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सब्जीवाला

हम लोगों के हाथ-पैर सही सलामत होते हुए भी हम बेरोजगार हैं। सुबह कि नींद अब हमारी परिवार वालों के ताने से खुलती है । लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी नींद सूरज के निकलने से पहले खुलती है । ऐसे ही एक दिन मेरी भी नींद खुल गई सूरज के निकलने से पहले । पिताजी बाजार जाने वाले थे । मैं भी उनके साथ जाने के लिए तैयार हो गया।

बाजार पहुंचते ही मेरी नज़र एक सब्जीवाले पर पड़ी ‌। वह एक अलग ही अंदाज में सब्जियां बेच रहा था ‌। वह अंदाज मैं लिख नहीं सकता हूं । पर उसके इस तरह से सब्जियां बेचने के अंदाज से सबसे ज्यादा लोगों कि भीड़ उसी के पास होती है । मैं उस सब्जीवाले के पास पहुंचता हूं तो हैरान हो जाता हूं । उसकी एक टांग नहीं थी। लेकिन वह फिर भी आम लोगों कि ही तरह सब्जियां बेच रहा था । ठीक उसके बगल में ही एक नकली पैर रखा हुआ था । उसके पास आलू खत्म हो गई थी। उसे गोडाउन से आलू कि बोरी लानी थी । वह अपने बगल में रखे नकली पैर को पहनता है । उसके बाद सामान्य लोगों कि ही तरह उठ खड़ा होता है ।

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