स्वर्ण नगर में डेढ़ साल से उदासी छाई हुई थी. राजा कर्म सिंह अपनी पुत्री के वियोग में खाट पकड़ चुके थे. रानी रोती-रोती अंधी हो चुकी थी. बिचारे महामंत्री को सारा राजकाज संभालना पड़ रहा था.
एक रात राजा ने सपना देखा कि उसकी बेटी पैदल आ रही है, पावों में कांटे और छाले हो गए थे.
राजा हड़बड़ा कर उठ बैठे. फिर उन्हें नींद नहीं आई. राजा पुत्री के बारे में सोचते रहे,
"क्या मेरी बेटी जिंदा है? क्या वह वापस आ सकेगी."
इस तरह सोचते-सोचते राजा फिर सो गए.
सुबह उठे तो उन्हें शुभ शगुन होने लगे. राजा ने सोचा जरूर कोई खुशखबरी मिलने वाली है. तभी राजकुमार ने महल की छत पर उड़न खटोला उतारा और दोनों नीचे राजा के कमरे की तरफ आने लगे. राजा ने आहट सुनी तो लेट गए. एकाएक कमरे में राजकुमार और राजकुमारी को देखकर अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. कुछ देर वे देखते रहे. फिर राजकुमारी को गले से लगा बोले,
"मेरी बेटी आ गई."
राजा इतनी तेज बोले की रानी उनके कमरे में आ गई तो दरवाजे पर ठिठक गई. कुछ देर बाद चीखी,
"मेरी बेटी! मेरी बेटी!"
कुछ ही देर में सारे राज्य में राजकुमारी के आने का समाचार फैल गया. राजा का रोग भाग गया. राजकुमारी राजा से बोली:-
"पिताजी मुझे छुड़ाकर लाने वाला राजकुमार वीर सिंह है."
राजा ने राजकुमार को गले से लगा लिया.
दूसरे दिन दरबार में राजा स्वयं गए. फिर राजकुमार को बुलवाया गया और पूछा गया कि वह राजकुमारी को कैसे छुड़ाकर लाया.
राजकुमार बोला:-
"महाराज, आपकी पुत्री को लकड़ी का मुर्दा उठा ले गया था. वह एक जादूगर का सेवक था. राजकुमारी जादूगर के पंजे में फंस गई थी. आपकी ही पुत्री नहीं सैंकड़ों राजकुमारियाँ उसके पंजे में थी. वह इनकी आँखे निकलवाकर एक तलवार बनाना चाहता था. जिससे वह विश्व विजय हो जाता. मैं इस तरह वहाँ पहुँचा….."
और राजकुमार ने शुरू से लेकर अंत तक सारी कथा कह डाली. सुनने के बाद राजा ने कहा:-
"राजकुमार, शुभ घड़ी में हम राजकुमारी का विवाह तुम्ही से करेंगे. तुम्हारे पिता का राज्य मेरे अधीन है. वह अधीनता समाप्त. तुम्हे अब आराम करना चाहिए."
राजकुमार अतिथि शाला में आ गया. और उसने जेब से नेवले और चूहे को निकाला वे भूख से बड़े कमजोर हो गए थे. राजकुमार ने उनको भरपेट खाना खिलाकर छोड़ दिया. दोनों राज्य में रहने लगे. एक दिन शुभ घड़ी में राजकुमार-राजकुमारी का विवाह हो गया.
राजकुमार-राजकुमारी को लेकर अपने पिता के पास आया.
उसके पिता भी पुत्र के अचानक कहीं चले जाने से परेशान हो गए थे. बेटे बहू को साथ-साथ देख कर उसके माता-पिता बड़े खुश हुए. जब उसने राजकुमारी लाने की खबर सुनाई तो राजा-रानी और भी खुश हुए. राजा ने उत्सव का ऐलान कर दिया. रात को राज्य में घी के दीपक जलाए गए. सब बड़े खुश थे.
इस मौके पर राजकुमार अपनी धर्म बहन को बुलाना नहीं भूला. उसने इस समय पर सुंदर देव-नृत्य किया. राजकुमार खुशी से झूम उठा.
राजकुमार अपने गुरु के पास गया. तलवार और लाल मणि उन्हें सौंपते हुए खुशी का समाचार सुनाया. गुरु बड़े खुश हुए. बोले,
"जादूगर मेरा शिष्य था. वह जादू सिखता तो उसे गलत कामों में लगाता. मैंने उसे जादू सिखाना बंद कर दिया. यह दोनों चीज मैं तुम्हें ही भेंट देता हूँ. इसको गलत कामों में मत लगाना. यह मैंने काफी भक्ति से प्राप्त की थी."
राजकुमार अब गरीबों की सहायता करने लगा. कुछ दिन बाद उसका राजतिलक कर दिया गया. राजकुमार अब एक वीर और धर्मात्मा शासक था.