शाम के सात बजे थे । मैं अपनी घर कि बरामदे में बैठा था। कुछ लोगों कि भीड़ हमारे घर कि सामने से कहीं जा रही थी। वे सभी लोग जल्दी में थे । सभी के चेहरे पर चिंता कि लकिरें साफ़ देखी जा सकती थी। ऐसा लग रहा था कि कोई बड़ी अनहोनी हो गई है। मैंने उन्हीं में से एक से पूछा ' क्या हुआ ?, आप सब इतनी जल्दी में कहां जा रहे है । ' भाई बस्ती में आग लग गई है ,' उनमें से एक ने कहा । मैं यह सुनते ही अपने घर से निकलकर उनके साथ सामिल हो गया।
जब तक हम उस बस्ती तक पहुंचें तब तक आग बुझ गई थी। लोगों के भीड़ के बीच से अब भी काले धुएं आसमान कि तरफ़ उठ रही थी। शायद अब भी कुछ बांस के टुकड़े अंदर ही अंदर जल रहे थे । जो अब भी आसियाने को मिटाने के लिए तैयार बैठे थे ।
मेरी निगाह एक नवजवान लड़के पर पड़ी । वहांं एक बड़ी नाली थी , जिससे गन्दे पानी को उठा वह अब भी बाल्टी से पानी मारे जा रहा था । उसे कई लोग रोकने कि कोशिश कर रहे थे , क्योंकि अब आग बुझ चुकी थी । लेकिन वह संभलने का नाम नहीं ले रहा था। उसका पूरा बदन नाली कि गंदे पानी से गंदा हो चुका था । उसके दोनों आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे । उसे रोकने के लिए तीन-चार लोगों ने उसे पकड़ लिया । लेकिन वह अब भी उनसे छुटकर पानी डालना चाहता था। उसकी स्थिति पागलों के जैसी थी और थोड़ी ही देर में वह बेहोश भी हो गया था ।
उसका पागलों कि तरह रूप बन जाने का कारण था , उसके आसियाने का पूरी तरह से जल जाना । एक आसियाना बनाने में वर्षों लग जाते हैं लेकिन उसे तबह होने में ज्यादा समय नहीं लगता है । आसियाने के जलते ही कुछ ही पल में खुशियां गम में बदल जाती है , उसके साथ ही कई सपने दफन हो जाते है ।
अभी कुछ ही तो साल हुए थे , वे लोग अपना किराये के मकान को छोड़कर इस बस्ती में नया आसियाना बनाये थे । हर महीने के खर्च को कम करने के लिए राज्य के सत्ताधारी के कुछ चहितो को पैसे देकर एक तालाब के किनारे कुछ जमीन ली थी । ( जिसे हम अतिक्रमण भी कहते हैं। ) वे कर भी क्या सकते हैं , एक भेन चलाकर कितने पैसे कमा सकते थे। वह अपने घर का अकेला नौजवान था । पिता और मां के साथ उसकी एक बहन भी थी । जिसकी पढ़ाई का खर्च भी वही उठाता था ।
थोड़ी देर बाद उस नौजवान को होश आती है । वह उठकर खड़ा होता है । अपने आसियाने को एक नज़र देखता है और खुद को संभालते हुए आगे बढ़ता है । उसके परिवार के बाकी लोग उस दिन किसी रिश्तेदार के घर गए हुए थे। जले हुए बांस और टूटे टाली के मलवे पर पैर रखकर वह किसी तरह जले हुए घर कि आलमारी तक जा पहुंचता है । आलमारी में से कुछ अधजली किताबों को निकालकर उसे अपने सिने से लगा लेता है । उसके बाद जोड़-जोड़ से रोने लगता है ।