क्या सपना है,क्या सच?
कौन सा दुनिया असल है, आंख खोले देख रहा या जो आंख बंद कर के देख रहा?
ये दुनिया कैसे काम करती है?
सबसे कीमती क्या है?
क्या है वो जो मुझे, मैं बनाता है?
Chapter -1
पहली नजर
(2019 बिलासपुर छत्तीसगढ़ का एक शहर)
नए घर के समान व्यवस्थित कर ही रहा था की, कल हो रही गृह प्रवेश की पूजा के निमंत्रण के लिए मां ने मुझे भेज।
नमस्ते आंटी, जी हमारे यहां कल पूजा है,सुबह 10 बजे से स्टार्ट है आएगा।
नमस्ते आंटी..........!
अभी घरों में ये ही डायलॉग चिपकते जा रहा था, और करता भी क्या एक ही दिन तो हुए है मुझे इस नए एरिया में आए। मेरे स्ट्रीट में सभी घरों में बोल चुका था। बस हमारे बगल वाले पांडे आंटी के घर पर ही बच गया, कोई थे ही नहीं उस टाइम घर पर ।
सभी पड़ोसियों को बोल दिया ना? शक भरी तेज आवाज में मां ने किचन के अंदर से ही पूछा।
हा,बोल दिया बस बगल वाले पांडे के घर पर ही बचा है, कोई नहीं था वह थोड़े देर में जाकर बोल दूंगा ।
हाँ, शाम में बोल ही देना। मां ने जोर देते हुए कहा।
ओह...वैसे मैं अपना इंट्रो देना तो भूल ही गया ।
मेरा नाम रौनक है, घर पर हम चार सदस्य है, पापा का छोटा सा दुकान है, भाई PSC की तैयारी कर रहा , और मां ।
और मैं इंजीनियर हु...… भविष्य का। अभी ही इंजीनियरिंग खत्म किया अभी जॉब नहीं तो भविष्य .....।
खाना खाकर आंख बंद की ही थी, की मां उठा दिया। जा पांडे जी आ गई होंगी जाकर बोल आ।
अभी कुछ सेकंड पहले ही अमेरिका के एक गार्डन में बैठा थे, किसी के हाथों में हाथ लिए। एक पल में ही सपना टूट गया।
आंखें मलते हुए, वॉश रूम में फ्रेश होकर, पांडे आंटी के घर निकल गया।
उनके घर की घंटी बजाई कोई नहीं निकला, मैं थोड़ा इंतजार किया फिर बजाया इस बार आंटी ने दरवाजा खोला।
जी नमस्ते आंटी, मैं आपके बगल वाले घर से हु, हमने अभी अभी यहां.... मैं अभी बात पूरा किया भी नहीं था अमीषा जी के यह से हो आप ... आंटी बात काटते हुए बोली।
जी मैं उनका छोटा बेटा हु।
जी वो कल हमारे यह गृह प्रवेश की पूजा है सुबह 10 बजे से, आप लोग आइएगा…..।थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला।
गेट पर खड़ा होकर बात कर ही रहा था की मेरा पूरा ध्यान अंदर सोफे पर बैठी उस बंदी पर गया।
साँवला रंग , काले बाल लेकिन फैशन का भी हद है घर के अंदर चश्मा कौन पहनता है, वो भी सनग्लासेस। खैर जो भी थी प्यारी थी, मेरी उम्र की ही थी।
अंदर बैठो, चाय पीकर जाना बेटा, आंटी ध्यान भटकते हुए बोली सायद वह समझ गई थी। मेरी नजर कहा है।
मन तो था मेरा भी, पर पहले ही दिन, आंटी के नजरों में नहीं आना चाहता था।
मैं ना बोलकर वह से वहां से निकल गया।
आज का दिन कैसे निकल गया पता ही नहीं चला , रात को बिस्तर पर लेट कर बस यही सोच रहा था की, मुझे अट्रेक्शन हुआ है या प्यार...…।
मेरे लिए तो दोनों एक जैसा है, बस अंतर सलाद और सैलेड के जितना ही है मेरे लिए।
कब आंख लग गई पता ही नहीं चला।
(पूजा वाला दिन)
सुबह 6 बजे ही उठा दिया गया, और पूजा की तैयारी करते करते कब 9:30 हो गया पता ही नहीं चला। इधर पंडित जी भी आ गए थे, वो भी लगे थे अपनी तैयारी में।
10 बज गए पूजा स्टार्ट हो गया, बस इंतजार कर रहा था मैं उसके आने का ...नाम भी नहीं पता चला था उसका , किस्से पूछता कोई था ही नहीं, मां से पूछ नहीं सकता था और उससे डायरेक्ट बात करने का मौका नहीं मिला ।
कोई न आज पूजा में आयेगी तो मौका देख कर बात कर लगा... बस ख्याली पुलाव पका रहा था।
11 बजे गए अभी भी नहीं आई वो...…
11:15 पांडे आंटी आई लेकिन अकेली...…मन थोड़ा सा उदास हुआ मेरा लेकिन मैं कर भी क्या सकता हु।
पूजा खत्म हुआ, मैं प्रसाद बाटने लगा, आज का दिन भी निकल गया ।
दूसरे दिन मैं सुबह मैं बाहर निकल चाय पीने ...….. नजर मेरी बस बगल वाले घर पर ही थी…..
आज वो भी छत पर खड़ी थी, पीले रंग की सलवार, सनग्लासेस लगाए।
तिरछी नजरों से उसे देखते हुए चल रहा था, उसकी नज़र भी मेरे तरफ थी वो भी देख रही थी मुझे….।
करीबन आधे घण्टे बाद वापस आया तो वो नहीं दिखी। मैं भी अपने घर पर जाकर कल की तैयारी करने लगा। कल रायपुर जो जाना है।