अगले दिन शाहिद आयत से पहले जैसे रहने लगा वो ही
अजीब बर्ताव ऐसे ही एक महीना गुज़र गया और एक दिन शाहिद रात को घर बहुत देर से पोहछता है
आयत को वो रात बेहद डर लग रहा था वो बस एह दुआ कर रही थी की शाहिद घर आ जाए सही सलामत पता नही क्या हुआ है क्यों नही आए अभी तक
और जैसे ही शाहिद घर आता है आयत उसको
देख कर टोन लगती है और कहती है सचमे आपकी नज़र मैं मेरी कोई एहमियत नही है में मर भी जाओ तो और लोगो की तरह आपको भी कोई फर्क नही पड़ता हैं मेरी जिन्दगी से है न लेकिन शहीद ऐसा क्यों है ?
मैं इतनी नफरत के काबिल हु क्या ? मैं आपकी बीवी हु क्या आपको जरा मेरा खयाल नही आता आज आप इतनी देर से आए एक बार मन नही किया की मुझे खबर करदे या मैं फिक्र कर रही होगी यह सच है की आपको यह शादी से कोई मतलब नही लेकिन मेरे लिए यह सब कुछ है आखिर मैने कौनसी खता करदी है इस दुनिया में आकर मैं आपके बिना ही ठीक थी उम्मीद थी की शायद कोई मुझे भी समझेगा लेकिन अब मेरा बिलकुल जीने का मन नही करता है शाहिद तुम मुझसे क्यों इतना नफ़रत करते हो वो यह कहते कहते सिसकियों से रोने लगी शाहिद के मन में जो भी था वो सब बातों को भूल कर आयत को जाकर गले से लगा लेता है वो पल क्या था ? मानो बरसो पुराने ज़ख्मों पर कोई मरहम अचानक से लग गया सब कुछ ठीक होगया दुनिया अच्छी लगने लगी जैसे फिर से जिंदगी मिल गई वो पल इतनी नाजुक खूबसूरत था की वो दोनो ही की चाहते थे यह कभी खत्म हो यह वो लम्हा था जहां