कहानी के सभी किरदार और घटनाये काल्पनिक है। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कोई संबंध नहीं है। कहानी में शहरो के नाम का ज़िक्र केवल कहानी को विश्वसनीय और वास्तविक बनाने के लिए किया गया है।
कहानी का उद्देश्य हमारे समाज में समलैंगिक लोगो के लिए फैलती बुराइयां, गलत धारणाओं और विचारो को बदलने का प्रयास है।
जब कोई कहानी लिखता है, तो अपनी आत्मा को उस कहानी में उड़ेल देता है,, कहते हैं इसमे बहुत हिम्मत लगती है खुद को किसी दूसरे किरदार में ढालने के जितनी, उसकी जिंदगी मे अपनी ज़िन्दगी जीने के बराबर,,,
और कभी कभी तो अपने खुद के वजूद को ही भूल जाते हैं
आप सभी के सामने पेश है,,,
"दम घुटता है" दर्द की आह से सिसकती कहानी, बेपन्हा मुहब्बत और बेइंतहा सितम के ताने बाने में उलझती प्यार की ऎसी कहानी,,, जिसके दर्द की आह की सिसकी मे आपका दिल भी रो दे....!
मुहब्बत ऐसी कि हर कोई उस जैसा महबूब चाहे....
सितम ऐसे कि दर्द से पढ़ने वाले की भी आह निकल जाए...
मैं आप सभी से इस दर्द और मुहब्बत के अनसुलझे से सफर में साथ चलने की गुजारिश करता हूं...!
आपका प्यारा सा दोस्त
@shivi...!!!
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" जी मैं क्या कहती हूँ आप कार्तिक के स्कूल में एक बार फिर से बात कर आए.... क्या पता इस बार इसकी मैडम मान जाए"
"तुम्हें क्या लगता है मैंने बात नहीं की... यार एक्जाम है बच्चे के तो क्या कह सकते हैं"
इस बार वह झुंझला उठे,,, डाइनिंग टेबल पर खाना लगाते हुए वह फिर से बोलने लगी
" मैं तो पहले ही कहती थी कि पहले वाला स्कूल ही बेहतर था लेकिन मेरी कोई सुने तो न,,, पढ़ाई तो वहा भी अच्छी होती थी पड़ोस के कितने ही बच्चे जाते हैं वहां.... अब एक ही बेटा है इसके मामा के,, कौन सा चार पांच है जो उनकी शादी में चला जाएगा,,"
वह सबको सुनाती हुयी किचन में गयी
कार्तिक कुर्सी पर बैठ कर अपनी मम्मी की बाते सुन कर मन ही मन हँसे जा रहा था...
कार्तिक 11th क्लास में था,, अपने घर का छोटा बेटा था,, सभी उसे बहुत प्यार करते थे,, कार्तिक से बड़ा कर्तव्य था जो मुंबई में इंजीनियरिंग कर रहा था, कार्तिक के मामा के घर शादी थी जिसके लिए उन्हे एक हफ्ता वही रुकना था लेकिन अचानक शादी वाले ही कार्तिक का एक्जाम था इसलिए स्कूल से छुट्टी नहीं मिल पायी,,, जिसको लेकर कार्तिक की मम्मी सीमा बहुत ही परेशान थी,,, वह अपने बेटे को अकेला छोड़ने के लिए राज़ी नहीं थी,,, इसलिए कार्तिक के पापा ने अपने दोस्त के बेटे जो कर्तव्य की उम्र का था उसको कार्तिक के साथ घर पर रहने के लिए बोल दिया था,,,,तब जाकर वह थोड़ी मुत्मइन हुई,,,,, अगली सुबह कार्तिक को स्कूल छोड़ कर दोनों गांव चले जाते हैं,,, कार्तिक मम्मी पापा से दूर होने पर दुखी था साथ ही वह खुश था कि एक हफ्ते तक वह फूलटाईम अपना फेवरिट विडियो गेम खेल सकता है,,,
कार्तिक एक मासूम सा लड़का था,,, उसके ज्यादा कोई दोस्त नहीं थे वह स्लिम होने की वजह से क्लास के बड़े लड़के उसे छेड़ते थे,,, साफ रंग आँखे तीखी एक दम लड़की के जैसे बड़ी बड़ी,,, जब वह हँसता था तो उसके गाल पर डिंपल पड़ता था जिस से वह और भी सुंदर लगता था,,
उसे कुछ स्कूल के बदमाश लड़के उसे परेशान करते थे, कोई उसे लड़की बोलता था, तो कोई उसके गालों को छेड़ देता था, वह किसी से शिकायत करने की धमकी देता तो उसे और ज्यादा परेशान किया जाता था जिस वजह से वह बिल्कुल खामोश रहता था,,,
सारी क्लास में उसका कोई दोस्त नहीं था,,, जिस कारण वह अकेला बैठ कर चुप चुप कर रोता था, उसका कही दूर भागने का मन करता था सभी से दूर, लेकिन घर पर सब उसे बहुत प्यार करते थे जिस कारण उसे थोड़ी हिम्मत मिल जाती थी, वह बाहर भी किसी के साथ नहीं खेलता था,, पड़ोस में भी उसके साथ यही प्रोब्लेम होती थी,,,,
स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी, उसके पापा कह कर गए थे कि विक्रम (विक्की) उनके दोस्त का बेटा उसे स्कूल लेकर जाया करेगा,,, इसलिए वह स्कूल के मैन गेट पर खड़ा उसी का इंतजार कर रहा था,,, तभी उसके सामने एक बाइक रुकी, जिस पर कोई 22-23 साल का लड़का बैठा था बाइक उसके सामने रुकी,, कार्तिक उसे एक नज़र देखता ही रह गया,, उसने व्हाइट कलर की टी शर्ट पहनी हुई थी, ब्लू जींस,, बॉडी जिम की हुयी थी चेहरे पर हल्की सेव थी रंग सांवला था,, देखने में एक दम हॉट लग रहा था,, उसने बाइक पर बेठे हुए ही उसे बैठने का इशारा किया,,, वह उसके पीछे बैठा
" कैसा रहा आज का दिन स्कूल में तेरा" उसने बाइक ड्राइव करते हुए पूछा
"जी भइया अच्छा रहा" उसने स्पीड से दौड़ती बाइक पर खुद को संभालते हुए उसके बाजू को पकड़ा.
" ठीक से पकड़ के बैठो..." उसने हंसते हुए बाइक की स्पीड बढ़ाई
" भइया डर लगता है मुझको,,," उसने डरते हुए कहा
" कुछ नहीं होगा विक्की की बाइक पर बैठा है तू" उसने हंसते हुए कहा,,,
फिर इधर उधर की बाते करते हुए दोनों घर पहुच गए,,, वह उसे घर छोड़ कर शाम को आने का बोल कर घूमने निकल गया....!
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विक्की सोफे पर लेटा हुआ था अपने फोन मे मूवी देख रहा था,, रात के करीब 9 बज चुके दोनों विक्की के घर खाना खा कर वापिस कार्तिक के घर सोने के लिए आ चुके थे,,,गर्मी थोड़ी ज्यादा थी,, कार्तिक नहा कर खुद को टॉवल से लपेटे बाथरूम से बाहर निकला, भीगा बदन बालो से टपक रही हल्की हल्की पानी की बूंदे उसके बदन पर ठहर रही थी,, वह आईने के सामने खुद के गीले बदन को पोछने लगा,, उसे यह अंदाज़ा भी नहीं था कमरे में उसके अलावा कोई और भी है,
विक्की की नज़र उस पर पड़ी,. उसके नंगे बदन को देख कर, उसके बदन मे जैसे एक अलग ही तरह आग सुलगा रहा था ,,उसका मन कार्तिक पर आशकत हो रहा था, उसको यह एहसास किसी लड़के को देख कर पहली बार हुआ था , वह मन ही मन अपनी गर्लफ्रेंड और कार्तिक की तुलना करने लगा,,, नज़र उसके बदन से हट ही नहीं रही थी,,,
"" "यार इसका फिगर तो मेरी गर्लफ्रेंड से भी कमसिन है,,, इसका तो कुछ करना होगा" ""
उसने अपने सूखते हुए होठो को जीभ से गिला किया,, तो कार्तिक ने उसे सोफे पर लेटे हुए देखा
" क्या देख रहे हो भैया"
उसने टी शर्ट पहनते हुए पूछा
" तुझे.... बहुत ही मस्त है तू " विक्की के होठो पर हवस भरी मुस्कान थी, कार्तिक झेप गया उसने मासूमियत से पूछा
" कहा भैया,, सब सुखी हड्डी बोल के तो चिढ़ाते हैं मुझे"
" नहीं यार कसम से बहुत सेक्सी दिखता है तु"
" हू थैंक यू " कार्तिक ने मुस्कुरा कर बेड की चादर ठीक करते हुए कहा
" बस थैंक यू " वह उठ कर बेड पर आ चुका था,,
" फिर" उसने अनजान भाव से पूछा
" कुछ नहीं यार चल सो जा " वह अपनी आंखो पर हाथ रख कर लेट गया,,, लाइट ऑफ कर दी थी
" ओके भैया गुड नाइट " वह भी आंखे बंद करते हुए, गहरी नींद में जा चुका था,,, लेकिन विक्की की आँखो में नींद नहीं थी उसके आँख बंद करते ही सामने कार्तिक का भीगा हुआ बदन आ रहा था,
"विक्की इस लड़के का कुछ तो करना होगा इसने तो पूरे बदन मे आग लगा है" , वह इधर उधर करवाते बदलते हुए सोच रहा था,, आखिर विक्की भी जवानी की उस दहलीज पर था जहां दिल और दिमाग पर जिस्मों की प्यास हावी हो जाती है,,, वह इसी जद्दोजहद में सो गया,,,
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सुबह सूरज की तेज रोशनी खिड़की से होकर विक्की के चेहरे पर पड़ी उसने खुद को अल्सते हुए नींद की कैद से आजाद किया,,, बेड के दूसरे साइड देखा तो खाली था,,, उसे कुछ एक दम से समझ नही आया तो वह बेड के सिरहाने से टेक लगा बैठ गया तभी बाथरुम का डोर ओपन हुआ अंदर से कार्तिक फिर से भीगे हुए बदन के साथ आता हुआ नज़र आया,,
होठो पर अलग ही मुस्कान आई जैसे सुबह सुबह उसकी आरज़ू पूरी हुई हो लेकिन साथ ही उसके शरीर में एक खिंचाव महसुस हो रहा था जो कार्तिक की ओर उसे खीच रहा था ,,,
" गुड मॉर्निंग भैया"
" जल्दी से रेडी हो जाओ,,नाश्ते के लिए घर जाना उधर से ही तुम्हें स्कूल छोड़ दूंगा" वह कहता हुआ बाथरूम में चला गया,,
फिर वह उसको स्कूल छोड़ने गया रास्ते भर उसके मन में कार्तिक घूम रहा था उसे कुछ और याद ही नहीं था,,, शायद उसके दिलो दिमाग पर कार्तिक छाया हुआ था ,,
जिंदगी में अक्सर ऎसा होता है किसी की और हमारा मन इतना आकर्षित हो जाता है कि बस उसे पाना चाहता है,, किसी भी कीमत पर,
इसी कसम्कश मे विक्की भी था,,
मन ही मन उसके कार्तिक को पाने की लालसा जागने लगी थी,,, लेकिन क्या करे कुछ समझ नहीं आ रहा था....
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कार्तिक का आज आखिरी एक्जाम था जिसके बाद वह काफी खुश था,लेकिन शायद यह उसका खुश रहने का आखिरी दिन था ,, विक्की स्कूल के बाद उसे घर छोड़ ग्या था,,, दोपहर में खाना लेकर आने वाला था,, बाहर गर्मी भी बहुत थी इसलिए वह बरामदे में बैठा टीवी देख रहा था,, कि तभी डोर बैल बजी, उसने भाग कर दरवाज़ा खोला तो समाने विक्की था,, जिसको देख कर वह खुश हुआ लेकिन उसे क्या पता था यह मुस्कुराहट कुछ ही वक़्त मे दर्द और आंसुओ मे बदलने वाली थी,, उसे मुस्कुराते हुए देख विक्की ने मुस्कुरा कर उसे देखा,,, अंदर आ सोफे पर बैठ गया,,
" मैं तो कब से आपका इंतजार कर रहा था भैया"
" भूख लगी है"
" हूँ ज़ोरो की भैया"
" सॉरी यार वो एक दोस्त मिल गया था रास्ते में "
" कोई बात नहीं भैया"
" आज तो गर्मी भी बहुत है"
" मैं पानी लेकर आता हूँ आपके लिए"
कार्तिक उसके लिए पानी लेने कीचन में गया,, उसने फ्रीज़ खोला बोतल निकाली,, कांच के गिलास में पानी डाला जैसे ही पानी के गिलास वाली ट्रे उठाई,,
उसकी कमर को मर्दाना हाथो की पकड़ का एहसास हुआ,,, उसे अचानक कुछ समझ नहीं आया,, पकड़ इतनी मजबूत थी उसका पूरा बदन कांप गया,, उसने पलटने की कोशिश की तो हाथ से ट्रे छूट चुकी थी,, जो फर्श से टकराने पर गिलास टूट कर टूकडे टूकडे हो गया,, उसने देखा कि वो गिरफ्त विक्की की थी,, विक्की ने उसके सर् को दोनों तरफ से पकड़ा उसके गुलाबी कंपकंपा रहे होठो को अपने होठो की मजबूती से कैद मे लिया,, कार्तिक को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह उसके साथ क्या हो रहा है,, उसने थोड़ी ताकत दिखाई अपने दोनों हाथों से उसके मजबूत सीने को थक्का दिया,, थोड़ा सफल हुआ विक्की दो कदम पीछे हट गया था,,,
वह कीचन से भागने के लिए बाहर को दौड़ा लेकिन दो कदम रखने के बाद ही पूरा घर एक ज़ोरदार चीख मे तब्दील हुआ
"आआअहःहहहह"
और वह वही फरश पर गिर गया....!
कार्तिक की चीख पूरे कमरे में गूंजी.... आँखो से आंसू बहने लगे थे लेदर बेल्ट उसके बदन पर निशान छोड़ चुकी थी. बेल्ट उसकी कमर पर लगी थी वह बेड से आधा नीचे लटक गया था
" अआइईईई भैया नहीं प्लीज़ मत मारो"
वह उसके पैरो पर गिरगिराने लगा था,, उसने उसकी टी शर्ट एक झटके में उतार दी थी,,, कुछ ही देर में वह उसके सामने बिन कपड़ो के था,, उसके बदन को देख वह पागल सा हो गया था,,, उसने उसको सीने से लगाया उसके गुलाबी होठो को ज़ोर से चूसने लगा था,,,
उसने उसको धक्का देने की कोशिश की तो उसने उसके दोनों हाथो को टी शर्ट से बांध दिए थे,, वह तड़प रहा था चिल्ला रहा था,, रात में तन्हा घर में उसकी कोई सुनने वाला ही नहीं था उसने अपनी टी शर्ट से उसके मुह को बांध दिया था,, वह उसके सामने किसी ज़ख़्मी शिकार के जैसे पड़ा था,,,
" बहुत चिल्लाता है ना तू चल अब चिल्ला ज़ोर से"
उसने उसके नंगे बदन पर बेल्ट से मारना शुरू किया उसकी कमर पर, उसके नितम्ब पर बेल्ट की मार से लाल निशान बन रहे थे,,, उसकी चीख उसके गले में ही रुकी हुयी थी आँखो से आंसू सुख गए थे,, बिल्कुल बेसुध सी हालत में था वह,, उसकी आत्मा भी रुदन कर रही थी उसके चेहरे पर खुशी की लहर थी,,, किसी शैतानी राक्षस के जैसे वह हंस रहा था,,, जाने उस मासूम को इतना दर्द ज़ख़्म देने उसे क्या मज़ा आ रहा था,,, उसने अपने पैर से उसको सीधा किया,,, उसकी आँखे विक्की से रहम की भीख मांग रही थी,,,उसके सीधे होने पर वह उसके बदन को भूखे भेड़िये की तरह नोचने लगा था,,, काटने लगा था वह खुद को बचाने की उम्मीद ही छोड़ चुका था,,, वह उसको गर्दन से नोचता काटता हुआ उसके,,, वक्ष पर आया उसने उसके एक एक वक्ष को काटना शुरू कर दिया था उसके पेट को को इतनी मज़बूती से पकड़ के मारोड़ता की कार्तिक की सांसे ही रुक जाती,,, उसकी हवस की आग इतनी भड़क चुकी थी कि वह इंसानियत भी भूल चुका था
कार्तिक का दर्द शायद ही किसी को महसूस हो रहा था उसकी अवाज, उसकी सिसकी सुनने वाला वहा कोई नहीं था,,, दर्द की चीख को उसके मुह पर बांधे गए कपड़े से दबाया जा चुका था,,, उसकी चीख, चीत्कार उसके गले में ही दम तोड़ चुकी थी,,, उसकी रुदन सुनने वाला सिर्फ वहां विक्की था जो उसे निरंतर अथाह दर्द दिए जा रहा था,,,
उसने उसके पैरो को पकड़ कर बेड से नीचे की ओर खिचा,,, उसका पेट बेड पर स्थिर था पैर नीचे जमीन पर टिक चुके थे,,, उसका नंगा बदन उसके सामने किसी खिलौने की तरह था जिसे वह जैसे चाहे तोड़ मोड़ रहा था,,, उसने उसकी गर्दन को पीछे से पकड़ा और बेड पर नीचे की ओर दबाया,, अपने हाथ की उंगली के पोरो से उसकी रीढ़ की हड्डी के ऊपर से उसे सहलाने लगा,, उसके दूसरे हाथ में बेल्ट थी,, उसका हाथ धीरे धीरे कमर से नीचे की ओर उभरे हुए भाग की तरफ बढ़ रहा था,,, वहां पहुंच कर उसने दोनों हिस्सों पर हाथो से सहलाते हुए थप्पड़ मारने शुर कर दिए,,, दूसरे हाथ से उसका सर वह बेड पर दबा रहा था,,, कार्तिक यह दर्द सहन नहीं कर पा रहा था लेकिन उसको इस दर्द से निजात पाने के लिए कोई उपाय नही था,,, हाथो की मार से उसकी आह अंदर ही अंदर घुट रही थी,,, ना जाने कब तक उसका यह दर्द नाक खेल चलने वाला था,, अचानक उसकी मार कम हुई, उसे दोनों हिस्सों की दरार मे विक्की की उंगलियों गर्माहट महसूस हुयी,, वहां पर जो ज़ख़्म शाम को बन चुका था उसे विक्की ने सहलाना शुरू किया,,, जिस से कार्तिक को थोड़ा मीठा लेकिन खोफ़नक एहसास हो रहा था,,,
उसको यह आभास नहीं था कि आने वाले पल में उसके साथ क्या होने था,,, धीरे धीरे वह मिठा एहसास तीक्षण दर्द मे परिवर्तित होने लगा था,,दर्द की लहर उसके नित्मब की दरार से होती उसे उसके शरीर के अंदर तक महसूस हो रही थी,,, वहा के मांस को उंगली के तीखे पोरो से कुरेदा जा रहा था,, उसे बेहिसाब दर्द दिया जा रहा था,,, विक्की के होठो पर वही कातिल मुस्कान थी उस तीखे दर्द से उसने खुद के बचाव के लिए अपने कमर के नीचे के भाग को पलटने की कोशिश की,, दोनों पैर उसके पैरो के बीच में कैद थे वह हल्का सा तिरछा हुआ तो कार्तिक की लात विक्की के घुटने पर लगी जिस से वह हल्का सा पीछे हट गया था,, लेकिन उसको इस हरकत पर गुस्सा आ गया था,, उसकी आँखे अंगारे बरसाने लगी थी,,, उसने एक झटके से उसको फिर से उसी अवस्था में पालता और एक हाथ से उसके मुह की पट्टी खोल दी थी
" तू ऐसे नहीं मानेगा,,, तुझे अपना असली रूप दिखाता हूँ"
" नहीं भैया मुझे माफ कर दो,,, छोड़ दीजिए मुझे"
वह बंधा हुआ झटपटाने लगा,,, विक्की ने अपने पैरो से उसके दोनों पैरो को अलग अलग दिशा में किया,, एक हाथ से उसके बालो को कस के पकड़ कर पीछे की ओर खिचा,, उसके नित्मब पर उसने बेल्ट से वार किया,,, पहले वार मे ही उसकी दर्दनाक चीख से कमरा गूंजा,,, वह मुह खुल जाने की वजह से चीखा उसका गला सूखने लगा था,,, वह उसकी पहली चीख थी जिस से कमरा भी दहल गया था फिर जाने कितनी ही चीत्कार निकली,, और कमरे की दीवारों से टकरा कर दम तोड़ चुकी थी,, वार लगातार होते जा रहे थे उसका शरीर लाल हो कर सुजने लगा था,, शरीर की यह हालत थी कि हल्के से हाथ रखते ही उसकी चीख निकल जाती,, वह अ्धमरी हालत में पहुच चुका था,,,
" भैया मैं मर जाऊंगा मुझे छोड़ दो,,, आपके हाथ जोड़ता आप जो कहोंगे करूंगा,, मेरा गला सूख रहा है भैया मुझे पानी दे दो,,,, मेरी जान निकल रही है,,, जैसे आप कहोंगे वही करूंगा"
आखिर वह उसकी क्रूरता के सामने हार चुका था,, वह अपनी जिंदगी की भीख मांगने लगा था,, विक्की को उस पर तरस आ चुका था उसने उसको सीधा लिटाया,,, जग से उसके मुह में पानी डालने लगा,,, लेकिन उसको उस पर रहम बिल्कुल नहीं आ रहा था,, पानी की धार उसके गले से होकेर उसके बदन को राहत दे रही थी,,, उसने उसके गीले होठो को अपने होठो से मिलाया,,, जैसे शराब से भरे हुए जाम को पी रहा था,,फिर उसने उसे वापिस पलट कर उसके शरीर का भोग भोगने लगा अथाह दर्द, आह, सिसकियाँ, कमरे में गूंजने लगी थी,, कार्तिक के बदन में जैसे लाखो सुइया चुभाई जा रही थी,, वह उसके ऊपर पड़ा भोग विलास कर रहा था,, काम अगन में दहक रहे अपने बदन की गर्मी को बुझा रहा था,, उसके नीचे पड़ा वह बेसुध अवस्था में अपने कोमल नाजुक नितम्ब पर विक्की के शरीर के हर वार को सह रहा था,,,
चीख, चीत्कार, आह, दर्द जैसे उस कमरे की कहानी कह रहे थे,,, विक्की अपने बदन मे उठे कामना के तूफान की चरम सीमा पर जा रहा था,,,
वही उस मासूम की चीखे दीवारों से टकरा कर दम तोड़ रही थी,,, यह वासना का तूफान जैसे थमने का नाम ही नहीं ले रहा था,, कार्तिक के शरीर को हर संभव दर्द का एहसास करा रहा था,,, वक़्त के साथ रात गहरी होती जा रही थी,,,
उस रात जाने यह तूफ़ान कितनी बार उठा, और कितनी बार थमा यह उस कमरे में दबी दर्द की आह से निकलती सिसकिया, बेड पर बिछी चादर की सिलवटे, उसके बदन से नोच खाने वाले निशां, उसका सहमा, डरा हुआ दिल,
उसकी आंखो में सूखे पड़े आंसू, उसके नाज़ुक कोमल अंगों पर पड़े विक्की की मार और बेल्ट के निशान, उसके गले में घुट चुकी अवाज,,, जो चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी
"दम घुटता है "
पूरी रात खेले गए वासना के खेल के बाद विक्की पूरी तरह से हाफ़ कर थक कर सो चुका था,,, भोर का समय हो चुका रात भर कार्तिक के बदन को दिए गए ज़ख्म दर्द कर रहे थे,, जब सुबह उसकी आँख खुली तो बदन मे जैसे जान ही नही बची थी,,, पूरा बदन दर्द कर रहा था,, जैसे उसके पूरे शरीर के हर हिस्से को पूरी रात तोड़ मरोड़ दिया था,,, खुद को देखा पूरा कमरा रात की दर्द भरी दास्तान कह रहा था,, उठने की कोशिश की तो दर्द से आह निकली,, देखा तो विक्की की बाजू उसके इर्दगिर्द थी पैरो पर विक्की की टांग का दबाव बना हुआ था,, उसने होले से उसका हाथ अपने सीने से हटाया पैर को दोनों हाथो से उठा कर सीधा किया,,, वह उल्टा बिन कपड़ो के उसके साथ लेटा हुआ था,, विक्की के मर्दाना कसे हुए बदन को उसने देखा,,, मन जैसे स्थिर हो गया था उसने बेड पर से उतर कर उसके ऊपर चादर डाली,, कांपते कदमो से बाथरूम की और जाने लगा,,
" मैंने कौन सा ऎसा पाप किया है जिसकी सज़ा मुझे मिल रही है,,,
मन में भागने का ख्याल आया लेकिन कहाँ जाता भाग कर उसने सोचा किसी को फोन कर बताऊ..
" अगर तूने इस सब के बारे में किसी को भी बताया इस से भी बुरा हाल कर दूँगा तेरा "
वह खुद को संभालते हुए वापिस आया तो चक्कर आने लगे, चक्कर खा कर गिरने ही वाला था कि विक्की ने उसे संभाल लिया,,, वह तब तक जाग चुका था,,,
" जान बाथरूम जाना था तो जगा लिया होता,,, मैं नही जागता तो खुद को चोट पहुंचा लेते "
उसने बड़े ही प्यार से उसके माथे को चूमते हुए कहा,, कार्तिक उसके इस रूप को देखता ही रह गया उसने उसे उठाया बेड पर लिटाया
" कोई भी चीज़ की ज़रूरत हो मुझसे बोल दिया होता"
विक्की ने बड़े ही प्यार से उसे कहा,,उसने हा मे डरते हुए सर हिलाया
विक्की ने उसे कपड़े पहनाए उसके बाल बनाए उसे प्यार से देखा फिर उसके होठो पर एक प्यार से चुम्बन दिया
" मैं नाश्ता लेकर आता हूँ,, किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो बताना, और बेड से मत उतरना नीचे ".
" जी भइया"
उसके मुह से कांपते हुए निकले.
" भैया नहीं विक्की,, विक्की बोला कर बस तू समझा"
उसने उसको प्यार से देखा ओर दरवाज़ा बाहर से बंद कर के चला गया
कार्तिक का दिल अज़ीब सी कशमकश में डोलने लगा उलझने थी, हैरानी थी ड़र था,,
सवाल थे लेकिन जवाब नही थे.....
करीब एक घंटे बाद वह वापिस आया नाश्ते की ट्रे लेकर,,,
" कार्तिक चलो नाश्ता करो"
" मुझ कुछ नहीं खाना"
" कैसे कुछ नहीं खाना चुप चाप नाश्ता करो"
उसने उसे प्यार से कहा
" पहले इतना दर्द दिया अब प्यार कर रहे हो चाहते क्या हो आप भैया,,,"
उसने रोते हुए पूछा
" मैं तुझे चाहता हूं तू नाश्ता कर फिर दवाई खाना सब दर्द ठीक हो जाएगा"
" मुझे नहीं खाना ना दवाई ना खाना"
" देख कार्तिक प्यार से पेश आ रहा हूँ चुप चाप बात मान,,, वर्ना रात वाला तरीका अपनाना पड़ेगा "
उसने उसको अपनी बाहों में जकड़ा अपने हाथो से खाना खिलाने लगा,,, उसे फिर दवाई खिलायी,,, उसे अराम करने को बोल कर चला गया...
दोपहर को फिर खाना लेकर आया, तब तक उसे दर्द से थोड़ी राहत मिल चुकी थी दोनों ने साथ खाना खाया,,
उसकी हवस की आग फिर से भड़कने लगी वह उसको जैसे चाहता वेसे उसके शरीर से खेलता,,
वासना की अग्नि शरीर में एक बार जग जाए तो वह धीरे धीरे बढ़ती रहती है,
समय धीरे धीरे अपनी गति से चल रहा था,,, सुबह का सूरज ढलता,, रात का गहरा अंधेरा छाता, या शाम को सूरज अपनी सुनहरी रोशनी छोड़ कर ढलता, चाँद अपनी चांदनी से रात को रोशन करता लेकिन कार्तिक के जीवन में इन सबके मायने ही खत्म हो रहे थे,,, होठों से मुस्कान गहन उदासी में छा रही थी,,, हर दिन एक नई शुरुआत होता है मगर कार्तिक के घर की अब सिर्फ एक ही दर्दनाक दास्तां बयां करता था,,, जिसमे उसके बदन के एक एक हिस्से को विक्की अपनी वासना की अग्नि का शिकार बना रहा था,,,
उसके शरीर को अलग अलग ढंग से ज़ख्म दिए जा रहे थे,,, उत्तेजना की चरम सीमा को पार किया जा रहा था,,, काम भावना की वासनाओ को नए नए तरीकों से तृप्त किया जा रहा था, उसका शरीर भोग विलास का एक साधन बन गया था,,, जिस पर उस शैतान की क्रूरता हवस वासना के दर्दनाक निशान दिए जा रहे थे,,,
हवस की आग और दर्द की चीखे, आह बस यही कहानी बन चुकी थी,,, जब दर्द की सीमा पार होती तो वह शैतान उसको अपनी मुहब्बत का जाम पिलाता और जब उसके बदन को राहत मिलती, दर्द खत्म होता तो एक नया दर्द जैसे उसका इंतज़ार कर रहा था, कभी लेदर बेल्ट से उसके बदन को दागदार किया जाता तो कभी हाथो की मार से उसे थपेड़ा जाता तो कभी उसके जिस्म के हिस्से हिस्से को शैतानी तरीकों से कुरेदा जा रहा था,,, तो कभी उसे पूरे दिन बांध कर उसे तड़पाया जा रहा था,, तो कभी जानवरो की भाती उसके जिस्म से अपनी हवस शांत की जा रही थी....
उसकी चीखे, रोने की आवाज, सिसकी, आह सब उस घर की दीवारों से टकरा टकरा कर कार्तिक के दर्द की कहानी को सुना सुना कर थक गयी थी...!
आखिर वह दिन आया कि कार्तिक के मम्मी पापा वापिस आ रहे थे,,, सुबह की ट्रेन से वे लोग आ रहे थे,, रात जब वह घर खाना लेने गया तो मम्मी ने उसे खबर दी,,, विक्की के कदमो तले जैसे जमीन ही खिसक गयी थी,, मम्मी के मुह से कार्तिक के मम्मी पापा की वापसी की खबर सुनते ही उसका मुह खुला का खुला रह गया....
वह हडबडाहट मे घर से खाना लेकर निकला,, उसकी मम्मी को मन ही मन सोचने लगी लेकिन फिर काम में व्यस्त हो गई
कार्तिक के घर आकर वह खामोशी की चादर ओढ़ कर आया तो कार्तिक उसे देख कर परेशान हुआ,, वह बेड पर बैठा किताब पढ़ रहा था,,, खाना खाने के बाद उसे फिर से वही सब सोच कर डर लग रहा था कि अब वही सब होगा जो विक्की बीते दिनो से उसके साथ कर रहा था लेकिन वह उसे गम्भीर और शांति से लेटा देख थोड़ा खुश हुआ,,,अचानक उसने उसको पुकारा तो वह एक दम दहल गया
" कल तेरे मम्मी पापा आ रहे है,,, लेकिन तूने हमारे बीच जो भी कुछ हुआ है उसके बारे में किसी से ज़िक्र भी किया तो तेरा इस से भी बुरा हाल कर दूँगा,,, समझा".
मम्मी पापा के वापिस आने की खबर सुन कर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था,,,
सुबह चिडियों के चहकने से उसकी आँख खुली तो देखा विक्की बाजू में नहीं था,, उसको थोड़ी हैरत हुयी लेकिन मम्मी पापा के आने की खुशी ज्यादा थी,,
तभी कार्तिक उसे बाथरूम से निकलते हुए दिखा वह उसे रात वाली चेतावनी देकर अपने घर चला गया था, उसके मम्मी पापा आ चुके थे,, लेकिन कार्तिक उस सदमे से निकल नहीं पाता वह रात में सोते सोते कभी डर जाता था,,, हमेशा हँसता रहने वाला लड़का खामोश हो चुका था उसके मम्मी पापा उसको लेकर परेशान होने लगे थे,,,
" जब से हम वापिस आये हैं तब से कार्तिक चुप चुप सा रहता है"
उसकी माँ ने चिंता जताते हुए अपने पति से पूछा
" अरे यार पढ़ाई का प्रेशर है और इतने दिन अकेले रहा है हमसे दूर इसलिए तुमको ऎसा लग रहा है,, कोई बात नहीं है और बेकार की टेंशन न लिया करो"
कार्तिक के पापा ने समझाया लेकिन माँ का दिल तो बच्चे की हल्की सी छींक पर भी सो सवाल पैदा कर दे,,,
कार्तिक डरा डरा रहने लगा था रात में उसे उसके साथ हुए हादसे याद आते थे,,, वह बिचारा अंदर ही अंदर घुट ता जा रहा था,,,, कहने का किसी को साहस भी नहीं था उसमे,,,
इसलिए उसने इस दर्द के साथ जीना सीख लिया था
उधर विक्की को कार्तिक की आदत लग चुकी थी लेकिन उसके मम्मी पापा के वापिस आ जाने से उसको कोई रास्ता कार्तिक से मिलने का नहीं मिल रहा था,,, उसकी वासना की अग्नि उसके शरीर में प्रज्वलित होने लगी थी,, वह आग लावा बन कर ज्वालामुखी का रूप धारण कर चुकी थी महीने भर में,,, उसे हर वक़्त कार्तिक के जिस्म की प्यास तड़पती रहती थी,,, उसे अब अपनी गर्लफ्रेंड मे भी लगाव न रहा था जिस कारण उनका रिश्ता टूट गया था,,, कार्तिक ही अब उसकी चाहत बन गया था.
दिन यू ही तड़पते हुए बीत रहे थे
एक दिन
" कार्तिक रूको तुमसे बात करनी है" पीछे से आती अवाज पर कार्तिक के कदम रुक गए थे,, वह वही थरथर काँपने लगा उसने पीछे पलट कर देखा....!
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" कार्तिक रूको तुमसे बात करनी है" पीछे से आती अवाज पर कार्तिक के कदम रुक गए थे,, वह वही थरथर काँपने लगा उसने पीछे पलट कर देखा तो पीछे विक्रम खड़ा था, विक्की का कॉलेज और कार्तिक का स्कूल एक ही रोड पर थे, वह स्कूल से घर जाने के लिए निकला था, वह स्कूल के गेट पर खड़ा बस का इंतजार कर रहा था
"लेकिन मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी "
" आज अंकल नहीं आए तुझे लेने"
" नहीं आज वे बिज़ी हैं मैं ऑटो से चला जाऊँगा"
" चल बाइक पर बैठ, मैं छोड़ देता हूं"
" मुझे न ही आपसे कोई बात करनी है और ना ही आपके साथ जाना है, आई विल मेनेज"
" कहा ना चुप कर के बैठ, नखरे मत दिखा, "
उसने डरते हुए गुस्से में कदम आगे बढ़ाए कि क्लास के कुछ बच्चे आते हुए नज़र आए वह वही रुक गया
" यार जो भी कुछ हमारे बीच हुआ मैं उसके लिए मुआफ़ी मांगता हूं,,, सॉरी यार "
विक्की ने उसका हाथ पकड़ लिया था, कार्तिक उसके आगे कमजोर पड़ गया था, उसकी क्लास के बच्चे भी वहां इधर उधर खड़े थे, जो उसको अधिकतर छेड़ते थे,, उसके समाने आगे कुआ पीछे खाई थी,, वह विक्की के साथ खुद को उनसे महफूज़ महसूस कर रहा था, क्योंकि विक्की के साथ खड़े रहने की वजह से किसी ने उसे कुछ नहीं बोला था,
वह विक्की की बात मान कर बाइक पर बैठ गया था,, विक्की ने बाइक स्टार्ट की बाइक पीछे धूल उड़ाती हवा से बात करने लगी थी
" भइया मुझे घर जाना है,,,"
" अरे रुक जा कुछ देर बात करते हैं फिर चलते हैं,,, बोल क्या पिएगा".
" मुझे कुछ नहीं खाना पीना,,, मैं घर जा रहा हूँ"
उसने उठने की कोशिश की तो उसने जबरन उसका हाथ थामा उसे वापिस चेयर पर बिठा दिया,, वेटर दो हॉट कॉफी टेबल पर रख कर चला गया,
" कॉफी पियो " उसने कप उठाते हुए कहा
" तुम आखिर चाहते क्या हो मुझसे "
" मैं तुझे चाहता हूं समझ नही आता क्या "
" मुझे घर जाना है प्लीज़ मुझे जाने दे आप"
" देख कल मेरे घर वाले बाहर जा रहे हैं,,, मुझे तुझसे मिलना है"
" मुझे नहीं मिलना"
" ओके फाइन तेरे ना बहुत से सेक्सी सेक्सी फोटोग्राफ है मेरे पास सोच की तेरे भाई के पास यदि उन्हे भेज दिया जाए तो "
उसकी बाते सुन कर उसके चेहरे का रंग फीका पड़ने लगा, होठ कंपकपाने लगे थे, आँखो से नमकिन पानी आने लगा था,,
" तेरी भलाई इसी में है कि जैसे मैं कहता हूँ वैसा ही कर समझा"
वह उसे ब्लैकमेल कर रहा था, उसके पास उसकी बाते मानने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था, वह घर पर यह बात बताता तो डर था कि कोई उसकी बातो पर भरोसा करेगा भी या नहीं, कोई दोस्त भी नहीं था, उसका जिस से वह अपने दिल की बाते शेयर करता,
दिल में इतनी सब बातो का गुबार, डर को अपने सहन मे छिपा कर वह बिस्तर पर पूरी रात रोता रहा, आखि़र उसके साथ ये सब क्यूँ हो रहा था, स्कूल में बाकी सब लड़को के ताने, उनसे मिलने वाली तरह तरह की टिप्पणियों से पहले ही परेशान था,, विक्की को जब पहली बार मिला था उसमे एक अच्छा इंसान पाया था लेकिन बीते दिनो के ज़ख़्म को याद कर उसकी शैतानी फितरत का पता चला था.
वह उसके हाथो की एक कठपुतली के माफिक बन गया था, यदि वह उसकी बात नहीं मानता तो वह उसे उसके परिवार के सामने बदनाम कर सकता था, वह उसके द्वारा दिए जाने वाले असहनीय दर्द को झेल रहा था,, विक्की उसके एक एक अंग को पीड़ा देता, उसकी चीत्कार, आंसुओ का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वह कभी उसके बदन को प्यार से सहलाता तो कभी बेल्ट से मारता,,,
उसकी आह, सिसकी सुनने वाला शायद ही कोई था वहां, दिन ढल रहा था उसकी वासना का सेलाब धीरे धीरे शांत हुआ,,,,
दिन यू ही बीत रहे थे,, विक्की को जब भी मौका मिलता वह उसे अपने हवस का शिकार बनाता था, अपनी क्रूर वासना की पूर्ति करता,,,
कार्तिक की जिंदगी नरक बनती जा रही थी,, ना ही कोई था जिसे वह अपनी प्रोब्लेम बताता,,वह इन सब मे अकेला घुटता जा रहा था,, उसको अब घर से बाहर निकलने में भी डर लगने लगा था,,,
इतवार का दिन था वह घर पर ही था, विक्की उसे अपने घर लेने के लिए आया, कार्तिक के पापा के दोस्त का बेटा होने के कारण किसी को भी कोई प्रॉब्लम नहीं हुयी, हाँ घर से निकलते हुए उसकी मम्मी ने ज़रूर कहा कि
" बेटा शाम को जल्दी वापिस छोड़ जाना इसको,,, और पूरे दिन मस्ती खेल में मत गुजारना थोड़ा इसको पढ़ा भी देना"
लेकिन उन्हे क्या पता था कि वह बकरी को भूखे शेर के हाथो शिकार होने के भेज रही थी
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कमरे में कदम रखते ही कार्तिक ने उसे कमर से पकड़ कर दीवार से लगाया, उसका बदन कांप गया था हाथ पैर फूल गए थे, आँखे ज़ोर से बंद की थी,, कंपकंपाते होठो को उसने अपने हाथो की उँगली से छुआ उसके हाथो की गर्माहट उसके बदन मे सरसरई सी दौड़ने लगी थी, उसकी साँसे तेज़ होती जा रही थी जो उसकी सांसो से टकरा रही थी,, उसकी सांसो मे एक अलग ही मदहोशी छाने लगी थी,,,
सुर्ख होठो पर उसने अपने होठ रखे उसके ऊपर वाले होठ को अपने होठो की कैद मे लिया जैसे कोई भँवरा फूलो से रस चूसता है वह उसके होठ को उसी तरह से चूसने लगा था,, उसके गरम सांसे उसके मुह से अंदर जा रही थी,,, कार्तिक चाह कर भी आज उसका विरोध नहीं कर पा रहा था, पलके भारी होती जा रही थी जिनसे खारा पानी उसके गालों को भिगो रहा था,,, विक्की ने उसकी कमर पर अपनी पकड़ को और मज़बूत करते हुए उसे बाहों में भरा,,, वह उसकी मर्दाना बाजूओ मे कैद हो चुका था,, उसने उसे बेड पर गिराया खुद उसके ऊपर ही था,, होठो को आज़ाद नहीं होने दिया अभी तक
उसके हाथ उसकी शर्ट के बटन तक पहुचे ही थे कि
डोर बैल की आवाज़ से उसके बदन में सरसरी सी दौड़ पड़ी,, वह जल्दी से उसके ऊपर से हटा,, कार्तिक पर एक गुस्से भरी नज़र डाली,, कार्तिक की जान में जान आई कि वह उस राक्षस के दिए जानी वाले दर्द से बच गया था
"मम्मी पापा तो शाम को आने वाले थे वे इतनी जल्दी कैसे आगए "
उसने सोचते हुए गेट ओपन किया सामने वाले शख्स को देख एकदम चौका
" तत् ततततत तू "
" हां मैं लेकिन तू क्या कर रहा था जो गेट खोलने मे इतना टाईम लगा"
" क्क्क् कुछ नहीं,,, इस तरह अचानक"
वह हड़बड़ाहट मे बोला,,
" वो मैं इधर किसी काम से आया था सोचा तुझसे मिलता चलूँ,,, लेकिन तू क्या सब सवाल जवाब दरवाज़े पर खड़े खड़े ही करेगा. अंदर नहीं बुलाएगा क्या? "
" अरे हाँ यार आ ना "
" लगता है तुझे मेरा इस तरह आना अच्छा नहीं लगा,,, "
उसने उसके चेहरे के उड़ते हुए रंग को देख कर कहा
" नहीं यार ऎसा कुछ नहीं चल आ यार अंदर चल,,, "
उसने जबर्दस्ती मुस्कुराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा, दोनों रूम में आए तो
उसने रूम में सोफे पर बैठे कार्तिक को देखा,,, तो देखता ही रह गया कार्तिक ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उस पर नज़र डाली,,,
" ये कार्तिक है, हमारे फेमिली फ्रेंड्स में से है...
कार्तिक यह अभिनव है मेरा बेस्ट फ्रेंड"
विक्की ने दोनों को इंट्रोड्यूस कराया,,,
" हैलो कार्तिक" अभिनव ने मुस्कुराते हुए कार्तिक से कहा, कार्तिक ने भी उसे जवाब में हैलो बोला
" तुम दोनों बात करो मैं कुछ खाने के लिए लेकर आता हूँ "
अभिनव अब भी उसे एकटक देखे जा रहा था,, कार्तिक उससे अनजान था लेकिन मन ही मन खुश था कि वह उसके लिए एक मसीहा बन कर आया था,, जिसकी वजह से वह विक्की की वासना का शिकार होने से बच गया था...
वक़्त धीरे धीरे बीत रहा था, उस दिन के बाद विक्की को कार्तिक से मिलने का टाईम नहीं मिला रहा था, मौसम बदल रहा था उमस भरा दिन कभी कभी ठंडा हो रहा था, आज सुबह से ही आसमान में बादल छाए हुए,, हल्की हल्की हवाए चल रही थी, कार्तिक स्कूल से घर जा रहा था कि बादल ज़ोर से गरज़ने लगे वह दबे पांव तेज़ कदम रखते हुए घर की तरफ जाने लगा,,
सामने वाले शख्स की आवाज़ पर वह धीमा हुआ,,,
"कार्तिक कहाँ जा रहे हो"
बाइक शॉप के समाने खड़े अभिनव ने उसे रोका,
" जी घर जा रहा हूँ,,,"
" रुको थोड़ी देर, मैं छोड़ देता हूँ,, मेरी बाइक मे थोड़ी प्रॉब्लम हो गयी थी बस ठीक होने वाली है". अभिनव ने सिगरेट का कश लेते हुए कहा...
" नहीं कोई बात नहीं... मैं चला जाऊंगा "
" रुक जाओ यार वैसे भी बारिश होने वाली है मैं जल्दी तुम्हें घर छोड़ दूंगा "
अभिनव के इतना कहने पर वह रुक गया,
बादल ज़ोरो से गरज रहे थे, बरसात का मौसम शुरूआती दौर में था, बाइक रफ्तार पकड़ रही थी कि बरसात ने रुख पकड़ा और ज़ोरदार बारिश शुरू होने लगी थी,,, दोनों पूरी तरह से भीग रहे थे,
कार्तिक ठंड से कांपने लगा था तो उसने उसको पीछे पकड़ा उसके कांपते हाथो का एहसास उसके बदन मे सिरहन सा दौड़ पड़ा,,,दोनों ही खामोश थे,,, उसने कार्तिक के घर के सामने बाइक रोकी,, कार्तिक जैसे ही बाइक से उतरा तो उसका भीगा बदन देख कर अभिनव के रोम रोम में एक अलग एहसास दस्तक देने लगा था, वह उसके बारिश में भीगे बदन को देखे जा रहा था,
अपने कमरे में आकर अभिनव कपड़े बदलने के लिए कपड़े उतार रहा था तो उसे कार्तिक का भीगा हुआ बदन जहन में आ रहा था, उसको उसके लिए आकर्षण पैदा होने लगा था,,
धीरे धीरे यह आकर्षण बढ़ने लगा था, और यही आकर्षण एक दिन दोस्ती में बदल गया था,, दोनों मे मुलाकात बढ़ने लगी थी,, कार्तिक स्कूल के बाद अभिनव के साथ घर आता,, कभी दोनों पार्क में घंटो बाते करते बिताते, तो कभी कार्तिक उसके रूम पर घंटो बिताया करता, कार्तिक उसके साथ खुद को महफूज़ महसूस करता था,,, अभिनव उसकी हर एक बात पर हँसता रहता था,, उसकी मासूमियत को देखे जाता था,,दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था,,, दोनों की दोस्ती गहरी होती जा रही थी वक़्त अपनी तेज़ रफ़्तार से बीत रहा था,,, विक्की किसी काम से दूसरे शहर गया हुआ था,,, जिस वजह से कार्तिक खुश था,
एक दिन स्कूल से लौटते हुए बरसात होने लगी थी, तो कार्तिक अभिनव के रूम पर चला गया था,,,
अभिनव उसे भीगा हुआ देख कर एक टक उसे देखने लगा था, बालो से पानी टपक रहा था, कपड़े भीग कर बदन से चिपक गए थे,,
" तुम तो पूरे भीग गए हो,,,, तुम चेंज कर लो वर्ना ठंड लग जाएगी"
"नहीं इटस ओके,,"
" नहीं तुम चेंज कर लो मै तुम्हारे कपड़े सुखाने का कुछ करता हूं,,,"
" पर मेरे पास यहां कपड़े नहीं है,, और आपके कपड़े मुझे आएगे नहीं"
" हां यह तो है,,, पर तुम अपने कपड़े मुझे उतार कर दो मैं सूखा दूँगा,, इतने ये तोलिया लपेट लो,, "
" अरे नहीं इटस ओके मैं ठीक हुँ " कार्तिक ने फिर से हिचकते हुए कहा
" ये लो टॉवल,,, वर्ना सर्दी पकड़ लोगे "
अभिनव ने टॉवल पकड़ाते हुए कहा, वह यहा अकेला रहता था,,, किचन, वॉशरूम अटैच रूम था यह,, जिसको काफी अच्छे से मेनटेन किया गया था,,, वह पढ़ने के लिए यहा रहता था,कार्तिक बाथरूम में चला गया,,,
कार्तिक ने जैसे ही बाथरूम से बाहर कदम रखा तो तब तक अभिनव उसके लिए चाय बना चुका था,,, उसे चाय का प्याला थमाया वह आईने के सामने खड़ा था, वह उसे ही देखे जा रहा था,, कार्तिक टॉवल में लिपटा उसके सामने खड़ा था,,, दोनों की नज़रे एक दूसरे से टकराई तो कार्तिक ने पूछा
"क्या हुआ"
" तुम्हें पता है तुम बहुत क्यूट दिखते हो"
"ऐसा कुछ नहीं है, नॉर्मल तो हूँ मैं, कुछ भी तो खास नहीं है मुझमे"
वह उसके बेहद करीब आ चुका था
" मेरी नज़र से देखो कार्तिक..... की तुम मेरे लिए क्या हो....,"
वह और करीब आ चुका था दोनों की नज़रे परस्पर एक दूजे से टकरा रही थी
" मैं कुछ समझा नहीं "
दोनों की सांसे एक दूजे से टकराने लगी थी,,, होठो के नजदीक आने मे कुछ ही दूरी थी
" कार्तिक आई लव यू.. मैं तुम्हें बेहद पसंद करता हूं "
वह एक दम से चोका, उसके हाथ से चाय का प्याला गिर गया था जो फर्श पर टकरा कर टुकड़े टुकड़े हो गया था
" आप ये क्या कह रहे हो"
उसने उसे अपने से दूर किया जाने को हुआ तो उसने उसका हाथ थाम लिया था
" ये सच है कार्तिक मैं तुम्हें बेपन्हा मुहब्बत करता हूं,,,जब से तुम्हें पहली बार देखा तब से तुम मेरे दिल में समा गए थे आई रियली लव यू कार्तिक"
वह उसका हाथ थामे, घुटनों पर बैठ चुका था,,, कार्तिक हाथ छुड़ाया ,, अपने कपड़े चेंज किए,,, उसे छोड़ कर बाहर निकल गया था,,
वह वही बैठा रोने लगा था,,,,,
" कार्तिक मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं तुम्हें एक दिन मुझे अपनाना होगा "
वह ज़ोर से चीखा.....!
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कार्तिक पूरी तरह से भीगता हुआ चल रहा था, बारिश की बूंदे ऐसे लग रही थी जैसे आसमान से आग बरस रही हो, आसमान की बूँदो के साथ उसके आँखो के आंसू छिप रहे थे... आख़िर यह सब उसके साथ ही क्यो हो रहा था
" थोड़ी देर रुक नहीं सकते थे क्या स्कूल में,,,"
घर पहुंचते ही मम्मी ने डाटना शुरू कर दिया था,,, लेकिन वह बिना कुछ जवाब दिए अपने कमरे में चला गया,,, कमरे का दरवाज़ा बंद कर रोने लगा था...
" ये सब मेरे साथ ही क्यू होता है,,,कुछ पल ही की खुशियों के बाद फिर से वही सब "
वह फुट फुट कर रो रहा था,,, अभिनव उसे अच्छा लगता था,, परंतु यह सब उसकी समझ से बाहर था,,,, वह यही सब सोचता हुआ बिन खाना खाए बिना सो गया था
उस दिन के बाद वह उसके कमरे पर नहीं गया था,,, ना ही उससे मिला था,,, उसके कानो में अभिनव के लफ्ज़ गूंज रहे थे,,,
उधर अभिनव उसके बारे में ही सोचता रहता था, वह उस से मिलने की कोशिश कर रहा था लेकिन कार्तिक ने उस से दूरी बना ली थी,,, वह उसके स्कूल के सामने रोज़ उसका इंतजार करता था, बात करने की कोशिश करता था लेकिन वह उसकी कोई भी बात सुनने वाला नहीं था,,,
यू ही वक़्त बीत रहा था उसको उसकी कमी खल रही थी, उसके बगैर उसका कही भी मन नहीं लगता था
" आज मैं उससे बात कर के ही रहूँगा,,, कार्तिक मैं तुम्हें दिल से पसंद करता हूँ तुम क्यूँ मेरी दिल की हालत नहीं समझते"
उसने आज फैसला कर लिया था चाहे जो हो वह आज उस से बात कर के ही रहेगा...
उसने कार्तिक को रास्ते में रोका पर वो नहीं रुकता. अभिनव उसके आगे बाइक खड़ी कर दी थी तो वह अचानक रुक गया था, उसके चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था वह गुस्से में बाइक से उतरा,,, कार्तिक उसे देख कर डर गया था,,, डर से उसने आँखे बंद कर ली थी उसे डर था कि वह उसके साथ विक्की के जैसे कोई हरकत करेगा लेकिन कोई भी आहट नहीं हुई थी
उसने जैसे ही आंखे खोली तो वह चौक गया था,, सामने अभिनव घुटने के बल बैठा था,, उसने दोनों कानो को पकड़ा हुआ था वह देखने मैं किसी मासूम बच्चे के जैसे लग रहा था,, उसकी इस बचकानी हरकत पर उसको हंसी आ गई थी
" आई रियली सॉरी यार माफ कर दे ना"
वह उसके समाने उठक बैठक लगा रहा था,,, रास्ते से आ जा रहे लोग उसकी इस हरकत को देख रहे थे,,,
" अभिनव सब देख रहे हैं प्लीज़ ऐसे मत करो"
" नहीं जब तक तुम मुझे माफ नहीं करोगे तब तक मैं उठक बैठक लगाता रहुगा"
" अभिनव प्लीज़ सीधे खड़े हो सब देख रहे हैं "
" मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,,, पहले माफ करो"
उसने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ देखा
" अच्छा बाबा माफ किया,,, "
" सच...? "
" हां अब बंद करो ये सब "
उसने उसको एक दम बाहों में भर लिया था,,,
दोनों में फिर से दोस्ती हो गयी थी
" चलो फिर ".
" अब कहाँ चलना है "
" वापिस दोस्त बने है सेलिब्रेट करना तो बनता है"
" अच्छा जी"
"जी.... तो जनाब कहाँ चलना पसंद करोगे "
" जहाँ आप कहो".
" नहीं जहां आपका दिल करे, आज सिर्फ वहां जायेगे जहां तुम कहो "
" ओके..."
अभिनव और भी ज्यादा ख्याल रखता था उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिशों का ख्याल रखता था,, कार्तिक के दिल में भी अब उसके लिए एहसास जागने लगा था,, वह हर वक़्त अभिनव के बारे में सोचने लगा था...
लेकीन चांदनी रात के बाद अंधेरी अमावस्या की रात भी आती है,,
चारो ओर खुशी का माहोल छाया हुआ था,, आज विक्की के बड़े भाई की शादी थी,, विक्की के सभी दोस्त शादी में आए हुए थे,,, कार्तिक भी अपनी फेमली के साथ आया था,,, कार्तिक का वहां कोई दोस्त नहीं था,,सभी लड़के बारात में डांस कर रहे थे,,, अभिनव, विक्की और बाकी दोस्तो के साथ था,,, सभी मोज मस्ती कर रहे थे,,, विक्की और उसके दोस्तो ने शादी मे शराब पी थी,,,
कार्तिक अकेला बैठा हुआ था,,, वह बोर होने लग रहा था तो वह छत पर चला आया,,, पीछे से अभिनव भी वही पहुच गया था,, उसने पीछे से उसका हाथ पकड़ा तो वह चौक गया था,,
"अभिनव हाथ छोडो".
उसने हाथ छूटाने की नाकाम कोशिश की थी,, लेकिन उसके सामने वह कमजोर था
" कार्तिक मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं,, आज जब तक तुम हां नहीं कहोगे मैं यही बैठा रहुगा"
वह उसका हाथ थामे घुटने पर बैठ गया था,
"मैं इस काबिल नहीं की कोई मुझे चाहे,, आप को ज़िंदगी में कोई भी पसंद कर सकता है लेकिन मैं आपके काबिल नहीं हूं"
कार्तिक भी उसे पसंद करता था लेकिन अपनी किस्मत के काले साये उस पर नहीं पड़ने देना चाहता था
" जिसको मैं चाहता हूं उसे ही मैं पसंद नहीं,,, और तुम्हारे बगैर इस दिल में कोई नहीं आ सकता "
" अभिनव प्लीज़ ऎसी हरकत मत कीजिए,,, कोई देख लेगा... "
" देखने दो.. मैं तुम्हें चाहता हूं और आज अगर तुमने मुझे नहीं अपनाया तो मैं यहां से कूद कर जान दे दूँगा".
" प्लीज़ ऎसा मत कीजिए.... मुझ जैसे लड़के के लिए क्यू खुद की जान लेना चाहते हो"
" तुम नहीं जानते कि तुम मेरे लिए क्या हो... लेकिन मैं इस काबिल नहीं हूं कि तुम मुझे प्यार करो ".
इतना कह कर वह रेलिंग की बढ़ गया था,,, वह वही खड़ा उसे देख रहा था
" आई लव यू कार्तिक "
इतना कहकर वह रेलिंग पर चढ़ने वाला था कि उसने उसको पीछे से हाथ पकड़ कर अपनी ओर खिचा, दोनों के चेहरे आमने सामने थे
" क्यूँ रोका मुझे मर जाने दिया होता,,, कौन होता हूँ मै जो मुझे बचाया"
" क्योकि मैं भी आपसे प्यार करता हूं".
उसने इतना कह कर उसके सीने में अपना चेहरा छिपा लिया था,,,उसने उसके चेहरे को हाथ से ऊपर उठाया जिस पर वह मर मिटा था,,, लरस्ते होठों को देख कर उसने उसके कांपते हुए होठो पर उंगली रखी, तो उसने पलके झुका ली थी
दोनों एक दूसरे में जैसे समा गए थे
उसने अपने होठो को अपने प्यासे होठो के आगोश में ले लिया था,,, लू के प्यासे को रेगिस्तान में कोई कुआ मिल जाए और वो अपनी जन्म जन्म की प्यास बुझा रहा हो,,, अभिनव को उसके जीवन की सबसे बड़ी खुशी मिली थी..
लेकिन कहते हैं कि कि खुशियों के पल ज्यादा देर तक नहीं ठहरते उनकी जिंदगी में दुख की बदली छा गई थी...
"अभिनव..."
ज़ोरदार गरज के साथ अपने नाम को सुन कर वह सहम गया था,,, कार्तिक का बदन पूरी तरह से कांप रहा था... कार्तिक जैसे ही पलटा तो सामने विक्की को पाकर उसके पैरो तले ज़मीन खिसक गई थी.. उसने भागने के लिए कदम उठाए थे कि विक्की ने उसको वही पकड़ा,,
" कार्तिक को छोड़ दें यार,,, इसमे उसकी कोई खता नहीं है"
" तू तो चुप कर साले.... जिस थाली में खाया उसी में छेद किया तूने,,, तुझे मेरा ही रिश्तेदार मिला था रंगरेलिया मनाने के लिए..."
" विक्की ऎसा नहीं है तू गलत समझ रहा है.... हम कुछ गलत नहीं कर रहे थे... मैं कार्तिक से प्यार करता हूं "
"प्यार... साले तुझे तो मैं बाद में देखता हूँ,,"
उसने कार्तिक के गाल पर थप्पड़ मारा तो उसकी आंखो से आंसू निकलने लगे थे,,, उसको अंदाज़ा भी नहीं था कि ऐसा कुछ होने वाला था
" बहुत आग है ना तेरे बदन मे... रंडी की आग बुझ जाती है तेरी नहीं बुझी जो मेरे दोस्त के साथ रंग रलिया मना रहा है "
वह उसके दोनों गालो पर 4-5 थप्पड़ मार चुका था,,वह उसकी मार से बेतहाशा रो रहा था, अभिनव की सहन शक्ति अब पार हो चुकी थी
उसने जैसे ही फिर से मारने को हाथ उठाया तो अभिनव ने उसका हाथ पकड़ा
" बस बहुत हुआ विक्की,,, अब तू इस पर हाथ नहीं उठाएगा ".
" तू इस के लिए मुझसे लड़ेगा,,, अपने दोस्त से"
विक्की का गुस्सा भी सातवे आसमान पर था उसने अभिनव को धक्का मारा जिस वजह से वह थोड़ी दूर हट गया था,,, कार्तिक एक हाथ अपने गाल पर लगा कर रोए जा रहा था,, इतने में विक्की ने एक ज़ोरदार लात उसके पेट में मारी,,,, लात पड़ते ही कार्तिक के मुह से ज़ोरदार चीख निकली,, इतने में वह उसका दूसरा हाथ छोड़ चुका था,,, उसने दोनों हाथो से अपने पेट को पकड़ कर वही गिर गया,,, उसके गिरते ही अभिनव जैसे ही विक्की के पास आया वो नीचे पड़े कार्तिक के पेट पर दूसरी लात मार चुका था,,, कार्तिक नीचे पड़ा तड़पने लगा,,,, आँखो के सामने अंधेरा छा गया था,,, पेट में जूते की लात लगने से उसे दर्द होने लगा था... वह दर्द से कराह उठा
उसकी सिसकियाँ कानो में पड़ते ही उसका खून खोल चुका था,,, उसने विक्की के गिरेबान को पकड़ कर दूर किया....
" बहुत हुआ तेरा... अब अगर तूने इसको हाथ भी लगाया तो भूल जाउगा कि तू मेरा दोस्त हैं"
" अबे चल.... तू कल के आये लड़के के लिए मुझसे लड़ेगा"
" हां... प्यार करता हूं कार्तिक से मैं समझा तू"
" ये मेरा रिश्तेदार है जो चाहे करू... इस रंडी के लिए तू मुझ पर हाथ छोडे़गा "
इतना सुनते ही उसने उसको ज़ोरदार थप्पड़ मारा,,, जिस से वह हल्का नीचे झुका तो उसने भी उसके गिरबान को जकड़ लिया था, अभिनव ने मुक्का बना कर उसके मुह पर मारने वाला ही था... की सीढियों पर से किसी के आने की आहट हुयी,, उसने उसको धक्का दिया,, कार्तिक को सहारा देकर उठाया,, और दूसरी सीढियों की तरफ बढ़ गया....
वह वही गुस्से में कार्तिक को सोचता रह गया,, अपने हुए अपमान का बदला लेने के बिचार में लग गया.....!
बारात वापिस घर आ चुकी थी,, अभिनव बारात में से ही वापिस चला गया था,, जबकि कार्तिक की फेमली को विक्की के पापा ने रिसेप्शन पार्टी के लिए घर पर ही रोक लिया था...
सभी रिसेप्शन की पार्टी में मौजूद थे,,, पास के ही होटल में पार्टी थी,, घर पर कोई नहीं था,,, कार्तिक पर मैसेज आया था,,,
"मैं तुम्हारा घर पर विक्की के कमरे में इंतज़ार कर रहा हूं,,, यदि मुझसे प्यार करते हो तो तुम आओगे
I love you"
घर पहुच कर जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला,,, तो वह अंदर का नज़ारा देख कर चौका...!
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कार्तिक पूरी तरह से भीगता हुआ चल रहा था, बारिश की बूंदे ऐसे लग रही थी जैसे आसमान से आग बरस रही हो, आसमान की बूँदो के साथ उसके आँखो के आंसू छिप रहे थे... आख़िर यह सब उसके साथ ही क्यो हो रहा था
" थोड़ी देर रुक नहीं सकते थे क्या स्कूल में,,,"
घर पहुंचते ही मम्मी ने डाटना शुरू कर दिया था,,, लेकिन वह बिना कुछ जवाब दिए अपने कमरे में चला गया,,, कमरे का दरवाज़ा बंद कर रोने लगा था...
" ये सब मेरे साथ ही क्यू होता है,,,कुछ पल ही की खुशियों के बाद फिर से वही सब "
वह फुट फुट कर रो रहा था,,, अभिनव उसे अच्छा लगता था,, परंतु यह सब उसकी समझ से बाहर था,,,, वह यही सब सोचता हुआ बिन खाना खाए बिना सो गया था
उस दिन के बाद वह उसके कमरे पर नहीं गया था,,, ना ही उससे मिला था,,, उसके कानो में अभिनव के लफ्ज़ गूंज रहे थे,,,
उधर अभिनव उसके बारे में ही सोचता रहता था, वह उस से मिलने की कोशिश कर रहा था लेकिन कार्तिक ने उस से दूरी बना ली थी,,, वह उसके स्कूल के सामने रोज़ उसका इंतजार करता था, बात करने की कोशिश करता था लेकिन वह उसकी कोई भी बात सुनने वाला नहीं था,,,
यू ही वक़्त बीत रहा था उसको उसकी कमी खल रही थी, उसके बगैर उसका कही भी मन नहीं लगता था
" आज मैं उससे बात कर के ही रहूँगा,,, कार्तिक मैं तुम्हें दिल से पसंद करता हूँ तुम क्यूँ मेरी दिल की हालत नहीं समझते"
उसने आज फैसला कर लिया था चाहे जो हो वह आज उस से बात कर के ही रहेगा...
उसने कार्तिक को रास्ते में रोका पर वो नहीं रुकता. अभिनव उसके आगे बाइक खड़ी कर दी थी तो वह अचानक रुक गया था, उसके चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था वह गुस्से में बाइक से उतरा,,, कार्तिक उसे देख कर डर गया था,,, डर से उसने आँखे बंद कर ली थी उसे डर था कि वह उसके साथ विक्की के जैसे कोई हरकत करेगा लेकिन कोई भी आहट नहीं हुई थी
उसने जैसे ही आंखे खोली तो वह चौक गया था,, सामने अभिनव घुटने के बल बैठा था,, उसने दोनों कानो को पकड़ा हुआ था वह देखने मैं किसी मासूम बच्चे के जैसे लग रहा था,, उसकी इस बचकानी हरकत पर उसको हंसी आ गई थी
" आई रियली सॉरी यार माफ कर दे ना"
वह उसके समाने उठक बैठक लगा रहा था,,, रास्ते से आ जा रहे लोग उसकी इस हरकत को देख रहे थे,,,
" अभिनव सब देख रहे हैं प्लीज़ ऐसे मत करो"
" नहीं जब तक तुम मुझे माफ नहीं करोगे तब तक मैं उठक बैठक लगाता रहुगा"
" अभिनव प्लीज़ सीधे खड़े हो सब देख रहे हैं "
" मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,,, पहले माफ करो"
उसने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ देखा
" अच्छा बाबा माफ किया,,, "
" सच...? "
" हां अब बंद करो ये सब "
उसने उसको एक दम बाहों में भर लिया था,,,
दोनों में फिर से दोस्ती हो गयी थी
" चलो फिर ".
" अब कहाँ चलना है "
" वापिस दोस्त बने है सेलिब्रेट करना तो बनता है"
" अच्छा जी"
"जी.... तो जनाब कहाँ चलना पसंद करोगे "
" जहाँ आप कहो".
" नहीं जहां आपका दिल करे, आज सिर्फ वहां जायेगे जहां तुम कहो "
" ओके..."
अभिनव और भी ज्यादा ख्याल रखता था उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिशों का ख्याल रखता था,, कार्तिक के दिल में भी अब उसके लिए एहसास जागने लगा था,, वह हर वक़्त अभिनव के बारे में सोचने लगा था...
लेकीन चांदनी रात के बाद अंधेरी अमावस्या की रात भी आती है,,
चारो ओर खुशी का माहोल छाया हुआ था,, आज विक्की के बड़े भाई की शादी थी,, विक्की के सभी दोस्त शादी में आए हुए थे,,, कार्तिक भी अपनी फेमली के साथ आया था,,, कार्तिक का वहां कोई दोस्त नहीं था,,सभी लड़के बारात में डांस कर रहे थे,,, अभिनव, विक्की और बाकी दोस्तो के साथ था,,, सभी मोज मस्ती कर रहे थे,,, विक्की और उसके दोस्तो ने शादी मे शराब पी थी,,,
कार्तिक अकेला बैठा हुआ था,,, वह बोर होने लग रहा था तो वह छत पर चला आया,,, पीछे से अभिनव भी वही पहुच गया था,, उसने पीछे से उसका हाथ पकड़ा तो वह चौक गया था,,
"अभिनव हाथ छोडो".
उसने हाथ छूटाने की नाकाम कोशिश की थी,, लेकिन उसके सामने वह कमजोर था
" कार्तिक मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं,, आज जब तक तुम हां नहीं कहोगे मैं यही बैठा रहुगा"
वह उसका हाथ थामे घुटने पर बैठ गया था,
"मैं इस काबिल नहीं की कोई मुझे चाहे,, आप को ज़िंदगी में कोई भी पसंद कर सकता है लेकिन मैं आपके काबिल नहीं हूं"
कार्तिक भी उसे पसंद करता था लेकिन अपनी किस्मत के काले साये उस पर नहीं पड़ने देना चाहता था
" जिसको मैं चाहता हूं उसे ही मैं पसंद नहीं,,, और तुम्हारे बगैर इस दिल में कोई नहीं आ सकता "
" अभिनव प्लीज़ ऎसी हरकत मत कीजिए,,, कोई देख लेगा... "
" देखने दो.. मैं तुम्हें चाहता हूं और आज अगर तुमने मुझे नहीं अपनाया तो मैं यहां से कूद कर जान दे दूँगा".
" प्लीज़ ऎसा मत कीजिए.... मुझ जैसे लड़के के लिए क्यू खुद की जान लेना चाहते हो"
" तुम नहीं जानते कि तुम मेरे लिए क्या हो... लेकिन मैं इस काबिल नहीं हूं कि तुम मुझे प्यार करो ".
इतना कह कर वह रेलिंग की बढ़ गया था,,, वह वही खड़ा उसे देख रहा था
" आई लव यू कार्तिक "
इतना कहकर वह रेलिंग पर चढ़ने वाला था कि उसने उसको पीछे से हाथ पकड़ कर अपनी ओर खिचा, दोनों के चेहरे आमने सामने थे
" क्यूँ रोका मुझे मर जाने दिया होता,,, कौन होता हूँ मै जो मुझे बचाया"
" क्योकि मैं भी आपसे प्यार करता हूं".
उसने इतना कह कर उसके सीने में अपना चेहरा छिपा लिया था,,,उसने उसके चेहरे को हाथ से ऊपर उठाया जिस पर वह मर मिटा था,,, लरस्ते होठों को देख कर उसने उसके कांपते हुए होठो पर उंगली रखी, तो उसने पलके झुका ली थी
दोनों एक दूसरे में जैसे समा गए थे
उसने अपने होठो को अपने प्यासे होठो के आगोश में ले लिया था,,, लू के प्यासे को रेगिस्तान में कोई कुआ मिल जाए और वो अपनी जन्म जन्म की प्यास बुझा रहा हो,,, अभिनव को उसके जीवन की सबसे बड़ी खुशी मिली थी..
लेकिन कहते हैं कि कि खुशियों के पल ज्यादा देर तक नहीं ठहरते उनकी जिंदगी में दुख की बदली छा गई थी...
"अभिनव..."
ज़ोरदार गरज के साथ अपने नाम को सुन कर वह सहम गया था,,, कार्तिक का बदन पूरी तरह से कांप रहा था... कार्तिक जैसे ही पलटा तो सामने विक्की को पाकर उसके पैरो तले ज़मीन खिसक गई थी.. उसने भागने के लिए कदम उठाए थे कि विक्की ने उसको वही पकड़ा,,
" कार्तिक को छोड़ दें यार,,, इसमे उसकी कोई खता नहीं है"
" तू तो चुप कर साले.... जिस थाली में खाया उसी में छेद किया तूने,,, तुझे मेरा ही रिश्तेदार मिला था रंगरेलिया मनाने के लिए..."
" विक्की ऎसा नहीं है तू गलत समझ रहा है.... हम कुछ गलत नहीं कर रहे थे... मैं कार्तिक से प्यार करता हूं "
"प्यार... साले तुझे तो मैं बाद में देखता हूँ,,"
उसने कार्तिक के गाल पर थप्पड़ मारा तो उसकी आंखो से आंसू निकलने लगे थे,,, उसको अंदाज़ा भी नहीं था कि ऐसा कुछ होने वाला था
" बहुत आग है ना तेरे बदन मे... रंडी की आग बुझ जाती है तेरी नहीं बुझी जो मेरे दोस्त के साथ रंग रलिया मना रहा है "
वह उसके दोनों गालो पर 4-5 थप्पड़ मार चुका था,,वह उसकी मार से बेतहाशा रो रहा था, अभिनव की सहन शक्ति अब पार हो चुकी थी
उसने जैसे ही फिर से मारने को हाथ उठाया तो अभिनव ने उसका हाथ पकड़ा
" बस बहुत हुआ विक्की,,, अब तू इस पर हाथ नहीं उठाएगा ".
" तू इस के लिए मुझसे लड़ेगा,,, अपने दोस्त से"
विक्की का गुस्सा भी सातवे आसमान पर था उसने अभिनव को धक्का मारा जिस वजह से वह थोड़ी दूर हट गया था,,, कार्तिक एक हाथ अपने गाल पर लगा कर रोए जा रहा था,, इतने में विक्की ने एक ज़ोरदार लात उसके पेट में मारी,,,, लात पड़ते ही कार्तिक के मुह से ज़ोरदार चीख निकली,, इतने में वह उसका दूसरा हाथ छोड़ चुका था,,, उसने दोनों हाथो से अपने पेट को पकड़ कर वही गिर गया,,, उसके गिरते ही अभिनव जैसे ही विक्की के पास आया वो नीचे पड़े कार्तिक के पेट पर दूसरी लात मार चुका था,,, कार्तिक नीचे पड़ा तड़पने लगा,,,, आँखो के सामने अंधेरा छा गया था,,, पेट में जूते की लात लगने से उसे दर्द होने लगा था... वह दर्द से कराह उठा
उसकी सिसकियाँ कानो में पड़ते ही उसका खून खोल चुका था,,, उसने विक्की के गिरेबान को पकड़ कर दूर किया....
" बहुत हुआ तेरा... अब अगर तूने इसको हाथ भी लगाया तो भूल जाउगा कि तू मेरा दोस्त हैं"
" अबे चल.... तू कल के आये लड़के के लिए मुझसे लड़ेगा"
" हां... प्यार करता हूं कार्तिक से मैं समझा तू"
" ये मेरा रिश्तेदार है जो चाहे करू... इस रंडी के लिए तू मुझ पर हाथ छोडे़गा "
इतना सुनते ही उसने उसको ज़ोरदार थप्पड़ मारा,,, जिस से वह हल्का नीचे झुका तो उसने भी उसके गिरबान को जकड़ लिया था, अभिनव ने मुक्का बना कर उसके मुह पर मारने वाला ही था... की सीढियों पर से किसी के आने की आहट हुयी,, उसने उसको धक्का दिया,, कार्तिक को सहारा देकर उठाया,, और दूसरी सीढियों की तरफ बढ़ गया....
वह वही गुस्से में कार्तिक को सोचता रह गया,, अपने हुए अपमान का बदला लेने के बिचार में लग गया.....!
बारात वापिस घर आ चुकी थी,, अभिनव बारात में से ही वापिस चला गया था,, जबकि कार्तिक की फेमली को विक्की के पापा ने रिसेप्शन पार्टी के लिए घर पर ही रोक लिया था...
सभी रिसेप्शन की पार्टी में मौजूद थे,,, पास के ही होटल में पार्टी थी,, घर पर कोई नहीं था,,, कार्तिक पर मैसेज आया था,,,
"मैं तुम्हारा घर पर विक्की के कमरे में इंतज़ार कर रहा हूं,,, यदि मुझसे प्यार करते हो तो तुम आओगे
I love you"
घर पहुच कर जैसे ही उसने कमरे का दरवाजा खोला,,, तो वह अंदर का नज़ारा देख कर चौका...!
..........
तपती धूप में वह उसका दो घंटे से इंतजार कर रहा था... सामने से कार्तिक को आते देख उसकी जान मे जान आई थी,,, कार्तिक ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उसे देखा...
" आपको इस तरह से इंतजार नहीं करना चाहिए,,,, इतनी गर्मी है,,, खुद की तबीयत का तो ख्याल रखना चाहिए"
अभिनव के सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए उसने कहा
" तुम हो ना मेरा ख्याल रखने के लिए...."
अभिनव ने उसके हाथ पर अपने हाथ रख दिए थे
" हूँ..."
" नाराज हो क्या"
" नहीं तो... और किसलिए "
पार्क में हुए हादसे को एक हफ्ता बीत चुका था,,, विक्की से अभिनव ने बात करनी बंद कर दी थी,,, आज अभिनव ने कार्तिक को मिलने के लिए बुलाया था
दोनों पास की ही कॉफी शॉप में बैठे थे
" तुमको उस से डरने की कोई जरूरत नहीं है अब... और न ही अब वह तुमको परेशान करेगा "
" लेकिन आपको इस तरह से उसको मारना नहीं चाहिए था... उसने अगर घर पर बता दिया तो... अभिनव!"
" ऐसा नहीं होगा... वह दो दिन पहले ही गुड़गांव जा चुका है... तुम अब बेफिक्र रहो"
यह खबर सुन कर उसे तस्सली हुई... राहत की सांस ली थी
" कार्तिक एक बात पूछू " उसने उसके हाथो को पकड़ लिया था
" जी " उसने हाँ मैं सर हिलाया
" तुम मुझसे प्यार करते हो ना"
उसके सवाल में उसके दिल का एहसास और बैचेनी थी, उसने नज़रे उठा कर उसे देखा था....हल्की हल्की हवा उसके बालो को उड़ा रही थी, उसने हाँ मे सर झुकाया
" जी "
" मैं तुम्हारे होठो से सुनना चाहता हूं... की तुम भी मुझे प्यार करते हो"
" i really love you अभिनव.... मैं आपको बहुत प्यार करता हूं"
उसके होठो से इज़हार सुन कर उसकी रूह को सकूं मिला
" अगर कुछ मांगू तो दोगे"
" जी जान मांग लो.... इस से ज्यादा मेरे पास कुछ नहीं है "
दोनों का प्यार अपनी नई नई ऊंचाइयों को छू रहा था,,,अभिनव ने उनके घर भी आना जाना कर लिया था,,, कार्तिक को खुश देख कर उसके मम्मी पापा भी अभिनव को पसंद करने लगे थे, कार्तिक, विक्की के खोफ को भुला कर नॉर्मल रहने लगा था,,, लेकिन उसके मन में अभिनव को सब सच बताने की बात उसे रह रह कर घेरे जा रही थी....
कार्तिक घर पर ही था कि उसके भाई कर्तव्य का फोन आया...
" भाई! आप सच में आ रहे हो"
कार्तिक ने खुशी से उछल कर पूछा
" हां... जल्दी ही मैं वापिस आऊंगा"
" लेकिन कब आ रहे आप"
" 26 मई को..."
" लेकिन भाई मेरा बर्थडे है... आप नहीं होगे तो मुझे अच्छा नही लगेगा" मायूसी से कहा
" कोई बात नहीं कार्तिक! मे तेरे लिए गिफ्ट लेकर आऊंगा पक्का... बोल क्या चाहिए"
कर्तव्य अपने भाई को बहुत प्यार करता था,,,
" बस आप आ जाइए... "
वह थोड़ा उदास हो गया था,,,
उधर विक्की को गुड़गाँव आए 15 दिन बीत गए थे,,,. उसके दिलो दिमाग पर अभिनव से बदला लेने का जुनून सवार था,,, वह वहां से काम निबटा कर जल्दी ही वापिस दिल्ली आना चाहता था....
आखि़र कार्तिक के बर्थडे वाला दिन आया... वह उदास अपने कमरे में बैठा था,,, अभिनव ने उसके घर दस्तक दी, कार्तिक की मम्मी ने दरवाज़ा खोला
"नमस्ते आंटी"
" अरे आओ बेटा... केसे हो तुम,,,, पूरे एक हफ्ते बाद आ रहे हो"
" जी आंटी... वो स्टडी मे बिज़ी था...."
" गुड बेटा अच्छे से पढ़ाई करो..."
" आज कार्तिक का बर्थडे है,,, सोचा उसको खुद जा के विश् करू... कहाँ है आखिर हमारे प्यारे से बर्थडे बॉय"
" बेटा! वो नाराज हुआ बैठा है अपने रूम में... "
कार्तिक की मम्मी ने अंदर लाउंज़ में आते हुए कहा
" नाराज लेकिन क्यो "
" कुछ नहीं अभिनव बेटा... उसका तो हमेशा से यही हाल रहा है,,, उसके बड़े भाई ने उसे वादा किया था उसके बर्थडे पर आने का लेकिन वो अब किसी मीटिंग की वजह से नहीं आ रहा है तो नाराज़ हुआ बैठा है"
कार्तिक के पापा ने पीछे से आते हुए कहा
" अंकल जी मै मिल आउ उसे"
" हां बेटा तुम ही मनाओ उसे अब... तुम्हारा दोस्त है वो तुम्हारी बात मान भी लेगा "
" अंकल वैसे मै आपसे परमिशन लेने आया था... मैं सोच रहा था कि कार्तिक को अपने साथ ले जाऊ... आज के लिए.... मेने उसके लिए सरप्राइज प्लान किया है..."
उसने थोड़ी हिम्मत और डरते हुए कहा
" हां... हाँ बेटा! उसका भी मन बहल जाएगा... जाओ ऊपर अपने कमरे में है वो "
अभिनव को अपने रूम में देख कर वह चौका
" तुम यहाँ..."
" लगता है तुम्हें मेरा आना अच्छा नहीं लगा"
अभिनव ने उसे पूछा
" नहीं ऐसी बात नहीं है बस मुझे उम्मीद भी नहीं थी कि आज तुम यहाँ आओगे"
" क्यूँ आज कुछ खास दिन है"
"नहीं कोई नहीं"
" यार में पास के ही मॉल में जा रहा था सोचा अकेला क्या जाऊ तुम साथ चलो "
" लेकिन मेरा कोई मूड नहीं है कही जाने का "
" लेकिन तुमको चलना होगा... वर्ना उठा कर ले जाऊंगा "
" अभिनव! सच में मेरा मन नहीं है "
" मैं कुछ नहीं जानता.... 10 मिनट में त्य्यार होकर चलो.."
उसने ज़िद करते हुए कहा
" यार मैं नहीं जा सकता "
प्यार करते हो तो तुम्हें चलना होगा मैं अंकल आंटी से परमिशन ले चुका हूं... नीचे तुम्हारा वेट कर रहा हूं "
आखिर उसे उसकी ज़िद के आगे सर झुकाना पड़ा..
कार्तिक उसके पीछे बाइक पर बैठा हुआ था... बाइक अपनी रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी... की अचानक अभिनव ने टर्न बदला... कार्तिक ने रास्ते पर गौर किया
" ये रास्ता मॉल की तरफ तो नहीं जाता "
" चुपचाप बैठे रहो "
" अभिनव! हम जा कहा रहे हैं... बताओगे तुम"
" तुम थोड़ी देर के लिए खामोश बैठ सकते हो..."
वह भड़का... तो कार्तिक एक दम से खामोश हो गया...
" तुम मुझे यहां क्यूँ लेकर आए हो... अभिनव..."
" तुम चलो मैं आता हूँ"
" तुम कहा जा रहे हो"
" कार्तिक! मैं भी आता हूँ"
कार्तिक ने जैसे ही कमरे का दरवाज़ा खोला देख कर उसके होश उड़ गए थे....
पूरे कमरे को झिलमिलाते छोटे छोटे ब्लब से सजाया गया था... दीवार पर रेड हार्ट शेप बलून लगे हुए थे... कुछ बलून नीचे फर्श पर पड़े थे... तभी पीछे से हल्के म्यूजिक में बर्थडे सांग उसके कानो में पड़ा था, उसने पलट कर पीछे देखा तो अभिनव बर्थडे केक लेकर उसके पीछे खड़ा था...
वह उसे एकटक देखता रहा
" अंदर नहीं चलोगे क्या"
अभिनव ने केके को टेबल पर रखा...
" तुम जानते थे सब"
" हैप्पी बर्थडे माइ लाइफ..."
इतना कह कर उसने उसे गले से लगा लिया... कार्तिक उसकी बाहों में समा गया... कार्तिक की आँखो में आंसू आ गए थे,,, जिन्हे वो उसके सीने में छुपाने की कोशिश कर रहा था
" कार्तिक! तुम्हारी आंखो में आंसू... तुम खुश नहीं हो क्या? "
" नहीं अभिनव! मैं तो बहुत लकी हूं जो आप जैसा चाहने वाला मुझे मिला"
उसकी आंखो से आंसू निकल कर अभिनव की हथेली पर रुके
" ओए पगलू! बस जान अब इन आंसुओं के साथ क्या मेरी जान निकालोगे"
कार्तिक ने उसके होठो पर अपना हाथ रख दिया था
" ऐसा होने से पहले मैं खुद की जान दे दूँगा.... "
अभिनव ने उसकी आंखो में बेपन्हा मुहब्बत देखी थी... वह उसकी आंखो में खो गया था कुछ देर दोनों खामोश हो गए... कार्तिक ने खामोशी तोड़ी
" एक बात पूछे आपसे "
" हां... पूछो"
"क्या तुम हमेशा मुझे यू ही चाहोगे... ज़िन्दगी भर मेरे साथ रहोगे ऎसे ही "
" मैं कही नहीं जा रहा... और अपनी जान से दूर कैसे रह सकता हूं मैं"
" मेरी हर साँस, मेरे दिल की हर धड़कन, मेरी जिंदगी पर सिर्फ तुम्हारा हक़ है"
इतना कहते ही बाहर बादल गरज़े कार्तिक उसके सीने से लग गया... अभिनव ने उसे अपनी बाहों में कैद कर लिया था... बाहर हल्की हल्की बारिश होने लगी थी... वो दोनों एक दूसरे की बाहो मे समाए हुए थे...
अभिनव के सीने पर सर रखे वो अपने भविष्य के सपने बुन रहा था
वो उसके बालो मे हाथ फेरे जा रहा था... उनके लिए वक़्त जैसे ठहर गया था... बारिश धीरे धीरे तेज़ होती जा रही थी... कमरे में ठंडक बढ़ रही थी...
आज जैसे आसमान भी दो प्रेमियों के मिलन का गवाह बन रहा था...दोनों प्रेम अगन में तपने लगे थे... आसमान में से कामदेव ने बारिश के रूप में काम बाण की बौछार कर दी थी और दोनों प्रेमियों के बदन के आर पार धस गए थे...
दोनों कामाग्नि में लिप्त हो कर एकदूसरे मे समाए हुए थे... अभिनव ने उसके गुलाबी होठो को चूमा... दोनों के बदन से कपड़े हवा के झोंके की तरह उड़ गए थे.. दोनों एक दूसरे से नग्न अवस्था में लिपटे हुए थे...
सूरज की रोशनी चाँद की चांदनी में बदल चुकी थी... बारिश ने तेज मूसलाधार बरसात का रूप ले लिया था...
बाहर बरसात ज़ोरो से बरस कर धरती की प्यास बुझा रही थी... उसी तरह अभिनव अपने प्रेम की बरसात से कार्तिक के बदन की सूखी धरती की प्यास बुझा रहा था...
शाम के साये रात के अंधेरे में बदल रहे थे... बाहर बरसात थम गई थी... अंदर कमग्नि की बरसात भी थम गयी थी अभिनव हाफ़ने लगा था... उसने कार्तिक के चेहरे पर एक नई चमक देखी... उसके गुलाबी होठ सूखने लगे थे... वह अभिनव के बदन के नीचे लेटा हाफ रहा था... लेकिन उसे आज प्रेम भाव का एहसास हुआ था...
अभिनव ने उसके होठो को चूमा और वही उसके ऊपर ढेर हो गया.... दोनों आँखे बंद किए लेट गए थे...
लेकिन कहते हैं कि सुख की बादली दुख में बदलते वक़्त नहीं लगता
कार्तिक की ज़ोरदार चीख के साथ पूरा कमरा गूंजा....
..........
कार्तिक की चीख से पूरा कमरा गूंज उठा था दरवाजे से विक्की को अंदर आता देख दोनों चोक गए थे... दोनों ने जल्दी से कपड़े पहने ...
" तु इस तरह अंदर कैसे आया..लॉक ओपन कर के"
अभिनव उसकी और लपका उसके सवाल पर वो हँसा
" ताकि तेरी रास लीला अपनी आंखों से देख सकू"
अभिनव समझ चुका था कि उसके कमरे की दूसरी चाबी उसके पास थी जिसका उसने फायदा उठाया... विक्की मुस्कुराते हुए फिर से बोला
"और मैं अकेला नहीं किसी और को भी अपने साथ लाया हूँ "
उसने दरवाज़े के पीछे की ओर इशारा किया, दरवाज़े के अंदर आते हुए शख्स को देख कर दोनों के होश उड़ गए थे...
कार्तिक पूरी तरह से कंपकंपाने लगा था...उसकी आँखे शर्म से झुक चुकी थी.. अपने बड़े भाई कर्तव्य को देख कर वह खामोशी से मुजरिमों की तरह खड़ा था
" यही सब करने के लिए तुझे इतना प्यार किया ताकि तू हमारी इज़्ज़त इस तरह से नीलाम करे"
कर्तव्य ने आते ही कार्तिक के गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ मारा जिस से वह बेड पर गिरा...
" ये सब करने से पहले तु मर क्यूँ नहीं गया"
कार्तिक थप्पड़ लगते ही रोने लगा था,, तभी अभिनव ने आकर उसे थामा,,,
" भाई इसमे इसकी कोई गलती नहीं है,, और ना ही हमने कुछ गलत किया है हम दोनों एक दूसरे को प्यार करते हैं"
अभिनव के बोल सुनते ही कर्तव्य का गुस्सा सात्वे आसमान पर पहुच गया था उसने उसके गिरेबां को पकड़ा
" साले... तुझे मेरा ही भाई मिला था... इसकी ज़िंदगी खराब करने के लिए... तुझे तो मैं ज़िन्दा नहीं छोड़ूगा... कर्तव्य ने उस पर लात घूंसो की बरसात कर थी... वह उसके भाई की मार खाए जा रहा था उसके हर वार उसके शरीर को जख्मी कर रहे थे
" भाई नहीं... इसमे अभिनव की कोई गलती नहीं है... प्लीज़ उसे छोड़ दीजिए"
कार्तिक दौड कर अपने भाई से रिक्वेस्ट करने लगा...
उसने अभिनव को पीछे धक्का दिया तो उसका सर टेबल से टकराया,,, उसके सर से खून की धार बहने लगी थी... उसके मुह और नाक से भी खून बह रहा था...
अभिनव की इतनी बुरी हालत देख कर कार्तिक की चीख निकल गई....
अभिनव जहां रहता था उस घर में उसके सिवा कोई नहीं रहता था... रात की गहराई दोनों प्रेमियों की ज़िन्दगी में छा चुकी थी... कार्तिक अपने भाई के पैरो से लिपट गया...
" भाई अभिनव को मत मारो.. प्लीज़"
" विक्की! इस बेशर्म को लेकर नीचे जा"
कर्तव्य ने एक लात अपने भाई को मारी वह बिलबिला उठा था... लेकिन उस से कही ज्यादा दुख उसे अभिनव का था... कर्तव्य ने अभिनव को बाल पकड़ कर खड़ा किया
" इस हरामखोर का मैं इलाज़ करता हूं"
विक्की उसको खीचता हुआ ले जाने लगा था...कार्तिक चिल्लाए जा रहा था..
कर्तव्य ने उसके चेहरे को ऊपर करते हुए कहा
" आज के बाद तुझे कार्तिक के आस पास भी भटकता हुआ देखा तो तुझे जान से मार डालूंगा... समझा और जितनी जल्दी हो सके इस शहर से निकल जा... वर्ना तुझे जेल का रास्ता दिखाना होगा... समझा"
इतना कहते ही उसे पीछे धक्का दिया अभिनव अधमरी हालत में था... उसके सर से खून बह रहा था... नाक और मुह से खून की धार निकल रही थी... उसकी आँखे बेहोश हो रही थी... बेहोशी मे उसके मुह से सिर्फ यही निकल सका
" आई लव कार्तिक"
और बेहोश हो गया...
........
विक्की सीढ़ियों से खीचता हुआ कार्तिक को नीचे गाड़ी में लाया... वह अभिनव का नाम ले कर चिल्ला रहा था...
उसको कार की पीछे वाली सीट पर धक्का दिया,, कार्तिक सीट पर ढेर हो गया था...
" अगर तूने मेरी बात मानी होती तो तेरी आज इतनी बुरी हालत नहीं होती साले... तेरे को जवानी के असली मज़े दिलाता लेकिन तूने और उस कमीने ने जो मेरे साथ किया था... ये उसकी सज़ा है तुम दोनों के लिए"
उसने उसके गालों को छुआ, होठों पर वही कातिल हँसी थी...
उसकी बात सुन कर वह हैरान था। उसने पलके उठाई आँसू की एक बूंद टपकी,, उसके चेहरे को देखकर बोला
" यानी कि तुमने उस से बदला लिया है " आवाज़ में रुदन था
" वो तुम्हारा दोस्त है अपने दोस्त से इस तरह का बदला लिया...."
"हां बदला लिया...!अपनी बेईज़ीती का बदला...
उसने तुझे मुझसे छीना था...मेरा नाम भी विक्रम ठाकुर है... अगर तु मेरा नहीं हो सकता तो मैं तुझे किसी का भी नहीं होने दूंगा.... "
उसकी आँखे गुस्से से लाल हो चुकी थी, बदन तप रहा था
" क्या....! "उसने हैरत से उसे देखा " ये सब सिर्फ तुमने मुझे हासिल करने के लिए किया यानी अभिनव की हालत जो भी है उसकी वजह सिर्फ मैं हूँ"
वह बेबसी के आंसू बहाने लगा था
उसने गाड़ी की छत पर जोरदार हाथ मारा
" तु सिर्फ मेरा है तुझ पर सिर्फ मेरा हक़ है.... समझा तु"
उसने उसे गुस्से से कहा
" नहीं.... कभी नहीं " उसने उसे धक्का दिया, गाड़ी से निकला
" मैं तुम्हारा कभी नहीं हो सकता विक्रम ठाकुर.... समझे तुम.... मैं आज अभी भाई को तुम्हारी असलियत बता दूंगा... तुम्हें तुम्हारे किए कि सज़ा मिलेगी... ज़रूर "
उसने गुस्से से उसे धमकी दी थी तेज़ी से कदम बढ़ाने लगा था ।
इंसान की खामोशी ही उसकी कमजोरी होती है, उसका डर ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन होता है लेकिन जिन्दगी एक समय ऎसा भी आता है जब हमे उस कमजोरी को हराने का मोका मिलता है अपने डर पर अपनी जीत का पर्चम फैलाने का समय मिलता है जो यह कर पाता है वह जिन्दगी की जंग में जीत हासिल कर पाता है।
कार्तिक के पास भी ये समय उसी कमजोरी को हराने का समय था लेकिन पीछे से आती विक्की की हँसी पर उसके कदम रुक गए थे
" जाओ शौक से बताओ" विक्की ज़ोर से हंसा
" लेकिन तेरी बातो पर कौन भरोसा करेगा... तेरा भाई जो अभी तेरी रास लीला अपनी आंखो से देखा है.... या तेरे घर वाले..... कोई नहीं यकीन करेगा तुझ पर... कोई भी नहीं ."
वह ठहाके देकर हंसा,, वह वही खामोश बूत बना रह गया था... वह पूरी तरह से हार चुका था.. विक्की ने उसे फिर से अपने जाल में फंसा लिया था...!
..........
कर्तव्य उसे जबर्दस्ती घर लाया और कमरे में बंद कर दिया था। कार्तिक की हालत रो रो के बुरी हो चुकी थी। अपने बेटे की ऐसी हालत पर उसके मम्मी पापा भी परेशान हो गए थे।
" कर्तव्य! क्या हुआ है.. इस तरह तुमने कार्तिक को कमरे में बंद क्यो किया.. तुम तो उसे मॉल में लेने गए थे.. ऎसा क्या किया उसने "
उसके पापा ने हैरानी से पूछा
" मुझसे क्या पूछते हो पापा.... अपने लाड़ाले से पूछो की क्या गुल खिला रहा है ये.."
" मुझे तुझसे सुनना है.. आखि़र बात क्या है "
" पापा! आप भी सुनेगे तो पैरो तले की जमीन खिसक जाएगी, कि आपका ये बेटा हम सबकी पीठ पीछे क्या कर रहा है "
" कर्तव्य! साफ साफ कहो...."
" मुझे मेरे बच्चे पर पूरा भरोसा है वो कोई गलत काम नहीं कर सकता "
कर्तव्य की मम्मी ने विश्वास के साथ कहा,
" गलत काम? इस ने तो वो काम किया है कि हम सभी इज्जत के साथ किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रह सकते"
कर्तव्य ने सारी कहानी दोहराई.. सभी खामोशी से उसकी बात को सुने जा रहे थे,
सभी लाउंज में हैरत से खड़े थे, सुनते ही सदमे से उसकी मम्मी सोफे पर गिरी...
" ये नहीं हो सकता... मेरा बेटा.. " वह बेटे की तड़प मे रोने लगी
" लेकिन ये सच है कि कार्तिक का उस अभिनव से संलेंगीक रिश्ता है.. वो एक gay है"
उसने अपनी मम्मी के सामने बैठते हुए कहा
" हे भगवान! ये कौन से कर्मो की सज़ा दे रहा है तू... की मेरा बेटा गे हैं "
वह रोने लगी
" इस सब मे उस हरमखोर की गलती है... हमने उसे बेटे जैसा प्यार दिया और वो हमारे ही बेटे के साथ ये सब कर रहा था... "
उसके पापा गुस्से में भड़के
" उसको मैंने अच्छे से समझा दिया है... अब कार्तिक का क्या करना है ये आप लोग सोचिए "
" इस नामुराद ने तो हमे कही मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा "
वह उसके कमरे की तरफ बढ़े दरवाज़ा खुलते ही सामने वो बैठा हुआ रो रहा था.. पापा को देख कर वह भाग कर उनके पास आया
उसके पापा ने उसे देखते ही उसके गाल पर ज़ोरदार थप्पड़ दिया,, वह नीचे गिरा
" मर गया तू आज से हमारे लिए... तुझे इतना प्यार दिया तेरी हर ज़िद पूरी की...
ताकि तू एक हम सब की इज़्ज़त को यूँ नीलाम करता फिरे... तू पैदा होते ही मर क्यूँ नहीं गया"
वह पूरे गुस्से में उस पर बरस पड़े
" पापा! मैंने कुछ गलत नहीं किया"
" तूने गलत नहीं तूने तो महान काम किया है... हम सबकी नजरे पूरे समाज के सामने झुकाने वाला "
वह बेबसी और लाचारी से रोए जा रहा था...
" आज से तेरा स्कूल, ट्यूशन, घर से बाहर जाना सब बंद... "
कार्तिक अकेला कमरे में अपनी ज़िंदगी की हालत पर रो रहा था। उसके मन में कई सवाल थे जो हिलोरे मार रहे थे लेकिन अपने दिल की बात किस से कहता कोई भी तो उसका दुख दूर करने वाला नहीं था...।
तीन दिन से वह कमरे में खामोश पड़ा हुआ था उस से कोई भी बात नहीं करता था अपने ही घर में बेगाना होकर रह गया था. उसको खाने के लिए बुलाते तो वह नहीं जाता था स्कूल, ट्यूशन, घर से बाहर निकलना उसका बंद हो गया था। बाहर की दुनिया से जैसे उसका कोई रिश्ता ही बाकी नही था...।
एक रोज़ कर्तव्य उसके कमरे में आया, उसने अपने भाई की तरफ देखा था।
" कार्तिक! अपने कपड़ो की पैकिंग कर लो... तू मेरे साथ अब मुम्बई ही रहेगा..."
" मुझे कही नहीं जाना... मुझे प्लीज़ एक बार अभिनव से मिलना है"
" वही तो बताने के लिए आया हूँ... उसने सुसाइड कर ली मर गया साला हरामखोर... सुबह ही विक्की ने फोन पर बताया है..."
सुनते ही कार्तिक के होश उड़ गए थे आंखो से आंसू बह निकले... वह चिल्लाया
" नहींईईई... आप झूठ बोल रहे हो... वो नहीं मर सकता..कह दो कि आप झूट बोल रहे हो "
" वो मर चुका है... कल ही उसने ट्रेन के सामने आकर अपनी जान दे दी... और मेरी बात पर यकीन नहीं खुद विक्की से पूछ ले "
उसने विक्की को कॉल लगा कर कार्तिक को दी... कार्तिक ने जैसे ही उधर से अभिनव के मरने की खबर सुनी तो वह बुरी तरह से तड़प उठा,, ज़ोर ज़ोर से रोने लगा था
" ऐसा नहीं हो सकता मेरा दिल कहता है कि ये सब झूठ है "
" कार्तिक! तुम जितनी जल्दी हो सके ये सब भूल जाओ...और अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू करो"
"मुझे भी मार डालो भाई... मैं जीना नहीं चाहता उसके बगैर"
वह रोते हुए अपने भाई से लिपटा अपने छोटे का भाई का दुख उस से सहन नहीं हो रहा था आखि़र वो उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था।
"कार्तिक! जो हुआ उसे एक बुरे सपने की तरह भूल जा हम सब तुझे बहुत प्यार करते हैं..हम सब तेरा भला चाहते हैं "उसने उसको गले से लगाया
"रात की ट्रेन है अपना ज़रूरी सामान ओर कपड़े पैक कर लो... "
आखिर की बात उसने गुस्से में कही और चला गया. वह फुट फुट कर रो रहा था
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कार्तिक को अपने भाई के साथ मुंबई आए 6 महीने चुके थे,,
अभिनव की मौत की खबर ने उसे अंदर तक हिला दिया था। उसके होठों से जैसे आवाज ही छीन गई थी, वह मुस्कुराना तक भूल गया था। वह एक दम खामोश रहने लगा था।
उसके दिल को ऐसा जख्म मिला था जिसका इलाज दुनिया में कही नहीं था। उसके तमाम सपने, उम्मीदें, इच्छा, ख्वाहिशें, इस समाज के बनाए गए नियमों के हाथो कुचल दी गई थी।
उसकी आंखो के आंसू सुख गए थे जुबान ने खामोशी की चादर ओढ़ ली थी। वह एक बेजान बूत के जैसे ज़िन्दगी गुजार रहा था।
कर्तव्य अपने भाई की हालत का खुद जिम्मेदार था उस से उसकी ये हालत देखी नहीं जा रही थी। पूरा परिवार उसके लिए परेशान था, कर्तव्य ने शहर के बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाया लेकिन सभी ने हाथ खड़े कर दिए थे। वह हकीम, पंडित, मुल्ला - मोलवी सभी के पास उसको इलाज़ के लिए लेकर गया था।
और यह सब एक दिली तसल्ली के लिए था क्योकि इस दुनिया में साइंस ने चाहे हर बीमारी का इलाज ढूंढ लिया हो लेकिन प्रेम रोग का कोई इलाज नहीं ढूंढ़ सका है
कार्तिक ज़िंदा तो था लेकिन वह अंदर से मर चुका था उसका दिल जैसे अंदर ही अंदर यह चीख कर कह रहा था इस समाज के बनाए गए नियमों से बनी घुटन भरी दुनिया में मेरा
#दम_घुटता_है...!
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एहसास-ए-शिव
लोग चाहे कितने भी आधुनिक क्यूँ न हो गए हो?
लेकिन समलैंगिक होना हमारे समाज के लिए आज भी एक घिनौना पाप समझा जाता है।
कहने के लिए हम 21वी सदी का हिस्सा है लेकिन कही ना कही हमारे समाज, हमारे परिवार की सोच आज भी उन्ही पुरानी परम्पराओ, रीति रिवाज,
कि लोग क्या कहेंगे? ,
कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?
हमारे रिश्तेदार सगे संबंधी हमारे बारे में क्या राय बनायेगे?
इन्ही सभी सवालों के बीच घिरी रहती हैं?
क्या ये सब नहीं है ?
यह कहानी नहीं है सिर्फ कार्तिक और अभिनव की, नहीं है सिर्फ एक समलैंगिक प्रेम की। यह कहानी आईना है उस सोच का जो आज भी हमारे समाज का हिस्सा है।
कहते हैं बदलाव दुनिया का दस्तूर है लेकिन क्या समय के साथ - साथ सोच का, विचारो का बदलना ज़रूरी नहीं है?
और यह बदलाव लाभ देना कहलाया जाएगा या हानि?
समय बदलता है तो दुनिया का चलन बदलता है और यदि सोच, विचारो, परम्पराओ को बदला जाता है युग निर्माण होता है।
एक नई दुनिया की अनुभूति नहीं होती क्या मन में?
क्या व्यक्ति, ये समाज, हमारा देश ज्यादा विकसित नहीं होता?
खुद से सोचिए अपने आस पास के देशों के बारे में सिर्फ़ समाज की सोच बदलने से वे हमसे ज्यादा विकसित नहीं है क्या ?
खुद से विचार किजिये
यहाँ पर यह कहानी अपने पीछे बहुत से सवाल छोड़ कर जाती है।
क्या किसी का समलैंगिक होना इतना बड़ा पाप होता है?
क्या प्यार करना जो ईश्वर की रचना है जो किसी विशेष के लिए नहीं बना उसको बंधन में रखना सही है?
यदि प्यार करने की अगर यही सज़ा होती है तो विक्की जैसे लोगो की क्या सजा होनी चाहिए? जो बंद कमरे में, रात के अंधेरे में, इस समाज से छिपकर अपनी हवस का शिकार किसी मासूम लड़के (समलैंगिक) को बनाते हैं।और लोगो के, समाज के, अपने परिवार के सामने खुद को स्ट्रेट दिखाते हैं...?
यह अंत नहीं है इस कहानी का यह आरंभ इस कहानी के दूसरे पहलू
आप सभी के सुझावों का इंतजार रहेगा...!
शुक्रिया
Writen by
@shivi...!!!
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