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"Ghayab Manzar"

अमल जैसे सब भूलकर उन आँखों में डूबती चली गई थी!होश उसका साथ जैसे छोड़ता जा रहा था!"अब्बा हुज़ूर...मुआफ करना...बादशाह सलामत..",बादशाह लुक़मान अल्माहदी की तेज़ नज़र से वह माज़रत(माफ़ी) वाले अंदाज़ में लहजा बदल गया था और लफ्ज़ भी!"शाहज़ादी मरियम ने मोहतरमा के ख़िलाफ़ शिकायत की थी कि उन्होंने उसे लात मारी है" "मोहतरमा"से होलूम अल्माहदी का मतलब अमल से था!अमल ने चेहरा बादशाह की तरफ किया और सर बात की नफ़ी में हिलाया!"मैंने एक बिल्ली को लात मारी थी"अमल ने अपना बचाव किया!होलूम अल्माहदी  ने तेज़ी से गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखा और बहुत ज़ोर लगा कर कहा!"वह मेरी बहन थी"उसका अंदाज़ ऐसा था कि उसकी आंख के तेवर से अमल का दिल काँप उठा!"ग़लत बात"बादशाह की आवाज़ गूंजी.!दोनों ने एक साथ उनकी तरफ देखा!"उसने मुझे डराया था बादशाह सलामत"अमल ने यूँ कहा जैसे वह बहुत बहादुर हो!इससे पहले बादशाह सलामत कुछ कहते कोई लड़की वहां आ गई थी!मैंने सिर्फ उनको मुस्कुराकर देखा था!बादशाह सलामत"अमल ने देखा!बड़ी बड़ी आस्तीनों वाले लम्बे से चोग़े में यह वही लड़की थी जो उसने वहां से भागती देखी थी मगर चेहरा उसका अब देख रही थी!उसकी उम्र लगभग 17 या 18 साल होगी!"उसने मुझे डराया था!वह बिल्ली बनकर मुझे देखके मुस्कुराई!कोई बिल्ली कभी मुस्कुराती है क्या?"अमल में भी जैसे अपना मुक़दमा खुद लड़ने की ताक़त आ गई थी!पूरी मजलिस हैरानी से इस मामले को देख रही थी!अबसे पहले भी इंसानों से जुड़े केस उनके सामने आये थे मगर उसमे कोई इंसान खुद उनकी मजलिस में कभी नहीं आया था!बादशाह सलामत ख़ामोशी से इस बचकाना तमाशे पर होलूम अल्माहदी को घूर रहे थे!जो अब खुद भी ख़ामोशी से सर झुकाये खड़ा था!लेकिन उसको देखकर लगता नहीं था!कि उसे इस मुक़दमे में कोई बचकानापन नज़र आ रहा था!बहन की मोहब्बत ने उसे बहुत हद तक ग़लत फैसलों को तरजीह देना सीखा दिया था!बस मरियम खुश होना चाहिए थीमैंने इस लिये मुस्कुराया!क्योंकि यह अंदलीब जैसी दिखती हैं"मरियम ने एकदम से कहा तो मानों सब जगह एकसाथ सन्नाटा सा छा गया!होलूम अल्माहदी भी चौंक कर मरियम के चेहरे को देखने लगा था!बादशाह लुक़मान के सब्र का बांध झटके से टूट गया!"लड़की को अभी उसकी दुनिया में वापस छोड़ा जाये"उनकी आवाज़ से सारे महल के दरोदीवार झनझना उठे!अमल को लगा उसकी रगों में उनका ख़ौफ़ बहुत तेज़ी से लरज़ा है!होलूम अल्माहदी ने किसी ग़ुलाम के आगे आने का भी इन्तिज़ार नहीं किया!बहुत जल्दी से अमल का बाज़ू पकड़ा था और उसे लेकर किसी तरफ चल दिया!वह खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी लेकिन उसकी पकड़ ऐसी थी मानों चट्टानों में उसका हाथ फंस गया हो!उसकी ऊँगली पर उसने काटा भी मगर उसे जैसे सुई भी ना चुभी!होलूम अल्माहदी ने बाहर के दरवाज़े पर रुक कर उसे बाहर धकेल दिया था!अमल ने उसकी आवाज़ सुनी!"दरवाज़ा बंद किया जाये"..खुद को गिरने से संभालती अमल ने दरवाज़े के तरफ देखा मगर वह मंज़र ग़ायब हो चुका था!वह उसे वापस पलटता हुआ भी दिखाई नहीं दिया!अमल के दिमाग़ पर एक गहरा सुरूर सा छा गया था और वह वहीँ बेहोश होकर गिर गई!लोग मरे हुए लोगों की कहानियों को छानते फिरते हैं पर ज़िंदा लोगों की सच्चाइयों पर यक़ीन नहीं करते!गुज़रे हुए ज़मानों में भूत और जिन्नो जैसी चीज़ों पर ईमान रखते हैं मगर आज के ज़माने में जिन्न और भूत का कोई वुजूद ना होने के दावे करते हैं जो उनके साथ घट जाता है वह उन्हें वहम लगता है!दिल सब चीज़ो को मानता है मगर दिमाग़ सब चीज़ो से इंकार करता है क़तई इंकार!उसकी बाँहों पर धुल चढ़ी हुई थी और चेहरा मिट्टी से नहाया हुआ था!सारे बदन में ऐसे दर्द हो रहा था जैसे किसी ने उसकी जान निकल कर वापस बदन में डाली हो!वह झटके से उठ कर बैठ गई!जल्दी जल्दी नज़रें इधर उधर दौड़ाईं!दूर दूर तक इंसान का कोई बच्चा नज़र नहीं आ रहा था!उसके आस पास खंडरों का एक मेला सा लगा हुआ था और उसके सामने ही खड़ा था!(साया महल)!अमल काँप कर उठ खड़ी हुई और वहां से बेहवास सी होकर भागने लगी!जैसे कोई उसके पीछे आ रहा हो!क्या क्या उसके साथ बीत गया था!पिछले नजाने पहर?वह किसी तरह करके होटल पहुंची!होटल के बाहर ही उसके सारे अपने लोग मौजूद थे!जो उसे सब जगह ढूंढ ढूंढ कर पागल हो गए थे और अब उसके इन्तिज़ार में थक कर वहीँ बैठे थे!उमर की नज़र उस पर पड़ी!"अमल...कहाँ थी तुम??कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा हमने?ऐसे कोई जाता है क्या?"नाजाने कितने सवाल?और सबका जवाब बस एक ही.."उसे तो खुद पता नहीं था कुछ भी" वह उन लोगों को कुछ बताती तो सिर्फ उन सबको अपने ऊपर हंसने के लिये एक नया टॉपिक देती!इसलिए वह ख़ामोशी से कमरे में आ गई!बाथ लेकर वह थोड़ा सा ही फ्रेश हुई थी!सर बुरी तरह भारी हो रहा था!कोई और लड़की होती तो शायद ज़िन्दगी में कभी अकेली ना रहती मगर वह इतनी कमज़ोर नहीं थी!जैसे उसके अंदर तो और ज़्यादा बहादुरी आ गई थी!मगर ज़हन बहुत ज़्यादा उलझ रहा था!जो कुछ उसके साथ हुआ था?क्या उसने सच मुच वह सब जिया था?"शहज़ादा होलूम अल्माहदी" उसका ध्यान आते ही सारे कमरे में तेज़ नीली रौशनी बिखर गई!अमल बुरी तरह चौंक उठी!रौशनी उसके ज़हन में थी या आँखों के  सामने?वह समझ नहीं पाई!डिन्नर पर भी वह ख़ामोशी से बैठी जाने कहाँ गुम थी?"क्या हुआ?किसी जिन्न को देख लिया क्या कहाँ गुम हो"उमर का मज़ाक शुरू हो गया था!मगर अमल की आँखों की किनारियों पर जैसे उसका ख़्याल आकर बैठ गया था!आधे चेहरे को ढके वह इतना लम्बा शख़्स की उसका चेहरा देखने के लिया सीढ़ी लगाना पड़े!समझ से परे था सब कुछ!वह झटके से चम्मच सूप में छोड़कर उठ गई थी और कमरे में जाने के लिये आगे बढ़ी जब एक बिल्ली तेज़ी से उसका रास्ता काट गई थी!

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