अर्ज़ कुछ यूँ किया है ज़रा गौर फरमाइयेगा
कोई शिकवा नहीं उससे जिस ने हमको समझा ही नहीं
कोई शिकवा नहीं उससे जिस ने हमको समझा ही नहीं
गलती उसकी नहीं हमारी मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट है
जिसको उसके आपनो ने नहीं समझा तो दुसरो से सिखायात कैसा
और जो हमें समझा वो तो हमारा साथ छोड़ता ही नहीं है
अकेलापन में जो मज़ा है वो तो भीड़ में नहीं है
अब तो यूँ बना के भीड़ से डर लगता है हमें
एक दर्द सा उठता है दिल में जब देकता हूँ उसे कहीं
अब तो आदत सी पड़ गयी है दर्द सहने की हमें