों में भी पकड़ लेता है"। तन्नू का शरारत भरे जवाब का मतलब शायद निहारिका समझ गई थी इसलिए उसकी ओर मुस्कुराते हुए बोली" अब जल्दी से तैयार भी हो जाइए और नाश्ते की टेबल पर आ जाइए, याद है न आज तहखाने की छानबीन करनी है "।
तन्नू तैयार होकर टेबल पर पहुंच जाता है जहाँ शहनाज़ पहले से ही मौजूद थी।
तन्नू ने शहनाज़ को गुड मॉर्निंग कहा वापसी में शहनाज़ ने भी उत्तर दिया। नाश्ता ख़त्म होते ही तीनो पहले तन्नू की अम्मी को देखने गए उनकी हालत में सुधार तो था लेकिन वह किसी से बात चीत नहीं करतीं थीं। निहारिका और शहनाज़ ने उन्हें दवाईयां देकर आराम से बिस्तर पर लेटा दिया क्यूँकि उनकी दवाइयां ऐसी थीं कि किसी भी इंसान को कुछ देर में सुला देतीं।
उनके सो जाने के बाद तीनों तहखाने की ओर चल दिए। हो सकता है कि इस तहखाने में कुछ ऐसा राज़ छुपा हो जिसे आज तक कोई ढूँढ न पाया हो, शायद कोई खज़ाना हो या छुपा हुआ रहस्य जो तीनों को अमीर बना दे, हो सकता है कि लोगों की बात सही हो और यहाँ पर कोई भूत प्रेत हो, या ये भी हो सकता है कि सिर्फ एक वहम है जो लोगों ने पाल रखा है तन्नू के मन में ये सारी बातें चल रहीं थीं जैसे ही जैसे वह तीनों तहखाने की ओर बढ़ रहे थे।
तहखाने के कमरे के बाहर एक बड़ा ताला लटका मिला तन्नू ने आसपास नज़र डाली तो देखा कोई ज़्यादा काम आने वाली चीज़ नहीं मिली बस एक लोहे की खंती रखी हुई थी उसने उस खंती को उठाया और तहखाने के कमरे के उस ताले को तोड़ दिया।
तन्नू ने तहखाने का ताला तोड़ वहाँ का दरवाज़ा खोला। निहारिका और शहनाज़ की हालत डर से खराब हो गई थी उन्होंने अपने अपने हांथों से कस कर पकड़ रखा था तन्नू को। तन्नू को भी उनके डर का अंदाज़ा हो गया था। पूरे तहखाने में धूल ने चादर चढ़ा रखी थी ऐसा लग रहा था मानो किसी ने सदियों से हाँथ न लगाया हो। चारों ओर दीवार पर मकड़े के जाल साफ़ नज़र आ रहे थे। तन्नू ने तहखाने में सामने रखी मेज़ पर देखा तो कुछ पुराने दस्तावेज रखे हुए थे, कुछ नक्शे थे और एक पेपर वेट भी था। निहारिका और शहनाज़ सामने रखी अलमारी खोल कर छान बीन कर रहे थे। उस तहखाने में कुल पाँच अलमारीयां थीं। तन्नू ने दस्तावेज की छान बीन से पता लगाया की उसके अब्बू शायद हिमालय की किसी गुफा के ऊपर काम कर रहे थे। कुछ दस्तावेजों से पता चला कि उस गुफा से उन्हें एक अमूल्य वस्तु प्राप्त हुई थी। उसका उन दस्तावेजों में ज़िक्र तो था लेकिन कहीं ये नहीं लिखा था वो क्या थी। तन्नू ने उन दस्तावेजों को अपने ओवर कोट के जेब में रख लिया और सामने की अलमारी की ओर बढ़ गया। सभी अलमारियों को देखने के बाद उसने सभी दस्तावेज एक जगह इकट्ठा किए वहीं थोड़ी दूर में एक बड़ा सा संदूक रखा हुआ था। उन तीनो ने उस पुराने संदूक को खोला उसमें एक कंकाल रखा हुआ था ऐसा लग रहा था काफ़ी पुराना है लेकिन उस संदूक के कंकाल का सिर गायब था। "आख़िर इसका सिर कौन ले गया होगा, और ये कंकाल यहाँ क्या कर रहा है", शहनाज़ ने अचंभित स्वरों में पूछा। तन्नू ने उसका उत्तर दिया "मुझे लगता है अब्बू और उनके दोस्त किसी प्रोजेक्ट पर हिमालय के पहाड़ों की गुफाओं पर गए थे वहाँ से उन्हें शायद ये कंकाल मिला होगा। यह कोई मामूली कंकाल तो है नहीं और इसे देखकर ऐसा लगता है कि काफ़ी समय से बर्फ़ में जमा हुआ होगा तभी इसके कोट में पानी से गलने के निशान हैं। "
" लेकिन नवाब साहब इसका सिर ग़ायब होने की क्या वजह हो सकती है," निहारिका ने तन्नू की ओर देखते हुए पूछा।" मुझे लगता है कि ये एक अंग्रेज का कंकाल है क्यूँकि इसके कपड़ों से तो यही पता चलता है, लेकिन ये बात तो मेरी भी समझ में नहीं आई कि इसका सिर कौन ले गया होगा और क्यूँ "। तन्नू ने कंकाल को ध्यान से देखा उसके कोट का आधा हिस्सा फंटा हुआ था। उसकी पतलून भी कई जगह से फंट सी गई थी। उसके पाँव में लॉन्ग बूट थे जो ज़्यादातर पहाड़ों पर चढ़ने वाले लोग ही पहनते हैं। तन्नू उन बूट को देखकर थोड़ी देर के लिये सोच में पड़ गया। फिर उन तीनों ने वहां से ज़रूरी कागज़ात बटोरे और तहखाने को बंद कर दिया। शहनाज़ एक नया ताला लेकर आई और उसने तन्नू को दे दिया तन्नू ने उस तहखाने के दरवाजे का कुंडा बंद कर के उसपे ताला लगा दिया।
तीनों तहखाने से मिले कागज़ात को लेकर हॉल में आए।
उन्होंने उन सभी दस्तावेजों को हॉल की एक बड़ी टेबल पर रखा। फिर तन्नू और शहनाज़ मिलकर उन दस्तावेजों की जांच पड़ताल करने लगे। निहारिका तन्नू की अम्मी के कमरे में उनका हाल पता करने चली गई।
तन्नू और शहनाज़ ने दस्तावेजों से पता किया कि वो कंकाल काफ़ी कीमती था जिसे तन्नू के अब्बू अपने इंतकाल से पहले ही इस तहखाने में लेकर आए थे
उस कंकाल का सिर काफ़ी कीमती और चमत्कारी था। तन्नू ने शहनाज़ की तरफ देखते हुए कहा "शायद उस कंकाल के सिर ग़ायब हो जाने की यही वजह थी कि वह चमत्कारी था लेकिन ऐसा कौन सा अंग्रेजी चमत्कारी कंकाल मिल गया था"? इतने में शहनाज़ ने कहा "मुझे लगता है कि उस कंकाल का सिर इस हवेली में आने के बाद ग़ायब हुआ था"। "यह बात तो तुमने बिलकुल सही कही लेकिन सिर ग़ायब किसने किया होगा ये अपने आप में एक पहेली है" तन्नू ने शहनाज़ से अचंभित भाव में कहा।
शाम हो चली थी सब कुछ देखते हुए तन्नू ने शहनाज़ से कहा" अच्छा अब चल कर नहा धोकर फ्रेश हो लिया जाए आज तहखाने की काफ़ी सफ़ाई कर ली है "। शहनाज़ भी उसकी बात मानकर अपने कमरे की ओर फ्रेश होने चली गई। दोनों फ्रेश होने के बाद डाइनिंग टेबल आ कर बैठ गए निहारिका उन दोनों के लिए कॉफी ले आई।
कॉफी पीते पीते शहनाज़ ने तन्नू से पूछा " क्या तुम्हें लगता है कि इस हवेली में इसी सिर कटे अंग्रेजी हुकूमत के सिपाही का भूत घूमता है"? तन्नू ने उसकी ओर देखते हुए कहा " तुम भी अजीब अजीब बातें करती हो, उस तेज़ लाल रोशनी का क्या जिसका ज़िक्र हवेली के सारे नौकरों ने किया था, आखिर वो लाल रोशनी उन सभी को तहखाने के रोशनदान से जलते हुए दिखने की क्या वजह हो सकती है "।" अगर उस कंकाल का सिर चमत्कारी है तो धड़ भी तो चमत्कारी होगा", निहारिका ने पूछा। तन्नू थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया उसके मन में ये विचार आ रहे थे कि जब से वो इस हवेली में आया है उसने दो बार उस तहखाने में किसी के कदमों की आहट सुनी है, लगातार दो रातों को एक जैसे ही सपने, घड़ी में तीन बजे का घंटा दिखाई देना, ये सारी चीजें किसी ओर इशारा कर रहीं थीं लेकिन तन्नू ने बात बदलते हुए शहनाज़ से पूछा "अगर तुम्हें उस कंकाल का सिर मिल जाए तो तुम क्या करोगी"? "अगर वो सचमुच चमत्कारी हुआ तो उससे बहुत सारी दौलत मांग लूँगी और इस दुनिया पर शहज़ादी बनकर राज करूंगी" शहनाज़ ने पलक झपकते ही जवाब दिया। दोनों मिलकर हंसने लगे। रात काफ़ी हो चली थी निहारिका ने दोनों का खाना डाइनिंग टेबल पर लगा दिया और ख़ुद तन्नू की अम्मी के लिए सूप लेकर उनके कमरे की ओर चली गई। शहनाज़ और तन्नू खाना खाने लगे।
डाइनिंग टेबल पर खाना खत्म होने के बाद तन्नू ने शहनाज़ को गुड नाइट बोला और निहारिका से अपने कमरे में पानी रखने का हुक्म दिया। निहारिका ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिला दी।
तन्नू ने अपने कमरे में जाकर नाइट सूट पहना और अपने बिस्तर पर लेट गया।
कुछ देर बाद निहारिका जग में पानी लेकर आई। तन्नू ने उसे अपने पास थोड़ी देर के बैठने को कहा निहारिका पहले तो थोड़ा घबराई लेकिन फिर पास ही कुर्सी पर बैठ गई। तन्नू ने उससे बिस्तर पर ही लेटे हुए पूछा " अच्छा निहारिका तुम इसी हवेली में ही रहती हो या कभी अपने घर भी जाती हो"। " जाती हूँ न नवाब साहब हर शनिवार को जाती हूँ और रविवार की शाम को वापस आ जाती हूँ" निहारिका ने तन्नू के प्रश्न का उत्तर दिया। "अच्छा कोई आशिक या मंगेतर है क्या तुम्हारा" तन्नू ने थोड़ा संकोच से पूछा।" नहीं नवाब साहब अब तक तो कोई आप जैसा कहाँ मिला " निहारिका ने शरारत भरे अंदाज़ में जवाब दिया जैसे वो जानती हो कि तन्नू ने ये प्रश्न उससे क्यूँ पूछा। तन्नू के चहरे पर मुस्कान खिल गई जैसे उसे किसी ख़ज़ाने की चाबी मिल गई हो लेकिन उसने अपने हाव भाव को काबू में रखते हुए निहारिका से कहा " अच्छा चलो अब तो मैं मिल गया हूँ, अब क्या ख़याल है"। निहारिका का चहरा शर्म से लाल हो चुका था उसने अपने चहरे को हाँथों से ढका और वहाँ से भागती हुई चली गई। तन्नू भी समझ गया लड़की हँसी तो फंसी उसका आधा काम हो चुका था बस अब इज़हार कर के आँखें चार और जिया बेकरार करना बाकी रह गया था। तन्नू ने ठण्डी आहें भरी और एक ग्लास पानी पिया फ़िर थोड़ी देर में सो गया।
रात का घनघोर अंधेरा बाहर छाया हुआ था और साथ ही उस पर कोहरे ने चादर चढ़ा रखी थी लेकिन शायद उस हवेली में किसी को चैन की नींद नहीं आ रही थी। कदमों की तेज़ आहट सुनकर तन्नू की नींद खुली। वो कुछ देर के लिए अपने बिस्तर पर ही लेट कर उन कदमों की आहट को सुनकर सोचने लगा। इतनी रात को कौन टहल रहा है हवेली में कहीं कोई चोर तो नहीं। वह अपने बिस्तर से उठा उसने अपना नाइट गाउन डाला और धीरे से अपने कमरे का दरवाज़ा खोला। तन्नू उन तेज़ कदमों की आहट का पीछा करने लगा। वह उसी जगह पहुँच गया लेकिन जो उसने देखा उस पर यकीन कर पाना शायद हर पढ़े लिखे युवक के लिए असंभव था। तन्नू ने देखा वही कंकाल हवेली में इधर-उधर घूम रहा था शायद वो अपना सिर ढूँढ रहा था।
तन्नू एक तरफ बड़ी सावधानी से छुप कर ये सब कुछ देख रहा था। एक ओर जहां उसके रौंगटे खड़े हुए थे वहीं दूसरी ओर उसके मन में सवाल भी था और वह ये था कि ये कंकाल उस तहखाने से बाहर कैसे आया वहाँ तो ताला लगा दिया था। तन्नू उस कंकाल का बड़ी सावधानी से पीछा करने लगा जैसे ही घड़ी ने तीन बजे का घण्टा बजाया वो कंकाल अपने तहखाने की ओर बढ़ने लगा। तन्नू भी उसके पीछे पीछे हो लिया। उसने देखा कि वह अंग्रेज का कंकाल अपने संदूक के अंदर जाकर लेट गया फ़िर संदूक अपने आप बंद हो गया और ठीक उसी तरह बंद हो गया हवेली के तहखाने का दरवाज़ा। तन्नू को बड़ी हैरत हुई ये सब देख कर। तन्नू सीढ़ियाँ चढ़ कर अपने कमरे में वापस आ गया और अपने बिस्तर पर लेट गया। लेट कर तन्नू ये सोचने लगा कि सब की बात सही साबित हो गई इस हवेली में हक़ीक़त में भूत है जो शायद रोज़ाना ही इस हवेली के चक्कर लगाता है शायद उसे अपनी खोपड़ी की तलाश है। यह सिर कटा कंकाल इस हवेली में तब तक घूमता रहेगा जब तक उसे अपना सिर नहीं मिल जाता लेकिन उस सिर को चुराया किसने होगा और क्यूँ चुराया होगा। शायद उस कंकाल की खोपड़ी कुछ ज़्यादा ही कीमती है उस कंकाल के लिए भी और उसे ढूंढने वाले के लिए भी।
तन्नू इसी सोच में सो नहीं पाया और देखते ही देखते सुबह हो गई। सवेरे होते ही उसने नाश्ता किया और सबसे पहले तहखाने में पहुंच गया लेकिन एक बार फिर वो हैरानी में पड़ गया उसने देखा कि तहखाने के दरवाजे पर ताला लगा हुआ है। उसने निहारिका को आवाज़ लगाई और उससे चाबी लाने को कहा।
निहारिका फौरन ही चाबी लेकर पहुंची उसने तन्नू को चाबी दे दी, तन्नू ने तुरन्त ही ताला खोल तहखाने का दरवाज़ा खोल दिया। निहारिका भी उसके साथ ही तहखाने में चली गई वो तन्नू को बड़ी हैरत से देख रही थी क्यूँकि तन्नू के माथे पर चिंता की लकीरें थीं। उसने तन्नू से पूछा "आप क्या ढूँढ रहे हैं नवाब साहब"? तन्नू ने उसे पिछली रात की सारी घटना बताई और उसे सुन निहारिका डर गई । तन्नू ने सबसे पहले उस संदूक को खोला जिसमें कंकाल रखा था उसने कंकाल का अच्छी तरह से निरीक्षण किया फ़िर उसने उस संदूक का अच्छी तरह से निरीक्षण किया। उसे ये लगा कि शायद संदूक में कोई ऐसा सुराग छुपा हुआ हो जो उस कंकाल का राज़ बताने में मदद करे लेकिन उसके हाँथ निराशा ही लगी। फिर दोनों ने मिलकर संदूक बंद कर दिया और तहखाने का अच्छी तरह से निरीक्षण करने लगे। निहारिका ने तन्नू से फ़िर एक बार पूछा "हमलोग क्या ढूंढ रहे हैं नवाब साहब"? तन्नू ने जवाब दिया "इस समय कंकाल से संबंधित हर उस चीज़ की तलाश कर रहे हैं जो उन्हें उस चमत्कारी खोपड़ी तक ले जाए"।
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