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१. कुछ इतिहास के बातें और कुछ आज के बातें

सदियों पहले जहां हमारे भारत पर राजाओं का शासन चलता था वहां अब राजाओं के वंशज के कुछ लोग तो हैं पर उनका शासन आज के जमाने में नहीं होती है, वहां आज के जमाने में गणतंत्र शासन चलती है। सदियों पहले राजपूत राजाओं का शासन चलता था फिर उनके बाद तुर्की शासन जो सन १२०६ से लेकर सन १२९० ( 1206 - 1290 ) तक चला था। फिर आया खिलजी शासन , तुगलक शासन, सयद शासन, फिर आया लोदी शासन। ये वो बंशज था जिसका आखरी राजा इब्राहिम लोदी के खिलाफ मुगल सल्तनत के पहले बादशाह ज़ाहिर - उद - दिन मुहम्मद बाबर ने पहला पानीपथ का जंग छेड़ा था। फिर बाबर के बाद उनके बेटे नसीर - उद - दिन मुहम्मद हुमायूं ने शासन किया। फिर उनके बेटे जलाल - उद - दिन मुहम्मद अकबर जो ' Akbar The Great ' के नाम से भी जाने जाते हैं उनके बाद जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब और भी नज़ाने कितने आए और गए। वैसे भी मुगल सल्तनत एक लौता ऐसा बंश था जिसने की ज्यादा समय तक हमारे हिंदुस्तान पर शासन किया था। मुगल सल्तनत के ६वी बादशाह औरंगजेब के बाद ये सल्तनत कमज़ोर पड़ गया। मुगल सल्तनत के आखरी शासक या शहंशा या बादशाह जो भी आप कह सकते है वो जो थे बहादुर शाह ज़फ़र उन्हाने अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध किया। पर जीत अंग्रेजो की हुई। फिर मुगल सल्तनत का शासन खत्म और अंग्रेजो का शासन शुरू। फिर इनके अत्याचारों से तंग आकर कई आंदोलन हुए, कई जाने गई, कई स्वाधीनता संग्रामी शहिद हुए। बड़े बड़े आंदोलन में से एक ' भारत छोड़ आंदोलन ' भी हुआ था। इन्ही सब आंदोलन के चलते अंग्रेजों ने तंग आकर आखिर में सन १९४७ अगस्त १५ को भारत छोड़ा। फिर हमारा देश स्वाधीन भारत के नाम से जाना जाने लगा। फिर सन १९५० जनवरी २६ को संविधान प्रणयन लागू हुआ। जिसके बाद हमारे स्वाधीन भारत ( India ) पर गणतंत्र शासन चलने लगा। और आज तक भी ये शासन चला आ रहा है और आशा है की आगे भी चलेगा। ये बातें तो हुई कुछ इतिहास के। तो कुछ आज के बातें कर लें !

मध्य प्रदेश का इंदौर शहर, जहां एक लड़की रहती थी सारा, जिसका परिवार का किसी न किसी तरीके से राजबंशो के साथ जुड़ा रहता है। सारा आठवी कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की जो Annual Exam देने के बाद नवी कक्षा में आने वाली थी। वो भी राजबंशी के साथ जुड़ी थी। मतलब उसने एक बार किसीकी जान बचाई थी। बाद में पता चला की वो राजस्थान की हुकुम रानीसा थी। उसके बाद उनका जैसे सारा के साथ एक लगाव सा हो गया था। अब इतिहास के इतने बातें जान लिए तो इनके बारे में भी थोड़ा जान लीजिए। राजस्थान के हुकुमसा अमर प्रताप सिंह और हुकुम रानिसा मयूरी प्रताप सिंह अपनी महल जो की राजस्थान के जैसलमेर पर था, वहां रहते हैं। उनका एक बेटा भी है जिसका नाम है अभय प्रताप सिंह। उसकी भी सारा के साथ अच्छी खासी दोस्ती थी। हुकुम सा की अच्छी खासी संबंध दो जगहों के राजाओं के साथ है। पहले जो हैं वो उनके सबसे ज्यादा करीब हैं, वो हैं माधवगढ़ के कुंअर राजा सा अभिनव सिंह। उनकी पत्नी हैं संध्या सिंह और उन दोनो का एक बेटा है जिसका नाम है कुंअर विजय सिंह। वो भी अभय और सारा के अच्छे दोस्त हैं। पूरी राजस्थान पर इन तीनो की दोस्ती की चर्चा होती है। जो दूसरे उनके करीबी दोस्त हैं, वो है सुजीत सिंह जो की झारखंड के रायपुर के राजा हैं। उनकी पत्नी का देहांत बहुत पहले हो गई थी। उनके परिवार के तौर पर अब सिर्फ उनकी एक बेटी थी। जिसका नाम मालनी सिंह है। मालनी बहुत घमंडी, स्वार्थी और लालची लड़की है। उसे अपने रूतवे और पैसों का दिखावा करना बहुत पसंद है। वो सोचती थी की उसके पास रूतवा है, इज्जत है, पैसे है तो अभय उससे जरूर इंप्रेस हो कर उससे प्यार कर बैठेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अभय उससे प्यार करने की जगह नफरत करता था। अब ये सब बातें आपको कहानी के आगे पता चलेगी मतलब आप जैसे जैसे कहानी पढ़ते जायेंगे आपके मन में उठ रहे सवाल के जवाब भी मिलते जायेंगे। अब हम इस कहानी को शुरू करते हैं हुकुम रानी सा और सारा के मिलने से।

जैसलमेर, अमर का महल, सुबह का वक्त,

" ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है,

जागो उठकर देखो,जीवन जो तू उजागर है,

सत्यम शिवम सुंदरम,सत्यम शिवम सुंदरम "

ये आरती हुकुम रानीसा मयूरी प्रताप सिंह कर रही थी। उनकी इसी भक्ति गीत से महल की सुबह होती थी। उनके आवाज सुन सब आकर अपने हाथ जोड़ महादेव के बड़े से मूर्ति के सामने खड़े हो गए। जब आरती खत्म हुई तब हुकुम रानीसा ने सबको आरती दी और प्रसाद बांट दिए। फिर उन्होंने आरती के थाल को वहां पे खड़ी रमा को देते हुए बोलीं, " पूरे महल में आरती और प्रसाद बांट दो। "

" जी, हुकुम रानीसा। " इतना कहकर रमा वहां से चली गई।

रमा के जाने के बाद हुकुम सा यानिकि अमर प्रताप सिंह बोले, " मयूरी आप जल्दी से तैयार हो जाएं। कहीं हम लेट ना हो जाए माधवगढ़ पहुंचने में। "

" हम अभी तैयार होकर आते हैं और आप चिंता मत कीजिए हम बिलकुल भी लेट नहीं होंगे। " इतना कहकर मयूरी वहां से चली गईं। मयूरी के जाने के बाद अमर अपने बेटे अभय के तरफ मुड़कर देखते हुए बोले, " अभय, आप भी जाएं और तैयार हो जाएं। "

" जी बापू सा " इतना कहकर अभय वहां से अपने कमरे के ओर चल पड़ा। कमरे में पहुंच वो तैयार होने लगा। वहां पे ढेर सारे नोकर खड़े थे अपने हाथों में कपड़े और आभूषणों की थाली को लेकर। अभय हमेशा नॉर्मल शर्ट पैंट पहनता था। उसे ये गहने और कपड़े कुछ खास पसंद नहीं थे। बस जब कोई त्योहार होता तो वो ये शाही लिवाज और आभूषण पहनता था। उसने नौकरों को तुरंत आदेश दिया, " आप ये कपड़े और आभूषण यहां से तुरंत ले जाएं और हमारे लिए शर्ट, पैंट, बेल्ट, सक्स और बूट निकालिए जल्दी। " इतना कहकर वो अपने नरम और मुलायम बिस्तर पर बैठ गया। कुछ ही देर में उसके कपड़े निकाल दिए गए। फिर अभय ने आदेश दिया, " एकांत "

उसके कहने की ही देर थी की वहां से सारे नोकर जा चुके थे। सबके जाने के बाद अभय तैयार होने लगा। इस तरफ मयूरी के कमरे में मयूरी आईने के सामने बैठी थीं। रमा उनकी बाल बना रही थी। रमा ही हर दिन मयूरी को तैयार किया करती थी। बाल बनाने के बाद उसने उनके माथे पर मांग टीका लगाया और उनके सर पर घूंघट डाल दिया। इसके बाद उसने मयूरी से कहा, " जाने की अनुमति दें हुकुम रानीसा "

मयूरी बोलीं, " ठीक है, जाओ। " जब रमा को इजाज़त मिल गई, तो वो वहां से चली गई। उसके जाने के बाद मयूरी अपनी शाही सिंदूर की डिब्बी को हाथ में लेकर उसे कुछ पलों तक प्यार से निहारती रही और किसी दुनिया में खो गई। जब अमर की आवाज नीचे हॉल से आई तब वो अपने खयाली दुनिया से बाहर आईं। उन्होंने जल्दी से अपनी मांग भरी और फिर सिंदूर की डिब्बी को वहीं टेबल पर रख वो कमरे से बाहर आ गईं। जब वो सीढ़ियों से नीचे आ रहीं थीं, तब सब उनके चेहरे को घूर रहे थे। अमर की नजर जब मयूरी पर पड़ी तो वो भी मूर्ति बनकर उन्हे देखने लगे। जब मयूरी उनके पास आई तब अमर वैसे ही खड़े थे। मयूरी चुटकी बजाते हुए बोली, " कहां खो गए आप ? अभी आपको देर नहीं हो रही ! "

जब मयूरी की आवाज अमर के कानों पर पड़ी तब वो हड़बड़ाते हुए बोले, " नहीं वो अभय नहीं आएं हैं अभी तक तो वोही सोच रहे थे। " वो क्या बोलें उन्हें समझ हीं नहीं आ रहा था। उनकी नजरें तो मयूरी पर से हठ ही नहीं रही थी। मयूरी काफी खूबसूरत थीं और शाही राजपूती लहंगा और आभूषण उन्हे और भी सुंदर बना रही थी और मांग में लगे सिंदूर और गले में पहने मंगलसूत्र उनके सुंदरता पर चार चांद लगा रही थी। अमर अभी मयूरी के चेहरे को निहार ही रहे थे की तभी अभय सीढ़ियों से नीचे आते हुए बोला, " चलें बापू सा ? "

जब अभय की आवाज अमर के कानों पर पड़े तब वो फिरे से हड़बड़ाते हुए बोले, " हां, चलते हैं। "

अभय उन दोनों के पास आकर मयूरी को देखते हुए बोला, " मांसा आप आज बहुत खूबसूरत लग रहीं है " और फिर वो अपने बापुसा के तरफ देखते हुए बोला, " आप भी आज बहुत हैंडसम, डैशिंग और स्मार्ट लग रहे हैं। "

इतना सुनकर अमर और मयूरी ने अभय को धनबाद कहा और उसकी भी तारीफ की। फिर वो तीनों बाहर आकर कार के पास आ गए। अमर के असिस्टेंट बिक्रम जो की अमर के परिवार का सबसे भरोसेमंद आदमी था वो कार का डोर खोलते हुए बोला, " खंबागड़ी हुकुम सा, खंबागड़ी हुकुम रानीसा, खंबागड़ी राजकुमार "

अमर हाथ जोड़ते हुए बोले, " प्रणाम बिक्रम "

फिर मयूरी बोलीं, " प्रणाम बिक्रम जी। "

अभय ने भी कहा, " प्रणाम विक्रांत अंकल। "

सब प्रणाम बोलने के बाद जाकर गाड़ी में बैठ गए और निकल गए माधवगढ़ के सफर पर।