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Hindi Sex God

Autor: Krishbaby
realistisch
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Zusammenfassung

i write R18 Adult Stories support me for more cultural content

Chapter 1मौसी की 19 साल की लड़की को चोदा

मेरी मौसी की कमसिन बेटी की जवानी ज्यादा ही उफान पर थी. वह मुझे अपनी चूत में उंगली डाल कर उसकी खुशबू मुझे सुंघाती थी.

मेरा नाम दिनेश (बदला हुआ नाम) है. मैं बलिया उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूं.

मैं बहुत दिनों से देसी Xxx गर्ल हिंदी कहानी पढ़ता आ रहा हूं.

मुझे इन सेक्स कहानियों को पढ़ कर ही लगा कि मुझे भी अपनी सेक्स कहानी आपके मनोरंजन के लिए लिखना चाहिए.

ये सच्ची देसी Xxx गर्ल हिंदी कहानी तब की है, जब मैं 20 साल का था.

उस समय मैं अपने मामा के गांव में रहता था.

दरअसल मैं बचपन से ही वहां रहता था, कभी कभी अपने गांव जाता था.

उस समय मेरी मौसी की लड़की भी वहीं आई थी.

उसका नाम सीमा था.

एक दिन उसने अपनी बुर में उंगली की और उसी रस से सनी हुई उंगली को लेकर मेरे पास आई.

वह बोली- भईया ये देखो, कैसी महक आ रही है?

सच बताऊं तो मुझे उस समय पता नहीं था कि वह बुर की सुगंध है.

मैंने अभी तक किसी को चोदा नहीं था.

पर हां, कुछ वैसी ही सुगंध मेरे लंड से भी आती थी.

मैंने आज तक कभी उस महक को इतने ध्यान से सूंघ कर नहीं देखा था.

जब सीमा ने पूछा, तो मैं बोला- मुझे नहीं पता कि कैसी महक है. तुम बताओ?

वह बोली- मेरे पास एक क्रीम है, यह उसी की महक है.

अब उसका ये कारनामा रोज का हो गया था, पर मुझे तब भी नहीं पता चला था.

एक दिन मैंने कहा- मुझे आज तुम्हारी क्रीम को देखना है, दिखाओ.

वह बोली- अभी क्रीम खत्म हो गई है.

मुझे लगा शायद यह सच बोल रही होगी.

मुझे तो तब पता चला, जब एक दिन मैं पेशाब कर रहा था और अपने लंड को साफ कर रहा था कि अचानक से मेरा हाथ मेरी नाक पर गया.

मुझे कुछ वैसी ही सुगंध आई, तब मुझे लगा कि शायद वह अपनी बुर में उंगली करके बोलती है.

अगले दिन वह फिर से मेरे पास आई और बोली- भईया देखो, आज भी महक आ रही है.

मुझे शक तो था, पर उसे यकीन में बदलने के लिए मैंने उसे अपने पास बैठा लिया और उससे बात करने लगा.

मैं कुछ कुछ मस्ती भी करने लगा.

इसी मस्ती में मैंने अपना हाथ उसकी कच्छी में डाल दिया और उंगली उसकी बुर में डाल कर घुमा दी.

वह मेरे हाथ को हटा कर जाने लगी.

मैंने कहा- सॉरी गलती से चला गया.

वह बोली- कोई बात नहीं, मुझे नहाने जाना है.

उसके दो या तीन दिन बाद वह अपने गांव चली गई.

फिर दो साल बाद मैं भी अपने गांव गया.

एक बात बताना तो भूल ही गया, मेरा और उसका गांव एक ही जगह पर है. मेरे घर से उसका घर मात्र 500 मीटर दूर है.

जब मैं गांव गया, तो वह मुझे देख कर हंसने लगी.

कभी कभी मैं मौसी के घर चला जाता कभी कभी सीमा मेरे घर आ जाती.

एक दिन रात को वह मेरे घर पर सोने आई थी.

तो मैं और वह और मेरा भाई और मम्मी पापा सब एक साथ ही सोए थे.

पहले मैं था, मेरे बगल में वह थी. उसके बाद भाई … फिर मामी पापा.

मैंने मोबाइल में मूवी लगाई थी.

सब लोग देख रहे थे.

वह मेरे बगल में लेटी थी.

तभी मुझे वह बात याद आ गई.

मैंने अपना मोबाइल भाई को दे दिया और बोला कि मुझे तो नींद आ रही है.

और मैंने आंखें बंद कर लीं.

कुछ देर बाद मैंने अपने हाथ को उसकी सलवार के ऊपर रख कर उसकी टांगों के जोड़ को टच करने लगा.

वह कुछ नहीं बोली और मूवी देखती रही और मैं अपनी उंगली उसकी बुर पर टच करता रहा.

अचानक से उसने भी कहा- मुझे नींद आ रही है.

उसने भी अपना मुँह कंबल से ढक लिया और मुझे देखने लगी.

मैंने उसे किस किया, तो वह भी करने लगी.

मैंने उसकी सलवार में हाथ डाल दिया और बुर में उंगली करने लगा.

वह मस्त होने लगी.

मैंने उसके एक दूध को अपने मुँह में भर लिया.

उसे और ज्यादा मजा आने लगा.

वह चूत से ज्यादा मजा दूध पिलाने में लेने लगी.

मैं भी उसके छोटे छोटे से निप्पलों को दांतों में दबा कर काटने लगा.

वह मुँह दबा कर अपनी आवाज को निकलने से रोके की कोशिश करने लगी.

मुझे डर भी लग रहा था, बगल में सब थे.

कोई जान जाता तो पिटाई हो जाती.

कुछ देर बाद भाई भी सो गया था.

अब मैंने उससे लंड चूसने के लिए कहा.

वह झट से मान गई और बिस्तर में ही नीचे आ गई.

अब वह मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चाटने लगी.

कुछ देर बाद मैंने उसे 69 में कर दिया और मैं भी उसकी चूत को चाटने लगा.

हम दोनों ने उस रात में एक दूसरे को दो बार झाड़ दिया.

उसके बाद जब भी मैं अकेला रहता और वह आती, तो मैं उसकी बुर में उंगली कर देता, जीभ से चोद देता.

वह भी मेरे लंड को चूस कर वीर्य को खा लेती थी.

पर मैंने उसे कभी चोदा नहीं था क्योंकि मुझे पता था अभी इसकी बुर मेरा 8 लंबा लंड नहीं ले पाएगी.

ऐसे ही समय बीतता गया.

अब वह एक पकी हुई जवान लौंडिया हो गई थी और बार बार उंगली करने से उसकी बुर भी चोदने लायक हो गई थी.

एक दिन दोपहर को मैं मौसी के घर गया तो मौसी कहीं जा रही थीं.

किसी के घर पर पूजा थी.

मेरी मौसी के तीन लड़के और एक लड़की हैं सोनू, मोनू, समीर और सीमा.

उस दिन सभी लड़के बाहर गए थे सिर्फ मौसी और सीमा ही थे.

मौसी भी पूजा में जा रही थीं.

मैं जब गया तो मौसी ने पूछा- कोई काम है क्या बेटा?

मैंने कहा- नहीं.

वे बोलीं- ठीक है, तुम बैठो. मैं पूजा में जा रही हूँ. दो घंटे में आऊंगी.

मैंने उनसे मौसा जी और भाइयों के बारे पूछा तो वे बोलीं- वे लोग शाम को आएंगे. सीमा है अन्दर!

इतना कह कर मौसी चली गईं.

मैं घर में गया तो सीमा टीवी देख रही थी.

मैंने जाकर उसे पकड़ लिया तो वह बोली- भाई मां बाहर हैं … या चली गईं?

मैं बोला- चली गईं हैं.

बस फिर क्या था … मैंने दरवाजा बंद कर दिया.

उसने मुझे कसके पकड़ लिया.

मैं उसकी संतरे जैसी चूचियों को समीज के ऊपर से ही दबाने लगा और किस करने लगा.

वह भी मेरा साथ दे रही थी.

मैंने उसकी समीज को उतारना चाहा तो उसने मना कर दिया.

वह बोली- कोई आ गया तो क्या बोलेगा कि दरवाजा खोलने में इतनी देर क्यों लगी. आप हाथ डाल कर जो करना हो कर लीजिए.

मैंने कहा- सलवार तो उतारोगी … या उसमें भी बस हाथ ही डालना पड़ेगा?

उसने कहा- नहीं, बस नीचे सरका दूंगी.

मैंने अपना लोअर नीचे किया और अपने लंड को उसके मुँह में दे दिया.

वह मेरे लंड को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी.

लगभग 15 मिनट के बाद मेरा पानी उसके मुँह में ही छूट गया.

वह सारा पानी पी गई और बोली- आज तो आपका रस बहुत अच्छा लग रहा है.

मैंने कहा- अब मुझे भी चूत का रस पीना है.

वह मेरे ऊपर चूत लगा कर बैठ गई.

मैंने उसकी चूत को जीभ से चूसना शुरू कर दिया.

वह काफी गर्म हो गई थी तो जल्दी ही झड़ गई और उसका सारा रस मेरे मुँह में आ गया.

मैंने उसकी चूत का सारा रस चाट लिया और चूत चाट कर साफ कर दी.

अब उसने मेरे लंड को वापस सहलाना चालू किया और चाटने लगी.

एक बार फिर से मेरा लंड खड़ा हो गया.

बस फिर क्या था, मैंने उसे पलंग पर लिटा दिया और उसकी सलवार और कच्छी नीचे कर दी, पैर ऊपर उठा दिए.

फिर अपने लंड पर थोड़ा सा तेल लगा कर बहन की कुंवारी बुर में लंड डालने लगा.

लेकिन अभी तक सिर्फ उंगली से मजा किया था, लंड उसकी कुंवारी बुर में जा ही नहीं रहा था, फिसल रहा था.

मैंने अपने लंड को उसकी बुर के छेद पर सैट करके एक जोर का झटका दिया, मेरे लंड का सुपारा अन्दर चला गया.

वह दर्द से कराह उठी और बोली- बहुत दर्द हो रहा है भइया … आप इसे बाहर निकाल लो. आह आप जितना चाहे उंगली कर लो, पर इसे बाहर निकालो.

पर मैं कहां मानने वाला था … मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और चूसने लगा.

कुछ देर बाद जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो वह भी मेरा साथ देने लगी.

फिर मैंने एक और झटका दिया और मेरा आधा लंड उसकी कुंवारी बुर में चला गया.

वह फिर से दर्द से कराह उठी.

मैंने देर न करते हुए एक और झटका दे दिया और मेरा पूरा लंड उसकी बुर में चला गया.

वह मुझसे छूटने की कोशिश करने लगी और बोली- मैं मर जाऊंगी प्लीज मुझे छोड़ दो … बहुत दर्द हो रहा है.

पर मैंने उसे कस कर पकड़े रखा और किस करने लगा.

मैं धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर करने लगा.

थोड़ी देर बाद जब उसका दर्द कम हुआ तो वह भी मेरा साथ देने लगी.

हम दोनों ने लगभग 20 मिनट तक सेक्स किया.

इस दौरान वह एक बार झड़ चुकी थी … और अब मेरा भी पानी बाहर आने वाला था.

मैंने उससे पूछा- कहां निकालूँ?

वह एकदम से बोली- बाहर बाहर … वरना कुछ हो गया तो मैं मर जाऊंगी.

मैंने कहा- हां, हमने सेफ्टी भी नहीं लगाई थी.

फिर मैंने अपना सारा पानी उसके मुँह पर दे मारा.

मैंने देखा कि उसकी बुर से खून निकल रहा था.

उसने भी चूत के खून निकलता देखा.

वह झट से उठ कर बाथरूम में चली गई और उधर जाकर उसने खुद को साफ कर लिया.

बिस्तर की चादर भी खून से रंग गई थी, उसने उसे भी पानी में गला दिया.

जब वह बाथरूम से बाहर आ रही थी तो सही से चल नहीं पा रही थी.

वह बोल रही थी कि अभी भी दर्द है.

इधर मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया था.

मैंने उसे फिर से पकड़ लिया.

तो वह बोली- अब इधर नहीं … बाथरूम में ही चल कर करो.

मैंने कहा- तुम्हें दर्द है न?

उसने कहा- हां, पर मजा भी तो आ रहा है न!

मैं उसे उठा कर फिर बाथरूम में ले गया और उसकी बुर में लंड डाल कर फिर चोदने लगा.

इस बार मैं उसे घोड़ी बना कर पेल रहा था.

सच में देसी Xxx गर्ल को इस आसन में चुदने में बड़ा मजा आ रहा था.

कुछ देर बाद मैं लंड बाहर निकाल कर झड़ गया और हम दोनों साफ सफाई करने लगे.

तभी बाहर के दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई हम दोनों अलग हुए और मैंने बाहर जाकर दरवाजा खोला.

सीमा की दादी आई थीं.

वे बोलीं- सीमा कहां है?

मैंने कह दिया- वह बाथरूम में है.

तभी सीमा लंगड़ाती हुई बाहर आई.

दादी ने पूछा- तुम्हें क्या हुआ?

वह बोली- मैं बाथरूम में गिर गई.

वे कुछ नहीं बोलीं.

अब जब भी हम दोनों को मौका मिलता है, हम सेक्स कर लेते हैं.

अभी तक मैं उसे कई बार पेल चुका हूँ

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सनातन गंगा

सनातन धर्म शाश्वत नियम है. जीवन के कुछ खास तत्व या बुनियादी पहलू हैं जो हमेशा लागू होंगे. सनातन धर्म का मतलब है कि हमारे पास इस बात की अंतर्दृष्टि है कि जीवन हमेशा कैसे कार्य करत सनातन धर्म शब्द का आज आम तौर पर गलत इस्तेमाल होता है. यह एक गलतफहमी है कि धर्म का मतलब मजहब होता है. धर्म का मतलब मजहब नहीं है, इसका मतलब नियम होता है. इसीलिए हम विभिन्न प्रकार के धर्मों की बात कर रहे हैं - गृहस्थ धर्म, स्व-धर्म और विभिन्न दूसरे किस्म के धर्म. मुख्य रूप से, धर्म का मतलब कुछ खास नियम होते हैं जो हमारे लिए इस अस्तित्व में कार्य करने के लिए प्रासंगिक हैं। आज, इक्कीसवीं सदी में, चीजों को संभव बनाने के लिए आपको अंग्रेजी जाननी होती है. यह एक सापेक्ष चीज है. हो सकता है कि पांच सौ से हजार सालों में, ये कोई दूसरी भाषा हो सकती है. हजार साल पहले ये एक अलग भाषा थी. वो आज के धर्म हैं - वो बदलते रहते हैं. लेकिन सनातन धर्म शाश्वत नियम है. जीवन के कुछ खास तत्व या बुनियादी पहलू हैं जो हमेशा लागू होंगे. सनातन धर्म का मतलब है कि हमारे पास इस बात की अंतर्दृष्टि है कि जीवन हमेशा कैसे कार्य करता है। कुछ दिन पहले मुझसे पूछा गया कि हम सनातन धर्म की रक्षा कैसे करें? वैसे, क्या सनातन धर्म को सुरक्षा की जरूरत है? नहीं, क्योंकि अगर वह शाश्वत है, तो मैं और आप उसकी सुरक्षा करने वाले कौन होते हैं? लेकिन इस सनातन धर्म तक कैसे पहुंचें और इन नियमों के जानकार कैसे हों, और उसे अपने जीवन में कैसे लागू करें. इन पहलुओं के बारे में आज की भाषा में, आज की शैली में, और आज के तरीके में बताए जाने की जरूरत है, ताकि यह इस पीढ़ी के लोगों को आकर्षक लगे. वे इसे इसलिए नहीं अपनाने वाले हैं क्योंकि आप इसे कीमती बता रहे हैं. आप इसे उनके दिमाग में नहीं घुसा सकते. आपको उन्हें इसकी कीमत का एहसास दिलाना होगा, आपको उन्हें यह दिखाना होगा कि यह कैसे कार्य करता है. सिर्फ तभी वे इसे अपनाएंगे. सनातन धर्म को सुरक्षा की जरूरत नहीं है. इसे जिए जाने की जरूरत है, इसे हमारी जीवनशैली के जरिए हम सब के अंदर जीवित रहना चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं करते, तो इसकी रक्षा करने से ये अलग-थलग हो जाएगा। सनातन धर्म को मुख्य धारा में लाना ही मेरा प्रयास है. बिना धर्म शब्द को बोले, मैं इसे लोगों के जीवन में ला रहा हूंं, क्योंकि अगर इसे जीवित रहना है तो इसे मुख्य धारा बनना होगा. एक बड़ी आबादी को इसे अपनाना होगा. अगर बस थोड़े से लोग इसे अपनाते हैं और यह सोचते हैं कि वे बेहतर जानते हैं, और वे हर किसी से ऊंचे हैं, तो यह बहुत ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहेगा. हम इस संस्कृति के सबसे कीमती पहलू को, इस मायने में मार देंगे कि धरती पर यही एक संस्कृति है जहां उच्च्तम लक्ष्य मुक्ति है. हम स्वर्ग जाने की या भगवान की गोद में बैठने की योजना नहीं बना रहे हैं. हमारा लक्ष्य मुक्ति है, क्योंकि आप जो हैं, अगर आप उसके अंतरतम में गहरे खोजते हैं, तो आप समझेंगे कि इससे फर्क नहीं पड़ता कि यह चाहे सुख हो, ज्ञान हो, प्रेम हो, रिश्ते हों, दौलत हो, ताकत हो, या प्रसिद्धि हो, एक मुकाम पर आप इनसे ऊब जाएंगे. जो चीज सचमुच मायने रखती है वो आजादी है, और इसीलिए यह संस्कृति महत्वपूर्ण है - बस आज के लिए ही नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए भी। अतीत में लोग सनातन धर्म के लिए वाकई तैयार नहीं थे, क्योंकि हर पीढ़ी में सिवाय कुछ लोगों के, बड़े पैमाने पर कोई बौद्धिक विकास नहीं था. तभी तो वे कभी यह नहीं समझ सके कि आजाद होने का क्या मतलब होता है, उन्होंने सिर्फ सुरक्षा खोजी. अगर आप धरती पर सारी प्रार्थनाओं पर गौर करें, तो उनमें से नब्बे प्रतिशत सिर्फ इस बारे में हैं - ‘मुझे यह दीजिए, मुझे वह दीजिए, मुझे बचाइए, मेरी रक्षा कीजिए!’ ये प्रार्थनाएं मुक्ति के बारे में नहीं हैं, वे जीवन-संरक्षण के बारे में हैं। लेकिन आज, मानव बुद्धि इस तरह से विकास कर रही है कि कोई भी चीज जो तर्कसंगत नहीं है, वो दुनिया में नहीं चलेगी. लोगों के मन में स्वर्ग ढह रहे हैं, तो ये आश्वासन कि ‘मैं तुम्हें स्वर्ग ले जाऊंगा,’ काम नहीं करने वाला है. अब कोई भी स्वर्ग नहीं जाना चाहता.  सनातन धर्म के लिए यह सही समय है. यही एकमात्र संस्कृति है जिसने मानवीय प्रणाली पर इतनी गहाराई से गौर किया है कि अगर आप इसे दुनिया के सामने ठीक से प्रस्तुत करें, तो ये दुनिया का भविष्य होगी. सिर्फ यही चीज है जो एक विकसित बुद्धि को आकर्षित करेगी, क्योंकि ये कोई विश्वास प्रणाली नहीं है. यह खुशहाली का, जीने का और खुद को आजाद करने का एक विज्ञान और टेक्नालॉजी है. तो सनातन धर्म कोई अतीत की चीज नहीं है. यह हमारी परंपरा नहीं है. यह हमारा भविष्य है।

Nilmani · realistisch
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एक संन्यासी ऐसा भी

उपन्यास "एक संन्यासी ऐसा भी" को हम तीन प्रमुख वर्गों और उनके अंतर्गत आने वाले विभिन्न भागों में विभाजित कर सकते हैं। यह विभाजन कहानी को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने में सहायक होगा और पाठकों को महादेव की यात्रा को समझने में मदद करेगा। वर्ग 1: प्रारंभिक जीवन और आत्मिक जिज्ञासा इस वर्ग में महादेव के बचपन और उसके मन में आत्मज्ञान की खोज की शुरुआत का वर्णन है। यह भाग महादेव की जिज्ञासा, प्रश्नों और संघर्षों पर केंद्रित होगा। भाग 1: बचपन और परिवार - गाँव की पृष्ठभूमि और महादेव का परिवार - माँ के साथ महादेव का संबंध - बचपन की मासूमियत और प्रारंभिक जिज्ञासाएँ भाग 2: आंतरिक संघर्ष की शुरुआत - महादेव का अन्य बच्चों से अलग होना - गाँव में साधारण जीवन और महादेव का उससे अलग दृष्टिकोण - शिवानन्द से पहली मुलाकात और आध्यात्मिकता की पहली झलक भाग 3: युवावस्था और आकर्षण - गंगा के प्रति महादेव का आकर्षण और आंतरिक द्वंद्व - घर और समाज की जिम्मेदारियों का दबाव - ईश्वर और भक्ति के प्रति बढ़ता रुझान वर्ग 2: आध्यात्मिक यात्रा और संघर्ष इस वर्ग में महादेव की आत्मिक यात्रा, भटकाव, और उसके संघर्षों का वर्णन है। यह भाग उसकी साधना, मानसिक उथल-पुथल, और आंतरिक शक्ति की खोज को उजागर करेगा। भाग 4: आत्मज्ञान की खोज - तीर्थ यात्रा और विभिन्न साधुओं से मुलाकात - आत्मा की गहन खोज और ध्यान - प्रकृति के साथ एकात्मता का अनुभव भाग 5: मोह-माया से संघर्ष - स्त्री आकर्षण के विचार और उनका दमन - घर वापस लौटने की कोशिश और मोह-माया के जाल में फँसने की स्थिति - साधना में बढ़ती हुई गहराई और आध्यात्मिक अनुभव भाग 6: आंतरिक चेतना का उदय - महादेव का अंतर्द्वंद्व और आत्मिक साक्षात्कार - ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण - शारीरिक और मानसिक थकावट का अनुभव वर्ग 3: मोह-मुक्ति और आत्मसमर्पण यह वर्ग महादेव के आत्मज्ञान प्राप्ति और मोह-मुक्ति के पथ को दर्शाता है। इसमें उनके कर्तव्यों का निर्वाह, संसार से दूरी, और अंत में संन्यासी के रूप में पूर्ण समर्पण का वर्णन होगा। भाग 7: कर्तव्य का निर्वाह - परिवार के प्रति अंतिम कर्तव्यों की पूर्ति - सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्ति - आध्यात्मिक जीवन की ओर संपूर्ण समर्पण भाग 8: अंतिम मोह-मुक्ति - महादेव का मोह और तृष्णा से पूरी तरह से मुक्त होना - अपने जीवन को पूर्ण रूप से संन्यास में समर्पित करना - जीवन के अंतिम समय में ईश्वर में विलीन होने की तैयारी भाग 9: आत्मज्ञान की प्राप्ति - महादेव का आत्मज्ञान और अंतिम यात्रा - भौतिक जीवन का अंत और आत्मा का मोक्ष - संन्यासी के रूप में महादेव का जीवन-समाप्ति समाप्ति: उपन्यास के अंत में महादेव के संन्यास, आत्मसमर्पण, और उसकी अंतिम यात्रा को दर्शाया जाएगा। यह भाग पाठक को एक गहरी सीख देगा कि भौतिकता से मुक्त होकर, आत्मज्ञान की ओर बढ़ना कितना कठिन है, परंतु यह वह मार्ग है जो हमें मोक्ष की ओर ले जाता है। विशेष नोट: प्रत्येक वर्ग और भाग में भारतीय समाज और संस्कृति का चित्रण प्रमुख रहेगा। महादेव की यात्रा को एक आम व्यक्ति के दृष्टिकोण से देखा जाएगा, जिससे पाठक आसानी से उससे जुड़ सकें।

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