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उसने बावळे से कहा

"सर, आप करण का ध्यान रखेंगे. आप जरूर जाइए."

आशा की बात सुन बावळा बावळे ने थोड़ी ना-नुकुर के बाद कहा,

"ठीक है मैं भी चला जाऊंगा."

आशा को बावळे पर ना जाने इतना भरोसा क्यों हो गया था जबकि वह बावळे से कभी मिली भी नहीं थी. आशा ने ये बात निश्छल मन से कही थी पर बावळे को तो आशा से बातचीत करने का बहाना-सा मिल गया. आशा बस का इंतज़ार कर रही थी किंतु बस आने में देरी हो रही थी. आशा ने करण से कहा

"मैं घर जाकर आ जाती हूँ. बस आ जाए तो फोन कर देना."

करण ने सिर हिलाकर हामी भर दी. आशा, ऑटो से घर चली गई. घर आ सबके लिए खाना बनाया और फिर खुद खाने बैठी ही थी कि करण का फ़ोन आया

"माँ, बस आ गई."

आशा ने अपने पति से साथ चलने को कहा किंतु वो मना कर गए. आशा साइकिल अच्छे से चलाना जानती थी. उसने साइकिल से ही विद्यालय जाने का फैसला किया. उसने अपने आपको अच्छे से संवारा और साइकिल को तेज़ गति से चलाते हुए विद्यालय पहुँच गई. वहां बच्चे, बावळा और अन्य शिक्षकगण खड़े थे. साइकिल से आती आशा किसी हीरोइन से कम नहीं लग रही थी. उनके बीच पहुँचते ही एक लड़की बोल पड़ी

"आंटी आप तो पहचान में ही नहीं आ रहे हो."

यह सुनते ही आशा ने खिलखिलाते हुए कहा

"आंटी नहीं दीदी कहो दीदी"

सब शिक्षकगण व बावळा भी हंस पड़े. तभी बस में सब बच्चों को बैठने का निर्देश दिया गया. सभी बच्चे जाकर बस में बैठ गए. बस में बावळा और आशा भी बच्चों के साथ थोड़ी देर के लिए बैठ गए. बावळा, आशा के सामने बैठ गया. अचानक आशा की नज़र बावळे पर पड़ी तो वह हैरान रह गई बावळा उसे ही देख रहा था. आशा से नज़रे मिल जाने पर उसने नज़रें चुरा ली.

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