कुछ देर बाद नीलदेव को होश आया तो अपने आप को स्वतंत्र पाया. सुबह होते ही फिर राजकुमार ने युद्ध शुरू किया. राक्षस ने फूंक मारी, उससे हजारों भूत-प्रेत पैदा हो गए. राजकुमार ने फूंक से उनको जला डाला. नीलदेव ने हजारों गिद्ध पैदा किए. राजकुमार ने उनको फूंक से भस्म कर दिया. उधर से नीलदेव ने भी फूंक मारी. दोनों फूंक आपस में टकराई तो आग जलने लगी. नीलदेव ने नाग-पाश फेंका यह उसकी आखरी सिद्धि थी. राजकुमार ने गरुड़ बुला लिया. नीलदेव आश्चर्य में पड़ गया. राजकुमार ने नीलदेव की ओर रस्सी फेंकी. नीलदेव उनमें बंध गया.
लालदेव के दरबार में लाकर, उसको स्वतंत्र कर दिया. लकड़ी का एक डंडा दिया. राजकुमार ने कहा:-
"कोई मुर्दा है. वह लकड़ी का है. वह कहाँ रहता है? उसका पता बताओ नहीं तो यह डंडा तुम्हें भस्म कर देगा."
नीलदेव ने उसे फेंकना चाहा पर वह उसके हाथ से चिपक गया. नीलदेव ने बताने में ही भलाई समझी. वह कहने लगा,
"यहां से उत्तर की ओर एक टापू है. उस पर हर चीज नीली है. वहां एक बहुत बड़ा जादूगर का राज्य है. वह मुर्दा उसी का सेवक है. जो उसके राज्य व महल का पहरेदार हैं."
राजकुमार ने लालदेव से एक अच्छा घोड़ा मंगाया और उस पर बैठकर उत्तर की ओर चल पड़ा. राजकुमार चौंक पड़ा घोड़ा उड़ा जा रहा था.