जब ऋषि के तपस्या टूट गई जिससे ऋषि अति क्रोधित हुए और धरती से बाहर आकर कालरात्रि को अपने सामने देखकर कालरात्रि को श्राप देते हैं तभी ओम ऋषि के सामने आकर क्षमा मानते हुए कहते हैं कि हमें क्षमा कर दें हमारा उदेश आप की तपस्या भंग करना नहीं था हम तो प्रतिदिन इस सरोवर के पास बैठकर अपने सुख दुख बाटते है यदि हमें पता होता है कि आप यहा तपस्या कर रहे हैं तो हम कभी यहां नहीं आते हमें क्षमा कर दीजिए तब ऋषि अत्यधिक क्रोध से बोलते हैं तुम दोनों ऊर्जापिण्ड के हिस्से हो इसलिए तुम्हें कभी भी किसी की पीड़ा का आभास नहीं होगा आज तुम्हारे कारण में अपनी परमात्मा से नहीं मिल पाया मेरा तपस्या अधूरा रह गया इसलिए तुम्हें इसका दंड मिलेगा , इसलिए मैं ऋषि मानू आपके समक्ष तप पुण्यकर्म और अपने ईश्वर को साक्षी मानकर तुम्हें तुम्हारी माता के सौगंध देते हुए ये श्राप देता हूं इसी चांद के अस्त होते ही तुम कालरात्रि को छोड़कर सदा के लिए यहां से चले जाओगे जब तक मेरी तपस्या पूरा नहीं होता तब तक तुम अपनों से नहीं मिलोगे यदि तुमने मेरी श्राप पूरी नहीं हुई तो पूरे जगत में एक मां और पुत्र का रिश्ता सदा के लिए कलंकित हो जायेगा तुम वही ओम हो जो ऋषिभक्छी के श्राप को व्यर्थ कर दिया लेकिन मेरे दिये श्राप को तुम कभी भी व्यर्थ नहींकर पाओगे यदि तुमने ऐसा किया तो मेरा श्राप में तुम्हारे मां नाम है तब ओम अति क्रोध में कहते हैं अपने उचित नहीं किया ऋषिवर ऋषिभक्छी इच्छा इसलिए पूरी नहीं हुई क्योंकि मेरी माता की इच्छा मेरे लिए सर्वोपरि है ऋषिभक्छी के कहने पर मैं अपनी मां को छोड़कर नहीं जा सकता था इसलिए मैंने वह श्राप स्वीकार नहीं किया लेकिन आप के कहने पर मैं अपनी मां को छोड़ कर जाऊंगा और आपके दिए श्राप को मैं स्वीकार कर लूंगा ऋषिमानू अत्यधिक क्रोध में कहते हैं इसके अलावा तुम्हारे पास कोई रास्ता नहीं है कालरात्रि ऋषिमानू के पैरों में गिर जाते हैं और छमा मांगते हैं कालरात्रि के विलाप सुनकर ऋषिमानू कहते हैं तुम दोनों तभी एक दूसरे से तब ही मिल पाओगे जब मैं अपनी परमात्मा से मिलूंगा इसलिए आज से तुम यह प्रार्थना करो कि मैं अपने परमात्मा से अति शीघ्र मिल पाऊं इतना कहने के बाद ऋषि मानु वहां से चले जाते हैं और कालरात्रि वहां से उठकर सरोवर के पास जाकर बैठ जाते हैं ओम के लाख समझाने पर कालरात्रि की एक ही बात कहती रही थी कि ओम उसे छोड़कर ना जाए चांद व्यस्त होने वाला था और ओम को अपनी मां के पास भी जाना था लेकिन कालरात्रि के इच्छा के बिना ओम काल रात्रि को छोड़ कर नहीं जा सकता था इसलिए ओम ने आखिरी बार कालरात्रि को समझाया यदि मै नहीं गया तो मेरे कारण एक मां और पुत्र का रिश्ता सदा के लिए समाप्त हो जायेगा और मै ये नहीं चाहता इसलिए मुझे जाना होगा लेकिन तुम नहीं चाहती तो मैं नहीं जाऊगा लेकिन इससे क्या होगा मैं मैं स्वयं को कभी भी इस भर से मुक्त नहीं कर पाऊंगा मैं तुम्हारी इच्छा के बिना मै तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकता इसलिए मुझे जाने की अनुमति दे दो कालरात्रि मुझे जाने से पहले मैया से भी मिलना है तब कर लेना उनसे कहानी तब कल रात्रि ने उनसे कहा यदि तुम्हें जाना है तो मुझे एक वचन दो अपनी मैया की सौगंध खाकर कि तुम अतिशीघ्र लौट कर आओगे अन्यथा यह कालरात्रि इस ब्रह्मांड में कहीं भी लुप्त हो जाएगी फिर तुम मुझे कभी ढूंढ नहीं पाओगे तुम मुझे वचन दो ओम तब ओम ने कहा मैं वचन देता हूं मै अति शीघ्र लौट कर आऊंगा तब कालरात्रि मुस्कुराती हुई कहती हैं तुम बेफिक्र और हर चिंता से मुक्त होकर जाओ लेकिन जाते जाते मुझे इतना सुरक्षित करके जाओ कि कोई मेरे पास ना सके कोई मुझे कभी छू न सकें कोई मेरी इच्छा के बिना मेरे आस-पास आ न सके और देवो के किया कर्म का फल भोगना पड़ेगा उन्हें फिर कालरात्रि ने ओम के ह्रदय पर अपना हाथ रख कर कहा तुम इस दुनिया में तुम कहीं भी चले जाओ पर मैं सदा तुम्हारे साथ तुम्हारे ह्रदय आहट बनकर रहूंगी जिससे तुम मुझे कभी भूल नहीं पाओगे तुम्हारे आंखों में मैं आंसू बनकर आऊंगी जब भी तुम्हें मेरी याद आय तो अपने हृदय पर हाथ रखकर मुझे याद कर लेना कालरात्रि तुम्हारे साथ होगी तब ओम का ह्रदय धड़कना शुरू किया कालरात्रि के हाथ का छाप ओम के ह्रदय पर था कालरात्रि ने ओम को जाने की अनुमति दे दी तो ओम कालरात्रि से आठ पग चलता है और कालरात्रि के इर्द-गिर्द आठ चक्र बना जिससे कालरात्रि को सुरक्षा प्रदान करेगा और उस चक्र को कोई नहीं लाघ सकता था सिवाय कालरात्रि की जब ओम ने नौवा पग रखा तोहि चंद्रमा अस्त हो गया और ओम धीरे-धीरे जमीन पर लेट गया अपनी मैया से मिलने की ख्वाब ओम के आंखों में था जब ओम को ज्ञात हुआ कि अब वह अपनी मैया के पास छोड़कर नहीं जा सकता तब ओम ने अपनी मैया को आखिरी बार पुकारा नमोदेवी उस वक्त ध्यान में थे लेकिन अपने पुत्र के पुकार सुनते ही