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Shairy No 27

अर्ज़ कुछ यूँ किया है ज़रा गौर फरमाइयेगा

आरज़ू थी हमारी उस मक़ाम पर पहुँचने की

पर हम पहुँच ना सके यह हमारी मजबूरी है

शिकस्त खाने की आदत तो नहीं पर जीत के लिए पीछे हटना जरूरी है

हमारी मजबूरी को कमजोरी ना समझो दोस्तों

यह छुपी तो बड़ी तूफ़ान की आगस है

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