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कुछ देर बाद उसने अपनी तलवार से किले में छेद करना शुरू किया. धीरे-धीरे छेद पूरा खुल गया. राजकुमार ने छेद जरा चौड़ा किया और उसमें घुस गया. वहां एक नगर सा बसा था. सड़क पर लकड़ी के मुर्दे पहरे पर थे. राजकुमार अदृश्य था. वह उस जादूगर की खोज में लग गया.

एक जगह उसने दो मुर्दों को बातें करते सुना.

"अब अपना मालिक शायद संसार का राजा बन जाएगा"

"कैसे"

दूसरे ने पूछा.

"अरे तुम सिर्फ पहरेदार हो. मैं तो उनका अंगरक्षक हूँ. मुझे सब मालूम है. वह मुझसे राजकुमारियों को मंगवाते हैं. जब उनके पास सात सौ राजकुमारियाँ हो जाएगी तो वे उनकी आंखें निकाल कर एक जादुई तलवार का निर्माण करेंगे. जिससे वह युद्ध करने जाएंगे. वह फ़ौरन हार जाएगा. अच्छा अब मैं चलूं."

यह कहकर वह चल पड़ा. राजकुमार ने उस मुर्दे का पीछा किया.

राजकुमार सोच रहा था

"वह तो पूरे देश की राजकुमारियों को अपंग कर देगा. नहीं , मुझे उन को बचाना चाहिए."

तभी उसने देखा कि वह मुर्दा एक छोटे से कमरे के सामने आया. उसने उसका दरवाजा खोला. उस कमरे में सुरंग थी. वह उसमें चला गया. राजकुमार भी उसके पीछे चला गया. वहां एक भव्य महल था. उस के किनारे पर एक विचित्र पेड़ था जिस पर सोने की पत्तियां थी. मुर्दा उस महल में चला गया.

वह महल के एक कमरे में गया. वहां एक भयंकर जादूगर बैठा था. उसकी बड़ी-बड़ी मूछें-दाढ़ी थी. बड़े-बड़े दांत थे उसके. राजकुमार उसे देखते ही समझ गया, यही वह जादूगर है.

लकड़ी का मुर्दा उसके सामने जाकर खड़ा हो गया. तो जादूगर बोला:-

"मुर्दे कल तुम्हें दो राजकुमारी और लानी है. मेरे पास अभी छह सौ अठानवे राजकुमारियां है. आओ तुम्हें सब का हाल बताऊँ."

दोनों कमरे से बाहर आकर एक तरफ चल पड़े. राजकुमार भी उनका पीछा कर रहा था.

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