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Historia
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विजयप्रस्थ

भव्य महाकाव्य "विजयप्रस्थ" में हम महान शासक सम्राट विक्रमादित्य के असाधारण जीवन के बारे में बताते हैं जिनकी अदम्य भावना और न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता ने इतिहास की दिशा बदल दी। प्राचीन भारत की पृष्ठभूमि पर आधारित, कहानी उज्जैन के प्रसिद्ध राजा सम्राट विक्रमादित्य पर आधारित है, जो एक एकजुट और समृद्ध क्षेत्र बनाने की खोज में निकलते हैं। वीर योद्धा वरुध और मर्मज्ञ कवि कालिदास सहित अपने भरोसेमंद साथियों के साथ, सम्राट विक्रमादित्य उन असंख्य चुनौतियों का सामना करने के लिए निकलते हैं जो उनके राज्य की शांति और स्थिरता को खतरे में डालती हैं। उज्जैन की हलचल भरी सड़कों से लेकर फारस और चीन के सुदूर इलाकों तक, सम्राट विक्रमादित्य की यात्रा उन्हें महाकाव्य लड़ाइयों, राजनीतिक साज़िशों और विजय और निराशा के गहन क्षणों से भरी एक व्यापक यात्रा पर ले जाती है। रोमांचकारी एक्शन, दिल दहला देने वाले नाटक और अविस्मरणीय पात्रों से भरपूर, "विजयप्रस्थ" एक व्यापक गाथा है जो साहस, सम्मान और बलिदान के कालातीत मूल्यों का जश्न मनाती है। सम्राट विक्रमादित्य के परीक्षणों और विजयों के माध्यम से, पाठकों को रोमांच और साज़िश की दुनिया में ले जाया जाता है, जहां राष्ट्रों का भाग्य अधर में लटक जाता है और एक राजा का भाग्य नियति की आग में गढ़ा जाता है।

AmazingGalaxy1996 · Historia
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वरदान एक चमत्कार

जैसे ही उसने आखिरी निवाला उस फकीर ने खाया ,वो फकीर एक चमत्कारी देवता के रूप में बदल गया । उसने राजा को आशीर्वाद दिया हे, "राजन मैं तुम्हारे राज्य में तुम्हारे धर्म की परीक्षा लेने आया था ।" "तुम अपने धर्म में खरे उतरे इसलिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं, कि तुम्हें पुत्र प्रदान हो ।" "क्योंकि तुम्हारे भाग्य में संतान का सुख नहीं है , इसलिए पुत्र के जन्म के कुछ समय बाद तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।" " क्योंकि तुम्हारे राज्य की प्रजा ने मुझे देख कर घड़ा की और मुझ पर पत्थरों से बार किया ,इसके परिणाम तुम्हें भुगतना होगा।" "क्योंकि तुम प्रजा के पालनहार हो और इसीलिए तुम्हारी प्रजा जो भी कार्य करेगी उसका उसका फल या अशुभ फल तुम्हें यह तुम्हारे पुत्र को भुगतना पड़ेगा ।" और हां राजन तुम्हारा पुत्र बहुत ही पराक्रमी योद्धा होगा ।" " उसके सामने मनुष्य क्या देव दानव भी नहीं खड़े रहे सकेंगे। इतना बोल कर वह देवता अदृश्य हो गया।" कुछ दिनों बाद रानी के गर्भवती होने की सूचना पूरे राज्य में आप की लपटों की तरह फैल गई। महाराजा राजकुमार के आगमन के लिए बेसब्री से इंतजार करने लगे । धीरे-धीरे समय गुजरता गया और 9 महीने बाद राजकुमार का जन्म हुआ। वह बच्चा सूर्य के समान चमक रहा था, और चंद्रमा के समान उसके मुख पर तेज था। राजकुमार के जन्म पर खुशियों की हर तरफ उत्सव का माहौल था। राजा बहुत खुश था। उन्होंने बड़े बड़े पंडित को राजकुमार के नाम की नामकरण की विधि की। क्योंकि उनको राजकुमार फकीर के वरदान से मिला था, इसीलिए उन्होंने उसका नाम वरदान रखा । उसका नाम राजकुमार वरदान रखा गया गया। और दूसरी तरफ राजा के मंत्री और विद्रोही वरदान के जन्म से खुश नहीं थे। वह बच्चे को मारना चाहते थे। बच्चे को मारने की चालें चलने लगे। जब भी वे लोग राजकुमार के उसके आसपास जाते, कोई अदृश्य शक्ति उनको अपने इरादों में सफल नहीं होने देती थी। वरदान की सुरक्षा कवच बन कर उसकी रक्षा करती थी । वरदान 5 साल का होने वाला था । और राजा उसको युवराज घोषित करना चाहते थे। इससे पहले राजा ऐसा कर पाता, विद्रोहीऔ ने राजा की हत्या कर दी , और वो रानी और वरदान को भी मारने के लिए निकल गए । जैसे ही रानी को यह सब पता चला , रानी ने अपने बच्चे के साथ भेस बदल कर राज्य से भाग गई।

Renu_Chaurasiya_0803 · Historia
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