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लॉकडाउन अर्थात तालाबंदी। इसके तहत सभी
को अपने-अपने घरों में रहने की सलाह दी गई। जिसका सरकार की तरफ से कड़ाई से पालन भी करवाया जा रहा था।यह इसलिए जरूरी था क्योकि कोरोना वायरस नामक महामारी मानव जाति के इतिहास में पहली बार आई है।
अब पूरा देश इस वायरस से लड़ने के लिए अपने-अपने घरों में कैद हो गया है। इस महामारी के प्रकोप से लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और इससे बचने का सिर्फ एक ही रास्ता है और वो है सोशल डिस्टेंसिग यानी कि सामाजिक दूरी। यह संक्रमण एक से दूसरे इंसान तक बहुत तेजी से फैलता है जिसके कारण भारत सरकार ने लॉकडाउन को ही इससे बचने के लिए आवश्यक माना।
अर्थात लॉकडाउन एक आपातकालीन व्यवस्था है, जो किसी आपदा या महामारी के वक्त लागू की जाती है। जिस इलाके में लॉकडाउन किया गया है, उस क्षेत्र के लोगों को घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती है। उन्हें सिर्फ दवा और खाने-पीने जैसी जरूरी चीजों की खरीदारी के लिए ही बाहर आने की इजाजत मिलती है। लॉकडाउन के वक्त कोई भी व्यक्ति अनावश्यक कार्य के लिए सड़कों पर नहीं निकल सकता।
लॉकडाउन से पहले के समय की बात करें तो उस वक्त हम सभी अपने रोजमर्रा के कामों में इतना व्यस्त रहते थे कि अपनों के लिए, अपने परिवार के लिए व बच्चों के लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाते थे और सभी की सिर्फ यही शिकायत रहती थी कि आज की दिनचर्या को देखते हुए समय किसके पास है? लेकिन लॉकडाउन से ये सारी शिकायतें खत्म हो गई हैं। इस दौरान अपने परिवार के साथ बिताने के लिए लोगों को बेहतरीन पल मिले हैं। कई प्यारी-प्यारी यादें इस दौरान लोग सहेज रहे हैं, अपने घर के बुजुर्गों के साथ समय बिता रहे हैं और रिश्तों में आई कड़वाहट को मिटा रहे हैं।
लॉकडाउन के दौरान बच्चों को अपने माता-पिता के साथ समय बिताने का मौका मिल रहा है, वहीं जो लोग खाना बनाने के शौकीन हैं, वो यूट्यूब के माध्यम से खाना बनाना भी सीख रहे। पुराने सीरियलों का दौर वापस आ गया है जिसका मजा लोग अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर ले रहे हैं और अपनी पुरानी यादों को वापस से जी रहे हैं। बच्चों के साथ वीडियो गेम्स, कैरम जैसे गृहखेल का बड़ों ने आनंद लिया। विद्यालयों में छुट्टी होने के कारण घर बैठकर शिक्षकों ने ऑनलाइन क्लासेज का सहारा लिया ताकि विद्यार्थियों की शिक्षा में कोई रुकावट न आए।
लॉकडाउन के समय लोग अपने शौक को भी पूरा कर रहे हैं, क्योंकि उनको इसके लिए अपनी खुद की दबी इच्छाओं को पूरा करने का समय मिला है। जो लोग डांस सीखने के शौकीन थे और समय की कमी के कारण नृत्य कला को कहीं-न-कहीं खुद से दूर कर रहे थे, आज वे अपने इस हुनर को निखार रहे हैं। जिन्हें म्यूजिक का शौक है, वो म्यूजिक सीख रहे हैं, पेंटिग सीख रहे हैं। ऐसे कई शौक लॉकडाउन के दौरान वापस से जी रहे हैं।
लॉकडाउन के रहने से कोरोना वायरस, जिससे पूरा विश्व परेशान है, से छुटकारा पाया जा सकता है इसलिए यह हम सभी के लिए बहुत जरूरी है। हमारा काम सिर्फ इतना है कि हमें इसका पालन पूरी ईमानदारी के साथ करना है, साथ ही लॉकडाउन से कोरोना वायरस के मरीजों में गिरावट आएगी और संक्रमण फैलने का खतरा कम होगा। हमारे रोजमर्रा की जिंदगी की चीजों में कमी न हो इसलिए किराने की चीजें, फल, सब्जी, दवाइयां बाजार में उपलब्ध हैं।
लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण में कमी हुई है। अगर लॉकडाउन से पहले की बात करें तो उस समय कारखानों से निकलने वाला कचरा जल में प्रवाहित कर दिया जाता था, गाड़ियों के रास्तों पर दौड़ने से ध्वनि और वायु प्रदूषण हो रहे थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से इन सभी चीजों में कमी आई है और आज चिड़ियों की चहचहाहट हमारे आंगन में वापस से सुनाई दे रही है, जो कहीं खो-सी गई थी। नदियों का जल स्वच्छता की ओर अग्रसर हो रहा है।
लॉकडाउन रहने से कोरोना वायरस के मरीजों में गिरावट आएगी और संक्रमण फैलने का खतरा कम होगा। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी की चीजों में कमी न हो इसलिए किराने की चीजें, फल, सब्जी, दवाइयां बाजार में उपलब्ध हैं। लॉकडाउन से बड़े-बड़े कारखानों और वाहनों का चलना निषेध हो गया है। इससे एक अच्छी चीज हुई है, जो है प्रदुषण की कमी। कल-कारखाने का कचरा बाहर जल में प्रवाहित कर दिया जाता था। वायु, ध्वनि और जल प्रदूषण में गिरावट आई है, जो प्रकृति की दृष्टि से लाभदायक है।
ज़माना हो गया है
तुमको हमने देखा नहीं है
lockdown ने एहसास दिया है
कोई तुम जैसा नहीं है…
इसी लॉकडाउन में मै मेरे दोस्त और मेरे परिवार के लोग सभी खुश थे। मेरे इस कहानी में वैसे तो बहुत से पात्र है।लेकिन मुख्य रूप से मेरा परिवार और मेरे दोस्त है।
हमलोग एक मिडिल क्लास फैमिली से है।
लॉकडाउन के कारण सबसे ज्यादा नुकसान मध्यमवर्गीय परिवार का हुआ है. सरकार किसानों के कर्ज माफ कर रही है. गरीबों के खाते में भी पैसे जा रहे हैं. वहीं मध्यमवर्गीय परिवार के लिए ईएमआई और लोन का ब्याज भरना मुश्किल हो रहा है.धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सभी चीजें खुलनी शुरू हो गई हैं. कारोबार दोबारा से खोले जा रहे हैं. बाज़ार भी खुल गए हैं. लेकिन ग्राहक बिल्कुल नहीं आ रहे हैं. जिसकी वजह से कारोबार चलाना इस वक्त एक बड़ी चुनौती है. लॉकडाउन में देश पूरी तरह से बंद रहा जिसकी वजह से देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है.
मार्च के अंत में यानी 28 तारीख को कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन की वजह से जहां मनोरंजन जगत को भारी नुकसान हुआ, वहीं देशभर के सिनेमाघर भी बंद रहे। हालांकि इस दौरान घर बैठे लोगों के लिए दूरदर्शन ने एक बार फिर पुरानी यादों को उस वक्त ताजा कर दिया, जब 80 और 90 के दशक के यादगार सीरियल टीवी पर दिखाए गए। रामायण का पुनः प्रसारण किया गया।
दूरदर्शन पर दिखाया जाने वाला बच्चों का चहेता टीवी शो शक्तिमान कोरोना काल में एक बार फिर से टेलीकास्ट किया गया। मुकेश खन्ना को फैन्स ने शक्तिमान के रोल में दुश्मनों का विनाश करते हुए और गंगाधर के रोल में कॉमेडी करते हुए देखा और अपने बचपन के दिनों में खो गए।
पहली बार 2 अक्टूबर 1988 को शुरू हुए सीरियल महाभारत को कोरोना काल में दोबारा प्रसारित किया गया। महाभारत को बीआर चोपड़ा और उनके बेटे रवि चोपड़ा ने मिलकर डायरेक्ट किया था। बीआर चोपड़ा की महाभारत की सफलता के पीछे का कारण थी उसकी स्टारकास्ट। महाभारत में अर्जुन का किरदार निभाने वाले शख्स का नाम फिरोज खान है। लोगों ने उन्हें याद जरूर अर्जुन के रूप में रखा लेकिन उन्होंने और भी कई बॉलीवुड फिल्मों में काम किया है। वो कयामत से कयामत तक और करण अर्जुन जैसी फिल्मों में काम कर चुके हैं।
कृष्ण की लीलाएं एक सीरियल के तौर पर सबसे पहले रामानंद सागर के सीरियल कृष्णा के जरिए देखने को मिली थीं। सर्वदमन बनर्जी ने इसमें कृष्ण का रोल निभाया था। कोरोना में एक बार फिर इसका प्रसारण शुरू हुआ, जो अब भी चल रहा है।
लॉकडाउन का असर कुछ ऐसा आया, बिना माँगी छुट्टी ने सबका हुनर जगाया… उफ, बताते बताते मेरी साँस फूल आई। बीते हुए समय की यादों को एक बार फिर से जी डाला। संस्कारों की पोटली जो कहीं बंद पड़ी थी उसे भी खोलते चले गए।
मैंने और सभी ने जीवन में पहली बार तालाबंदी या लॉकडाउन का अनुभव किया. दंगों या दो समुदायों की झड़प के दौरान कर्फ्यू का तो अनुभव था लेकिन इस तरह के कर्फ्यू की कल्पना हमने कभी नहीं की थी. भारत जैसे विशाल देश में एकाएक लॉकडाउन हो जाना अभूतपूर्व और अप्रत्याशित था. देश की इतनी बड़ी आबादी को घरों, फ्लैटों, मकानों और झुग्गियों में रहने के लिए कहना और उसका पालन कराना चुनौती भरा काम था. हमें भी प्रोफेशनल काम के अलावा घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. लॉकडाउन की ऐसी सख्ती कि सुबह अखबार आने बंद हो गए. सुबह जब आंख खुलती तो अहसास होता कि कॉलेज तो जाना नहीं है लेकिन पढ़ाई करना है और वह भी घर पर रहकर. परिवार के साथ घर पर रहकर काम करना और पढ़ाई करना एक चुनौती भी है. घर से काम करने का अनुभव भी नया और अनोखा था. घर से काम करने पर यह भी अहसास होता था कि काम के प्रति कोई कमी ना रह जाए.
सुबह की शुरूआत टीवी न्यूज और मोबाइल पर खबरें पढ़ने से होती और फिर छत पर जा-जाकर यह देखने में लगे रहते कि सड़क से कौन पार हो रहा है. आम तौर पर गाड़ियों का शोर घर के अंदर रहते हुए भी सुना जाता था लेकिन तालाबंदी में गाड़ी का शोर, सब्जी बेचने वाले की आवाज, फेरी लगाने वाले के अजब-गजब तरीके हमसे कहीं दूर चले गए थे. गांव का यह सन्नाटा अजीब सा था. घर में रहकर और काम करते हुए दिन इसी उम्मीद के साथ गुजर जाता कि आज का सूरज डूबेगा और कल एक नई सुबह होगी. शाम होते ही अन्य लोगों की तरह हम लोग भी घर की छत पर चले जाते और वहीं डूबते सूरज को देखते और बस देखते ही रहते. सूरज बिलकुल स्थिर दिखता है लॉकडाउन के वक्त की तरह. आसमान का नीलापन दिन भर की उबासी को दूर देता. निर्माण बंद होने और फैक्ट्रियां बंद होने से हवा भी अच्छी होने लगी.
मुझे आज भी याद है कि हम कैसे गर्मी की छुट्टियों के दौरान नानी के घर पर जाया करते थे, जो कि शहर में था. लॉकडाउन के दौरान मुझे अचानक उस की याद आ गई.. हो सकता है कि लॉकडाउन में शहर जादे सख्ती हुई हो और वहां के हालात गावों से बेहतर ना रहे हों. लेकिन वहां की चुनौतियां अलग रही होंगी. जैसे किसी जरूरी चीज का तुरंत नहीं मिल पाना या फिर उसके लिए छोटे शहरों तक दौड़ भाग करना. लॉकडाउन के बारे में शहरों में बैठ कर अनुमान लगाना थोड़ा नहीं बहुत मुश्किल है. किसानों, मजदूरों और महिलाओं की चुनौतियां अलग रही होंगी. जो बच्चे सिर्फ गांव के स्कूलों में पढ़ने जाते होंगे उनकी पढ़ाई पर असर पड़ना और उनका स्कूल छूटना. शहरी बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा अब ऑनलाइन हो गई है लेकिन गांवों के बच्चों के लिए दिक्कत तो बनी हुई है
गांवों में भले ही कच्चे-पक्के मकान हैं लेकिन वहां आपको जानने वाला दूर-दूर तक है और आप भी उन्हें जानते हैं. लेकिन इस तुलना में शहरों में ऐसा ना के बराबर है. शहरों में दरबानुमा फ्लैट या मकान में जिंदगी सिमट जाती है. लॉकडाउन के दौरान ना तो आप पार्क जाते हैं और ना ही बाजार लेकिन गांवों का अनुभव कुछ और ही रहा होगा. गांवों में रोजगार और शिक्षा के अवसर कम होने की वजह से ही लोग शहरों में पलायन कर जाते हैं. शहरों की ही तरह गांवों में रोजगार और शिक्षा के बेहतर अवसर मुहैया होंगे तो शहर और गांव के बीच का फासला कम हो जाएगा.
लॉक डाउन ने परिवार की अहमियत को बता दिया । हमारा सारा वक्त घर के बाहर निकल जाता है और हम अपने अपनों को बहुत कम समय दे पाते हैं।लेकिन , घर के असल होम मेकर तो वही होते हैं , जो उस मकान को घर बनाते हैं । मैंने लॉक डाउन में "माँ " को समझा । वो थकती ही नहीं हैं , और बहुत प्रेम से घर के सभी कार्य करती हैं ।
जब घर का झाड़ू पोंछा स्वयं किया तो समझ में आया कि काम क्या होता है । उसके बाद समय ही नहीं होता था इस ऑनलाइन दुनिया से मिलने का । इत्मीनान, सुकून और एक गहरी नींद जिसका ६ बजे खुलना तय होता था।
धूप में सोशल डिस्टन्सिंग में १।३० घंटे लम्बी लाइन में खड़े रहकर सामान लेने की वो कवायद , वो झुंझलाहट जो धीरे धीरे संयम में बदलती गयी , और उस इंतज़ार की आदत हो गयी ।
लोगो को सुनने और समझने की कोशिश करने लगा मैं ; साथ काम करने वाले मेरे इस व्यवहार पर हँसते , लेकिन मैं अब लोगों को समझअता । और इसी क्रम में मैंने ये भी समझा कि ढीठ व्यक्ति ढीठ ही रहता है ; वो ५०० रुपये लेने वालों की लाइन जिन्हें लॉक डाउन से कोई फर्क ही नहीं पड़ा और वो अभिमानी पैसे वाले लोग जिनके लिए लॉक डाउन नियम तोड़ने की एक प्रक्रिया हो गयी ।
इंसानी व्यवहार को समझा ; वो लालच के पीछे एक एक पैसे को बचाने वाला अमीर और अपने ख़ज़ाने खाली करने वाला भी वही अमीर ; कितना फर्क है उसके वर्तन में और कितनी कैलकुलेशन की होगी उसने उन दुआओं को पाने के लिए और उसी खर्च हुए पैसे को चार गुना करने के लिए । सच कहूं , तो सच्चा तो वो गरीब ही है जो १० रुपये किसी को कम कर देने के बाद ये नहीं सोचता कि अब इस १० रुपए के नुकसान को मैं कहाँ से पूरा करूँ ; वो संतुष्ट हो जाता है । सफल भी वही ; और खुश भी वही ।
लॉकडाउन के दौरान जब बड़ी आबादी गांवों की तरफ लौटी तो शहरी लोगों ने सवाल किया कि ये हमारे शहर में कहां थे. ये वो लोग थे जो शहरी लोगों के दफ्तरों में, घरों में या अन्य छोटे मोटे काम करते थे. चमकते-दमकते शहरों में ऐसे लोगों को मुसीबत के समय गांव की मिट्टी खींच ले गई. हो सकता है कि शहरों के मुकाबले गांव में अपनापन ज्यादा होगा लेकिन जब तक गांव में जीवनयापन के उपाय मौजूद हैं वे लोग गांव में ही रहना पसंद करेंगे लेकिन साधन खत्म होने पर उन्हें शायद शहरों में दोबारा लौटना पड़े.
हमारे जैसे लोगों के पास गांव के विकल्प बेहद कम या नहीं है, हम बस हरे भरे खेतों, तालाब और नदियों के बारे में सोच कर मन ही मन खुश हो सकते हैं..
कई बार जीवन के
उतार चड़ाव और आसपास की परिस्थितियां हमारे मन को विचलित कर देती है। जैसे आजकाल कोरोना के प्रकोप से जो देश की स्थिति है वह हम में से कई लोगों को बेचैन कर रही है और इसके कारण कई लोग तनाव में हैं। तनाव हमारे पाँचों कोशों पर अपना असर करता है।
ऐसा वायरस जो ऊँची ऊँची इमारतों में रहने वालों के साथ प्लेन से सफर कर हमारे भारत देश में आया और बस्तियों में रहनेवाले करोड़ो लोगों के साथ ही सड़कों पर बेघरों की जिंदगी जीने वाले, कूड़ा-कचरा-प्लास्टीक बेचकर गुजारा करने वाले और नाका कामगार, फेरीवाले जो रोज का कमाते है इन लोगोंके भय का कारण बना | इन लोगों के आंसुओ का और भुखमरी का बुनियादी कारन बना माहामारी की वजह से सरकार द्वारा लिए गए शीघ्र निर्णय जैसे की निषेधाज्ञा (curfew) और लॉकडाउन (lockdown) । इस निर्णय के गंभीर परिणाम समाज के एक ऐसे तपके पर हुए जिसे हम अनऑर्गनाइज सेक्टर (असंगठित कामगार — नाका कामगार, फेरीवाले, घरेलु कामगार, ट्रक ड्राइवर्स) कहके जानते है और जो बस्तियों में बड़े पैमाने पर रहते है। इस वायरस का प्लेन से देश में आना और पुरे देश में फ़ैल जाना इसकी वजह चाहे जो भी हो, गलती किसी की भी हो पर बहोत ही बुरा नतीजा भुगतना पड़ा वो इन्ही असंगठित कामगारोंको ।
सरकार द्वारा लिया गया लॉकडाउन का निर्णय जरुरी तो था पर इसे पूरी तरीके से सही नही माना जा सकता ! पूर्वनियोजन ना होने की वजह से लाखों कामगार रास्तो पर उतर आए जिसके लिए देशभर के कामगारोंका रास्तों पर निकलना ताजा उदाहरण हम समझ सकते है ! जिसमे लाखों माइग्रेंट वर्कर्स जो मजदूरी करते है, जो किसी ना किसी कारणवश अपने गांव छोड़कर पेट भरने के लिए दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में आ बसे है!
लॉकडाउन के बाद ऐसे लाखो कामगार सड़को पर उतर आए क्यों की सरकार का कहना था, 'घर पर ही रहो, सुरक्षित रहो' पर यह कामगार लॉकडाउन की वजह से अभीतक घर नहीं पोहोंचे थे, कही ना कही फसे हुए थे ! जिनका सिर्फ एक ही मकसद था, 'हम सिर्फ घर जाना चाहते है', मेंेें
जिन आंखों ने कुछ कर गुजरने के सपने देखे थे, आज वो आंसुओं से नाम हैं। उम्मीदों की इमारत आज ढहने लगी हैं। कोरोना महामारी ने रोजगार के साथ ही दो वक्त का निवाला भी छीन लिया है
लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की क्या हालत हुई है, इससे सब लोग भलिभांति परिचित हैं। लाख मजबूरियों को पार कर पैदल घर पहुंचने वाले हर एक प्रवासी की दर्द भरी कहानी एक से बढ़कर एक है।
खाली पलके झुका देने से नींद नहीं आती
सोते वहीं है जिनके पास यादें नहीं होती।
यह कहानी बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक गांव का है। जहां टूटे घर के साथ एक मा अपने बच्चो के साथ रहती थी
और उसका पति दिल्ली में काम करता था।
उस औरत का नाम विमला था ।और उसके बेटे का नाम -रवि था
और उसका पति राजेश जो दिल्ली में काम करता था ओ भी मजदूरी का .जब उसने सुना की पूरे देश में 21 दिन लॉकडॉउन लगा ।तब उसके माथे से पसीने आने लगा था।
प्रधानमंत्री लगातार टीवी पर बोल रहे थे "इसलिए मेरी सभी देशवासियों से अपील है कि इस संकट की घड़ी में देश के साथ खड़े हो। देश की सरकार ने फ़ैसला किया है कि आज रात 12 बजे से देश में आगामी 15 अप्रैल तक संपूर्ण लाक डाउन रहेगा जो जहां है वो वहीं पर रहे ओर बिना वजह घर से बाहर न निकले…।"
प्रधानमंत्री की बात सुनते ही राजेस ने जेब से मोबाइल निकाला ओर एक नंबर डायल किया ओर फोन कान से लगाया। फोन में घंटी बज रही थी ।
तभी दूसरी तरफ से किसी ने फोन उठाया "हैलो।" लो राजेश उत्तर हैलो में दिया ओर बोला "मैनेजर साहब नमस्कार, अभी प्रधानमंत्री जी ने रात 12 बजे से लाक डाउन किया है इसका क्या मतलब है?"
दूसरी तरफ से मैनेजर बोला "भाई सबकुछ बंद यानि तालाबंद बोला "तो गरीबन का क्या होगा"
दूसरी तरफ से आवाज आई "राम जाने" ओर फोन डिस्कनैक्ट कर दिया गया।
तभी राजेश दोस्त पंकज से पूछा "भाई खाना ला दूं क्या?" इधर राजेश के दिमाग में उधेड़बुन शुरू हो चुकी थी। वह सोच रहा था लाक डाउन में संपूर्ण बंद रहेगा तो घर का खर्चा कैसे चलेगा। फैक्टरी में काम बंद होगा तो मालिक भी कुछ नहीं देगा। सोचने लगा शायद एक दो दिन का ही गुजारा चल पाएगा। तभी पंकज की आवाज पर राजेेश चौंक पड़ा, जैसे नींद से जागा हो।
इधर राजेश की पत्नी विमला और उसके बच्चे राजेश को फोन लगाने लगे ।राजेश का बेटा उससे पूछता है पापा आप कब आओगे ।तब राजेश ने बोला कि जल्द ही आऊंगा ।मम्मी को तंग मत करना ।तभी फोन कट जाता है।
अब आगे
राजेश ने अपने दोस्त पंकज की तरफ देखते हुए पुछ" घर में राशन कितने दिन का है।"
पंकज ने राजेेश की बात का जबाव न देते हुए उल्टा प्रश्न किया "क्या हुआ? काहे पूछ रहे हो
राजेेश के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थी कोरोना केे कारण देश में लाक डाउन हो चुका है। घर से निकलना भी बंद है।"
"बंद कैसे हो सकता है। गरीब क्या खाएगा। काम धंधा बंद हुआ तो गरीब आदमी का परिवार बीमारी से मरे ना मरे मगर भूख से जरुर मर जाएगा ।प्रधान मंत्री ने लॉकडाउन किया है तो कुछ सोच समझ कर ही किया होगा। हमारे लिए कुछ ना कुछ अवश्य सोचा होगा ।क्य्््
राजेश के पास मकान किराया व घर का खर्चा निकालने के बाद मुश्किल से दो तीन हजार बचते थे जिन्हें वह घर भेजता था। सुबह का वक्त था ।गारी की आवाज सुनकर राजेश जाग चुका था।
उसने चारपाई के सिरहाने रखा मोबाइल पर समय देखा तो बरबस ही उसके मुँह से निकला अरे बाप रे! आठ बज चुके है। उसने स्टूल पर रखे लोटे को देखा। लोटे में पानी था। राजेश ने उससे मुँह धोया। खूँटी पर से अंगोछा उतारा ओर मुँह पोछने के बाद वापिस चारपाई पर बैठ गया। पंकज भी नीचे चटाई पर सोया हुआ था।
राजेश ने चारपाई से उठकर बाथरुम में घूस गया। थोड़ी देर बाद राजेश बाथरुम से बाहर निकला। तबतक पंकज भी उठ चुका था
पंकज ने राजेश की तरफ देखते हुए कहा "फैक्ट्री में चलेगा क्या ।
राजेश ने पंकज की तरफ देखते हुए कहा "एक बार जाना पड़ेगा। मैनेजर से मिल लेता हूँ । हिसाब किताब कर लेता हूँ। पैसा तो कुछ बनेगा नहीं क्योंकि पिछले महीने अडवांस जो लिया था।"
"फिर अब क्या करेंगे? काम धंधा बंद हुआ तो घर कैसे चलेगा।" राजेश ने कहा कि विमला को भी पैसे भेजने है। राजेश के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही था।
तभी राजेश को दरवाजे पर एक आवाज सुनाई दी। दरवाजे पर मुरारी खड़ा था। प्रवीण भी बिहार का रहने वाला था और राजेश के साथ ही गाँव से आया था। वह रामधनी के मकान के उपर ही रहता था।
प्रवीण ने घर में प्रवेश करते हुए कहा "राजेश फैक्ट्री चलना नहीं है क्या?"
राजेश ने प्रवीण की तरफ देखते हुए कहा "फैक्ट्री बंद हो गया है। कोरोना बीमारी के कारण सरकार ने पूरा देश में लाक डाउन कर दिया है। सब काम धंधा बंद हो गया है। घरों से निकलना भी बंद हो चुका है।"
राजेश ने प्रवीण की बात पूरी होते ही तपाक से बोला "कर्फ्यू लगा दिए हैं सरकार ने सीधा बोलो।"
"यार! सरकार ने कर्फ्यू लगा दिए हैं तो बड़ा मुश्किल हो जाएगी। घर में आटा दाल कहां से आएगा। क्या होगा कुछ समझ नहीं आ रहा है।" प्रवीण के चेहरे पर चिंता के भाव थे।
राजेश ने प्रवीण की तरफ देखते हुए कहा "बड़ा मुश्किल हो गया भाई। पता नहीं घर कैसे चलेगा।"
पंकज कहा ,चलो फैक्ट्री से आते है। क्या पता वहां पर काम चलता हो।"
फैक्ट्री के गेट के आगे काफी मजदूर खड़े थे। रामधनी भी उन्हीं मजदूरों में खड़ा था। फैक्ट्री के मुख्य गेट पर एक बड़ा सा ताला लटका हुआ था। राजेश ने जेब से मोबाईल निकाला ओर नंबर डायल किया। रामधनी ने कान मे फोन लगाया।
तभी दूसरी तरफ से आवाज आई "हैलो"
राजेश ने उसका उतर देते हुए कहा "हैलो मैनेजर साहब, मैं राजेश बोल रहा हूँ। काम का क्या रहेगा। चलेगा या नहीं। हम काफी मजदूर फैक्ट्री के गेट पर खड़े हैं।"
दूसरी तरफ से मैनेजर बोला "अरे! मरवाओगे क्या? बाजार में पुलिस घूम रही है। फैक्ट्री के सामने भीड़ की तो पुलिस एफआईआर दर्ज कर देगी। तुम लोग अपने घरों को चले जाएँ।"
"मैनेजर साहब वो हिसाब कर देते" राजेेश आग्रह के साथ बोला।
मैनेजर ने रामधनी की बात का जवाब देते हुए कहा "आज कुछ नहीं होगा। मैं हिसाब मिलाकर तुम्हें फोन कर दूंगा।" मैनेजर ने दूसरी तरफ से फोन काट दिया ।
प्रवीण व दूसरे मजदूर जो राजेश के पास ही खड़े थे ।उन्होंने राजेश
से पूछा "क्या कहा? मैनेजर साहब ने। कुछ काम चलेगा या नहीं ओर हिसाब के बारे में क्या कहा है राजेश मोबाईल जेब में डालते हुए कहा "भाई, काम नहीं चलेगा। काम पूरी तरह से बंद रहेगा। हिसाब के बारे में मैनेजर साहब बोल रहे हैं कि हिसाब मिलाने के बाद वो खुद बुला लेंगे।"
पास खड़े एक दूसरे मजदूर ने पूछा "कब तक हिसाब मिलाने का बोल रहे थे?"
राजेश ने उस मजदूर की तरफ देखते हुए कहा "यार, समय तो नहीं बताया। यही कहा है हिसाब मिलाकर बता देंगे।"
राजेश की बातें सुनकर सभी मजदूरों के चेहरे लटक गए। उनके चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही थी।
तभी फैक्ट्री के गेट के पास ही एक पुलिस की जिप्सी आकर रुकी। जिप्सी से कई पुलिस कर्मी एक साथ उतरे जबकि पुलिस अधिकारी वहीं जिप्सी की आगे की सीट पर बैठे रहे।
पुलिस कर्मियों के हाथों में डंडे थे। वे मजदूरों के पास पहुंचे। पुलिस कर्मियों को देखकर सभी मजदूर घबरा गए।
एक पुलिस कर्मी ने रोब जमाते हुए पूछा "यहां क्यों खड़े हो?"
वो पुलिस कर्मी राजेश के पास ही खड़ा था ओर चेहरा राजेश की ही तरफ था इसलिए राजेश ने जवाब देते हुए कहा "साहब! काम का पूछने आए थे। हिसाब भी करवाना था।"
"देखों! सभी सुन लो। जब तक लाक डाउन है। घरों से बाहर नहीं निकलना है। कोरोना बहुत ही गंदी बीमारी है। यह लोगों के संपर्क में आने से फैलती है इसलिए हमें सोशल डिस्टेन्सिग अपनानी होगी ओर सारे हिसाब-किताब के बारे में सिर्फ मोबाइल फोन पर बात करनी है।" उस पुलिस कर्मी ने मजदूरों को समझाते हुए कहा।
मजदूरों ने पुलिस कर्मी की बात का कोई उतर नहीं दिया बल्कि सभी ने एक साथ सहमति में गर्दन हिलाई।
"चलो! अब सभी लोग अपने घरों से मत निकलना। ये पहला दिन है इसलिए समझा रहे हैं आगे से निकले तो मरम्मत भी होगा" पुलिस कर्मी मजदूरों को डंडा दिखाता हुआ बोला।
सभी मजदूर, पुलिस कर्मी की बात सुन इधर उधर चल दिए। राजेश भी प्रवीण के साथ घर को चल दिया।
लाक डाउन के चलते बाहर गली में कई बार पुलिस के वाहन सायरन बजाते निकल रहे थे। गलियों में भी एक अजीब सा सन्नाटा पसरा था मगर राजेश को भविष्य की चिंता सता रही थी कि कैसे घर चलेगा? ओर घर पैसा भेजना है उसका क्या होगा? आज लाक डाउन का तीसरा दिन था। घर में एक अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई थी।
राजेश गहरी चिंता के साथ शुन्य में देखता हुआ बोला "पता नहीं कैसे काम चलेगा। मैनेजर ने भी कुछ नहीं दिया।" पंकज बोला"बड़ी मुश्किल हो जाएगी। क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा है।"
तभी मोबाइल की घंटी बजी। राजेश ने मोबाईल की स्क्रीन पर देखा तो लिखा था विमला ,राजेश के गाँव से उसके पत्नी का फोन था जो उसने मोबाइल में विमला के नाम से सेव कर रखा था। मोबाईल ऑन कर उसने कान से लगा लिया। दूसरी तरफ से राजेश को अपने बेटा की आवाज सुनाई दी "हैलो! कैसे हो पापा ।
रामधनी ने बेटा की बात का उत्तर देते हुए कहा "ठीक हूं। तब राजेश बोलता है कैसे हो बेटा ,तब बेटा बोलता है मै भी ठीक हूं ।
विमला बोली कि आप कब आ रहे है और रोने लगी ।विमला को अपने पति की चिंता सताने लगी।राजेश ने विमला को समझा भूझकर फोन को काट दिया ।
अब आगे
सुबह का वक्त था सरको पर कोई नहीं था पूरा सन्नाटा छाया हुआ था ।मानो की जैसे पूरा सहर खाली हो गया है । सरक पर सिर्फ पुलिस कर्मियों के हाथों में चाय के डिस्पोजल कप थे ओर वे चाय पी रहे थे। शायद सुबह सुबह समाजसेवी लोग ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मियों को चाय देकर गए हैं।
राजेश व प्रवीण आज भी अन्य काफी मजदूरों के साथ फैक्ट्री के गेट के आगे खड़े थे। फैक्ट्री के गेट पर एक बड़ा सा ताला लटका हुआ था। आज तो फैक्ट्री के आगे खड़ा रहने वाला चौकीदार भी गायब था।
तभी किसी मजदूर ने राजेश से कहा "भईया, मैनेजर से बात करो ना। आज पांच दिन हो गया है। घर में खाने के लिए कुछ नहीं है। करो ना मैनेजर को फोन।"
"अरे भाई, कई बार बात कर चुका हूँ मगर हर बार यही कहता है हिसाब करने के बाद स्वयं फोन करूंगा। मेरी सुनता ही नही है। पिछले पांच दिन में कई बार फोन कर चुका हूँ मगर हर बार एक ही जवाब मिलता है।" राजेश ने परेशान होते हुए बोला।
"तो भाई अब क्या करें? फैक्ट्री बंद पड़ी है। यहां कोई नहीं है।" प्रवीण बोला
राजेश ने जेब से फोन निकालते हुए कहा "चलो एक बार ओर मिलाकर देखते हैं।"
राजेश ने फोन पर कुछ नंबर डायल किए ओर फोन कान पर लगा लिया। घंटी बज रही थी मगर दूसरी तरफ कोई फोन उठा नहीं रहा था। फोन की घंटी काफी देर बजने के बाद बंद हो गई। फोन की घंटी जैसे ही बंद हुई, राजेश ने मजदूरों से कहा कि को फोन नहीं उठा रहा है।तभी वाहा पर पुलिस की गाड़ी आ गई।उसमे से एक पुलिस वाला निकला जिसका नाम आकाश मिश्रा था उसके हाथ में एक डंडा भी था ।उसने मजदूर से कहा की
"देखों, मैंने पहले भी कहा था। तुम मैनेजर से फोन पर बात करो। बाहर नहीं निकलना है।" पुलिस कर्मी का लहजा अब पहले की अपेक्षा ओर सख्त था।
"साहब, हम क्या करें? सच में घर में खाने को दाल चावल कुछ नहीं है। मैनेजर हिसाब कर देता तो कुछ दिन का इंतजाम हो जाता। साहब मजबूरी है।" कुछ मजदूरों ने एक साथ बोला।
तभी थोड़ा दूर से एक सायरन की आवाज सुनाई दी। गाड़ी के आगे बैठा पुलिस अधिकारी जोर से बोला "एसपी साहब शायद राउंड पर आ रहें हैं, इन्हें हटाओ यहां से।"
"चलो-चलो यहां से, साहब राउंड पर आने वाले हैं।" सभी पुलिस कर्मी मजदूरों को एक तरफ धकेलने लगे।
"साहब-साहब…।" मजदूरों ने हाथ जोड़ते हुए कुछ बोलना चाहा मगर पुलिस कर्मियों ने उसे इग्नोर करते हुए उन्हें वहां से हटाने लगे। सभी मजदूर इधर-उधर को चल दिए।राजेश भी वाहा से प्रवीण के साथ भाग गया ।
राजेश के घर पर राशन खत्म हो चुका था।
राजेश के मकान के उपर रहने वाले मुरारी व दूसरे परिवार का हाल भी यही था।इधर विमला का भी स्थिति खराब होने लगा था ।उसका भी घर का राशन खत्म होने वाला था। और उसे अपने पति की चिंता होने लगी थी।
सुबह का समय था। अभी सूरज निकला नहीं था। पक्षियों की चहचाहट का शोर सुनाई दे रहा था। गली में लोगों की मामूली आवाजाही शुरू हो चुकी थी। सुबह अपनी जरूरत का सामान खरीदने घरों से बाहर निकलते थे। प्रशासन ने लोगों के लिए भी काफी नियम बनाए थे। लोगों को घरों से बाहर निकलते वक्त मास्क पहना अनिवार्य था। सोशल डिस्टेसिंग रखने को बोला गया था। दुकानों के बाहर दो दो मीटर पर निशान लगाए थे ताकि दुकानों के बाहर भीड़ न हो ओर लोग सोशल डिस्टेसिंग का पालन कर सके। दूकानदार, उसके कर्मचारी के लिए भी मास्क अनिवार्य था।
राजेश अभी अभी जागा था उसने उठकर मुँह हाथ धोया।तभी पंकज और प्रवीण उसके पास आकर बोला की भाई "सुबह सुबह ही दूध मिलता है इसलिए जाओ और दूध लेकर आओ सब मिलकर आज चाय बनाकर पीते है।
पंकज की बात सुनकर राजेश दूध के लिए बाजार जाने लगा ।
तभी प्रवीण बोला कि भाई मास्क लेकर जाओ नहीं तो पुलिस बहुत मारेगी ।कल ओ सुमन को मार बहुत लगा था।तब राजेश ने मास्क लगा कर बाज़ार की तरफ निकल गया ।जब
बाजर में पहुंचा तो उसने देखा कि पुलिस माइक से बोल रहा था कि सभी अपने घर में रहे सोशल दिस्टेंसिंग का पालन करे ।फिर राजेश दूध लेकर अपने रूम पर आ गया।फिर सबने चाय की चुस्की ली और फैक्टरी की तरफ निकल पड़े।वाहा पहुंचा तो देखा की और भी मज़दूर आए थे।और ओ लोग बात कर रहे थे कि
"अरे! वो मैनेजर हिसाब तो करता नहीं है। अब तो उसने फोन उठाना भी बंद कर दिया है।
"भाई, गौरव को तो जानता ही है। वो साला नेता भी बनता है। वो बोल रहा था अगर आज हिसाब नहीं किया तो हम मालिक के खिलाफ नारे लगा देंगे।" प्रवीण बोला
"कहीं कोई समस्या ना हो जाए। प्रदेश में बैठे हैं। मालिक के तो बहुत जानकार आ जाएंगे मगर हमारी कोन सुनेगा।" राजेश ने चिंता जताते हुए बोला।
मजदूरों ने भी मैनेजर को फोन मिलाया मगर मैंनेजर ने किसी का भी फोन नहीं उठाया। मजदूरों के बीच ही गौरव खड़ा मजदूरों को कुछ समझा रहा था।
तभी गौरव ऊंचे स्वर में बोला
"फैक्ट्री मालिक मुर्दाबाद"
सभी मजदूर एक साथ बोले " मुर्दाबाद मुर्दाबाद"
गौरव ने फिर जोर से नारा लगाया "फैक्ट्री मैनेजर मुर्दाबाद।"
सभी मजदूर फिर बोले "मुर्दाबाद मुर्दाबाद।"
सभी मजदूर काफी देर से नारेबाजी कर रहे थे ओर सड़क पर आते जाते लोग उन्हें देख रहे थे।
तभी पुलिस की गाड़ी मजदूरों के पास आकर रुकी। गाड़ी से काफी पुलिस कर्मी एक साथ उतरे। उन्होंने मजदूरों को चारों तरफ से घेर लिया। गाड़ी से पुलिस अधिकारी उतर कर नीचे आया ओर मजदूरों के पास आकर बोला " क्या बात है क्यों शोर मचा रहे हो?"
पुलिस को देखकर सभी मजदूर डर के मारे चुप हो गए।
"साहब, लाक डाउन है। काम बंद पड़ा है। मैनेजर हमारा हिसाब नहीं कर रहा है। हमारे घर में खाने को कुछ भी नहीं है।" एक मजदूर बोला
"ऐसा करो तुम सभी थाने में चलो, वहां चलकर बात करते हैं।" पुलिस अधिकारी ने पुलिस कर्मियों की तरफ देखते हुए कहा "इन्हें पुलिस थाने में ले आओ।"
पुलिस थाना का नाम सुनते ही काफी मजदूर डर गए और इधर-उधर जाने लगे।तब एक पुलिसवाला बोला कि नंबर दो, उस मैनेजर का। मैं बात करता हूँ।" पुलिस अधिकारी बोला।
एक मजदूर ने पुलिस अधिकारी को मैनेजर का नंबर दिया। पुलिस अधिकारी ने अपने मोबाइल पर वह नंबर डायल किया ओर फोन कान से लगाया लिया।
पुलिस अधिकारी खड़ा होकर एक तरफ चहलकदमी सी करते हुए फोन पर बात करने लगा। थोड़ी देर बात करने के बाद, वह पुलिस अधिकारी मजदूरों के पास आया ओर बोला "मैंने मैनेजर को थाना में बुला लिया है। आप थोड़ा देर बैठो। मैनेजर के आने पर बात करते हैं।"
"जी साहब!" एक साथ कई मजदूरों के मुँह से निकला।
पुलिस अधिकारी फोन को जेब में डालते हुए थाना के अंदर की तरफ चल दिया।
थोड़ी देर बाद मैनेजर आया फिर पुलिस की बात पर उसने सभी का हिसाब कर दिया ।राजेश को 3500का हिसाब मिला ।पंकज को 2000 और प्रवीण को 2000मिला।सभी ने अपना पैसा लेकर रूम पर आ गए ।
रामधनी चारपाई पर लेटा हुआ था। उसे नींद नही आ रही थी मगर उसने वैसे ही आँखे बंद कर रखी थी ओर वह किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था। काम धंधा बंद होने के कारण उसे चिंता सता रही थी कि कैसे घर का गुजारा चलेगा ओर कैसे वो घर विमला को पैसे भेजेगा।
दिल्ली में काम पूरी तरह से बंद था। लोग घरों से बाहर भी नही निकल रहे थे। राजेश सोच रहा था कि सभी की जिंदगी एक कैदी की तरह हो गई है। सबकुछ बंद घरों से निकलना भोजन बंद। अजीब बीमारी आई है जीवन की की रफ्तार ही रोक दी है।राजेेश की चिंता बढती ही जा रही थी।
तभी फोन की घंटी बजी।राजेश ने मोबाईल आन करके कान से लगाया ओर बोला "हेलो।"
दूसरी तरफ से आवाज आई "कैसे हो जी ।"
हम तो ठीक हैं मगर तुम कैसी हैं?
मै तो ठीक हूँ मगर बेटा को पेेट में दर्द हो गया है।कुछ पैसा का इंतजाम कर दीजिए।
राजेश बोला ठीक है कुछ करते हैं।और कॉल कट जाता है।
तभी प्रवीण भी वाहा आ जाता है। और वह बोलता है कि यार गांव ही चलते है यहां फैक्ट्री तो बंद है और कुछ कम भी नहीं है । यहां रहे तो भूखे ही मर जाएंगे ।प्रवीण राजेश की तरफ देखते हुए बोला तो राजेश ने कहा कि ठीक है तबतक प्रवीण भी आ गया । ओ भी बोला कि तुम लोग जाओ मै यही अपने मौसी के याहा रह जाते है।उसकी मौसी का घर गुड़गाव में था।सबने बोला ठीक है ।गांव जाने की तैयारी सबने सुरु कर दी।
अब आगे
सुबह का वक्त था राजेश और पंंकज हाथ मुंह धोकर नहा कर तैयार थे ।सभी ने अपने सामान के साथ रेलवे स्टेशन की ओर अग्रसर होने लगे।
राजेश औेर प्रवीण रेलवे स्टेशन के बाहर सड़क पर खड़े थे। वहीं से उन्होंने देखा रेलवे स्टेशन पूरी तरह से सुनसान पड़ा था। कभी यहां काफी भीड़ हुआ करती थी ओर यहां तिल रखने की जगह भी नहीं मिलती थी मगर आज यहां कोई नहीं था।
सड़क पर आगे चलते हुए राजेेश व प्रवीण रेलवे स्टेशन के आगे बने बरामदे में पहुंचे। उन्होंने इधर-उधर देखा मगर उन्हें वहां कोई नजर नहीं आया।
वे दोनों रेलवे स्टेशन के मैन गेट से होते हुए, प्लेटफार्म पर पहुंचे। तभी ट्रैक पर एक रेलगाड़ी आकर रुकी। रेलगाड़ी को देखकर दोनों को एक अलग तरह की खुशी हुई। उन्हें लगा कि शायद रेलगाड़ी चल रही है।
उन्होंने प्लेटफार्म पर इधर-उधर देखा मगर उन्हें कोई कर्मचारी नजर नहीं आया। प्लेटफार्म पर वे दोनों किसी रेलवे कर्मचारी की तलाश में एक तरफ चल दिए।
तभी उन दोनों की नज़रें एक रेलवे के कर्मचारी पर पड़ी। रेलवे कर्मचारी को देकर दोनों की बांछे खिल गई ओर दोनों तेजी से उसकी तरफ बढ़े।
रेलवे कर्मचारी के पास जाकर राजेेश बोला साहब!"
रेलवे कर्मचारी राजेेेश की आवाज सुनकर उनकी तरफ मुड़ा ओर आंखों के इशारा किया। जैसे वो पूछ रहा हो क्या बात है।
राजेश ने रेलवे कर्मचारी की तरफ देखते हुए पूछा " साहब!पटना
के लिए रेलगाड़ी कब चलती है ?"
रेलवे कर्मचारी ने उन दोनों की तरफ इस तरह से देखा, जैसे वो दोनों किसी दूसरी दुनियां से आए हों।
"कहां से आए हो।" रेलवे कर्मचारी दोनों की तरफ देखते हुए बोला।
"जी साहब! दिल्ली से ही आए हैं।" राजेश बोला।
"दिल्ली से!" रेलवे कर्मचारी हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए बोला।
"जी साहब! वैसे तो हम बिहार के एक गाँव से है। मेहनत मजदूरी के लिए दिल्ली में आए हैं। यहां एक फैक्ट्री में काम करते हैं। अब फैक्ट्री बंद हो चुकी है। काम धंधा बंद है इसलिए वापिस गाँव जाना चाहते हैं।" राजेेेश रेलवे कर्मचारी को समझाते हुए बोला।
"अरे भाई! लाक डाउन है। लाक डाउन का मतलब सब कुछ बंद। ना ट्रेन चल रहा है ना बस चल रहा है।" रेलवे कर्मचारी बोला।
"तो साहब! ये ट्रेन आया है ना।" ट्रेन की तरफ इशारा करते हुए प्रवीण बोला। तो रेलवे क्रमचरी बोला ये मालगाड़ी है तो प्रविन बोला इसी सेे चले चले जाएंंगे ।तो क्रमचारी बोला येे गाड़ी सवारी नहीं बिठा सकती है। लाक डाउन में सब बंद है।" रेलवे कर्मचारी अपने शब्दों पर जोर देते हुए बोला।
"साहब ! फिर गाड़ी कब चलेगी ? प्ला्ल
"ऐसा करो, बाहर पूछताछ केंद्र बना है। जहां टिकट मिलती है ना उसके पास। वहां जाकर पूछ लो।" रेलवे कर्मचारी अपना पीछा छुड़ाते हुए बोला
दोनों प्लेटफार्म से बाहर आए ओर टिकट खिड़की के साथ बने पूछताछ केंद्र पर पहुंचे।
राजेश ने वहां बैठे कर्मचारी से पूछा "साहब ट्रेन कब चलेगी। बिहार जाना है।"
"अभी कोई पता नही है। लाक डाउन खुलने के बाद पता करना।" वहां बैठा कर्मचारी बेरुख़ी से बोला।
उस कर्मचारी की बात सुनकर प्रवीण के पास अब कोई सवाल नहीं था।
राजेश और पंंकज बस अड्डा भी गए। वहां भी सन्नाटा पसरा था। हार कर दोनों अपने घर की तरफ चल दिये।
रास्ते में उन्हें दिखाई दिया कि कुछ पुलिस वाले भिर लगा कर कुछ लोगो से बात कर रहे थे और कुछ लोग को मार भी रहे थे ।उन्हीं लोगों में से एक ने बोला कि साहब हम घर जाना चाहते है हम लोगो को छोड़ दीजिए ।लेकिन उस पुलिस वाले ने उनकी एक न सुनी और लगातार पिटे जा रहें थे ।तभी एक पुलिस वाले की नजर राजेश पर लरी ।उसने राजेश और प्रवीण दोनो को बुलाया ।जब राजेश और प्रवीण ने उन लोगो की मार देख कर काफी घबरा गए ।उनकी पैर की नसे सूखने लगी ।जब वे लोग उन पुलिस के पास पहुंचे तो एक सायद उ दरोगा था ।उसने पूछा कहा घूम रहे हो ।तुमको पता नहीं है कि लॉकडन है ।तो राजेश कांपते हुए बोला कि साहब रेलवे स्टेशन गए थे ।गांव जाने के लिए।लेकिन पता चला कि सब बंद है।साहब हमलोग के पास रूम का किराया देने के लिए पैसा नहीं है।तो उस पुलिस ने उसे कहा कि अभी कहा जा रहे हो ।तो पंकज बोला कि बगल ने ही रूम है वहीं जा रहे है।
तो उस पुलिस ने कहा कि जल्दी भागो यह से निकलना भी नहीं अभी, जब तक तालाबंदी है।और उसके बाद वाहा से दोनों निकल गए ।
अब आगे।
राजेश के चेहरे पर भी चिन्ता साफ झलक रही थी। वह भी समझ नही पा रहा था कि अब क्या किया जाए। पंकज के चेहरे पर गुस्सा व चिंता के भाव थे।
"राजेश भाई ! हमारे पास पैसा कहा से आएगा। राशन तो लोगों से मांग कर या सरकार का दिया खा रहे हैं। उपर से किराया।" पंकज बोला।
"बात तो तेरी सही है मगर वो सेठ कल फिर आएगा तो क्या जवाब देंगे। वो किराया मांगेगा।" तो क्या देंगे।
अच्छा होता अगर ट्रेन चल रही होती तो गाँव चले जाते मगर न ट्रेन चल रही है ओर बस चल रही है।" पंकज, राकेश की तरफ देखते हुए बोला।
"पंकजभाई, मेरी तो कुछ समझ में ही नही आ रहा है कि हम क्या करें ? सेठ तो कल आकर खूब बोलेगा। हमारे पास पैसा नही है।"
"राजेश भाई, यहां कोई किसी की मजबूरी नही समझता है। सेठ को सोचना चाहिए काम धंधा बंद है तो किराया कहाँ से देंगे हम।" पंकज बोला।
" कोई किसी की मजबूरी नहीं देखता। बस सब अपना ही देखते हैं।
इससे अच्छा तो अपना गांव ही है।जो लोगो की मदद करता है। "ठीक है पंकज मैं चलता हूँ। देखते हैं कल सेठ क्या कहता है।" राजेश बोला ओर चारपाई से उठ गया।
राजेश नीचे गली में जाने वाली सीढ़ियाँ उतरने लगा। उसके दिमाग में अभी भी सेठ का चेहरा घूम रहा था। वह सोच रहा था कि सेठ को किराया कहां से देंगे।
सुबह का समय था। सूरज अभी निकला नही था मगर उसकी लालिमा आसमान पर चमकने लगी थी। इससे अंदेशा लग रहा था कि सूरज अभी निकलने वाला है। गलियों में लोगों की आवाजाही शुरू हो चुकी थी।
तभी राजेश के घर में आवाज लगाते हुए पंकज ने प्रवेश किया।
राजेश अभी चारपाई पर लेटा हुआ था।
पंकज आवाजें लगाता हुआ। अंदर राजेश की चारपाई के पास आ गया ओर उसने राजेश के कंधे को हिलाते हुए कहा ओ उठ जाओ सुबह हो गई। तब राजेश चारपाई से उठा
और मुह धोने के बाद सीधे टायलेट में चला गया। कुछ देर बाद राजेश टायलेट से बाहर निकला ओर हाथ धोने के बाद वापिस चारपाई पर आकर बैठ गया।राजेेेश ने पंकज से कहा कि
मेरे पास विहार रहने वाले शर्मा जी का फोन आया था। वो कह रहा था कल शाम को नोएडा से बिहार के लिए बस चलेगी ओर जिसको जाना हो, वो वहां पर पहुंच जाए।"
राजेश की बात सुनकर पंकज के चेहरे पर खुशी उभर आई थी। उसने राजेश की तरफ देखते हुए पूछा "सच में …।"
"हाँ ! बिल्कुल भाई, वो कह रहा था।" राजेश दोबारा बोला।
"यार ! अगर बस चल पड़े तो वास्तव में अच्छा हो जाए।" पंकज बोला।
"ऐसा करते हैं आज दिन में शर्मा जी के पास चलेंगे विहार।" प्रवीण बोला।
"यह ठीक रहेगा।"
"अगर हमें बस मिल जाती है तो सब ठीक हो जाएगा ओर हम जैसे लोग घर पहुँच जाएंगे।" पंकज बोला।
पंकज चारपाई से खड़ा हुआ तो राजेश बोला "मैं नहा लेता हूँ ओर तुम भी नहा लो फिर चलते हैं।
"ठीक है भाई। मैं नहा कर आता हूँ।" पंकज घर से बाहर की तरफ चल दिया। दोनो कल शाम को बस से वे बिहार निकलना चाहते थे।सुबह का वक्त था
राजेश और पंकज दोनो ने अपना अपना सामान बांधकर जाने की तैयारी करने लगे।राजेश अपना टीवी भी बांध लेता है। तो पंकज बोलता है कि इस चरपाई का क्या करे।तो राजेश बोलता है कि
"इसके पावे निकाल कर इसे लपेट लेंगे।" राजेश , पंकज को समझाते हुए बोला।
"हे भगवान ! तेरा तेरा भला हो, जो बस चल रही है। चलो हम घर तो पहुंच जाएंगे।" पंकज ऊपर की तरफ़ देखते हुए बोला।
तभी घर में प्रवीण ने प्रवेश किया। प्रवीण ने राजेश की तरफ देखते पूछा "सामान बांध लिया क्या ?"
"हाँ, बाँध लिया है ।राजेश ने बोला।
तभी मकान मालिक आ गया ।और बाहर से आवाज दी।
"राजेश ओ राजेश,
राजेश चारपाई से खड़े होते हुए बोला।
राजेश व पंकज ने दरवाजे पर जाकर देखा, सामने मकान मालिक सतीश कुमार खड़ा था। सुरेश राजेश और पंकज को देख घर में प्रवेश कर गया।
सुरेश ने राजेश व पंकज की तरफ देखते हुए बोला "राजेश मकान का किराया। मैं पहले ही बोल कर गया था कि कल आऊँगा किराया लेने। लाओ किराया। हाँ, पंकज तुम भी किराया दो ओर जो तुम्हारे साथ रहता है उसे भी किराए के लिए बोलो।"
"किराया …।" पंकज ने सेठ की तरफ देखते हुए अजीब सा मुँह बनाया।
"हाँ किराया…! तुम मकान में रहे हो के नहीं। उसका किराया। लाओं किराया।" सुरेश थोड़ा कठोर शब्दों में बोला।
"मगर..।" पंकज कुछ बोलना ही चाह रहा था कि बीच में ही सुरेश बोल पड़ा "मगर क्या ?"
"सेठ जी, काम धंधा बंद पड़ा है ओर खाने के लाले पड़े हैं। आप किराया मांग रहे हैं। हम किराया कहाँ से देंगे।" पंकज बोला।
"ये मैं नहीं जानता हूँ। मुझे तो बस किराया चाहिए, कोई बहाना नहीं।" सुरेश बोला।
"बहाना नहीं है सेठ जी ! आप देख ही रहे हैं। काम धंधा तो पूरी तरह से बंद पड़ा है। खाने का राशन भी सरकार ने ही दिया है।
अब ऐसे में किराया कहाँ से देंगे सेठ जी।" राजेश बोला।
तभी सुरेश की निगाह एक चादर में बाँधे गए टीवी पर पड़ी। वह राजेश की तरफ देखते हुए बोला "ये सामान क्यों बाँध रखा है।" राजेश ने टीवी की तरफ देखते हुए बोला "कल हम बस से घर जा रहे हैं, इसलिए सामान बांधा है।"
"सभी बसें तो बंद है।" सुरेश हैरानी से बोला।
"नहीं, कल नोएडा से सरकार स्पेशल बस चलवा रही है सरकार।" राजेश बोला।
"मैंने तो सुना नहीं। सुरेश बोला कि हमें क्या लेना
चले या ना चले। राजेश अगर किराया नहीं है तो यह टीवी ओर चारपाई यहीं छोड़ जाना। समझ गया ना ओर तुम पंकज किराया का क्या करोगे ?" सुरेश चादर में बंधे टीवी की तरफ देखते हुए बोला।
"ठीक है सेठ जी।" राजेेश मन से बोला।
"सेठ जी अब तो मेरे किराया है नहीं ओर ना ही कुछ ऐसा जिसमें आपका किराया पूरा होता हो। मैं गाँव जाकर आपका किराया आपको भेज दूँगा। पक्का वादा है। पंकज विश्वास दीलाते हुए बोला।
"चल ठीक है भेज देना ओर जब जाओ मुझे फोन कर देना।
और सुरेश बाहर चल गया ।तब जाकर राजेश ने चैन की सांसे ली।
राजेश ने जेब से मोबाइल निकाला ओर सुरेश सेठ को फोन मिलाया। मोबाईल में रिंग बजने लगी। एक दो रिंग के बाद सुरेश सेठ ने फोन उठाया लिया।
दूसरी तरफ से फोन उठाते ही सुरेश बोला " हाँ, बोल राजेश। क्या बात है ?"
"सेठ जी, हम गाँव जा रहे हैं। आप आ जाए ओर घर संभाल लें।" राजेश बोला।
"अरे ! तुम तो 6 बजे शाम को जाने वाले थे फिर अभी…।" सुरेश थोड़ी हैरानी से बोला।
"सेठ जी, वो सोचते हैं कि पहले जाएँगे तो बस में सीट थोड़ा आसानी से मिल जाएगा अगर लेट हुए तो लम्बा सफर है सीट नहीं मिला तो मुसीबत होगी।" राजेश अपनी परेशानी बताते हुए बोला।
"ठीक है। मैं आ रहा हूँ।" दूसरी तरफ से यह कहते हुए राजेश ने फोन काट दिया।
पंकज के पास काफी कम सामान था। एक बड़ी गठडी में बिस्तर व बर्तन बाँध रखे थे ओर एक बड़े से बैग में कपड़े डाल रखे थे। राजेेश
गठडी उठाए हुए ही पूछा।
"सामान एक बार नीचे रख दो। सेठ अभी आ ही रहा है। जरा मकान संभलवाना अच्छा रहता है।
और राजेश ,पंकज आपस में बात करने लगे।
करीब आधा घंटा गुजरा होगा कि सुरेश आ गया। सतीश ने सीधे मकान में प्रवेश किया। उसके हाथ में दो ताले थे। शायद वो मकान में लगाने के लाया था।
"सेठ जी, देख लो। हमने टीवी व चारपाई आपके कहने पर छोड़ दी है।" राजेश, सुरेश की तरफ देखते हुए बोला।
सुरेश ने देखा एक टेबल पर छोटा टीवी पड़ा था ओर चारपाई भी दीवार के साथ खड़ी की हुई थी।
सुरेश ने पंकज की तरफ़ देखते हुए कहा "तुम भी किराया गाँव जाते ही भेज देना।"
"जी सेठ जी, भेज देंगे।" एक साथ राजेश और पंकज सुरेश की तरफ देखते हुए बोले।
"ठीक है सेठ जी, हम जा रहे हैं।" राजेश हाथ जोड़ते हुए बोला।
"ठीक है जाओ।" सुरेश बोला।
राजेश के पास भी अब सामान ज्यादा नही था। राजेश ने एक बड़ी चादर में बांधे बिस्तर व बर्तन उठा लिए और पंकज के साथ जाने लगा।
जैसे ही बस स्टैंड के पास पहुंचा तो देखा कि बहुत से लोगो की भीड़ लगी है। सायद सभी लोग अपने अपने गांव जाने के लिए आये थे।तभी कुछ पुलिस वाले ने लाउड स्पीकर से बोल रहे थे कि सभी अपने अपने घर जाए । यहां से कोई बस कहीं नहीं जा रहा है।तभी राजेश के चेहरे पर गम का साया देखा जा रहा था।
राजेश बोला की शायद इन पुलिस वालो को पता नहीं है कि गांव जाने की खुशी में सभी ने अपना डेरा छोर दिया है,और यह कर रोने लगा ।उस समय जो उन मजदूर पर बित रहा था ओ मै भी महसूस नहीं कर सकता ।ये उन मजदूर से बेहतर कोन जान सकता है।
गांव में एक कहावत है कि - ना घर का ना घाट का
यह कहवात आज सच लग रहा था।
उसी जगह बस स्टैंड के पास बहुत से मीडिया कि गारी आ गई।अनेक मीडिया कर्मी मजदूर से कुछ पूछ रहे थे ।उनका इंटरव्यू ले रहे थे। । उनको तो अपना टीआरपी से मतलब था।
ये ड्रामा रात भर चला ।कुछ मजदूर तो वहीं सरक पर सो गए ।राजेश और पंकज भी वही सड़क पर सोने चले गए । पॉकेट में तो 1700 रुपया ही बचा था ।इसी से बिहार भी जाना था और रास्ते का खाना भी रहना भी ,
इन प्रवासी मजदूर का रेन बसेरा यही सरक पर होने लगा।
बस की इंतजार करते करते प्रवासी मजदूर परिवार फुटपाथ पर ही सो गए थे।
अब सुबह के सात बजे थे। सूरज अपनी रोशनी बिखरने के लिए बेताब नजर आ रहा था। सूरज अभी निकला नही था मगर आसमान में फ़ैली हल्की-फुल्की लालिमा सूरज के आने का संकेत दे रही थी।
बस स्टैंड पर हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर रुके हुए थे। पुलिस अभी भी मजदूरों से मनुयादी के द्वारा आग्रह कर रही थी कि मजदूर घरों को लोट जाए।
एक पुलिस अधिकारी गाड़ी के उपर लगे स्पीकर में बोल रहा था "सभी मजदूरों भाईयों से आग्रह है कि किसी तरह के बहकावे में ना आएं। मजदूरों भाईयों के लिए यहाँ से कोई बस नहीं चलेगी। किसी ने झूठी अफवाह फैलाई है। आप किसी झूठी अफवाह में न आए ओर घरों को लोट जाए।"
पुलिस अधिकारी के आग्रह के बाद भी मजदूरों की भीड़़ नहीं कम हो रही थी।
तभी मजदूरों में एक बड़ी हलचल हुई। कुछ मजदूरों ने बिहार पैदल की कूच कर दिया ओर कुछ मजदूर परिवार अपने रिक्शा पर निकल लिए।
पुलिस ने भी इन मजदूरों के परिवारों को रोकने की कोशिश नही की। मजदूर परिवार अपना सामान सिर पर रखकर, अपने मासूम बच्चों के साथ पैदल ही चल दिए।
मजदूरों को पैदल निकलता देख, पंंकज राजेेेश से बोला "लोग पैदल ही बिहार चल पड़े हैं।"
"पैदल तो निकल पड़े हैं मगर बिहार दिल्ली से काफी दूर है ओर हजार किलोमीटर से ज्यादा पड़ेगा।" राजेश हिसाब लगाते हुए बोला।
"तो फिर अब क्या किया जाए ?"पंकज बोला।
"चलो वापिस घर चलते हैं।" राजेश सुझाव देते हुए कहा।
"नहीं ! अब मैं घर नही जाऊंगा। मेरे ख्याल में हमें भी पैदल ही गाँव की तरफ निकल जाना चाहिए।" सभी जा रहे हैं गाँव। ये भी तो गाँव पहुंचेगे। वैसे ही हम पहुंच जाएंगे। राजेश बोला
तो पंकज ने भी पैदल गांव जाने के लिए हामी भर दी। दोनो पैदल ही जाने लगे ।
राजेश और पंकज पैदल ही बिहार की तरफ निकल लिए थे। वे दिल्ली लखनऊ हाई वे पर बढते चले जा रहे थे। पैदल चलने के कारण उनके पैरों में दर्द होने लगा था ओर बच्चे तो थकान के मारे बोलने लगे थे कि अब बस करो बाकि कल चल लेंगे।
राजेश व पंकज सड़क पर अभी करीब 30-40 किलोमीटर पैदल चले होंगे कि उन्हें भी थकान का अहसास होने लगा। उन्होंने दिल्ली को पार कर लिया था।
अब शाम ढल चुकी थी मगर मजदूर अपने परिवारों के साथ पैदल अपनी मंजिल की तरफ बढ रहे थे। एक गाँव को देखकर राजेश ने पंकज की तरफ देखा ओर बोला "क्यों ना आज रात यही रुका जाए । तो पंकज ने भी बोला कि हा आज यही रुक जाते है ।वैसे भी पैर बहुत दर्द कर रहा है।
राजेश भी रात में ठहराने के लिए ठिकाना देखने लगा । तभी उसे थोड़ी दूर पर एक बस क्यू सेंटर नजर आया जो कि शायद गाँव के यात्रियों के लिए बनाया गया था।
राजेश ने पंकज की तरफ देखते हुए कहा "वो सामने बस स्टॉप है। हम अपना अड्डा वहीं जमा लेते हैं।"
पंकज ने भी बस स्टॉप की तरफ देखते हुए कहा "हाँ, यह ठीक रहेगा।"
सभी चलते हुए बस स्टॉप पहुंचे। बस स्टॉप बिल्कुल खाली पड़ा था। राजेश व पंकज सिर से सामान उतार कर वहां नीचे जमीन पर रख दिया।
राजेश और पंकज को भूख बहुत तेज लगी थी।
राजेश ने गाँव की तरफ नजर दौड़ाई। उसे दूर दूर तक वो नजर नहीं आया जिसको वह देखना चाहता था। राजेश के चेहरे पर परेशानी थी कि वो खाने का इंतजाम कहाँ से करें।
पंकज ने राजेश की तरफ देखते हुए पूछा "क्या देख रहे हो।
राजेश बोला की मै गांव में कोई दुकान देख रहा हूं इससे खाने पीने की समस्या दूर हो जाती।
जब कोई दुकान नहीं दिखी तो राजेश और पंकज गांव के अंदर जाने लगे। अंधेरा होनेवाला हि था ।की राजेश ने देखा कि गांव के सरक पर कोई नहीं है शायद ये लॉकडॉन का असर है।तभी राजेश हिम्मत करके एक घर पर गया ।
घर तो अन्दर से बंद था। लेकिन राजेश ने कुण्डी बजाई तो घर से एक आदमी निकला । ओ आदमी राजेश से अनजान था ।इसलिए हैरानी से पूछा कोन हो ,बोलो क्या बात है। राजेश ने बोला कि हम दिल्ली से अपने गांव जा रहे है।भूख लगी हुई है,लेकिन यहां के सारी दुकान बंद है ।कुछ खाना मिलेगा ।तो उस आदमी ने बोला की जाओ यहां से नहीं तो पुलिस ने देख लिया तो बहुत मारेगा और मुकदमा भी चालेगा।
तो पंकज ने बोला कि भाई साहब बहुत भूख लगी कृपया कर हमें कुछ खाने को दे दीजिए।
तो उस आदमी ने बोला की कोन से गांव जा रहे हो तो पंकज ने बोला बिहार के मुजफ्फरपुर में मेरा गांव है। तो उस आदमी को बहुत हैरानी हुई।फिर उसने पूछा कोन से गांव बोले हो। बिहार के मुजफ्फरपुर में है।
उस आदमी को बहुत आश्चर्य हुआ।उसने बोला रुको मै अंदर से कुछ लाता हूं।उसने अन्दर से रोटी सब्जी ,आचार लाकर राजेश को से दिया। फिर उस आदमी ने पूछा कि आज रात को कहा रहोगे ।
पंकज ने बोला कि यही पास में एक बस स्टॉप है ।यही पर रुकेंगे। इतना कहकर पंकज और राजेश खाना लेकर चले गए । उसी बस स्टॉप पर आकर खाना खाकर सो गए ।रात करीब 2.30बजे उनकी नींद आचानक खुली तो देखा कि बहुत भीड़ लगी हुई थी जब पास जाकर देखा तो एक मजदूर की मौत हो चुकी थी । यह देखकर पंकज और राजेश रोने लगे । सभी लोग उस आदमी को वही छोड़कर जा रहे थे तभी कुछ गांव वाला की मदद से उस लाश को थाना भेज दिया गया ।
अब पंकज और राजेश भी वाहा से आगे चल दिए ।
तभी कुछ पुलिस वाले आ गए।और बोले कि
"जब तुम्हें पता है लाक डाउन चल रहा है फिर तुम बाहर क्यों निकले। पूरे देश में कोरोना फैल रहा है ओर तुम यूँ शहर में घूम रहे हो।" एक पुलिस कर्मी बोला।
दूसरे पुलिस कर्मी ने राजेश व पंकज को दो दो डंडे पिछवाड़े पर जमाए। डंडा लगता ही राजेश व पंकज दर्द से फिर बिलबिला उठे ओर पिछवाड़ा सहलाने लगे।
"मुर्गा बने हुए ही कुर्सियों के चारों तरफ चक्कर लगाओ। जल्दी करो। नही तो ओर डंडे लगेंगे। एक पुलिस कर्मी गुस्से से बोला।
राजेश कान पकड़ कर मुर्गा बने हुए ही बोला "साहब गलती हो गई।"
"वैसे तुम जा कहाँ रहे थे ?" दूसरा पुलिस कर्मी बोला। तो राजेश बोला कि साहब हम दिल्ली से आए है और बिहार अपने गांव में जा रहे है।तो पुलिस वाले नो बोला कि पैदल ही जा रहे हो।जी साहब राजेश और पंकज दोनो एक साथ बोला।
तो पुलिस वालो ने बोला कि खाना कहा से खाते हो।तो पंकज बोला कि साहब अभी तक तो कुछ नहीं खाए है।कल रात का ही खाना खाए हुए है ।
तो उस पुलिस वालो ने किसी को फोन किया बोला की जल्दी से 2-3आदमी का खाना लेकर आओ ।और उस पुलिस वालो ने बोला कि यहां पर अभी खाना आ रहा है खाना खाकर आगे का सफर करना । तो राजेश और पंकज ने रोते हुए पुलिस को धन्यवाद किया और बोला कि साहब आप मेरे लिए भगवान की तरह आए है।
कुछ देर बाद वाहा पर एक गारी आई उस में से एक आदमी निकला एक पैकेट दिया ।उसमे चावल ,सब्जी, दाल था ।राजेश और पंकज खाने पर टूट परे। खाना खाकर वाहा से आगे की तरफ निकल पड़े।
काफी दिन तक चलने के बाद भी पटना 300 किलोमीटर था। चलते चलते उन दोनों को पैर सूज गया था । बहुत दर्द भी कर रहा था । उन लोगों का दर्द बयां करना मेरे बस की बात नहीं है।
जब 25दिन तक लगातार चलने के बाद वे लोग पटना पहुंचे। वाहा पहुंचते ही राजेश की तबीयत बिगड़ गई ।2दिन तक सड़क पर ही सोया। तब जाकर एक आदमी ने दावा दी ।
पॉकेट के सारी पैसा खर्च हो गया था ।पंकज के पास 500रुपया बचा था ।उसने एक ट्रक वाले को दिया बोला की आप कहा जा रहे हो ।तो उसने बोला कि मुजफ्फरपुर ,पंकज और राजेश की चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी।तब पंकज और राजेश ने उस ट्रक वालो बहुत रिक्वेस्ट किया तो उस ट्रक वालो ने पंकज और राजेश की बात मानकर उसे अपने साथ बैठा लिया । तब जाकर पंकज की जान में जान आया । जब वे लोग अपने घर पहुंचे तो विमला एक चारपाई पर सो रही थी ।
और उसका बेटा खेलने गया था।दोपहर का समय था ।राजेश बोला की विमला सुनती हो ।फिर राजेश बोला कि सुनती हो जी।तब विमला राजेश को देखकर मानो ऐसी खुशी मिली जैसे चांद को देख कर चकोर को मिलती है।फिर ओ दोनों एक दूसरे के गले मिल कर रोने लगे ।तबतक उसका बेटा भी आ गया और सब साथ में बैठकर बात करने लगे।
तब विमला बोली कि आप हाथ मुंह धो लीजिए आपके लिए खाना लगा देती हूं । फ़िर सबने साथ में बैठकर खाना खाए।
उधर पंकज भी अपने घर पर पहुंच गया था।उसके पिता जी देख कर बहुत खुश हुए ।