webnovel

MULPUNJI

Realistis
Sedang berlangsung · 4.9K Dilihat
  • 4 Bab
    Konten
  • peringkat
  • N/A
    DUKUNG
Ringkasan

heartfelt tales of a train journey

Chapter 1EPISODE 01

दोपहर के दो बजे। तेज धूप और उमस भरी गर्मी। आग की भांति तपता दिल्ली रेलवे स्टेशन का वह प्लेटफॉर्म, जहाँ मुसाफिरो की निगाहें ट्रेन के इंतज़ार में सूने पडे ट्रैक पर टिकी थी। तभी पटरियों पर कम्पन के साथ हावडा जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आकर खडी हुई और यात्री अपने-अपने डिब्बे की तरफ बढने लगे। काफी देर से ट्रेन की बाट जोह रहा सत्तर साल का एक वृद्ध हाथ में संदूक लिए ट्रेन की तरफ बढता दिखा। अपने दूसरे हाथ से उसने बारह साल के एक बच्चे की उंगली थाम रखी थी और दोनों ट्रेन की तरफ बढने लगे। हर तरफ यात्रियों का कोलाहल और गर्मी की भारी तपिश के बावजूद भी उनदोनों के चेहरे शांत और निश्चल मालूम पड रहे थे।

एक शयनयान डिब्बे में प्रवेश कर दोनो अपने सीट पर आ गये। खिडकी के बाजू में बैठ बच्चे की आंखें दूर किसी शून्य को निहारने लगी थी। वृद्ध ने हाथो में लिए संदूक को बडा सम्भालकर सीट के नीचे खिसकाया और उसके आगे अपने दोनों पैर टिकाकर ऐसे बैठ गया मानो संदूक के प्रहरी उसकी रखवाली में डंटे खडे हों। ट्रेन में सफर करने वाले मुसाफिरों का आना-जाना लगा हुआ था और एक-एक करके वे अपनी सीट पकडने लगे थे। समय होते ही कानफोडू हॉर्न के साथ ट्रेन गतिमान हुई और स्टेशन को अलविदा कर अपने गंतव्य की तरफ बढने लगी।

कुछ ही मिनटों बाद हाथो में रिजर्वेशन लिस्ट लिए एक टीटीई ट्रेन के उस डिब्बे में दाखिल हुआ। उसके कोट की जेब पर लगे नामपट्टी से उसका नाम लक्ष्मण राजावत साफ झलक रहा था। डिब्बे में प्रवेश कर वह सीधे लोअर सीट पर बैठे उस बुजुर्ग और बच्चे के पास पहुंचा।

"अपना टिकट दिखाएं?" – हाथ आगे बढाकर टीटीई ने कहा। सीट पर मौजुद वृद्ध और बच्चे पर एक नज़र फिरा उसकी आंखें फिर अपने लिस्ट में व्यस्त हो गई।

वर्णहीन चेहरे से वृद्ध ने अपने कमीज की जेब में हाथ डाली और टिकट निकालकर टीटीई की तरफ बढा दिया।

टिकट पर दो नाम अंकित थे- प्रकाश लाल, उम्र सत्तर साल और दूसरा रौशन कुमार, उम्र बारह वर्ष। टिकट की जांच कर और उसपर कलम से निशान लगा टीटीई ने उसे वापस कर दिया। फिर आसपास पडे खाली बर्थ पर नज़र फिरा वृद्ध प्रकाश लाल से बोला- "इन सीटों की सवारी अगली स्टेशन पर चढ़ेंगे।" शांतचित्त प्रकाश लाल टीटीई की तरफ शून्यभाव से देखता रहा। उसके पास बैठे बच्चे की निगाहें खिड़की के बाहर उल्टी दिशा में भागती खेत-खलिहानों पर टिकी थी।

हाथो में लिस्ट थामे टीटीई आगे की सीटों की तरफ निकल गया। इस पूरे अंतराल में वृद्ध प्रकाश लाल ने सीट के नीचे रखे संदूक की कई बार जांच की मानो उसमें कोई बहुत कीमती सामान बंद पड़ा हो। टीटीई लक्ष्मण ने भी इस बात को गौर किया।

तकरीबन घंटे भर बाद ट्रेन अगली स्टेशन पर आकर रुकी। कुछ यात्री डिब्बे में चढे और प्रकाश लाल के पास वाली खाली सीटों पर आकर बैठ गये। मालूम पड़ रहा था वे सभी एक ही परिवार से हैं जिनमें वृद्ध दंपत्ति, उनका बेटा-बहू और दो नन्हे बच्चे शामिल थे। बच्चों की चहक ने वहाँ के सूने माहौल में जैसे रंग भर दिया था।

पहले से मौजूद प्रकाश लाल और उसके साथ बैठे बच्चे रौशन ने एक निगाह उनपर डाली फिर अपनी सूनी दुनिया में लौट गये। सामने की सीटों पर अभी-अभी पहुंचे बच्चों ने मुस्कुराकर रौशन की तरफ देखा जैसे अपनी टोली में शामिल करने के लिए उसे आमंत्रित कर रहे हों। पर अपनी आँखें मूँद रौशन ने प्रकाश लाल के कांधे पर सिर टिका दिया।

ट्रेन पूरी रफ्तार से आगे बढी जा रही थी। रह-रहकर चिप्स, टॉफियां, समोसे, खिलौने और भी न जाने क्या-क्या बेचने वाला डिब्बे में एक तरफ से दूसरी तरफ आवाज लगाता हुआ फिरता और ललचाई निगाहों से उसकी तरफ देख वे दो नन्हें-मुन्हे बच्चे उधम मचाने लगते। वहीं खिडकी के पास बैठा बारह साल का रौशन इन सबसे एकदम अछूता था। जान पड़ता था जैसे उसके बचपन ने पास बैठे वयोवृद्ध प्रकाश लाल की उम्र वाली गंभीरता हासिल कर ली हो।

उन दोनों के चेहरे पर फैले इस वीरान शांति के चक्रव्यू को पास की सीटों पर बैठे परिवार के सदस्यों ने अपनी मुस्कुराहट से भेदना चाहा। पर वे इसमें असफल ही रहे। हालांकि इस बीच उन सबने गौर किया कि प्रकाश लाल थोड़ी-थोड़ी देर पर अपनी सीट के नीचे रखे सन्दूक की जांच करता और उन सबकी कौतूक निगाहें उस बंद सन्दूक के भीतर का एक्स-रे उतारने की कोशिश करने लगती।

ड्युटी पर मौजुद टीटीई लक्ष्मण जो बीच-बीच में उनकी सीटों से होकर गुजरता तो शांतचित्त प्रकाश लाल को अपनी संदूक की रखवाली करता पाता। होता है कभी-कभी, अपने सामान को लेकर कुछ यात्री ज्यादा ही संज़िदा और सचेत रहते हैं। उसे देखकर लक्ष्मण के मन में यही बातें उमडती फिर वो यात्रियों के टिकट की जांच और उनके सीट की मिलान करने में व्यस्त हो जाता।

टिकट की जांच करता हुआ टीटीई लक्ष्मण कम्पार्ट्मेंट के दूसरे छोर पर सफर कर रहे एक ग्रामीण दम्पत्ति के पास पहुंचा। टिकट की मांग करने पर पति-पत्नी ने एक-दूसरे की तरफ देखा और फफक पड़ें।

क्रमशः....

Anda Mungkin Juga Menyukai

जिंदगी 1

अब ये हम दोनो के बिच प्यार था या आकर्षण ये तो पता नही ,लेकिन जो भी था बहुत जबर्दस्त था । अब थोरे थोरे मेरे कदम भी लर्खराने लगे थे , मैने उसे बोला की अब चलते है ,मैने अभी पुरा बोला भी नही था की उसने अपनी उंगली मेरे लिप्स पे रख दी ,और बोली नही अभी नही अभी और , ये बोलते बोलते उसके कदम लर्खराने लगे थे,उसकी आँखे बन्द हो रही थी ,मेरे सिने पे उसने अपने सिर को रखा उसके हाथ मेरे गर्दन पर लिपटे थे,वो उपर आँखे कर के मुझे इक मदहोश नजरो से देख रही थी ।उसकी गरम सांसे मुझे बहुत ज्यादा रोमांचित कर रही थी , कुछ देर तक तो मै उसे ऐसे ही देखता रहा ।फिर मैने सोचा की अब हमे निकलना चाहिये ।मैने घरी देखी रात के 10बज चुके थे ,मैने सोचा हमे अब निकलना चाहिये ।

Anurag_Pandey_5625 · Realistis
Peringkat tidak cukup
7 Chs

सनातन गंगा

सनातन धर्म शाश्वत नियम है. जीवन के कुछ खास तत्व या बुनियादी पहलू हैं जो हमेशा लागू होंगे. सनातन धर्म का मतलब है कि हमारे पास इस बात की अंतर्दृष्टि है कि जीवन हमेशा कैसे कार्य करत सनातन धर्म शब्द का आज आम तौर पर गलत इस्तेमाल होता है. यह एक गलतफहमी है कि धर्म का मतलब मजहब होता है. धर्म का मतलब मजहब नहीं है, इसका मतलब नियम होता है. इसीलिए हम विभिन्न प्रकार के धर्मों की बात कर रहे हैं - गृहस्थ धर्म, स्व-धर्म और विभिन्न दूसरे किस्म के धर्म. मुख्य रूप से, धर्म का मतलब कुछ खास नियम होते हैं जो हमारे लिए इस अस्तित्व में कार्य करने के लिए प्रासंगिक हैं। आज, इक्कीसवीं सदी में, चीजों को संभव बनाने के लिए आपको अंग्रेजी जाननी होती है. यह एक सापेक्ष चीज है. हो सकता है कि पांच सौ से हजार सालों में, ये कोई दूसरी भाषा हो सकती है. हजार साल पहले ये एक अलग भाषा थी. वो आज के धर्म हैं - वो बदलते रहते हैं. लेकिन सनातन धर्म शाश्वत नियम है. जीवन के कुछ खास तत्व या बुनियादी पहलू हैं जो हमेशा लागू होंगे. सनातन धर्म का मतलब है कि हमारे पास इस बात की अंतर्दृष्टि है कि जीवन हमेशा कैसे कार्य करता है। कुछ दिन पहले मुझसे पूछा गया कि हम सनातन धर्म की रक्षा कैसे करें? वैसे, क्या सनातन धर्म को सुरक्षा की जरूरत है? नहीं, क्योंकि अगर वह शाश्वत है, तो मैं और आप उसकी सुरक्षा करने वाले कौन होते हैं? लेकिन इस सनातन धर्म तक कैसे पहुंचें और इन नियमों के जानकार कैसे हों, और उसे अपने जीवन में कैसे लागू करें. इन पहलुओं के बारे में आज की भाषा में, आज की शैली में, और आज के तरीके में बताए जाने की जरूरत है, ताकि यह इस पीढ़ी के लोगों को आकर्षक लगे. वे इसे इसलिए नहीं अपनाने वाले हैं क्योंकि आप इसे कीमती बता रहे हैं. आप इसे उनके दिमाग में नहीं घुसा सकते. आपको उन्हें इसकी कीमत का एहसास दिलाना होगा, आपको उन्हें यह दिखाना होगा कि यह कैसे कार्य करता है. सिर्फ तभी वे इसे अपनाएंगे. सनातन धर्म को सुरक्षा की जरूरत नहीं है. इसे जिए जाने की जरूरत है, इसे हमारी जीवनशैली के जरिए हम सब के अंदर जीवित रहना चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं करते, तो इसकी रक्षा करने से ये अलग-थलग हो जाएगा। सनातन धर्म को मुख्य धारा में लाना ही मेरा प्रयास है. बिना धर्म शब्द को बोले, मैं इसे लोगों के जीवन में ला रहा हूंं, क्योंकि अगर इसे जीवित रहना है तो इसे मुख्य धारा बनना होगा. एक बड़ी आबादी को इसे अपनाना होगा. अगर बस थोड़े से लोग इसे अपनाते हैं और यह सोचते हैं कि वे बेहतर जानते हैं, और वे हर किसी से ऊंचे हैं, तो यह बहुत ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहेगा. हम इस संस्कृति के सबसे कीमती पहलू को, इस मायने में मार देंगे कि धरती पर यही एक संस्कृति है जहां उच्च्तम लक्ष्य मुक्ति है. हम स्वर्ग जाने की या भगवान की गोद में बैठने की योजना नहीं बना रहे हैं. हमारा लक्ष्य मुक्ति है, क्योंकि आप जो हैं, अगर आप उसके अंतरतम में गहरे खोजते हैं, तो आप समझेंगे कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि यह चाहे सुख हो, ज्ञान हो, प्रेम हो, रिश्ते हों, दौलत हो, ताकत हो, या प्रसिद्धि हो, एक मुकाम पर आप इनसे ऊब जाएंगे. जो चीज सचमुच मायने रखती है वो आजादी है, और इसीलिए यह संस्कृति महत्वपूर्ण है - बस आज के लिए ही नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी। अतीत में लोग सनातन धर्म के लिए वाकई तैयार नहीं थे, क्योंकि हर पीढ़ी में सिवाय कुछ लोगों के, बड़े पैमाने पर कोई बौद्धिक विकास नहीं था. तभी तो वे कभी यह नहीं समझ सके कि आजाद होने का क्या मतलब होता है, उन्होंने सिर्फ सुरक्षा खोजी. अगर आप धरती पर सारी प्रार्थनाओं पर गौर करें, तो उनमें से नब्बे प्रतिशत सिर्फ इस बारे में हैं - ‘मुझे यह दीजिए, मुझे वह दीजिए, मुझे बचाइए, मेरी रक्षा कीजिए!’ ये प्रार्थनाएं मुक्ति के बारे में नहीं हैं, वे जीवन-संरक्षण के बारे में हैं। लेकिन आज, मानव बुद्धि इस तरह से विकास कर रही है कि कोई भी चीज जो तर्कसंगत नहीं है, वो दुनिया में नहीं चलेगी. लोगों के मन में स्वर्ग ढह रहे हैं, तो ये आश्वासन कि ‘मैं तुम्हें स्वर्ग ले जाऊंगा,’ काम नहीं करने वाला है. अब कोई भी स्वर्ग नहीं जाना चाहता.  सनातन धर्म के लिए यह सही समय है. यही एकमात्र संस्कृति है जिसने मानवीय प्रणाली पर इतनी गहाराई से गौर किया है कि अगर आप इसे दुनिया के सामने ठीक से प्रस्तुत करें, तो ये दुनिया का भविष्य होगी. सिर्फ यही चीज है जो एक विकसित बुद्धि को आकर्षित करेगी, क्योंकि ये कोई विश्वास प्रणाली नहीं है. यह खुशहाली का, जीने का और खुद को आजाद करने का एक विज्ञान और टेक्नालॉजी है. तो सनातन धर्म कोई अतीत की चीज नहीं है. यह हमारी परंपरा नहीं है. यह हमारा भविष्य है।

Nilmani · Realistis
Peringkat tidak cukup
20 Chs

peringkat

  • Rata-rata Keseluruhan
  • Kualitas penulisan
  • Memperbarui stabilitas
  • Pengembangan Cerita
  • Desain Karakter
  • latar belakang dunia
Ulasan-ulasan
WoW! Anda akan menjadi peninjau pertama jika meninggalkan ulasan sekarang

DUKUNG