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भारतवर्ष का एक नास्तिक

realistisch
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Zusammenfassung

ये कहानी है राहुल शर्मा की जो एक धार्मिक परिवेश में रहनेके बवाजुत भी भगवान में वो भरोसा नहीं करता था उसको लगता था भगवान इंसानों के मन मे होता है मूर्तियों या मंदिरो में नहीं वो सिर्फ कर्म में भरोसा रखने वालो में से था इसीलिए उसके धर्म और समाज के लोगो से बोहोत कटु बाते और निंदा मिलती थी पर उसके बाबजुत उसने कैसे अपने जीवन को आगे बढ़ाई और अपने समाज को भी आधुनिकता के रंग से वाकिफ कराया वोही इस कहानी में प्रकाशित हुआ है।