दूसरे दिन केवल राजकुमार आया. कालदेव के सैनिक काफी थे. आज जादू की लड़ाई होनी थी. कालदेव स्वयं मुक़ाबला करने आया था. सबसे पहले कालदेव ने त्रिशूल फेंका, राजकुमार ने चक्र से बीच में ही काट दिया. राजकुमार ने तलवार उसकी ओर फेंकी. राक्षस ने उसे फूँक से उड़ा दिया. तभी राजकुमार के चारों ओर सर्प लिपट गए. राजकुमार स्वयं आग का गोला बन गया. सारे सर्प जल गए.
राक्षस यह देखकर क्रोधित हो उठा. उसने आकाश से आग बरसानी आरंभ की. राजकुमार भी कम नहीं था. उसने बादल से वर्षा शुरू की कर दी, उसमें अंगारे बुझने लगे. राक्षस यह देख कर गायब हो गया. राजकुमार उसे खोजने लगा. तभी पत्थर गिरने लगे और उसे हंसी सुनाई दी. उसने देखा राक्षस वहां है. वह जादुई तलवार तेजी से घुमाने लगा. जो पत्थर तलवार से भिड़ता. वह आग का अंगारा बनकर राक्षस को लगता. राक्षस भागने को हुआ, राजकुमार ने जादुई तलवार उस की ओर फेंक दी. क्षण भर में कालदेव का काम तमाम हो गया. दूसरे क्षण जादुई तलवार उसके हाथ में आ गई. लालदेव ने कालदेव की नगरी पर अधिकार जमा लिया. विशेष उत्सव की तैयारी होने लगी.