अर्ज़ कुछ यूँ किया है जरा गौर फरमाइयेगा
ऐ तकदीर
सितम ढ़ा ले जितना जी चाहे हम नहीं हारने वाले
फौलाद हूं मैं उस आग का जिसे कोई ना बुझा पाए