एक रोटी को बनाने में कई गेहूं के दाने को पिसना पड़ता है , दो शीला की चक्की में अपना बल लगाना पड़ता है , कठोर परिश्रम के बाद कुछ आटा निकल कर आता है , उसमें थोड़ा सा पानी डालकर उसे नरम भी करना पड़ता है , फिर उसे अग्नि में तपाना भी पड़ता है , तब जाकर कहीं एक रोटी बन पाती है और तुमने उसे उठा कर नाली में डाल दी , प्रिया कि मां गुस्से में पथरिया को डांटती हैं । " तुम्हें ये बातें थोड़ी ही समझ आयेगी । बड़ी हो रही हो तुम , लेकिन दिमाग तो तुम्हारा घुटनों में ही रहेगा। "
" मां , एक रोटी ही तो फेंकी है और मां तुम भी न केवल मुझपर ऐसे ही गुस्सा करती रहती हो " मन ही मन प्रिया बोलती है । उसके बाद प्रिया -" अच्छा मां ठीक है अगली बार से नहीं फेंकूंगी । "
सुबह के 8 बज रहे थे । प्रिया तैयार होकर कॉलेज के लिए निकलती है । कॉलेज में क्लास 10 बजे से शुरू होती है । लेकिन प्रिया को बस में 2 घंटे सफर करके कॉलेज पहुंचना होता है । बस स्टैंड उसके घर थोड़ी ही दूरी पर है । बस आती है और वह बस में चढ़ जाती है । वह बस कि खिड़की के पास वाली सीट पर बैठकर कान में हेडफोन लगाए गाना सुने लगती है । बस 25 मिनट चलने के बाद एक सिंगनल पोस्ट पर रुकती है । रास्ते में किसी राजनीतिक दल का जुलूस जा रहा था , जिसके कारण बसों को रोक दिया गया था । बस बीस मिनट तक रूकी ही रह जाती है । गर्मी का दिन था , धूप उसके चेहरे पर आ रही थी , उसने अपनी रूमाल निकाली और एक हाथ से धूप से बचने की कोशिश करने लगी । तभी उसने एक लड़के को सड़क के किनारे कचरे में कुछ ढुंढता हुआ देखा ।
वह अपने जीन्स की पॉकेट से मोबाइल निकालकर गाने को अॉफ कर देती है , कान से हेडफोन निकालकर गले में लटका लेती है । अब कुछ क्षण के लिए उसकी नजरें उस लड़के पर ही टिकी रहती है । वह देखती है उस लड़के को एक रोटी का टुकड़ा मिल गया । जिस पर कुछ गंदगी भी लगी रहती है , लेकिन वह लड़का रोटी के टुकड़े को थोड़ा सा हाथों से झाड़कर खाने लगता है । खाते खाते-खाते पता नहीं उसे क्या हुआ , वह रूक गया और कालू.. कालू... चिल्लाने लगा । थोड़ी ही देर में एक कुत्ते का पिल्ला उसके पास आता है । वह उस बचे हुए टुकड़े के दो टुकड़े कर देता है और एक टुकड़ा कालू को खिलाने लगता है। " बस कि हॉर्न बचती है और बस चल पड़ती है " । तब कहीं प्रिया का ध्यान उस लड़के से हट पाता है ।
" वह कॉलेज से घर जाती है और रोने लगती है " । उसके बाद दिन ही एक संस्था का पता लगाकर उसकी सदस्य बन जाती है । आज प्रिया एक निजी संस्थान में कार्यरत हैं और सप्ताह में एक दिन समय निकाल कर , सड़क के किनारे रहने वाले लोगों को खाना खिलाती है।