अर्ज़ कुछ यूँ किया है ज़रा गौर फरमाइयेगा
आरज़ू थी हमारी उस मक़ाम पर पहुँचने की
पर हम पहुँच ना सके यह हमारी मजबूरी है
शिकस्त खाने की आदत तो नहीं पर जीत के लिए पीछे हटना जरूरी है
हमारी मजबूरी को कमजोरी ना समझो दोस्तों
यह छुपी तो बड़ी तूफ़ान की आगस है