बेह रही थी मैं जैसे किसी तेज लहर की तरह फिर भी ना डर था और ना ही कोई चिंता। मै डूब नहीं रही थी बल्कि खुद ही एक लहर की तरह थी जैसे वो जलधारा मेरी दोस्त हो और में उसके साथ बड़ी खुशी से भर्ती जा रही हूं।
पर ज्यू ये सब हो रहा है? मै तो पानी से इतना डरती हूं कि भारी बाल्टी में भी नहीं देख सकती। फिर आज क्यों मुझे कोई डर नहीं है। आज मुझे अपनी निडरता से डर लग रहा है। और यूहीं मेरी दिल की धड़कने बढ़े जा रही हैं।
ये क्या हो रहा है, क्यू हो रहा है।
तभी मैने देखा कि हज़ारों के झुंड में रंग बिरंगी मछलियां मेरे पास आ रही। मानो इन्द्रधनुष चलता हुआ मेरी तरफ आ रहा हो। वैसे तो कभी मछलियों को पास से देखा तक नहीं। पर तब ऐसा लग रहा था के मेरा परिवार मेरे पास आ रहा है। और फिर अचानक एक बड़ी सी मछली मेरे पास तेज़ी से आयी और मेरे गले से लग गई। मैं सकपका गई, पर फिर भी में दरी नहीं। क्यों?
और फिर वो हुआ जो में कभी सोच भी नहीं सकती थी।
कहा गई थी तुम, पता है हम जितना परेशान हो गए थे। कोई से चिंता नहीं तुम्हें, कुछ हो जाता तो - ये सब उस बड़ी मछली ने मुझे बोला।
मेरी आंखे तो फटी की फटी रह गई।
है भगवान ये क्या हो रहा है, लग रहा है में एक साथ दो जिन्दगी जी रही हूं - मेरे मन ने सोचा!
पर फिर भी मैने जवाब दिया - मेमेमेम्म्म! वो! वो!
क्या मै, वो लगा रखा है। सही सही बताओ कहा गई थी। कुछ गडबड तो नहीं करके आयि हो। - एक दूसरी बड़ी मछली ने आके बोला।
अच्मभे भरे मैने कहा - मुझे नहीं पता में कहा गई थी।
कुछ याद नहीं।
तभी एक लड़के ने आके मुझे सिर पे मारा और कहा - अब याद आया!
और अचानक में फिर से एक पानी के अंदर अंधेरे में जाने लगी , गोल गोल घूमने लगी। अब कोई नहीं दिख रहा था में बिल्कुल अकेली थी और बस नीचे डूबे जा रही थी घोर अंधेरे में। अब मुझे सच में डर लग रहा था। लग रहा था जैसे ये ही अंत हट अब मेरा। तभी फिर एक रोशनी सी मेरी तरफ जोरो से आती हुई मेरी आंखो में जोर से गिरी।
नहिहिहिहिही!
और चीखती हुई मै अपने सपने से जागती हूं। पसीने से भरा मेरा चेहरा, मानो सच में ही पानी में डुबकी लगाकर आई हूं।
ऐसा लग रहा था जैसे सच वो जब मेरे साथ हुआ है। होश आने में भी 10 मिनट लग गए।
तभी दूर से एक आवाज़ आई- मर गई क्या सपने मै?
तब एहसास हुआ कि सपना था। पर बड़ा ही अजीब था।