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Poem No 38 हर एक मुसाफिर

हर एक मुसाफिर

चलते जाता है

मंजिल मिलने तक

बस चलते जाता है

किसीको पता होता है

किसीको पता नाही होता

फिर भी चलता चला जाता है

हर एक मुसाफिर

चलते जाता है

----Raj

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