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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · Thành thị
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32 Chs

ch-18

राय परिवार जाते-जाते दक्ष को देखते जाता है। जिसे देख दक्ष अपनी कठोर आवाज़ मे कहता है, " कुंदन राय "!आज जो हुआ वो दोबारा यदि होगा तो मुझे नहीं लगता कि मैं इस तरह आपलोगो की जान बक्श दूँगा। यह कहते हुए उसकी आंखें बिल्कुल लाल थी और वह चेतावनी भरे लहजे में कह रहा था।जिसे सुनकर एक पल के लिए सभी सहम गए थे और सर झुका के वहां से निकल गए।

बाहर निकलते के साथ चंदना जी कहती है," हमें नहीं पता था ये तीनों लड़कियां इतने बड़े घर मे हाथ मारेगी।जिसे सुनकर  कौशल्या जी कहती है, "चाहे जो भी कांड करें अगर हमें अपना जीवन प्यारा है तो हम चुपचाप अपने जगह वापस लौट रहे। तुम अपने दामाद को समझा दो। मुझे ये लोग अच्छे नही दिख रहे है।

लेकिन चंदना, प्रियंका और दीपिका का तो जलन के मारे बुरा हाल था। प्रियंका कहती है, मुझे तो  इनकी शानों शौकत देख कर खुद पर गुस्सा आ रहा है की अगर हम आज उस सतीश और रायचंद की बातों मे नही आते तो इतने बड़े परिवार से हमारा रिश्ता जुड़ जाता और हमें भी करोड़ो मे खेलते।

यह सुनकर कुंदन और चंदना के साथ सभी कहते है, बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन अब कर ही क्या सकते है ।तूलिका के पापा कहते है हम दोनों भी अपने बेटे के पास वापस जा रहा। पता नहीं वो लोग सतीश के साथ क्या करें, कितने खतरनाक है सभी!! वही औरते भी खतरनाक थी।  आज आज के बाद मेरे लिए तो मेरी बेटी मर चुकी मैं उसका दाह संस्कार करके उससे अपना सारा रिश्ता तोड़ रहा हूं।

उनके साथ साथ रितिका और दीक्षा का भी परिवार कहता है कि आज से हमारा इन तीनों लड़कियों के साथ कोई संबंध नहीं रहेगा यह जिए या मर जाए उससे हमारा कोई मतलब नहीं। यह कहते हुए सभी निकल जाते हैं।

दक्ष तेजी से दीक्षा के रूम में आता है। दीक्षा खामोशी से खिड़की की तरफ देख रही होती।  दक्ष पीछे से आकर उसे कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है, "स्विट्स!!अगर ऐसे नाराज होना है और इसी तरह उदास होना है तो इससे अच्छा उनसे बातें कर लेती ?

दीक्षा  उसकी तरफ मुड़ कहती है,"मैं नाराज नहीं हूं दक्ष और ना ही मैं उदास हूं !! किससे नाराजगी और उदासी जताऊ जो कभी मेरे थे ही नही।मैं यह सोच रही हूं कि जिंदगी में लोग आते किस लिए हैं की ज़ब तकजिंदगी रहे बस एक दूसरे के लिए मन मे करवाहट भरी रहे है। मौत अंतिम सत्य है दक्ष। उस वक़्त राजा और रंक क़ो एक ही श्मशान मे जलाया जाता है। दोनों गति और दुर्गति उनके करम तय करते है। लोगो कहते है स्वर्ग और नर्क मृत्युउपरान्त प्राप्त होता है। लेकिन मेरा मानना है की दोनों ही इसी जीवन मे मिलता है।

फिर भी लोगो क़ो शांति क्यों नही है दक्ष। जिंदगी क़ो इतना संघर्षमय तो पहले से होती है दक्ष ऊपर से लोगों के लालच, द्वेष इसमें हमेशा मिर्ची मसाला का काम करती है। क्यों दक्ष मिलता है किसी क़ो किसी का जीवन बर्बाद करके। उसे चोट पहुंचा कर। उसे दर्द दे कर।

लोगो समझते क्यों नही की मौत उन्हें अकेले ले कर जाएगी उनके अच्छे भले कर्मो के साथ!!फिर भी। मेरी दादी की नफ़रत की हद देखिये दक्ष!!मेरी माँ इस दुनिया मे नही रही!खुद वो 80 वर्ष के होने की करीब होगी। तब उनके अंदर कितनी द्वेष भरी है मेरे और मेरी माँ के लिए।

दक्ष उसकी बातों क़ो ध्यान से सुन रहा होता है और कहता है, मेरी तरफ देखिये स्वीट्स!!दीक्षा उसकी तरफ देखती है। दक्ष कहता है, "स्वीट्स!! जरूरी नही जैसा आप सोचे और चाहे वैसी ही दुनिया और वैसे ही लोग हो। संसार है और उसमें सभी तरह के इंसान मिलते है। भगवान हो या राक्षस या इंसान कोई एक जैसा नही होता। फिर उन सभी बातों पर सोच कर क्यों अपने दिमाग़ की शांति भंग कर रही है। चलिए निचे सभी हमारा इंतजार कर रहे है। आप चलिए हम आते है। हम्म्म्म। दक्ष। हाँ स्वीट्स!!दक्षांश के बारे मे कब सबको बताना है।

दक्ष मुस्कुरा कर कहता है हमारा बेटा होली मे आ रहा है। होली के साथ साथ ये ख़ुशी भी हमें सबके साथ मनाएंगे। दक्ष मुस्कुरा कर कहती है। ठीक है हमें. आते है। हम्म्म्म।

अतुल तूलिका के माथे को चूमते हुए कहते अब उठ जाओ तूलिका!! तूलिका अपनी आँखे धीरे से खोलती  है और कहती है वह लोग चले गए क्या?? हां!!  क्या तुम सबसे मिलना चाहती हो? नही अतुल!! मेरे लिए मेरी माँ तो बहुत पहले मर चुकी थी और बाप भी उसी दिन मर गए जिस दिन मेरी जिंदगी उस जल्लाद के हाथों दे दी थी। मेरे लिए मेरा परिवार आप से पहले दीक्षा और रितिका थी। अब उनके साथ साथ आप. और आपका परिवार ही मेरा परिवार है। जिस तरह से मॉम ने निचे मुझे संभाला वो मेरी मॉम है। अतुल मुस्कुरा कर उसके होठों क़ो हल्का चुम लेता है और कहता है तो चलो निचे।

अनीश से लिपटी हुई रितिका कहती है, वकील साहब मैंने कुछ गलत तो नही किया ना!! आपको कोई अफ़सोस हो रहा है वकील साहिबा !! नही बिल्कुल नही!!तो फिर मेरे मुताबिक आपने बिल्कुल ठीक किया। चले। हम्म्म्म।

पृथ्वी से शुभ कहती है, हुकुम सा!! आज हम ख़ुश है की हम अनाथ है । अगर परिवार ऐसा होता है तो इससे बेहतर तो हम ही ठीक है। शुभ !! हमे तो हैरानी होती है की कैसे बहुरानी ने बच्चे और अपनी दोनों दोस्त क़ो संभाला होगा। दाद देते है !! हम उनकी हिम्मत की। सही कह रहे है आप हुकुम सा!!

कनक से रौनक कहता है, ज़ब से आप निचे से ऊपर आयी है बहुत परेशान सी है। कुछ नही. कुंवर जी!! हम सोच रहे थे की हमारा जीवन एक धोखे भरे परिवार के बिच मे था। आज ज़ब दीक्षा जीजी और रितिका -तूलिका के परिवार क़ो देखा तो ऐसा लगा की। धोखा और धोखेबाजी कदम कदम पर मिलती रहती है। और ये धोखा देने वाले ज्यादातर सिर्फ अपने ही लोग होते है। सच कह रही है कनक!! हमारे दक्ष भाई सा क़ो ले लीजिये। उनका बचपना और माता पिता का प्यार इसी धोखेबाजी के भेंट चढ़ गयी। हम्म्म्म। लेकिन हम्म्म्म बहुत खुश है कुंवर जी, की हमे इतनी अच्छी देवरानीयां और जेठानिया मिली। जिनके दिल मे प्रेम और भरोसा है और हम वादा करते है आपसे। ये प्यार और भरोसे का मान हम हमेशा बनाये रखेंगे। रौनक उसके माथे क़ो चुम कर कहता है,हमें पूरा भरोसा है हमारी कनक पर....। अब चलिए।

निचे ज़ब सभी आते है तो राजेंद्र जी और तुलसी जी के साथ सभी गंभीर चिंतन मे होते है। जिसे देख सीढ़ियों से उतर रहे सभी के चेहरे के भाव बदल जाते है।

ज़ब दक्ष निचे आता है तब तक राजेंद्र जी और लक्ष्य सभी स्टडी रूम से बाहर चले आते है।तुलसी जी सबको अभी हो रही बातों क़ो बताती है की कैसे दीक्षा और तूलिका के परिवार वालों ने आकर तमाशा किया। ये सुनकर सुकन्या जी पूछ देती है चेतन जी से की आप सब उतने शोर के बाद भी बाहर क्यों नही आये है!!

यह सुनकर लक्ष्य कहता है, भाभी दक्ष ने हमे संदेश भेज दिया था की परेशान होने की जरूरत नही है। निचे हो रहे तमाशे क़ो तो हमारी नई बहुयें ही संभाल लेगी। हमें अंदर बहुत सगीन विषय पर बात कर रहे थे।ये बात करते हुए सबके चेहरे पर परेशानी आ जाती है।

सब को ऐसे परेशान देख दक्ष के चेहरे पर शिकन आ जाती है।

वो आखिरी लक्ष्य से पूछ लेता है, "काका सा क्या बात है? राजेंद्र कहते है, पहले सभी परिवार के सदस्यों क़ो बुलाओ।तुलसी जी कहती है बातें अब तब होगी ज़ब सब नाश्ता कर लेगे। वैसे ही कल से लेकर आज तक तमाशाओ की बाढ़ ही आ गयी है। राजेंद्र जी कहते है,"भई रानी सा ने हुकुम दिया है तो हमें मानना ही होगा।

एक-एक करके सारा परिवार खाने के टेबल पर बैठ जाता है। नई बहुओं क़ो छोड़ कर। जिसे देख तुलसी कहती है,"सब खाना खाये उससे पहले हमें कुछ कहना चाहते है। जिसे सुनकर सभी तुलसी जी का मुँह देखने लगते है। अरे आप सब इस तरह से हमे मत देखिये," हम प्रजापति खानदान की नई पीढ़ी और हमारी बहुओं से बात करना चाहते है,' सभी हमारे सामने आईये। दीक्षा के साथ साथ शुभ, कनक, तूलिका और रितिका सभी उनके सामने खड़ी हो गयी।

तुलसी कहती है, हमे इस महल क़ो सम्भालते हुए अरसा हो गया। ज़ब हमारी तीनों बहुयें आयी थी तो हमने सोचा था की क्यों ना अब ये जिम्मेदारी उन तीनों क़ो दे दी जाये। हमारी बड़ी बहु पार्वती, दक्ष की माँ, जितनी दिखने मे सुंदर उतनी ही तेज महिला। उन्होंने घर के साथ साथ बाहर का हिस्सा बखूबी संभाल लिया था । और ज्यादातर वो हमारे बेटे के  हर्षित के साथ सियासी मामले निपटाया करती थी। दक्ष की बहुत आदते हमारी पार्वती बहु की है। दक्ष ये सुनकर मुस्कुरा देता है।सुमन बहु ने बहुत तेजी से महल की हर जिम्मेदारी संभाल लिए थी और हमारी हिमानी बहु थोड़ी हँसमुख और चंचल थी लेकिन उन्होंने बिज़नेस मे लक्ष्य और हिमांशु क़ो बहुत बेहतर तरीके से साथ दिया था । अनामिका मे वही आदते है आयी है, हिमानी बहु की। उनकी बातें सुनकर आकाश धीरे से कहता है, इसलिये हड़ एक क़ो पानी पिलाती रहती है। अनामिका उसे घूरती है लेकिन कुछ कहती नही।

सब बेहतर था। हमारे घर मे रौनक का बसेरा हुआ करता था। ये कहते हुए उनके चेहरे की ख़ुशी सभी देख रहे थे। सभी उनकी बातें सुनकर मुस्कुरा रहे थे।

लेकिन एक हादसे ने हमारे पूरे परिवार क़ो बिखेर कर दिया । ये कहते हुए उनके आखों मे आंसू आ गए। तब लक्ष्य और मुकुल ने उनके कंधो पर हाथ रख देते है और राजेंद्र जी उन्हें आखों से संबल देते है।तुलसी जी मुस्कुरा कर कहती है, "अभी इन बूढ़ी हड्डीयो मे बहुत जान है, हम ठीक है। फिर दीक्षा की तरफ देख कर कहती है,"हम ये सब इसलिये नही कह रहे की आप सब दुखी हो जाये। अब हमारे प्रजापति खानदान मे आप पांच बहुयें आयी है और पांचो एक से बढ़ कर एक है। हम ज़ब आप पांचो क़ो देखते है तो हमारे अंदर एक गुरूर जाग जाता है की चाहे जो हो जाये। कोई परिस्थिति और परेशानी आ जाये आप सभी हर परिस्थिति क़ो संभाल लेगी। इसलिये हम चाहते है की आप सब खुद आपस मे ताल मेल बिठा कर सारी जिम्मेदारी हमारी और सुमन की अब आप सब उठा ले।हमदोनों सास बहु क़ो इससे अब मुक्त कर दे। वो कुछ कहती लेकिन तभी।

ये सुनकर सुकन्या जी और निशा जी कहती है फिर," माँ सा!!  हमारा क्या होगा!!पांचो क़ो आप हड़प ले रही है कम से कम हमे तो हमारी बहुओं क़ो ले जाने की इज्जाजत दीजिये।

तुलसी जी कहती है, आप दोनों भूल रही अतुल और अनीश ने सबसे ज्यादा यही वक़्त बिताया है। हमने उन्हें दक्ष के साथ ही पाला है। आपके पास रहे कब जरा याद करके बताईये। कभी उनमे और दक्ष मे फर्क नही किया। यहाँ पर इसलिये उन्दोनो के भी कमरे उन्ही के हिस्से मे है।

इसलिए आप दोनों कान खोल कर सुनिया!!आप दोनों ने सभी क़ो अपनी बेटी माना है ना!!ये पूछती हुई तुलसी जी मुकुल और चेतन क़ो आँखे छोटी कर के देखती है।

जिसे देख कर दोनों एक साथ कहते है, हाँ माँ सा!!हमने तो इन्हें बेटी ही माना है। तुलसी जी निशा और सुकन्या जी क़ो देखती है,!!वो दोनों भी कहती है!!जी माँ सा!!ये हमारी बेटियाँ ही है।

ये सुनकर तुलसी मुस्कुरा देती है और कहती है लो बस फैसला हो गया। कैसा फैसला रानी सा, राजेंद्र जी कहते है। राजा सा!!बेटियाँ माना है इन्होंने लेकिन हमने तो सभी क़ो अपनी बहुयें मानी है।

तो इससे क्या मतलब बड़ी माँ,'लक्ष्य कहते है।इसका ये मतलब है लक्ष्य की ये बहुयें तो ससुराल मे रहती है और बेटियाँ मायका मे। ये हमारी प्रजापति खानदान की बहुयें है और ये इनका ससुराल हुआ।   जहाँ ये पांचो हमारे साथ रहेगीं और बेटियाँ जिन्होंने  इनको माना है वो इनका मायका हुआ।  सुकन्या बिंदनी और निशा बिंदनी का घर। क्यों ठीक कहा ना मैंने !!

उनकी बातें सुनकर सभी छोटे मंद मंद मुस्कुरा रहे होते है और घर के सभी बड़े अपनी बड़ी बड़ी हैरान नजरों से तुलसी जी क़ो देख रहे होते है।

अरे आप हमे ऐसे मत देखिये और निशा बिंदनी और सुकन्या बिंदनी आकाश और अंकित की बीबी क़ो अपनी बहु बनाईयेगा, अगर उन्हें भी आपने बेटी बना लिया तो हमें उन्हें भी यही रख लेगे। क्योंकि हम बेटी नही बहुयें लाये है।

दोनों एक साथ जल्दी मे कहती है, " बिल्कुल नही माँ सा!!! अगली बार हम भी बहुयें लाएगी। कमाल की बातों मे आपने अपनी बिन्दनियों क़ो फसाया है रानी सा!! ये कह कर राजेंद्र जी हंसने लगते है। देखिये तो जरा हमारी बिन्दनियों के चेहरे क़ो।

ये सुनकर तुलसी जी, निशा और सुकन्या जी के माथे पर हाथ फेरती हुई कहती है, नही राजा साहब!! इसमें हमारी चतुराई नही है बल्कि इनदोनो का हमारा लिए प्यार और सम्म्मान है। दोनों मुस्कुरा देती है।

तभी चेतन जी मुकुल जी कहते है, यानी आप अब हमे यहाँ से भगा रही है। उन्दोनो की बातें सुनकर राजेद्र जी अपनी छड़ी से उनकी कुर्सी पर मारते हुए कहते है किसने कहा अभी आप लोग यहाँ से जा रहे है।

बहुत समय बाद ये बेनूर महल अब रौनक से भरपूर लग रहा है। वैसे भी बिज़नेस तो बच्चे देख रहे है। कुछ वक़्त अपने बूढ़े माँ -बाप के साथ बिताइये। अरे बाबा सा!! हमें कौन सा अभी जा रहे है क्यों भाई लक्ष्य। होली आ रही है और इस बार तो होली मे हमारा पूरा परिवार साथ होगा। हाँ!!आप ठीक कह रहे है मुकुल भाई साहब।

तो तय हो गया। तुलसी जी कहती है। जिसे देख कर शुभ और दीक्षा कहती है। आप सब हमारे साथ रहिये और हमे बताते रहिये। हमें वो सब पूरी जिम्मेदारी से पूरा करेगी। ये सुनकर सुमन जी पांचो की बल्लाईया लेती हुई कहती है, नजर ना लगे हमारे घर की रौशनी क़ो।

सभी नाश्ता करते है तो दीक्षा, शुभ सबको खाना परोसती है जिसे देख तुलसी जी कहती है। खाना सबको परोस दीजिये। फिर जिसे जो चाहिए होगा उसके लिए बहुत नौकर है। आप सब अपने अपने बिंद के बगल मे बैठ कर हमारे साथ ही नाश्ता कीजिये।

सभी उसी तरह करती है। सभी एक साथ खाना खा रहे होते है।

अब राजेंद्र जी बात शुरू करने से पहले दक्ष से पूछते हैं और कुछ ऐसा है दक्ष जो आप हमें बताना चाहते हैं।राजेद्र जी की बातें सुनकर तुलसी जी के आलावा सबके चेहरे के रंग बदल गए और सभी दक्ष क़ो देख रहे होते है। दक्ष जो बिना किसी भाव के नाश्ता कर रहा होता है और कहता है, काकी माँ ये मुंग की कचौरिया तो आपके हाथ की नही बनी है। जिसे सुनकर सुमन जी कहती है, हाँ ये माँ सा ने बनाया है।

राजेंद्र जी बात सुनकर, दक्ष बहुत आराम से कहता है, बात तो बहुत कुछ है दादू सा!!लेकिन हर बात सही वक़्त पर ही सबके सामने आये ये ज्यादा जरूरी है।

दक्ष की बात सुनकर राजेंद्र जी कहते है, "वो ठीक है और हमे आप पर भरोसा है लेकिन हमे ऐसा क्यों लग रहा है की सिवा हमारे और रानी सा के सभी क़ो मालूम है सब कुछ!!"

राजा साहब अगर बच्चों ने हमे कुछ नही बताया तो. कोई कारण होगा। वैसे भी शादी मे हुए तमाशे क़ो देख। हम कोई भी दबाब अब बच्चों पर नही देना चाहते है। पता नही कब कौन कहा घात लगाये बैठा होगा हमारे परिवार पर।कल रात की घटना से तो हम दक्ष की बातों से सहमत है।

राजेंद्र जी तुलसी जी की बात सुनकर कहते हैं, " आप ठीक कह रहे हैं रानी सा!! लेकिन हम थोड़ा ओर खुश होना चाहते हैं बस इस लालच में हमने अपने पोते से पूछ लिया। सभी उनकी बातें सुनकर मुस्कुरा देते है।

उनकी बात सुनकर लक्ष्य कहता है हम समझे नहीं, बड़े बाबा सा!! उसका जबाब देते हुए कहते है, " ऐसा कुछ नहीं है लक्ष्य बस जैसे ही उन्होंने शादी की खुशखबरी थी तो हमने सोचा कुछ और भी हो यह सुनकर सभी मंद मंद मुस्कुरा देते हैं।

लेकिन दक्ष के चेहरे पर कोई भाव नही आते है। दीक्षा भी उसी की तरह आराम से नाश्ता कर रही होती है। उन्दोनो क़ो कुछ कहता ना देख। सभी नाश्ता करने लगते है। फिर दक्ष कहता है," रौनक!!  आप और कनक एक बार अनंत जी और अर्चना जी से बात कर लीजिए। दोनों इतने साल से एक बंद कोठी में रहने से थोड़े सदमे में है। थोड़ा वक्त लगेगा उन्हें हमारी तरह सामान्य जीवन जीने में।  जिसे सुनकर कनक कहती है भाई सा। मैं नहीं चाहती कि हमें वह राज और रियासत मिले। जिनकी वजह से मुझे ओर मेरे माता पिता क़ो सालों दूर रहना पड़ा। वो राज -रियासत उन्हें ही मुबारक हो।

यह सुनकर दक्ष कहता है, " कनक हम भी नहीं चाहते हैं कि अब आपके माता-पिता उस रियासत और राज में पड़े लेकिन अपनी चीज क़ो यु छोड़ देना कहाँ की समझदारी है। लेकिन इन सब बातों के लिए अभी वक़्त है। तब तक हम चाहते हैं की वह सामान्य जीवन जीने लगे। हमारे साथ रहे, दादा -दादी, काका -काकी सा के साथ अपना वक़्त बिताये।

इस बात का ध्यान आपको और रौनक को रखना पड़ेगा उनके खाने-पीने से लेकर दवाई तक का ध्यान आप दोनों रखिए और कोशिश कीजिए कि वह हमारे साथ आसानी से घुल मिल कर रह सके।रौनक और कनक एक साथ कहते है, हम ध्यान रखेंगे।

उसके बाद दक्ष कहता है, काका सा!! ज़ब हम निचे आ रहे थे तो आप सबके चेहरे पर परेशानी के भाव थे। उसकी बातें सुनकर लक्ष्य कहते हैं, " बाबा सा और माँ सा कल रात से घर नहीं आए। हमने फोन पर भी बात करने की कोशिश की थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई। पता नहीं वह दोनों कहां है?

लक्ष्य की बात सुनकर राजेंद्र जी भी कहते है की इतनी बड़ी घटना कल हो गयी। शादी मे तमाशा हुआ लेकिन उन्दोनो की. कोई खबर ही नही है। हमने सोचा था की शादी मे इतना तमाशा होने के कारण वो दोनों नाराज होकर वहाँ से चले गए। लेकिन हमने ये नही सोचा था की वो दोनों घर ही छोड़ कर चले गए। ऐसी भी क्या नाराजगी है उन दोनों की!!लक्ष्य ज़ब भी आपकी बात हो उन्हें कहियेगा की वो जल्द से जल्दी घर आये। हम उनसे नाराज है।

राजेंद्र जी बातें सुनकर दक्ष कहता है, वो अब नही आएंगे दादू!!

दक्ष की बातें सुनकर सभी हैरानी से कहते है, क्या मतलब है आपका  और वो क्यों नही आएंगे? तुलसी जी घबराते हुए कहती है, वो दोनों सकुशल तो है।

यह सुनकर दक्ष कहता है, " आप फिकर मत कीजिए दादी माँ, " दोनों बिल्कुल सकुशल से और ठीक है और दोनों अपनी मर्जी से यहाँ से गए है ।लेकिन कहाँ गए है?

भुजंग राठौर के पास!!

ये सुनकर लक्ष्य, सुमन के साथ साथ मुकुल जी और चेतन के चेहरे पर घबराहट भरे भाव आ जाते है। लक्ष्य कहता है, " वो वहाँ क्यों गए है और भुजंग तो यहाँ था भी नही और वो यहाँ आया ये आपको कैसे मालूम है दक्ष।

दक्ष कहता है, "काका सा वो आपके मामा है ;भले ही सोतेले सही लेकिन छोटी दादी क़ो अपनी सगी बहन की तरह मानते है।दोनों  उस भुंजग राठौर के पास गए है।

पहेलीयाँ मत बुझाओ दक्ष, पृथ्वी अपनी आँखे दिखाते हुए कहता है।

दक्ष गहरी सांस लेता हुआ कहता है," कल रात, हमारे महल पर जो हमला हुआ था वह भुजंग राठौर ने ही करवाया था । यह सुनकर सबकी आंखें बड़ी हो जाती है। लक्ष्य कहता है, "यह सब बातें आपको कैसे पता?

दक्ष कहता है,"मुझे बहुत सारी बातें मालूम है काका सा !! रही बात भुजंग की तो उसे राजस्थान की धरती पर बुलाने वाला मै ही हूँ। अब किसी क़ो कुछ समझ नही आता तो पृथ्वी कहता है, एक एक करके सब कुछ बताईये दक्ष।

दक्ष फिर गहरी सांसे भरते हुए कहता है, हमारी शादी की खबर हमने इसलिये जल्दी दी क्योंकि ये खबर सुनकर भुजंग खुद यहाँ वापस आ जाये और हुआ भी ऐसा।

राजस्थान की धरती पर कोई पैर रखे और ये खबर दक्ष प्रजापति क़ो ना हो, यह सम्भव नही भाई सा!!

कल रात उसने आजमाया और हमने भी आजमाने दिया।उसे लगा की वो प्रजापति महल मे सेंध लगा सकता है लेकिन उसने ये नही सोचा की दक्ष प्रजापति दस कदम आगे की नही कम से कम दस हजार कदम आगे की सोचता है।

ये सुनकर अनीश कहता है यानी कल रात जो हमला हुआ वो तु जानता था। उस पर दक्ष कहता है, जानता था।तो तूने पहले से हमे क्यों नही बताया!!

दक्ष के बदले दीक्षा जबाब देती हुई कहती है, वो इसलिए अनीश भैया !! की मुसीबत और मौत न्योता दे कर नही आती है बल्कि अचानक आती है। इसलिये इन्होंने उस मुसीबत क़ो न्योता नही दिया लेकिन अचानक आने पर कैसे हमे उस मुसीबत से निपटना है। ये हमने कल रात खुद ही समझ लिया।

दीक्षा की बात सुनकर दक्ष के साथ सभी मुस्कुरा देते है। मुकुल जी कहते है, राजस्थान के नए रानी और राजा सा की जोड़ी तो कमाल की है। तभी सुकन्या जी और सुमन जी कहती है, नजर मत लगाइये भाई साहब !! जुग जुग जिए और सलामत रहे हमारे बच्चे।

दक्ष आगे कहता है, "  हमे हमेशा से मालूम था की हमसे कोई एक कड़ी छूट रही है जो हमारे नजरों के सामने नही आ रही है। इसलिये हमने शादी का दाव खेला। तो पृथ्वी भाई सा!! दक्ष प्रजापति ने शुरुआत कर दी है।ये कहते हुए दक्ष की आखों मे एक अलग जूनून सभी देख रहे थे।

दक्ष की बात सुनकर रौनक कहता है, भाई सा !! फिर आप ने उनको यहाँ जान बुझ कर क्यों बुलाया है?

दक्ष कहता है, "सालों पहले जो हमारे परिवार के साथ हादसा हुआ उसकी सारी बातें हैं जो बंद थी वो भुजंग राठौर के आने से खुलने लगेगी।उसके आने से बहुत सारी बातें निकल कर आएगी ।

उसको वापस यहाँ आने पर मजबूर सिर्फ और सिर्फ हमारी शादी ही कर सकती थी।हम अच्छी तरह से जानते थे जिस दिन हमने अपनी शादी की खबर सबके सामने लाई। उसी दिन भुजंग वापस फिर से राजस्थान की धरती पर आ जाएगा। जैसा हमने सोचा बिल्कुल वैसे ही हुआ। और हमारे छोटे दादा -दादी जा कर उनसे मिले और कल रात ये हमला हुआ।

दक्ष की बातें सुनकर सबके चेहरे पर हैरानी के भाव नजर आने लगे और राजेंद्र जी कहते हैं इसका क्या मतलब रंजीत और कामिनी इसमें मिले हुए हैं? यह सुनकर दक्ष कुछ कोई जवाब नहीं देता है क्योंकि उसे लगता है कि उचित नही होगा बोलना। रंजीत जी फिर से कहते है हम कुछ पूछ रहे है दक्ष आपसे। इस वक़्त उनकी आवाज़ मे आक्रोश था।

दक्ष की असहजता समझते हुए,लक्ष्य कहता है पता नहीं बड़े बाबा सा लेकिन हमें भी लगता है कि बाबा सा और माँ सा अगर शामिल नही भी थे तो भी उन्हें मालूम था की कल रात प्रजापति महल मे हमला होने वाला है।रंजीत जी फिर आवेश मे कहते है,'आप भूल. रहे है लक्ष्य वो दोनों कोई और नही आपके माता पिता है। चलिए एक पल के लिए मान लेते है की रंजीत और कामनी क़ो हमारे बच्चे, दक्ष नही पसंद है। लेकिन कल रात घर मे, सिर्फ हम और हमारे दक्ष नही थे बल्कि उनका भी पूरा परिवार था। तो कोई माँ बाप इतना निर्दयी नही हो सकता की जीते जी वो अपने बच्चों की बलि चढ़ा दे। हमे लगता है की दक्ष के साथ साथ आपको भी गलतफहमी हुई है।वो दोनों लाख बुरे सही लेकिन इतने निचे नही गिर सकते है।

यह सुनकर पृथ्वी कहता है, "हां बड़े दादू!! हमें भी यही लगता लगता है कि इसमें दादा और दादी का हाथ है। यह सुनकर तुलसी जिए अपनी आंखों में आंसू लाते हुए कहती हैं हमें शुरू से ही शक था इन दोनों पर लेकिन हमने कभी सोचा नहीं था कि यह सब इस हद तक चले जाएंगे आखिरी में क्या चाहिए इन्हें!!

इन सबके बिच में बड़े आराम दक्ष कहता है,"राजगद्दी चाहिए। यह सुनकर राजेंद्र जी गुस्से से कहते हैं अगर राजगद्दी चाहिए तो वह खुद  मांग लेता ।हम दे देते। जिसे सुनकर दक्ष  कहता है," दादू सा कोई अपनी चीज जिस पर वो अपना हक समझता है वो किसी से क्यों मांगेगा। वो तो अपना हक समझ कर उसे छीन लेगा। मांगेगा नही। अब आप सभी इस बारे में चिंता करना छोड़ दीजिए। हम सब भाई है ना!!सब संभाल लेगे। इस बार हमारे परिवार के किसी भी सदस्य क़ो कुछ नही होने देगा ये दक्ष प्रजापति।

दक्ष की बातें सुनकर राजेंद्र जी कहते हैं तो अब आपने क्या सोचा है ?  दादू सा अभी मैंने कुछ नहीं सोचा है। अभी इसके आलावा भी बहुत सारा काम बचा हुआ है जिसे हमे पूरा करना। यह सुनकर राजेंद्र जी कहते हैं जैसा आपको ठीक लगे बच्चे।

दक्ष की नजर लक्ष्य पर जाती है जो बेचैन दिख रहे होते है।जिन्हें देख कर दक्ष कहता है, " आप परेशान मत हो  काका सा!! हम ऐसा कुछ भी नहीं करेगे। जिससे आपका सर झुके। लक्ष्य मुस्कुरा कर कहता है हमें तुम पर पूरा भरोसा है।

तभी लक्षिता पति शमशेर के साथ अंदर आती हुई गुस्से मे कहती है, " वाह !! क्या परिवार है। यहाँ मेरे माता पिता दो दिन से घर नही आये है। उनको ढूढ़ने या परेशान होने के बजाय यहाँ पूरा परिवार बड़ी खुशी से नाश्ता कर रहा है।  किसी को होश नहीं की मेरे मां-बाप कल रात से यहां नहीं आये है।

तुलसी जी कहती है, ऐसी बात नही है लक्षिता । आप तो मत ही बोलिये बड़ी माँ सा !! लक्षिता बाई सा !! ये आप किस तरह से बात कर रही है, बड़ी माँ सा से !! आप तो चुप ही रहो भाभी सा!! आप क़ो तो अपने सास ससुर से ज्यादा ख्याल दुसरो का है ये कहती हुई लक्षिता तुलसी जी क़ो देखती है। पता नही आपमें ऐसा क्या देखा भाई सा ने की एक मामूली लड़की क़ो घर उठा लाये।

लक्षिता !! अपने जुबान क़ो सम्भालिये वरना हम भूल जायेगे की आप हमारी बहन है। आप ये मत भूलिए की सुमन हमारी पत्नी है और इस घर की बहु।

यह सुनकर लक्षिता की बजाय शमशेर कहता है, " क्या बात है भाई सा!!पत्नी याद है जो आपके साथ कुछ सालों से है लेकिन जन्म देने वाले माता पिता नही याद है जो कल रात से घर नही लौटे है। "

यह सुनकर शुभम अपनी तंज भरी आवाज़ मे कहता है, "तो आप आ गई अपना गिला शिकवा लेकर।  मॉम आपको नाना -नानी की इतनी फिक्र थी। तो कल अचानक से जल्दी-जल्दी में आप लावण्या को लेकर सीधे घर क्यों चली गयी।  कल रुक जाती। अगर वहां जाने के बाद आपको फिक्र सता रही है की आपके माता-पिता यहां नहीं है तो पहले ढूंढ लेती। कही आप भी तो कल के हमले मे शामिल नही थी।

ऐसा कहते हुए शुभम की नजर कठोर हो जाती है, जिसे देख दक्ष उसे इशारा करता है शांत रहने के लिए।

इस तरह की बातें सुनकर  तुलसी जी कहती हैं," शुभम बच्चा !! इस तरह की बातें अपने बड़ों से नहीं करते। शुभम चुप हो जाता है।

शमशेर गुस्से मे कहते हैं, " शुभम!! ये क्या तरीका है अपनी  माँ से बात करने की। मैंने कहा था की वो आ जाये। और वह तुम्हारे भी नाना-नानी थे इसलिए थोड़ा तमीज से बात किया करो।

शुभम गुस्से मे नाश्ता छोड़कर बीच में उठ जाता है।सभी उसे रोकते रह जाते हैं लेकिन वह किसी की नहीं सुनता।सीधे बाहर चला जाता है। जिसे देख दक्ष अंकित और हार्दिक क़ो इशारा करता है। तो वो दोनों भी उठते हुए कहते है, हमारा हो गया!हम अभी आते है। वो दोनों जाने लगते है तो पीछे से, आकाश कहता है, अरे रुको मै भी आ रहा हूँ।

दक्ष भी अतुल और अनीश को इशारा करता है साथ में रौनक पृथ्वी भी होते हैं। सभी एक साथ उठते है।निकल जाते हैं। दक्ष दीक्षा से कहता है कि हमें बहुत जरूरी काम है तो हम मिलते हैं शाम में। दक्ष दीक्षा को कहता है, "चाहता  था कि तूलिका और आप को साथ ले जाऊ। लेकिन नहीं कुछ चीजें हमारी तक रहने दीजिए।

दीक्षा उसकी बात समझ जाती है और कहती आप फिक्र मत कीजिए,' जरूरी नहीं कि हर बात का मतलब वही निकले जहाँ पर शुरू हुआ था ।जहां से मतलब शुरू हुआ वो कही और जा कर खत्म हो सकता है।दोनों की पहेली भरी बातें किसी के समझ में नहीं आती है दोनों बातें करके निकल जाते हैं।

तुलसी जी लक्षिता से कहती है मिल गयी कलेज़े क़ो ठंडक। सभी नाश्ता ख़ुशी से कर रहे थे वो आपसे बर्दास्त नही हुआ तो जहर उगलने आ गयी। ध्यान से सुनिये !! हमे नही मालूम की आपको अपने माता पिता के बारे मे मालूम है भी या नही। लेकिन हम आपको बता दे की वो आपके सोतेले मामा भुजंग राठौर के यहाँ है। जाईये वहाँ मिल लीजिये। ये सुनकर लक्षिता की आँखे कठोर हो जाती है और शमशेर के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

लक्षिता तुलसी जी से ये सुनकर उनके पास आती हुई कहती है, बड़ी माँ ये झूठ है ना!! तुलसी जी कहती है नही लक्षिता ये सच है।

माँ सा!!ऐसे कैसे कर सकती है। उसकी ये परेशानी देख लक्ष्य उसके कंधे पर हाथ रख कर कहता है, आपके परेशानी क़ो हम समझ सकते है लक्षिता लेकिन यही सच है। लेकिन भाई सा!!ये गलत किया उन्होंने। एक बार फिर से.... कहती हुई रुक जाती है।मैं चलती हूँ। कहती हुई तेजी से निकल जाती है। कोई उनकी हरकत पर ध्यान नही देता लेकिन दीक्षा और शुभ की नजर उनकी हरकत पर रहती है।

सुमन जी दीक्षा क़ो देखती हुई कहती है। आप सब अभी आराम कर लीजिये। जबाब से शादी होकर आयी है एक सेकंड का भी सुकून नही मिला है आप सब क़ो। अभी आप सब के ज़ख्म भी गहरे है। सुमन जी के साथ साथ निशा और सुकन्या भी कहती है। हाँ!!जाओ तुम लोग। वैसे भी होली से पहले तुम सब ठीक हो जाओ, कहती हुई वो तीनों अर्चना जी के पास चली जाती है।

दीक्षा कहती है, आप सब मेरे साथ मेरे कमरे मे आईये। ये सुनकर कर चारों उसके साथ कमरे मे चली जाती है।कमरे मे आने के साथ दीक्षा जल्दी से दरवाजा बंद करती है। तूलिका कहती है तुमने ये दरवाजा क्यों बंद किया।

दीक्षा कहती है क्या तुमने भी वो ध्यान दिया जो मैंने दिया। शुभ कहती है, आप लक्षिता बुआ जी बात कर रही है दीक्षा। हाँ जीजी !! हाँ हमने भी ध्यान दिया। जैसे ही उन्होंने भुजंग राठौर का नाम सुना उनके चेहरे का रंग उड़ गया। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था की उन्हें बिल्कुल नही पसंद दादी सा और दादा सा का वहाँ जाना।

दीक्षा कहती है, नही जीजी !! बात उनके पसंद की नही थी !! उनके चेहरे पर डर था। जैसे कुछ चीजे ऐसी जो वो चाहती है बाहर कभी नही आये लेकिन क्या ???

ये सोचने वाली बात है। रितिका कहती है पता कैसे लगाएंगे। तभी दरवाजे पर आवाज़ आती है, रानी सा !! ये आवाज़ सुनकर दीक्षा कहती झुमरी !!

पांचो अपने सीक्रेट जगह पर आते है। राजस्थान के इलाके मे ये जगह जगल और पहारो के बिच बना हुआ है। जैसे वो सभी पहाड़ के सामने आते है तो. रोनके बगल मे रखे पत्थर क़ो अपने पैरों से हिला देता है। जिससे वो दरवाजा खुल जाता है। पांचो अंदर आते है तो कुछ लोगो की चीखने की आवाज़ आती है।

दक्ष के साथ सभी अंदर आते हैं तो देखते हैं, पांच लोगों क़ो  लोहे के जंजीर मे चारों तरफ से बांध कर हवा मे लटकाया हुआ है।उनके बदन पर कपड़े के नाम पर कुछ नही था । पांचो बिना कपड़ो के सिर्फ चीख रहे थे।पांचों पर पूरी तरह से डंडे और कोड़े बरसाए जा रहे थे जिससे जिससे उनकी चीख निकलती जा रही है।

जब अतुल सबके सामने आता है उसे देख सतीश जोर से सीखता है। छोड़ मुझे क**** हरामि। अतुल उसके बालों को पकड़ के नीचे की तरफ झुकाते हुए कहता है, " इतनी आसानी से कैसे छोड़ दूं तुझे ? कितने दिन से तेरा इंतजार था तेरी मौत तो उसी दिन लिख दी थी जिस दिन मुझे तूलिका मिली थी। आज तो उसे अंजाम पे पहुंचाना।

सतीश हंसते हुए कहता तू मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। मैं वहां का बहुत बड़ा नेता हूँ। मुझे कुछ हो गया तो लोग तुझे और तेरे दोस्तों क़ो नही छोड़ेंगे।  मेरी लोग यहां आ कर हंगामा कर देंगे। यह सुनकर अतुल हंसता है और अनीश को इशारा देता है अनीश इशारे में सामने मोबाइल ऑन ऑन कर देता है।

जिसमें न्यूज़ चल रही होती है की MLA सतीश के ऊपर हुमन ट्रैफिकिंग, लड़कियों के को बेचने और ड्रग्स के धंधे का इल्जाम लगा है और सभी जगह उसे पुलिस  जोरों शोरों से ढूढ़ रही है। सूत्रों के हवाले से खबर मिली है की वह फरार बताया जा रहा है। ये न्यूज़ सुनते ही सतीश के साथ-साथ उसके बाप उसका ताऊ। उसके  दोनों छोटे भाई की आंखें बड़ी हो जाती।

इसका बाप कहता हैं, "हमें छोड़ दो और नहीं छोड़ सकते तो हमें एक बार में मार दो।

जिसे सुनकर दक्ष कहता है तुम जैसे दरिंदों को ही एक ही बार मे मार कर मौत क़ो गाली नही दूँगा। अतुल हाथों मे लोहे का रोड लिए कहता है, जबाब तक तुम्हें उस दर्द मे नही देख लेता मुझे सुकून नही मिलेगा। जब तक तुम्हारी चीख तुम्हारी रूह से ना निकल जाए। तब तक तुम सब जिन्दा रहोगे।

अतुल कहता है,"बहुत गर्मी है ना तुम मर्दो मे। आज सभी की गर्मी की जगह जगह पर निकलूंगा।

अतुल अपने आदमियों क़ो कहता है, मुँह बांधो इन हरा##### यों का.... ताकि ये चीखे नही बल्कि इनकी सिसकियाँ निकले।

सतीश क़ो कहता है तुझे बहुत शौख है ना औरतों की सिसकियाँ सुनने की, आज मैं तुझे बताऊंगा की सिसकियाँ के से निकलती है।

अतुल लोगों को इशारा देता है सभी समझ जाते हैं। उन पांचो के ऊपर जाल जैसी लोहे की छतरी 1 फीट ऊपर  टांग देते हैं।

सभी के हुक मे, तकरीबन दो सो मोमबतियाँ उल्टी दिशा मे लगी रहती है। सभी के प्राइवेट हिस्से के ऊपर एक सुराही जैसी पाइप लटकी होती है।

सतीश कहता है यह तुम क्या कर रहे हो !! एक तो पहले से ही हमे बिना कपड़ो के लटका रखा है अब ये सब क्या है ?

जिसे सुनकर पृथ्वी कहता है सुना है की तुझे बिना कपड़ो के रहना ज्यादा पसंद है तो आज क्यों भोंक रहा है।तब तक सबकी चीख घुटने भरी आने लगती है, सबके मुँह मे कपड़े ठूस कर मुँह बांधे जा रहे होते है।

अतुल सतीश के बालों क़ो पकड़ निचे झुकता है.... और हल्का हँसते हुए कहता है, "तेरी आखों का ये डर मुझे कमाल का सुकून दे रहा है। तेरे शरीर में बहुत गर्मी है? बहुत मर्दानी की है। यह गर्मी तो उतरेगी ना। किसी को कुछ समझ में  आता तब तक एक रोड सतीश के पिछले हिस्से मे अतुल डाल देता है।उसके साथ साथ सबके पिछले हिस्से मे वो मोटा लोहे की रोड सभी घुसा देते है। सतीश के साथ साथ सबकी आँखे लाल और आवाज़ अंदर घुट कर रह जाती है।

अतुल कहता है, तुझे मजा दे रहा हूँ। तब तक उसके सारे आदमी, उन सबके ऊपर लटकी मोमबतियों क़ो जला देते है। तेजी से पिघलती हुई मोमबतियाँ सबके बंद क़ो गरम कर रही थी।

उस छोटे पाइप के हिस्से से बून्द बून्द गिरता तेजाब उनके प्राइवेट हिस्से क़ो गला रहे थे।

इस समय वो पांचो सतीश और उसके लोगों के लिए काल बन चुके थे। लगातार दर्द और टॉर्चर सहने के बाद वो पांचो बेहोश हो जाते है। जिसे देख अतुल कहता है जल्दी होश मे लाओ। पांचो पर पानी फ़ेंकते हुए उन्हें होश मे लाया जाता है।

हर बार लोहे का रोड मोटा होता जाता है। अब उनके हर हिस्से से खुन की धारा बह रही होती है लेकिन कोई रुकता नही है।

सतीश अपनी घुटने भरी चीख से उससे मौत मांगता है। तब अतुल उसकी तरफ अपनी क्रोध से भरी नजरों से देख कर कहता है.... मेरी तूलिका के साथ क्या किया था तूने। तब रहम आयी तुझे।

जबाब तक तेरी हड्डीयो मे सांसे रहेगी तब तक तेरे साथ यही होगा। मौत तुझे इतनी आसान नही मिलेगी।

ये कहते हुए उन पांचो के शरीर पर कील ठोकनी शुरू कर दी जाती है। सबसे ज्यादा कील उन सभी के नाजुक हिस्सों पर ठोकी जाती है। छः घंटे की पड़तारना के बाद पांचो ने दुनिया छोड़ दिया। इसके साथ ही अतुल भी सबके साथ वहाँ से ये कहते हुए निकल गया की इन पांचो क़ो हमारे जंगल मे भेंक दो। आज की डिनर हो जाएगी सबकी।

रौनक कहता है, पिशाच कही का। अतुल अपने कपड़े पर लगे खुन क़ो देख कर कहता है, नर पिशाच। समझा। सभी उसकी बातें सुनकर हँस देते है।