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Heartless king

न्यूयोर्क शहर एक उँची ईमारत से, एक शख्स शीशे क़ी खिड़की के पास खड़ा  निचे आते -जाते हुए गाड़ीयों और लोगों को देख रहा होता हैँ..... उतनी ऊंचाई लोग और गड़िया उसे कीड़े माकोड़े क़ी तरह दिख रही होती हैं। वो निचे देखते हुए कुछ सोचे जा रहा था। तभी दो लोग अंदर आते हैँ, चलो हमें निकलना हैँ, काका हुजूर का बार बार फ़ोन आ रहा हैँ .... राजस्थान के लिए.... जैट तैयार हैँ......... वो शख्स, "हम्म्म " कहते हुए फिर से खिड़की क़ी तरफ देखते हुए और कहता हैं........... क्या उसके बारे कुछ मालूम हुआ, कहते हुए उसके आखों में एक दर्द उभर आया। दूसरा शख्स, "तुम आज तक नहीं भूले हो उसे..... सात साल हो गए.... कौन थी, कहाँ से आयी थी, केसी दिखती हैं,अब तक हमें मालूम नहीं हुआ,जैसे उसे जमीन खा गयी या आसमान निगल गया। जिन्दा भी हैं या मर गयी। तभी वो गुस्से में, उसका गला पकड़.... जस्ट शटअप दुबरा ये कहने की हिम्मत मत करना ये कहते हुए उसके आँखो में खून उतर आया। फिर झटके से उसे छोड़ दिया। वो खाँसते हुए अपने गले को सहलाता हैं। तभी वो मुड़ता हैँ और कहता हैँ..... उसकी पहली मुलकात के बाद यही कहूँगा क़ी उसके बगैर दिल कही लगता नहीं ज़ब तक जियूँगा उसे आखिरी सांस तक ढूढ़गा..... आगे महादेव क़ी मर्जी। तभी तीसरा शख्स छोड़ ना तू इसे जानता तो हैँ। तीनों निकल जाते हैं इंडिया के लिए.....

Dhaara_shree · สมัยใหม่
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32 Chs

Ch-30

इस समय दीक्षा लाल बनारसी साड़ी दुनिया की बेहद खूबसूरत महिला लग रही थी। जिसे देख कर सबकी दिल मे एक आह निकल जाती है। दक्ष और दक्षांश दोनों ने एक जैसा ब्लैक टॉक्सिंडो पहन रखा था। तीनों एक दूसरे कों पूरा कर रहे थे। एक परफेक्ट कम्प्लीट फॅमिली लग रहे थे।उन तीनों कों देख सभी माँ सा दूर से ब्लाईया ले रही होती है। पृथ्वी सब एक साथ तीनों कों देख कर कहते है, ये है हमारे घर की रौनक। शुभ कहती है, नजर ना लगे हमारे बच्चे कों। अनीश और अतुल मुस्कुराते हुए कहते है, दूसरा शेर है। ये सुनकर शुभम सब कहते है नहीं भाई सा !! इसे देख कर लगता है, बबर शेर है आं रहा है। "ये सुनकर सभी गर्व से अपने सीने कों चोड़ा कर लेते है। दक्ष और दीक्षा की नजर अपने परिवार पर जाती है तो वो दोनों मुस्कुरा देते है।

दो हिस्से मे पार्टी मे आये सभी मेहमान बंट गए थे और बीच से ये तीनों पार्टी मे शामिल हो रहे थे। दक्ष के ओरा उसे बेहद हैंडसम बना रहा था। जिसे देख वहाँ आयी सभी लड़कियों के अंदर दीक्षा कों लेकर जलन हो गयी थी और दीक्षा की खूबसूरती देख वहाँ आये जितनी आदमी थे उनको दक्ष की किस्मत से जलन हो रही थी। दक्ष एक राजा की तरह चल रहा था और उसके साथ दीक्षा रानी तरह लग रही थी। दक्षांश बिल्कुल दक्ष की तरह दमदार ओरा लेकर आया था। उसे देख कर सभी एक नजर मे कह देते की उसे अपने माता पिता की बेस्ट क्वालिटी मिली है। नीली आँखे और दक्ष की तरह पर्सनालिटी।

उनतीनों कों देख भुजंग के साथ साथ अलंकार की आँखे बड़ी हो जाती है। अलंकार कहता है, मुझे तो पता नहीं था की पार्वती के बाद भी कोई इतना खूबसूरत हो सकता है। लेकिन भुंजग कहता है ये बिल्कुल अपनी माँ आराध्या पर गयी है। फिर भुंजग की नजर नीची हो जाती है। जिसे देख अलंकार कहता है, " तुम्हारी नजर नीची क्यों हो गयी !! भुजंग कहता है क्योंकि जिसकी ये बेटी है वो कभी मेरा प्यार था। "दाता हँसते हुए कहते है," एक तरफा प्यार "!! भूल तो नहीं गए। भुजंग गुस्से मे कहता है,"एक तरफा ही सहीं लेकिन प्यार थी तो उस वजह से मै इस लड़की कों कुछ नहीं कर सकता। लेकिन तुमलोगों कों कुछ करने से रोक नहीं रहा हूँ !!"

अलंकार उसकी बात सुनकर उसके कंधे पर हाथ रख कर कहता है, "हम समझ सकते है, तुम्हारे दर्द कों !!"अगर उनलोगों ने हमे ठुकराया नहीं. होता बात कुछ और होती।"खैर है तो बहुत कड़क इसलिए ये तो चाहिए ही चाहिए। क्योंकि उसे भेजना जो इन प्रजापति महल की औरतों की किस्मत तय करेंगे।

भुजंग भी बहुत नफ़रत से कहता है," हाँ !! इस बार उसका आना जरूरी है। शायद इसी बहाने वो आं भी जाये। हमारे समय मे उससे ज्यादा खुंखार और अय्याश कोई नहीं था और सुना है उसका बेटा उससे भी ज्यादा बढ़ा हुआ है। " अलंकार कहता है, हाँ तुम ठीक कह रहे हो। देखो उम्मीद है की राजभिषेक से पहले आं जाये। "

ये सुनकर दाता कहता है, "आप दोनों भूल रहे है। उस यज्ञ कों हमे पूरा करवाना होगा। जब तक इसे वो  इनका खानदानी बक्शा नहीं मिल जाये।" भुजंग कहता है, हमे अच्छी तरह से याद है। जरा इसका बेटा तो देखो ये भी अपने बाप की तरह ही दिखता है। अधिराज कहता है, हाँ अंकल !! बस आँखे अपनी माँ के लिया है इसने। उसकी बातों के जबाब देते हुए दाता हुकुम कहता है, इसलिये तो खतरनाक है। "सभी सामने स्टेज पर देख रहे होते है।

तभी राजेंद्र मायक़ लेकर कहते है, "नमस्कार और बहुत बहुत शुक्रिया जो आप सभी हमारी खुशियों मे शामिल हुए। हम राजेंद्र प्रजापति आज आप सभी के साथ अपनी खुशियों कों बाँटना चाहता हूँ। हम आपको मिलवाना चाहते है अपनी चौथी पीठी के पहले अंश से.... लेकिन उससे पहले हम आपको बताना चाहते है की आप सभी के मन मे ये सवाल होगा की हमारे पोते दक्ष प्रजापति की शादी कब हुई। तो हम आपको ये बता दे की हमारे पोते की शादी सात साल पहले हो चुकी है लेकिन हमने ये बात सभी से छिपा कर रखा क्योंकि हम नहीं चाहते थे की हमारे परिवार के साथ कुछ गलत हो। जब हमे भरोसा हो गया की अब हम सबके सामने अपने अपने पोते -बहु और परपोते कों ला सकते है तो हमने ये खुशियाँ आप सभी के साथ साझा किया।"तो मिलिए हमारे परपोते दक्षाशं प्रजापति से !!" ये सुनकर राजेंद्र जी अपने पास दक्षांश कों बुला लेते है और उसे अपने साथ लेकर खड़े हो जाते है।

ये देख और सुनकर वहाँ आये सभी लोग ताली बजा कर उनकी बातों के स्वागत करते है।

निचे खड़ी तुलसी जी, जो पदमा और अपनी बहुओं के साथ खड़ी थी। उन सभी के साथ उन औरतो के पास आं जाती है, जिन्होंने कामनी की बातों मे आकर दीक्षा कों लेकर उल्टा सीधा कहा था। वो सभी चुप थे। तभी तुलसी जी कहती है, अब दोबारा हमारी महारानी बहु कों लेकर एक शब्द मे कहा तो हम से बुरा कोई नहीं होगा।

सभी पार्टी मे शामिल हो गए थे। दक्षांश बरखा की दोनों बेटियों वर्षा और मेघा कों देखता है जो एक कोने मे डरी सहमी खड़ी थी। जिन्हें देख कर वो उनके पास आता है और कहता है, तुम दोनों यहाँ क्या कर रही हो !! वो दोनों थोड़ी डरती हुई कहती है, बड़े भाई सा !! वो वहाँ जो बच्चे है ना !! उन्होंने हमे वहाँ गोला नहीं खाने दिया और कहाँ की हम आप सब की तरह नहीं है। हम नौकर है और हमे वो सब खाने की. इज्जाजत नहीं है।

उन्दोनो की बात सुनकर दक्षांश गुस्से मे कहता है, किसकी इतनी मजाल जो हमारी बहनो के साथ ऐसी बातें करे। चलिए हमारे साथ। वो दोनों कों लेकर उस जगह चला जाता है। जहाँ कुछ बड़े घर के बच्चे खड़े होकर अपनी पसंद की. चीजे खा रहे थे।

दक्षांश उन्दोनो कों लेकर वहाँ आते है और वहाँ दे रहे वेटर से कहते है, ये हमारी बहन है। इन्हें जो भी कुछ खाना सब कुछ उन्हें दीजिये। तभी मेघा कहती है भैया वो रहे !! दक्षांश उन बच्चों की तरफ जाता है, जो अभी आपस मे बात कर रहे होते है। वहाँ जब दक्षांश, वर्षा और मेघा कों लेकर आता है तो उसमें खड़ी एक लड़की मुँह बनाती हुई कहती है, देखो ये दोनों फिर आं गयी। उस लड़की की बात सुनकर सभी उन्दोनो कों देख कर कुछ कहने की कोशिश करते है।

तभी दक्षांश उन सभी कों अपनी ऊँगली दिखता है। अभी वो दूसरा दक्ष लग रहा होता है। वो गुस्से मे कहता है, कोशिश भी मत करना कुछ कहने की नहीं तो हम तुम सभी के साथ वो करेंगे जो तुमने कभी सोचा नहीं होगा। ये बातें दक्षांश इतनी कठोरता से कहीं थी की वो सभी उसकी बातें सुनकर डर कर पीछे हो गए। दक्षांश फिर कहता है, " आइंदा आप मे से किसी ने भी हमारी बहनो के साथ बतमीजी की तो हमसे बुरा कोई नहीं होगा।

ये कहकर दक्ष उन्दोनो कों एक टेबल पर बिठा कर उन्दोनो की पसंद की चीजे खुद लाकर देता है और कहता अब ख़ुश होकर खाओ। तुम्हारे भाई कों रहते हुए तुमदोनों कों कुछ नहीं होगा।

सभी अपनी अपनी ग्रुप बना कर खड़े थे। लेकिन दक्ष की नजर सबकी तरफ थी। जब दक्ष  और दीक्षा अपने भाई सब के साथ आपस मे सभी बात कर रहे होते है। तभी दीक्षा की नजर जानवी पर जाती है। दक्ष भी जानवी कों देखता है। उसकी आँखे नम हो जाती है और वो उसके माथे पर हाथ रख कर कहता है, " आप आज यही रुकेगी "!! दीक्षा भी उसे प्यार देखती हुई कहती है, अभी आज जश्न है तो बातें आराम से नहीं हो सकती। इसलिये हम सभी आपसे आराम से मिलेंगे।

इस बीच संयम की नजर बस जानवी पर थी। जिससे सभी देख रहे होते है, तभी अनीश और रौनक उसके करीब आकर धीरे से कहते है," अरे क्या उसको आखों से खा जायेगा। थोड़ा तो शरम कर। " उसकी बातें सुनकर सभी मुस्कुरा देते है और संयम उन दोनों घूर कर देखता है। "

दक्ष धीरे से पृथ्वी से पूछता है, विराज कहाँ है? पृथ्वी कहता है, सभी दिल के हाथों मजबूर है वो अपने दिल के इलाज ढूढ़ने गया है। ये सुनकर दक्ष कहता और हमारे दुश्मन सब आये है या नहीं !!

पृथ्वी कहता है, सभी मौजूद है बस हमारी मुलाक़ात की देर है !! दक्ष ग्लास मुँह मे लगाते हुए कहता है, " जरूर!! हम उनकी इक्छा जरूर पूरा करेंगे !!" तभी उनके बीच ओमकार और कृतिका आं जाते है। कृतिका कों देख कर रितिका और तूलिका की आँखे छोटी हो जाती है।

कृतिका नजर झुकाये खड़ी होती है। तभी ओमकार कहता है, ये है मेरी पत्नी कृतिका ओमकार रायचंद !! ये सुनकर दीक्षा और दक्ष कों छोड़ सभी हैरानी से उन्दोनो कों देखते है। ओमकार सबको देख कहता है, हाँ थोड़ा अजीब लगा होगा ये सुनकर आप सभी कों लेकिन यही सच है। हमदोनो ने एक दूसरे कों पूरी ईमानदारी से अपनाया है और हम एक दूसरे के साथ पूरा जीवन बिताना चाहते है।फिर दीक्षा की तरफ देख कर ओमकार कहता है, " हम आज खास कर तुमसे मिलने आये है। हमदोनों तुमसे माफ़ी मांगना चाहते है। " तभी कृतिका आगे आकर अपने सर झुकाये हुए दीक्षा से कहती है, " वैसे मेरी गलती माफ़ी के काबिल तो नहीं है फिर हो सके तो अपनी इस छोटी बहन कों माफ कर देना। मेरे पास अपने हिस्से की सफाई देने के लिए और कुछ नहीं है। "

दीक्षा उन्दोनो की बात सुनकर कृतिका के हाथ पकड़ उसके चेहरे कों ऊपर उठा देती है।कृतिका के आखों मे पश्चताप के आंसू बह रहे थे, जिसे दीक्षा पोंछती हुई कहती है, " सुबह के भुला शाम कों आं जाये तो उसे भुला नहीं कहते है "!! तभी कृतिका कहती है, क्या तुमने मुझे माफ कर दिया !! दीक्षा पलकें झपका कर कहती है, बिल्कुल !! यह ख कर उसे गले लगा लेती है।

फिर दक्ष के साथ सभी कहते है ओमकार कों, शादी मुबारक हो। अनीश कहता है, आख़िरकार तुम भी हमारी विरादरी मे शामिल हो गए।

इधर कृतिका कों देख दीक्षा के साथ साथ, शुभ, कनक सभी कहते है, शादी मुबारक़ हो और महादेव तुम्हारे जिंदगी कों खुशियों से भर दे। कृतिका, तूलिका और रितिका कों देखती हुई कहती है, क्या तुम दोनों मुझे माफ नहीं करोगीं !!"

दोनों मुस्कुरा कर कहती है, जबाब दीक्षा ने तुम्हें माफ कर दिया तो हमें भी तुमसे कोई शिकयत नहीं है। सभी एक दूसरे से बात करने लगी थी।

इधर दक्ष, पृथ्वी, सब एक साथ अलग अलग लोगो से मिल रहे होते है। लक्षिता जो कब से शुभम से बात करना चाहती थी। शुभम उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज कर रहा था। वो नहीं चाहता था उनसे मिलना। शुभम के व्यवहार देख लक्षिता दुखी होकर पार्टी से चली जाती है। उसे यू जाते देख कामिनी भी उसके पीछे जाने लगती है।कामिनी जी आवाज़ देती हुई कहती है, लक्षिता तुम कहाँ जा रही हो? लक्षिता दुखी मन से शुभम के बारे मे उनको सब कुछ बताती और कहती है, पता नी माँ सा !! वो इस तरह से व्यवहार कर रहा है, जैसे हमें उसके माता पिता नहीं है। आज उसकी आखों मे हमारे लिए नाराजगी नहीं नफ़रत देखी है हमने !! ये सुनकर कामनी जी भी सोच मे पर जाती है।

इधर दक्ष कों देख कर भुजंग और अलंकार की आँखे नफ़रत से लाल हो जाता है। उन्दोनो कों दूर से दक्ष हल्का शैतानी मुस्कान के साथ देख रहा होता है। जैसे उसके दिमाग़ मे बहुत कुछ चल रहा होता है।

लेकिन इधर मायरा और नायरा दीक्षा कों देख जलन और नफ़रत से भरी होती है। जब उन्हें बर्दास्त नहीं होता तो वो उनके पास आती है। दीक्षा जो कनक, कृतिका और सभी के साथ बातें कर रही होती है। उन्दोनो कों देख रही होती है।

वो दोनों एक साथ कहती है, तुम्हें देख कर यकीन हो गया की कैसे राजस्थान के राजा कों तुमने अपनी खूबसूरती के जाल मे फंसाया होगा और उसके साथ रात बिता कर बच्चा पैदा किया होगा। उन्दोनो की बात सुनकर सभी हैरानी से उन्हें देखती है। फिर कनक कहती है, लेकिन तुम दोनों हो कौन और ये जो बकवास कर रही हो वो किस लिए!! तूलिका कहती है, अफीम खा कर आयी है इसलिये बहकी बहकी बात कर रही।!! उन्दोनो की बातें सुनकर सभी मायरा और नायरा कों हिकारत भरी नजरों से देखती है।

खुद के लिए ऐसी बातें सुनकर दोनों गुस्से मे कहती, क्या मतलब है तुम्हारा !! बात आगे ना बढे इसलिये दीक्षा उन्दोनो कों ऊपर से निचे देखती हुई कहती है," दिखने मैं तुमदोनों मोम की तरह लग रही इसलिये अपनी जुबान कों लगाम दो वरना अगर मैंने हल्का सा तुम्हें मरोड़ दिया तो टूट कर बिखर जाओगी  !! हो कौन तुम आयी कहाँ से हो !! लेकिन आते के साथ तुमने राजस्थान की रानी कों बेज्जती करनी शुरु कर दी। तुमदोनों कों नहीं लगता है ये कुछ ज्यादा हो गया है। मेहमान बन कर आयी तो तो मेहमान बन कर रहो। नहीं तो!! अब एक शब्द भी तुम्हारे जुबान से निकली नहीं की तुम्हारी मौत पक्की है।" ये बातें दीक्षा ने इतनी कठोरता से कहीं की वो दोनों डर कर पीछे हट गयी। "

इधर दक्ष भुजंग के सामने आता है औरअपनी कटाक्ष नजरों से देखते हुए कहता है, " बहुत सिद्द्त से इंतजार कर रहे थे तो सोचा क्यों ना अब मुलकात हो ही जाय !!"

भुजंग भी कुटिल मुस्कुराहट लिए कहता है, " कहते है सिद्द्त से कुछ चाहो तो वो जरूर मिलती है। बहुत सुना था तुम्हारे बारे मे दक्ष प्रजापति और आज मुलकात हो ही गयी। "

दक्ष कहता है, वो भी शुक्रिया कीजिये हमारा क्योंकि हमने ही तो आपको आपके वनवास से बाहर निकाला है। ये सुनकर भुजंग के साथ साथ अलंकार और दाता भी हैरानी से देखते है।

दक्ष कहता है, परेशान होने की जरूरत नहीं है। मैंने तो इसलिये ये बातें की जहाँ तक तुम सब सोच नहीं सकते। उससे बहुत दूर मैं सोचता हूँ। अब जब मुलाक़ात हो ही गयी है तो आगे भी मिलते रहेंगे। अभी तो हमने कुछ किया नहीं और आप सबके चेहरे के रंग उड़ गए। तभी पृथ्वी उसके पास आकर कहता है, मामा जी !! आप इतने क्यों परेशान हो गए अपने भांजो की बात सुनकर।

उसके पीछे अतुल और अनीश कहते है, कंश मामा !! तो आप है नहीं फिर क्यों परेशान है !!

भुजंग गुस्से मे कुछ कहना चाह रहा था की दक्ष धीरे से उसकी तरफ झुक कर कहता है, मेहमान इसलिये इज्जत से पेश आं रहा हूँ !! वरना शादी की रात आपने जो कांड किया था उसका हिसाब अब भी बांकी है और दक्ष प्रजापति अपने कोई भी हिसाब अधूरा नहीं रखता। चलिए आप सब इंजॉय कीजिये।

फिर उसकी नजर अलंकार पर जाती है। उसे देख कर कहता है, यहाँ अपने डूबे हुए बिजनेस कों बचाने आये है चौहान साहब तो. उसी पर ध्यान रखियेगा। क्योंकि वो है ना !! दक्ष प्रजापति की नजर उसे भी देख लेती है, जो किसी कों नजर नहीं आता है।

ये कहते हुए दक्ष सभी के साथ वहाँ से चला जाता है और पीछे छोड़ देता है भुंजग, अलंकार सब कों परेशानी मे और चिंतन मे !!

अधिराज उन्दोनो की हालत देख कर कहता है, हमे चलना चाहिए !!

दक्ष अपने सभी भाइयों के साथ भुजंग और उनके साथियो कों सदमा दे कर जैसे ही जा रहा था। पीछे से अधिराज चीखता हुआ कहता है, " दक्ष प्रजापति !! अपनी कहते जा रहे हो तो जरा हमारी भी सुनते जाओ !!"

अधिराज की आवाज़ सुनकर दक्ष के साथ उसके सभी भाइयों के कदम रुक जाते है लेकिन कोई मुड़ कर उनसभी कों देखते नहीं है। अधिराज उनको रुका हुआ देखता है तो कुटिल मुस्कान के साथ कहता है, " दक्ष प्रजापति,!! हमें तो तुमने धमकी दे दी लेकिन जरा सोचो जो हाल तुम्हारे माँ बाप का हुआ। कहीं उससे बुरा हाल तुम सबका ना हो जाये। हो सकता है, तुम्हारी खूबसूरत बीबी के साथ ही कुछ बुरा हो जाये !! तुम खुद कों शेर समझते हो तो तुम पर भी सवा शेर है। इसलिये इंतजार करो!!  इस बार कहीं फिर से तुम्हारी कीमती चिज कोई ले ना जाये !!"

ये सुनकर सभी की हाथों की नसे फूल चुकी थी गुस्से मे आँखे बंद कर जब सारे भाई पीछे मुड़ने कों होते है तो दक्ष पृथ्वी के कंधे पर हाथ रख कर रोक देता है। फिर सिर्फ दक्ष मुड़ता है और कहता है, "अधिराज नाम है ना तुम्हारा!!अगर तुम हमारे घर के जश्न मे नहीं आये होते तो यहाँ जो तुमने बातें की उसके लिए हम तुम्हें जिन्दा जमीन मे गाड़ देते और कोई हमें रोकने वाला नहीं होता है! रही बात हमारी महरानी सा !! की तो वो बहुत अच्छी तरह से जानती है की तुम जैसे कुत्तो कों गली मे कैसे दोड़ा कर मारा जाता है।"ये बात दक्ष ने इतनी कठोरता से कहीं जिसे सुनकर अधिराज अपने दो कदम पीछे ले लेता है।

दक्ष कहता है, शुरुआत तुमने की तो खत्म भी तुम ही करोगे ये ख्याल बहुत अच्छा है। लेकिन अभी तो चाल भी हमारी है और मोहरे भी हमारे है। शेर मैदान मे उतरा नहीं तो तुम गीदरों ने खुद कों जंगल का राजा समझ लिया। लेकिन इस जंगल के राजा हम है, दक्ष प्रजापति!! मैदान मे तो हम उतर आये है !! अब हमारे ऊपर है की तुम गीदरों की मौत हम कब देंगे। फिर वहाँ से जाने लगता है और जाते हुए मुड़ कर कहता है," और हाँ !! आये हो तो खाना खा कर जाना क्योंकि हो सकता है, "आज के बाद तुम्हें ये खाना सुकून के नसीब मे नहीं होंगे।

फिर सभी भाई वहाँ से चले जाते है।

दीक्षा सभी के साथ बातें कर रही थी और उसके साथ कृतिका खड़ी थी लेकिन चुप और शांत,!! ये देख कर दीक्षा कहती है, अतीत मे बीती करवी यादो कों पीछे छोड़ कर जब आगे बढ़ी हो तो खुल कर जियो और हंसो। और हाँ हम बहुत खुश है की तुम्हें ओमकार जैसा जीवनसाथी मिला। मुझे लगता है की तुम दोनों एक दूसरे के लिए बिल्कुल सहीं हो। हम दिल से खुश है तुम्हारे लिए। ये सुनकर कृतिका मुस्कुरा देती है और कहती है, काश मैंने आपके साथ कुछ गलत नहीं किया होता। ये सुनकर दीक्षा मुस्कुरा देती है और कहती है,"अगर तुमने वो गलती की नहीं होती तो हमें अपनी सच्ची मोहब्बत से मुलकात नहीं होती। इसलिये हम तो बहुत खुश है की हमें दक्ष मिले।"

इधर विराज वृंदा कों ढूढ़ते हुए महल के पिछले हिस्से मे जाता है। वहाँ एक कोने मे उसे वृंदा दिखती है जो जार जार रोई ज़ब रही है और खुद से बातें की जा रही है। मुझसे कहाँ की मैं उनके लिए खास हूँ। आज देखो वो कैसी उस लड़की से चिपक रहे थे।मैं कभी बात नहीं करुँगी उनसे बहुत बुरे हो आप !! मैं तो आपसे प्यार करने लगी थी लेकिन आप ने एक दिन मे ही मुझे भुला दिया।

विराज खड़े होकर उसकी बातें सुनता है और मुस्कुराते हुए उसके पास आने लगता है। उसके करीब आकर पीछे से उसके कानों मे कहता है, "इतना गुस्सा "!! अचानक विराज की बातें सुनकर वृदा घूमती है, इस दौरान उसके होंठ विराज के गालों कों छू लेते है।

वृंदा खबरा कर परेशान होती हुई दो कदम पीछे ले लेती है। वो और खुद कों पीछे करती उससे पहले विराज उसकी कमर पकड़ कर अपनी तरफ खींच लेता है और खुद से लगाते हुए कहता है," इतना गुस्सा,!! जिसे देख सिर्फ मुझे प्यार आं रहा है। इस दौरान वो अपने नाक कों वृंदा के नाक से लगाते हुए। अपनी बातों कों आगे बढ़ाते हुए कहता है। वो भुजंग की मुँहबोली बेटी थी। जो बेवजह मेरे से चिपकती रहती है। यहाँ मैं ज्यादा लोगों की वजह से कुछ कह नहीं पाया।

वृंदा अपनी नजर उठा कर मुँह बनाती हुई कहती है, तो ये बात तुम मुझे क्यों बता रहे हो !!

विराज कहता है, अपनी होने वाली पत्नी से मैं कुछ नहीं छिपाना चाहता हूँ। इसलिये बता रहा हूँ। एक बार सब ठीक हो फिर बात करुँगा हमारी। तुम मुझ पर से अपने भरोसा मत खत्म करना। वृंदा उसकी आखों मे देखती हुई कहती है, " आप सच कह रहे है !!"

विराज उसके होठों पर अपने होठों कों रख कर दबा देता है। वृंदा अपनी आँखे बंद कर उसके अहसासों मे खो जाती है।

पार्टी लगभग अब खत्म होने के कगार पर थी। दक्ष का ध्यान हर तरफ था लेकिन उसे विराज कहीं नहीं. दिखता है। कुछ देर बाद सारे मेहमान एक एक करके जाने लगते है। सभी कों अच्छे से विदा करने के बाद राजेंद्र जी और उनके साथ घर के सभी बड़े अंदर चले जाते है। आज की भाग दौड़ और पार्टी काफ़ी थकान पड़ी थी सभी के लिए।

लेकिन घर के सभी बच्चे बाहर ही थी। क्योंकि अब भी कुछ खास मेहमान मौजूद थे जिनके साथ सबकी बातें हो रही थी। ओमकार और कृतिका कों देख कर दक्ष कहता है, अब तुम दोनों घर जाओ। क्योंकि मुझे लगता है अभी कुछ दिन तक तो शांति रहने वाली है। ओमकार सबसे मिलकर जाने लगता है।

अब जानवी के साथ सभी बच्चे उन्हें घेर कर बैठे थे। तभी वृंदा और विराज मुस्कुराते हुए साथ मे आते है। उन दोनों कों साथ मे देख हार्दिक गुस्से से घूरता है और वो कुछ कहने के लिए आगे बढ़ने लगते है। सभी अचानक उसके इस गुस्से कों समझने के लिए उसकी नजरों का पीछा करते है। तभी सबकी नजर विराज और वृंदा पर जाती है।

तभी आगे बढ़ रहे हार्दिक कों अतुल और रौनक रोक लेते है। दक्ष अपनी शांत आवाज़ से कहता है, हार्दिक !!

दक्ष की ये पुकार की हार्दिक के लिए काफ़ी थी की अब उसे रुकना है। वो रुक जाता है। अनीश कहता है, पूरी पार्टी खत्म हो गयी तब आप आये है। ये सुनकर विराज कुछ नहीं कहता है और जा कर शुभ और दीक्षा के पैर छू लेता है। उसके अचानक इस हरकत पर सभी हैरानी से उसे देखते है। लेकिन दक्ष शांत रहता है।

विराज अपनी बातों कों आगे बढ़ाता हुआ, हाथ जोड़ सर झुका कर कहता है, " हर गलती और बतमीजी की दिल से माफ़ी मांगता हूँ आप सभी से !!""

दीक्षा और शुभ उसके हाथों कों पकड़ कर कहती है, " जो बात अनजाने मे हो जाये और फिर भी आप उसे भूल समझ कर पश्चताप की आग मे जले। "उससे बड़ी माफ़ी नहीं हो सकती है। हमने आपको दिल से माफ किया और अब हम इंतजार मे है की कब आप अपने घर आये।

तभी पृथ्वी कहता है, अब आपको जाना चाहिए। इतना देर रुकना ठीक नहीं है। दक्ष भी कहता है, हाँ अब आपको जाना चाहिए। ये सुनकर विराज अपने सर हाँ मे हिला देता है और जा कर दक्ष के गले लग जाता है। जाते जाते सभी भाइयों के गले लग जाता है। हार्दिक उसकी हरकत देख कर हैरान होते हुए सभी कों. देखता है। कोई कुछ नहीं कहता, सब मुस्कुराते हुए विराज के गले लगते है। विराज जाते जाते जल्दी से हार्दिक के गले लग जाता है। हार्दिक तो उसकी प्रतिक्रिया देख अपने हाथ कों हवा मे ही उठाये रखता है। लेकिन विराज उससे गले लग कर तेजी से निकल जाता है।

जश्न की शाम खत्म होने के साथ अगली सुबह हॉल में सभी बैठे हुए थे। सभी बड़ो से लेकर बच्चे तक,क्योंकि दक्ष ने सभी को बुलाया था। साथ ही जानवी और साक्षी, रेशमा और वृंदा भी शामिल थी।दक्ष का इंतजार सभी कों था। फिर दक्ष और दीक्षा सबके सामने आता है।

तुलसी जी और राजेंद्र जी एक साथ पूछते हैं, "  क्या बात है दक्ष !! इतनी सुबह-सुबह सबको एक साथ क्यों बिठाया है आपने? दक्ष कहता है, क्योंकि दादी सा कुछ जरूरी बात भी करनी और आप सभी कों किसी से मिलवाना भी है। ये सुनकर लक्ष्य कहता है, " किससे मिलवाना है !!

दक्ष फिर जानवी के पास  आकर उसे खड़ा होने कों कहता है। जानवी जो अभी अचानक से इतने बड़े परिवार के बीच आयी थी। वो दक्ष के इस तरह कहने से घबरा जाती है, क्योंकि दक्ष का नाम और वो क्या है ये तो राजस्थान मे सभी जानते थे। जानवी कों यू डरते देख संयम उसका हाथ पकड़ इशारे से कहता है, सब ठीक है। संयम की ये हरकत प्रताप परिवार देख कर दंग रह जाते है, क्योंकि संयम कभी किसी लड़की कों खुद के आस पास नहीं खड़ा होने देता है और यहाँ तो वो जानवी का हाथ पकड़ रहा है। अनीश धीरे से अतुल और कनक कों कहता है, लो. एक और मोहब्बत के नए पंछी !! अतुल उसे आँख दिखा कर चुप रहने का इशारा करता है।

दक्ष एक बार फिर अपनी गंभीर आवाज़ मे जानवी कों देखते हुए कहता है, " आप घबरा क्यों रही है !! हम आपके बड़े भाई की तरह है, इसलिये घबराईये मत और उठिये। "जानवी सर झुकाये हुए उठ जाती है। घर के सभी छोटो कों मालूम था की जानवी कौन है इसलिये सभी शांत थे। लेकिन सभी बड़े अब भी दक्ष की बातें समझने की. कोशिश कर रहे थे।

दक्ष, जानवी का हाथ पकड़ कर तुलसी जी पास आता है और कहता है,"दादी मां!! आप ने इसे पहचान नहीं!!  तुलसी जी अपना सरना ना में हिलाती हुई कहती है, नहीं दक्ष !! हमने नहीं पहचाना। तभी दक्ष कहता है," जरा गौर से देखिये क्योंकि ये नाम तो आपने ही रखा था ना !! दक्ष की बातें सुनकर तुलसी जी के साथ साथ, राजेंद्र जी, लक्ष्य और सुमन हैरानी से जानवी कों देखते है। तुलसी जी आधे शब्दों मे कहती है, " ये कहीं हमारे नरेंद्र !!" उनकी आधी बातों कों पूरा करते हुए दक्ष कहता है, " आपने बिल्कुल ठीक समझा दादी माँ !! यह हमारे नरेंद्र काका की बेटी जानवी शर्मा है।

यह सुनते ही सभी जानवी की  तरफ देखते है और फिर दक्ष की तरफ ( जैसे पूछ रहे हो की क्या यह सच है )। दक्ष अपनी पलके झपका कर सहमती दे देता है । दक्ष की बातें सुनकर सभी हैरान हो जाते हैं। फिर लक्ष्य कहते है, " यह आपको कैसे पता चला? दक्ष सभी को सारी बातें बताता है कि कैसे शुभम और अंकित ने यह चीज पता किया और कैसे कंप्यूटर से उन्होंने यह चेहरा निकलवाया!!

तभी तुलसी जी जानवी कों प्यार से चूमती हुई कहती है, कितनी बड़ी हो गयी हमारी गुड़िया !! जानवी कों मालूम था की वो नरेंद्र शर्मा की बेटी है लेकिन ये नहीं मालूम था की उसके पिता का प्रजापति महल से कोई रिश्ता होगा। वो हैरानी से दक्ष कों देखती है, जैसे उससे पूछ रही हो की क्या ये बात सच है ? दक्ष उसकी आखों मे आये सवाल कों अच्छी तरह समझ कर, उसके माथे पर हाथ रख कर कहता है, " हाँ ये सच है !! क्या आप अपने बड़े भाई पर भरोसा नहीं करती !! ये सुनकर जानवी उसके सीने से लग जाती है और रोने लगती है। सभी उसे शांत करवाते है। तब जानवी कहती है, मुझे तो बाबा का चेहरा भी याद नहीं, सिर्फ उनका नाम मालूम है क्योंकि अम्मा ने सिर्फ मुझे उनका नाम बताया था। मेरे बाबूजी कहाँ है, क्या वो जिन्दा है या मेरी अम्मा की तरह.... आगे वो बोल नहीं पाती और रोने लगती है। तभी दीक्षा उसे पानी पिलाती हुई कहती है, " क्या हम आपके परिवार नहीं है !! फिर तुलसी उसके आँखे की आंसूओ कों पोंछती हुई कहती है, " ना!!अब आप रोयेगी नहीं !! अनामिका की तरह आप और आपकी छोटी बहन भी हमारी पोती है। जानवी अपने सर हाँ मे हिला कर बैठ जाती है।

तुलसी जी फिर दक्ष की आंखों में देखती हुई बहुत गंभीरता से कहती है, "  क्या कुछ और है दक्ष !! जो आप हमें बताना चाहते हैं!! दक्ष उनकी बातों की गंभीरता कों समझते हुए,कहता है, " हां दादी मां!!  बहुत कुछ है जो  आप सभी को जानने की जरूरत है लेकिन अभी उसका सही वक्त नहीं आया है । कुछ चीजें ऐसी हैं जो सही समय पर ही सबके सामने आनी चाहिए। राजेंद्र जी कहते हैं अगर आप कह रहे तो हमें आप पर पूरा भरोसा है।दक्ष कहता है,' शुक्रिया दादा जी।'

फिर दीक्षा आगे कर कहती है मुझे भी आप सभी से कुछ कहना है। दीक्षा की बातें सुनकर दक्ष अपनी आंखें छोटी करके उसकी तरफ घूर कर देखता है। दीक्षा उसे नजरअंदाज करती हुई कहती है, "  दादी मां!! तुलसी जी मुस्कुराते हुए कहती है, कहिये महरानी बिंदनी !!।

दीक्षा मुस्कुराते हुए, हार्दिक के पास आती है और साक्षी का हाथ पकड़ लेती है और तुलसी जी की तरफ देखती भी कहती है, "दादी मां!! हार्दिक साक्षी एक दूसरे को पसंद करते हैं और दिव्यांश रेशमा भी एक दूसरे कों पसंद करते है । सभी दीक्षा की बातों को बहुत ही गंभीरता से सुन रहे थे और दक्ष सिर्फ दीक्षा कों घूर रहा था। लेकिन इस बीच दीक्षा एक बार भी दक्ष की तरफ ध्यान नहीं देती है।

फिर दीक्षा शुभम और अंकिता के पास आती है कहती है," दादी मां!! कुछ और जोड़े है जो एक दूसरे कों पसंद करते है।फिर सबकी तरफ देखती हुई कहती है, " शुभम अंकिता एक दूसरे को पसंद करते हैं। सौम्या और अंकित एक दूसरे को पसंद करते हैं और अनामिका आकाश भी एक दूसरे को पसंद करते हैं। " ये सारी बातें दीक्षा एक सांस और झटके मे बोल जाती है। दक्ष के साथ साथ सभी के मुँह खुले रहे जाते है और शुभम, अंकित, आकाश, हार्दिक, देव्यांश के साथ साथ सभी लडकियाँ अपने सर कों निचे कर लेती है।

सभी बड़े तो अपनी आँखे बड़ी करते हुए सभी कों देख रहे होते है। क्योंकि दक्ष के झटके से तो किसी कों फर्क नहीं पड़ा लेकिन दीक्षा के एक साथ एक के बाद एक झटके देने के बाद सभी लड़के और लड़कियां सर झुका के खड़े होते हैं और सभी बड़े उन्हें घूर रहे होते है। दीक्षा की नजर जब सभी बड़ो पर जाती है तो वो डर के मारे दक्ष के बगल मे खड़ी हो जाती है। दक्ष अपनी छोटी आँखे करके उसे घूरता है।

कुछ पल के लिए वहां बिल्कुल खामोशी छा जाती। दीक्षा कुछ कहने के लिए फिर से मुंह खोलती है तो तुलसी जी हाथ दिखा कर चुप करवा देती है। तुलसी जी का इस तरह से दीक्षा कों चुप करवाना। दीक्षा के साथ साथ सबको परेशानी मे डाल देता है।

दीक्षा परेशान सीधे दक्ष का हाथ पकड़ लेती है। दक्ष उसे घूरता है और इशारे मे उसे पूछता है की ये क्या है? दीक्षा उसे हल्का अपनी तरफ झुका कर धीरे से उसके कानों में कहती है, " आप कुछ करते क्यों नहीं? यह सुनकर दक्ष उसके कानों में धीरे से कहता है, " क्यों? जब आपने बम फोड़ा था तब मेरे से पूछा था कि हां दक्ष में बम फोड़ रही हूं। यह सुनकर दीक्षा मुंह फुला लेती है।

शुभ पृथ्वी से कहती है आप कुछ कीजिए ना!!  पृथ्वी शुभ को देखता है और कहता है क्या चाहती हूं मैं छत से कूद जाऊं? दीक्षा और शुभ एक दूसरे को देखती है और फिर अपने पतियों के कान मे कहती है, " आप दोनों से कुछ नहीं हो सकता!आप दोनों किसी काम के नहीं है !! पृथ्वी और दक्ष जो उन दोनों के बीच में खड़े रहते हैं, " वह दोनों,उन दोनों की बात सुनकर उनकी तरफ देख कर कहते हैं, " आपने जो कि रायता फैलाया है वह समेटने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है। यह सुनकर दीक्षा कहती है सोच लीजिए अगर आपने हमारा रायता नहीं समेटा और हमने डांट खायी !! तो फिर भूल जाइए एक महीने तक हम आपसे मुलाकात नहीं करेंगे।

उसके साथ साथ, शुभ पृथ्वी की आखों मे आँखे डाल कर कहती है, " दीक्षा तो देवर सा कों एक महीने की वनवास की बात की है लेकिन हम आपको दो महीने अपने कमरे में नहीं आने देंगे । अगर हमारी देवरानी कों किसी ने डांटा तो। यह सुनकर दोनों एक दूसरे को लाचारी भरी नजरों से देखते हैं और पृथ्वी धीरे से दक्ष से कहता है, " आपको नहीं लगता की हमारी पत्नियों का गठबंधन हमसे ज्यादा मजबूत है। ये सुनकर दक्ष कहता है, हम्म्म्म!!लग तो यही रहा है भाई सा !!

उन चारों की खूसूरफुसूर देख कर दूसरी तरफ खड़े अतुल, अनीश और रौनक एक दूसरे से कहते है, मुझे ऐसा क्यों लग रहा की हमारे दो शेर कों उनकी शेरनियो ने चूहा बना दिया है। कोई और कुछ कहता, उससे पहले पीछे खड़ी कनक, रितिका और तूलिका कहती है, " अगर आप सब भी पिंजरे मे कैद होना नहीं चाहते तो मुँह बंद कीजिये।

तभी दी तुलसी की अपनी आवाज तेज करते हुए कहती हैं, "  अगर आप सभी की खूसूरफूसूर हो गयी हो तो क्या हम अपनी बातें करें? यह सुनकर फिर सभी सर झुका लेते हैं। सभी को सर झुकाए देख सभी बड़े मुस्कुरा देते हैं और अचानक तुलसी जी जोर से हंसने लगती उनके साथ सभी बड़े हंसने लगते। सभी बड़ों को हंसते देख सारे बच्चे हैं हैरानी से उनको देखते हैं। क्योंकि उनको समझ में कुछ नहीं आता है।

यह देखकर तुलसी जी कहती है, " महरानी बिंदनी !! आप जो बातें बताई हैं हमें!  वह सारी बातें हमें पता है। आप सब हमारे बच्चे हैं और हमारे नाक के नीचे आप सब जो करते हैं उस पर हमारी नजर बखूबी बनी रहती। हम चाहते थे कि कब आप यह सब बातें करें और अब जब आप सभी ने अपनी दिल की बातें कर ही दी है तो हम ऐसा करते हैं आपके राज्य अभिषेक के बाद इन सब की शादी और सगाई की मुहूर्त एक साथ निकलवा कर करवा देते हैं। क्या ख्याल है मुकुल और चेतन आपका?

तुलसी जी बात  सुनकर, मुकुल जी और चेतन जी कहते हैं, " हमारी तरफ से आप जो भी फैसला करती हैं वह हम सब कों मंजूर है माँ सा । निशा जी और सुकन्या जी मुस्कुराते हुए कहती है, "  हां माँ सा !! लेकिन इस बार हम अपनी बहू को ले जाएंगे । यह सुनकर तुलसी जी हंसती हुई कहती है, "  हां हां इस बारआप अपनी बहू को ले जाइएगा और हम इस बार हमारी बेटीयों कों विदा करेंगे बहू नहीं लाएंगे।ये सुनकर एक बार सभी मुस्कुरा देते है। तुलसी जी कहती है, चलिए घर बेटे अच्छे रिश्ते मिल गए। सब की बातें सुनकर,अर्चना जी और सुमन जी कहती हैं तो फिर हम लोग मिठाई लाते हैं। फिर झुमरी और बरखा को आवाज देती है, " झुमरी और बरखा सबके लिए मिठाई लेकर आती है और सबका मुंह मीठा करवाया जाता है। सभी खुश थे और सारे बच्चे तो बहुत खुश थे। सारे बच्चे सभी बड़ो का एक एक करके आशीर्वाद ले रहे थे। इन सबके बीच तुलसी जी की नजर दक्ष पर जाती है और वो इशारे से दक्ष कों पीछे बुलाती है। दक्ष अपने इशारे से उनको सहमती मे जबाब देता है।

कुछ देर बाद,दक्ष तुलसी जी के साथ महल के पीछे वाले हिस्से में चला जाता है। जहाँ कोई नहीं आता। तुलसी जी फिर दक्ष की तरफ देखती है और पूछती है, " क्या आपको पता चल गया कि हमारा पोता जिंदा है!!  दक्ष उनके कंधे पर हाथ रख कर कहता है, " आपकी नजरों से कुछ नहीं छिपा !! हां दादी माँ !! ये सच है की आपका पोता जिन्दा है और हम उनसे मिल चुके है।

दक्ष की बातें सुनकर तुलसी जी खुश होते हुए, दक्ष के चेहरे को पकड़ कर उनके माथे को चूमती हुई कहती है, " हमे यकीन था की जिस दिन आपने तय कर लिया। उस दिन से आप वो सब कुछ करके दिखाएंगे जो हम चाहते है। आपने हमें बहुत बड़ा तोहफा दिया है दक्ष । क्या हम अभी नहीं जान सकते कि वो कौन है? आप कुछ और मत सोचिये क्योंकि हमे लगता है की, इतनी बड़ी बात अगर आपने हमारे बीच नहीं बताया। इसका जरूर कुछ कारण होगा !!

तुलसी जी की बात सुनकर, दक्ष उनके हाथों कों अपने हाथों मे लेते हुए कहता है, "दादी सा अगर अभी हमने उनकी जानकारी सबको बता दी तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। हम सब कुछ सोच समझ कर फिर उन्हें आपके सामने लाएंगें । तुलसी जी उसके माथे पर प्यार से हाथ रखते हुए कहती है," हमें आप पर पूरा भरोसा है। दक्ष मुस्कुरा देता। फिर दोनों सबके बीच आं जाते है।

ढाई महीने बाद,

प्रजापति महल में जहां सब कुछ ठीक हो रहा था वहां राठौर बहुत बड़ी साजिश को अंजाम देने में लगा हुआ था जिसकी भनक ना ओमकार  हो रही थी ना विराज कों हो रही थी। क्योंकि सभी कहीं ना कहीं दूसरे जगह चले जाते थे और उनकी खबर विराज को नहीं लगती थी।  इन दिनों ओमकार, दक्ष के साथ पार्टनरशिप करके उसके साथ अपने काम को बढ़ा रहा था। कृतिका का आना जाना ज्यादा प्रजापति महल में होने लगा था। सभी से उसकी अच्छी दोस्ती हो गयी थी। वृंदा, जानवी, साक्षी और रेशमा भी प्रजापति महल मे रहने लगी थी।तूलिका अपने हॉस्पिटल कों देखा करती थी। दीक्षा और शुभ ऑफिस के साथ घर संभाला करती थी। रितिका अनीश के साथ अपने वकालत मे लगी हुई थी। इधर सौम्या, अंकिता और अनामिका तीनों दीक्षा द्वारा दिए गए कामों कों पूरा करने मे लगी हुई थी। कुल मिला कर सभी सब अपने अपने कामों मे व्यस्त हो गए थे। घर के बड़े राज्यभिषेक की तैयारी मे लगे हुए थे।

प्रताप परिवार के साथ साथ प्रजापति परिवार कों भी मालूम हो चुका था कि दीक्षा, आरध्या की बेटी है।  और माधवगढ़ उसका ननिहाल है लेकिन संयम के कहने पर कोई किसी को कुछ नहीं बताता है कारण दीक्षा की सुरक्षा ज्यादा जरूरी थी। लेकिन अब संयम का आना-जाना ज्यादा प्रजापति महल मे होने लगा था और दीक्षा भी माधवगढ़ आने जाने लगी थी । सब कुछ अपने हिसाब से चल रहा था और बीते दिनों। यह सारी घटना होते हुए। सौम्या अंकिता और अनामिका तीनों की नजर थी शुभम अंकित और आकाश पर थी ।

आज दीक्षा के पास भागती हुई सौम्या आती है और उसके हाथ में वही डायरी होती है जो पेपर में लपेटा हुआ होता है। सौम्या जल्दी से दीक्षा के पास आती है और कहती है, "  भाभी सा!!  यह मुझे डायरी शुभम के लॉकर से मिला है। दीक्षा, सौम्या के हाथों से डायरी लेती है और कहती क्या तुमने यह पढ़ा है!!