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Shairy No 25

अर्ज़ कुछ यूँ किया है ज़रा गौर फरमाइयेगा

तकदीर ना जाने कौन सा खेल खेल रहे हैं

तकदीर ना जाने कौन सा खेल खेल रहे हैं

क्या पता यह नयी सुरुवात है या फिर कुछ पुराना हिसाब हैं

जीवन में ठोकरें तो बहूत खायी है हमने

जीवन में ठोकरें तो बहूत खायी है हमने

बस जी रहे हैं हम तकदीर के सहारे

ना जाने कहाँ है मेरी मंज़िल और ना जाने रास्ते

अनजान सफ़र है बस चलते जाना है

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